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पिता की सैलरी रोके जाने पर कश्मीरी युवा ने खुदकुशी की, राजनीतिक पार्टियों की तरफ से जांच की अपील 
एक वीडियो में, 24 वर्षीय युवक ने दावा किया कि उसका परिवार अत्यधिक संकट में है, क्योंकि प्रशासन ने उसके पिता की दो वर्षों से सैलरी रोक रखी है, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। 
अनीस ज़रगर
01 Jun 2021
पिता की सैलरी रोके जाने पर कश्मीरी युवा ने खुदकुशी की, राजनीतिक पार्टियों की तरफ से जांच की अपील 
फाइल फोटो 

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक पार्टियां तथाकथित खुदकुशी मामले की जांच कराए जाने की मांग कर रही हैं। यह मांग उन्होंने दक्षिण कश्मीर के कुलगांव जिले के एक युवक का वीडियो वायरल होने के बाद की है, जिसमें दावा किया गया है कि परिवार की खस्ता आर्थिक हालत की वजह से वह खुदकुशी कर रहा है। 

24 वर्षीय युवक ने वीडियो में दावा किया है कि उसका परिवार अत्यंत ही खस्ता हालत में रह रहा है और अपना वजूद बनाए रखने के लिए जूझ रहा है क्योंकि अथॉरिटी ने उसके पिता की सैलरी  पिछले 2 साल से रोक रखी है-जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। उस युवक ने दावा किया कि वह उन सभी शिक्षकों के लिए भी खुदकुशी कर रहा है, जिनको उनके पिता की तरह ही वर्षों से पगार नहीं दी जा रही है। 

पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है और तथ्यों का पता लगाने के लिए जांच शुरू कर दी है। हालांकि इस घटना ने पूरे क्षेत्र को सदमे में ला दिया है और इसे लेकर प्रशासन की तीव्र निंदा की जा रही है। 

पीड़ित युवक के पिता कुलगांव में एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। 1990 के दशक में उग्रवाद-आतंकवाद में लिप्त होने की वजह से पहले तो उन्हें “प्रतिकूल” सूची में डाला गया और फिर उनकी सैलरी रोक दी गई। 

प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया है कि “एक आदमी ने अपने पिता की तरह बाकी शिक्षकों के बदतर हालात को रोशनी में लाने के लिए अपनी जान  कुर्बान कर दी है, जिनकी सैलरी 2018 से ही रोक दी गई है। उसकी  खुदकुशी के लिए और ऐसे परिवार की आर्थिक तंगहाली पर मजबूर करने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को कसूरवार ठहराया जाना चाहिए। उम्मीद है कि नया सीएस अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक मानवीय दृष्टि अपनाएंगे।”

 कांग्रेस पार्टी ने इस घटना को “अत्यधिक स्तब्धकारी और दुर्भाग्यपूर्ण” बताया है। पार्टी के प्रवक्ता ने एक वक्तव्य में कहा, यह घटना सरकार को अपने अधिकारियों की ऐंठ की तरफ ध्यान देने के लिए बाध्य करेगी, जो “निराशाजनक और अमानवीय” है। 

बयान में कहा गया है, “ दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और जो इस खास मामले में संलिप्त हैं, उन पर शिक्षक के बेटे को खुदकुशी के लिए उकसाने और बातें करने के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।” 

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने भी इस मामले की “तय समय सीमा में जांच करने और इस घटना के लिए जिम्मेदारी तय किए जाने” की मांग की। तारिगामी कुलगांव विधानसभा का ही 1996 से लेकर 2018 तक प्रतिनिधित्व करते रहे थे। 

“यदि उसके पिता के पूर्व आतंकवादी होने की रिपोर्ट सही है, तो इसकी जांच उन्हें नौकरी दिए जाने से पहले ही की जानी चाहिए थी, क्यों इतने दिन बाद लोगों को और उनके परिवार को इस स्थिति में लाया जा रहा है। अगर कोई आदमी 20 साल पहले खून-खराबे से तौबा कर चुका हो और मुख्यधारा में लौट आया हो,  तो उसे अमन के साथ रहने दिया जाना चाहिए”, तारिगामी ने कहा। 

अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी ने भी अनुरोध किया है कि शिक्षक की सैलरी रोकने के जिम्मेदार अधिकारियों को अवश्य ही “खुदकुशी के लिए उकसाने का मुकदमा दायर” किया जाना चाहिए। 

“यह एक बेहद घिनौनी घटना है, जो उन परिवारों के मानसिक तनाव और आघात के स्तर की भयावह तस्वीर को दर्शाती है,जिनकी सैलरी कोविड-19 महामारी के भीषण समय में भी निर्दयी नौकरशाही व्यवस्था द्वारा रोक दी गई है, वह भी ऐसे समय में जब कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी से देश जूझ रहा है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह वाकयात आंख खोलने वाला और सरकार को सावधान करने का आह्वान है”, बुखारी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है।

 बुखारी ने केंद्र शासित प्रशासन से भी “इंसानीयत का नजरिया” अपनाने की अपील करते हुए कहा उसे जनता के बीच पहले से मौजूद अलगाव को फिर से जोड़ने से बचना चाहिए। 

“यह महामारी पहले ही लोगों के लिए विनाशकारी साबित हुई है और इससे लोगों की आर्थिक तंगहाली आई है। जो लोग सत्ता में बैठे हुए हैं, उन्हें ऐसी परिस्थिति में रह रहे लोगों दीनता का मजा नहीं लेना चाहिए,” उन्होंने कहा। 

1980 के दशक में जब क्षेत्र में हथियारबंद उग्रवाद-आतंकवाद की शुरुआत हुई, तो कई लोग इसमें शरीक हो गए थे या उन पर उग्रवादियों-आतंकवादियों का साथ देने का इल्जाम लगाया गया था। हालांकि बाद में इनमें कई सारे लोगों ने हिंसक उग्रवाद से अपने को दूर रखने की जी-तोड़ कोशिश की। तभी से वे एक व्यापारी, कार्यकर्ता, श्रमिकों के रूप में सामान्य जीवन जीने का प्रयास करते रहे हैं, इनमें से कई लोगों ने सरकारी नौकरी भी ज्वाइन की। सैकड़ों लोग राज्य समर्थित मिलिशिया, जिसे इख्वान के नाम से जाना जाता है, में भी शामिल हुए और उग्रवाद-आतंकवाद से लड़ने के लिए मानवाधिकारों का उल्लंघन किया।

प्रसंगवश बताना है कि ऐसा दावा किया गया है कि केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने कम से कम पांच सरकारी कर्मचारियों या शिक्षकों को "राष्ट्रीय सुरक्षा" के प्रतिकूल होने के आरोप में मई 2021 में सेवा से मुक्त कर दिया है। हालांकि कर्मचारी-शिक्षकों ने इसका खंडन किया है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

J&K Youth Dies by Suicide Saying Father’s Salary Withheld, Political Parties Call for Probe

Jammu and Kashmir
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