NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जेएनयू हिंसा: कम गार्डों की नियुक्ति और दिल्ली पुलिस की लेटलतीफ़ी से हुआ बड़ा नुक़सान?
साबरमती में रहने वाले एक शख़्स ने बताया कि जिन गार्ड की तैनाती हुई, हमले के वक़्त वे ख़ुद अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे।
रवि कौशल
10 Jan 2020
JNU

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रविवार को हुए हमले के बाद अब एक नया खुलासा हुआ है। एक आरटीआई के जवाब में पता चला है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सुरक्षा गार्डों की संख्या कम कर दी थी। पिछली बार जिस कंपनी के पास सुरक्षा का ठेका था, उसने ज़्यादा गार्डों की नियुक्ति की थी। जबकि यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था में किया जाने वाला ख़र्च बहुत बढ़ा दिया गया है। संबंधित आरटीआई, जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष रहे एन साई बालाजी ने लगाई थी। इससे पता चला कि सुरक्षा का ठेका ''सायक्लोप्स सिक्योरिटी एंड एलाइड सर्विस प्राइवेट लिमटेड'' और ''आर्मी वेलफ़ेयर प्लेसमेंट ऑर्गेनाइज़ेशन'' को दिया गया है। इसके तहत 250 गार्ड की नियुक्ति की गई है। हालांकि शुरुआती टेंडर में 400 गार्ड की मांग की गई थी।  

एक जनवरी 2019 को जारी किए गए टेंडर पर लिखा था, ''नई दिल्ली स्थित जेएनयू कैंपस में एक्स सर्विसमैन सिक्योरिटी गार्ड्स द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के बावत् तीन शिफ्ट में 24 घंटों के लिए 400 लोगों की ज़रूरत है। शुरुआत में कांट्रेक्ट दो साल के लिए होगा।'' कांट्रेक्ट के मुताबिक़, कंपनी को हर गार्ड के हिसाब से 46,613 रुपये दिए गए। इसपर भी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने सवाल उठाए थे। हाई पॉवर कमेटी को दिए मेमोरेंडम में एसोसिएशन ने कहा था, ''यूनिवर्सिटी पर ग़ैर अकादमिक और ग़ैरज़रूरी ख़र्चों का भार बढ़ रहा है। यूनिवर्सिटी में सुरक्षानिधि में 250 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी की गई, जबकि सुरक्षा गार्ड के स्तर से भी समझौता किया गया।''

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बालाजी ने बताया, ''यूनिवर्सिटी पहले हर गार्ड पर 35,000 रुपये ख़र्च कर रही थी, जिसमें इनकी संख्या भी ज़्यादा थी। अब 50 हज़ार रुपये प्रति गार्ड ख़र्च करने के बावजूद सुरक्षा देने वाली कंपनी ने गार्ड की संख्या कम कर दी। यह कैंपस की सुरक्षा से खिलवाड़ है। इतने बड़े कैंपस को संभालने के लिए आपको ज़्यादा गार्ड की ज़रूरत होती है। हम पहले दिन से ही यह मुद्दा उठा रहे हैं। जेएनयू वीसी ने टेंडर भी अपनी पसंद की कंपनी को दिया। जिस कंपनी को ठेका दिया गया, उसे अकादमिक संस्थानों को सुरक्षा देने का अनुभव ही नहीं था। जेएनयू वीसी ने ऐसी कंपनी को ठेका देकर, हाल की घटना की पृष्ठभूमि तैयार की।''

rti.JPG

पिछले 70 दिनों से फ़ीस बढ़ोत्तरी का विरोध कर रहे छात्रों का आरोप है कि गार्ड उन्हें हमलावरों से बचाने में नाकामयाब रहे। साबरमती में रहने वाले एक शख़्स ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब हमलावरों ने हमला किया तो सुरक्षाकर्मियों को ख़ुद अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी थी। लेकिन पूरी कहानी यही नहीं है।

जेएनयूएसयू प्रेसिडेंट आइशी घोष, वसंत विहार एसएचओ और स्पेशल कमिश्नर आनंद मोहन के बीच हुए कुछ मोबाइल संदेशों से अभी खुलासा हुआ है कि पुलिस को दोपहर तीन बजे ही सूचना दी जा चुकी थी कि नकाबपोश हमलावर यूनिवर्सिटी में घुस चुके हैं। लेकिन पुलिस वालों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। घोष द्वारा भेजे गए एक संदेश के मुताबिक़, ''यह संदेश आपको बताने के लिए है कि प्रशासनिक ब्लॉक में स्थित मूर्ति से सिर्फ़ 100 मीटर दूर बड़ी संख्या में लोग हथियारों और लाठियों के साथ इकट्ठा हुए हैं। यह यूनिवर्सिटी के छात्रों को पीट रहे हैं। हम आपसे इन्हें हटाने की मांग करते हैं और हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना के लिए तुरंत कार्रवाई की मांग करते हैं'

न्यूज़क्लिक ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से संपर्क साधने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

JNU
JNUSU
Violence in JNU
delhi police
ABVP

Related Stories

कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’

अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?

बग्गा मामला: उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पंजाब पुलिस की याचिका पर जवाब मांगा

लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!

लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी

शाहीन बाग़ : देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ!

शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'

जहांगीरपुरी : दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा दिए अदालत ने!


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License