NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
जेएनयू: छात्रों की हड़ताल जारी, कैंपस में सीआरपीएफ की मौजूदगी से छात्रों का विरोध और तेज़
मंगलवार, 5 नवंबर को हड़ताल के नौवें दिन भी छात्र एडमिन ब्लॉक के बाहर धरने पर बैठे हुए हैं। हड़ताल के आठवें दिन, सोमवार को अचानक सुबह कैंपस में केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) को उतार दिया गया, जिससे छात्रों का गुस्सा और बढ़ गया है।
मुकुंद झा
05 Nov 2019
JNU

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र दिवाली के बाद 28 अक्टूबर से से ही फीस बढ़ोत्तरी और हॉस्टल के नियमों में बदलाव के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के छात्र, छात्रसंघ के नेतृत्व में हड़ताल पर हैं और शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं। आज 5 नवंबर को हड़ताल के नौवें दिन भी छात्र एडमिन ब्लॉक के बाहर धरने पर बैठे हुए हैं। हड़ताल के आठवें दिन, सोमवार को अचानक सुबह कैंपस में केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) को उतार दिया गया, जिससे छात्रों का गुस्सा और बढ़ गया है।  

4 अक्तूबर, सोमवार को जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) का विरोध मार्च था। उससे पहले 120 से अधिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवानों की एक कंपनी और दिल्ली पुलिस की कई कंपनियों को कैंपस में गश्त करते हुए देखा गया। लेकिन जब कुलपति ने छात्रों से मिलने से साफ इंकार कर दिया तो छात्रों ने देर शाम मुनीरिका थाने तक मार्च किया और कुलपति के गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई।
73528591_2463539380394549_8503011239977287680_n.jpg
जेएनयू के छात्रों के मुताबिक कैंपस का ऐसा नज़ारा पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया था। कभी भी कैंपस में सीआरपीएफ नहीं आई थी। यहाँ तक की 16 फरवरी की घटना के बाद भी कैंपस में पुलिस ही आई थी। आखिरी बार कैंपस में ऐसा नजारा 36 साल पहले हुआ था। जुलाई 1975 में, आपातकाल घोषित होने के बाद, CRPF ने छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों में से सरकार के आलोचकों को पकड़ने के लिए कैंपस में छापा मारा था। इसके बाद सीआरपीएफ 1983 में कैंपस में कुलपति के घर का घेराव कर रहे छात्रों पर काबू पाने के लिए आई थी। आपको बता दें कि तब भी प्रदर्शन हॉस्टल के सवाल को लेकर ही किया जा रहा था। उस समय कई छात्रों को गिरफ़्तार किया गया था, गिरफ़्तार छात्रों में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत विनायक बनर्जी भी थे।

इस बार भी छात्र हॉस्टल में फीस बढ़ोत्तरी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। अपने नवीनतम आदेशों में जेएनयू प्रशासन ने छात्रावास, मेस और सुरक्षा शुल्क में 400% की वृद्धि की है। छात्रावास और रीडिंग रूम की समय सीमा को सीमित कर दिया है और समाज के हाशिए वाले वर्गों के छात्रों को छात्रावास के कमरे के आवंटन में आरक्षण की शर्तों को रद्द कर दिया है। प्रदर्शन कर रहे छात्र आपस में बात कर रहे थे कि "वह हमें नियमों का पालन करवाने के बजाय हमसे बात क्यों नहीं कर रहे हैं? यहां तक कि हम भी चाहते हैं की हम क्लास करें, हमारी पढ़ाई हर रोज बुरी तरह प्रभावित हो रही है।" छात्र यहाँ कुलपति एम० जगदीश कुमार का उल्लेख कर रहे थे, जिनके नवीनतम आदेशों से उन छात्रों के बीच भारी असंतोष है। छात्र इस कदम को 'जबरन बहिष्कार' करार दे रहे हैं।

जेएनयू छात्र संघ के उपाध्यक्ष साकेत मून ने कहा कि तैनाती ऐसे समय में हो रही है, जब छात्र अपने वाजिब अधिकारों की मांग कर रहे हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह अभूतपूर्व है क्योंकि हमें दंगाई कहा जा रहा है जबकि विश्वविद्यालय में छात्रों का आंदोलन अब तक शांतिपूर्ण रहा है और विरोध के लिए सविनय अवज्ञा का विकल्प चुना है।"

ये सभी छात्र हॉस्टल में जबरदस्त फीस बढ़ोत्तरी और अन्य बढ़ोत्तरी के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। आपको बता दें कि एक बंद कमरे में इंटर-हॉल एडमिनिस्ट्रेशन की बैठक में जेएनयू प्रशासन ने नए हॉस्टल मैनुअल को अपनी मंजूरी दी, जिसे कई छात्रों ने बहिष्कार यानी उन्हें हॉस्टल से बेदखल करना कहा है।

बताया जा रहा है कि नए पारित प्रावधानों के तहत, हॉस्टल शुल्क को 20 रुपये से बढ़ाकर 600 रुपये और 1700 सर्विस चार्ज लगा दिया गया है। इस तरह ये फीस 2300 रुपये हो जाती है। इसी तरह मेस शुल्क भी बढ़ाया गया है। इसको लेकर कई छात्रों ने कहा कि यह कदम ऐसा है जिससे उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी।

प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना हैं कि विश्वविद्यालय में अधिकतम छात्र निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों से आते हैं। उनके लिए लगातार महंगी होती शिक्षा हासिल करना आसान नहीं है।

साकेत कहते हैं कि "विश्वविद्यालय ने खुद स्वीकार किया है कि लगभग 60% छात्र प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों से हैं। इस स्थिति में प्रशासन छात्रों को प्रति माह लगभग 4,200 रुपये का भुगतान करना होता है। यदि हम इसे 12 से गुणा करते हैं, तो हम पाते हैं कि एक छात्र को प्रति वर्ष 50,400 रुपये का भुगतान करना होगा। क्या यह परिवार इस राशि को वहन कर सकते हैं?'

फीस वृद्धि के आलावा छात्रों में 'कर्फ्यू टाइमिंग' के खिलाफ भी गुस्सा हैं। जेएनयू हमेशा से अपने खुलेपन के लिए पहचाना जाता रहा है लेकिन प्रशासन उस पर ही हमला कर रहा है। नए दिशानिर्देशों के अनुसार 11:00 बजे के बाद किसी भी छात्र को हॉस्टल से बाहर जाने की अनुमति नहीं है।  जबकि  विश्वविद्यालय में लाइब्रेरी 24*7 खुलती है और छात्र वहां पढ़ते भी है। अगर आप जेएनयू की लाइब्रेरी में रात  में भी जाए तब भी आपको बैठने की जगह मुश्किल ही मिले। लेकिन इस आदेश के बाद से छात्र रात को शायद ही लाइब्रेरी में जा पाए क्योंकि उन्हें 11बजे तक हॉस्टल में वापस लौटना होगा।

73182743_2516585445077429_847000506055262208_n.jpg

इसके आलावा छात्रों के हॉस्टल में अगर कोई मिलने आता है उसकी जानकारी भी वार्डेन को देनी होगी।ऐसा न करने की सूरत में उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

इसके साथ ही जेएनयू में हॉस्टल देने की लिए एक आरक्षण नीति थी जिसके तहत छात्रों को हॉस्टल दिए जाते थे अब उसे भी रद्द कर दिया गया हैं। इसका खामियाजा एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) और ओबीसी (अन्य पिछड़े वर्ग) समुदायों के छात्रों के अलावा अन्य लोगों पर भी पड़ेगा। इस सबका सबसे अधिक प्रभाव शारीरिक रूप से विकलांग / नेत्रहीन विकलांग छात्रों पर पड़ेगा।  क्योंकि उनके लिए आरक्षण नीति के आवेदन का विशिष्ट विवरण था उसे भी  पूरी तरह से हटा दिया गया है।

जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष एन साई बालाजी इसे विश्वविद्यालय के चरित्र पर हमला बता रहे है। यह काफी हद  लगता है क्योंकि जेएनयू जिस खुलेपन और सामाजिक न्याय के लिए जाना जाता है वो सभी इस निर्णय के बाद खत्म होते दिख  रहे हैं।

जेएनयू अपने राजनीतिक विचारों की विविधता के लिए भी जाना जाता है,लेकिन प्रशासन के इस निर्णय के खिलाफ पूरा जेएनयू अपने छात्रसंघ के साथ मिलाकर लड़ रहा है। छात्रसंघ का नेतृत्व अभी वाम संगठनों के हाथों में है लेकिन  वर्तमान में  सरकार और कुलपति का पक्ष लेनी वाली अखिल भारतीय परिषद (एबीवीपी) भी इस मुद्दे पर छात्रसंघ के साथ खड़ी दिख रही है।

हालांकि, सभी छात्र अपनी मांग को लेकर एकजुट हैं वो कह रहे है  "हम अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लड़ेंगे भले ही प्रशासन यहाँ सेना लाए!," यह एक वाक्य है जो कैंपस में हर छात्र बोलते हुए  सुना जा सकता है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।

JNU
Student Protests
Fee Hike
CRPF in campus
Jawaharlal Nehru University
JNUSU

Related Stories

जेएनयू: अर्जित वेतन के लिए कर्मचारियों की हड़ताल जारी, आंदोलन का साथ देने पर छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष की एंट्री बैन!

‘जेएनयू छात्रों पर हिंसा बर्दाश्त नहीं, पुलिस फ़ौरन कार्रवाई करे’ बोले DU, AUD के छात्र

जेएनयू हिंसा: प्रदर्शनकारियों ने कहा- कोई भी हमें यह नहीं बता सकता कि हमें क्या खाना चाहिए

JNU में खाने की नहीं सांस्कृतिक विविधता बचाने और जीने की आज़ादी की लड़ाई

हिमाचल: प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस वृद्धि के विरुद्ध अभिभावकों का ज़ोरदार प्रदर्शन, मिला आश्वासन 

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

रेलवे भर्ती मामला: बर्बर पुलिसया हमलों के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलनकारी छात्रों का प्रदर्शन, पुलिस ने कोचिंग संचालकों पर कसा शिकंजा

रेलवे भर्ती मामला: बिहार से लेकर यूपी तक छात्र युवाओं का गुस्सा फूटा, पुलिस ने दिखाई बर्बरता

अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोध छात्र, अचानक सिलेबस बदले जाने से नाराज़

झारखंड विधान सभा में लगी ‘छात्र संसद’; प्रदेश के छात्र-युवा अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License