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जम्मू कश्मीर: सर्वदलीय बैठक में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने, विधानसभा चुनाव कराने की उठी मांग
प्रधानमंत्री के आवास पर हुई बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री आजाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘इस बैठक में हमने पांच मुद्दे उठाए हैं। पहला यह कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए। दूसरा, वहां चुनाव कराये जाएं।’’
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
24 Jun 2021
जम्मू कश्मीर: सर्वदलीय बैठक में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने, विधानसभा चुनाव कराने की उठी मांग
Image courtesy : India Today

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सर्वदलीय बैठक में शामिल अधिकांश राजनीतिक दलों ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और जल्द से जल्द विधानसभा का चुनाव संपन्न कराने की मांग उठाई।

पिछले लगभग दो सालों में पहली बार जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेतृत्व के साथ वार्ता का हाथ बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस केंद्रशासित प्रदेश के भविष्य की रणनीति का खाका तैयार करने के लिए बृहस्पतिवार को वहां के 14 नेताओं के साथ एक अहम बैठक की।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान हटाए जाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद यह पहली ऐसी बैठक है जिसकी अध्यक्षता  प्रधानमंत्री मोदी ने की।

बैठक संपन्न होने के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री व भाजपा नेता कविंद्र गुप्ता ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों को विश्वास दिलाया कि परिसीमन की प्रक्रिया समाप्त होते ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।

पीपल्स कांफ्रेंस के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने भी कहा कि केंद्र की ओर से बैठक में आश्वासन दिया गया कि परिसीमन की प्रक्रिया खत्म होते ही चुनाव की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘अधिकांश राजनीतिक दलों ने बैठक में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने की मांग उठाई।’’

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने बैठक के बाद अपने आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 निरस्त करने के दौरान केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि उपयुक्त समय पर जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा कि अब समय आ गया है कि कि पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल किया जाए। अभी शांति भी है और चुनाव कराने का इससे अनुकूल समय नहीं हो सकता।’’

उन्होंने कहा कि सरकार लोकतंत्र को मजबूत कराने की बात करती है तो उसे राज्य में तुरंत विधानसभा चुनाव कराना चाहिए।

आजाद ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि केंद्र सरकार राज्य का दर्जा बहाल करने और चुनाव कराने को लेकर वचनबद्ध है लेकिन उससे पहले परिसीमन की प्रक्रिया समाप्त होना जरूरी है।
 गुलाम नबी आजाद के मुताबिक, कांग्रेस की ओर से यह मांग भी उठाई गई कि जमीन एवं रोजगार के मामलों में राज्य के डोमेसाइल की गारंटी दी जाए तथा राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए।

प्रधानमंत्री के आवास पर हुई बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री आजाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘इस बैठक में हमने पांच मुद्दे उठाए हैं। पहला यह कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए। दूसरा, वहां चुनाव कराये जाएं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर में बहुत लंबे समय से राज्य के डोमेसाइल के नियम रहे हैं। हमारा यह कहना है कि केंद्र सरकार को गारंटी देनी चाहिए कि जमीन एवं रोजगार को लेकर डोमेसाइल होगा।’’

आजाद ने कहा, ‘‘कश्मीरी पंडित पिछले तीन दशक से बाहर हैं। यह जम्मू-कश्मीर के हर नेता का मौलिक कर्तव्य है कि कश्मीर के पंडितों की वापसी हो। हमसे जो हो सकेगा हम उसमें मदद करेंगे।’’

उन्होंने बताया, ‘‘ पांच अगस्त, 2019 के फैसले के बाद जिन राजनीतिक लोगों को बंदी बनाया गया था, उनको सबको रिहा कर दिया जाना चाहिए। यह मांग भी हमने की है।’’

कांग्रेस नेता के मुताबिक, ‘‘ गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए वचनबद्ध हैं, लेकिन पहले परिसीमन होने दीजिए। परिसीमन के बाद चुनाव भी होंगे और पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।’’

एक सवाल के जवाब में आजाद ने कहा, ‘‘हम संतुष्ट उस दिन हो जाएंगे जब चुनाव हो जाएंगे और पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर चुनाव कराना है, लोकतंत्र बहाल करना है तो यह जल्द होना चाहिए। हम चाहते हैं कि लोकतंत्र बहाल होना चाहिए...हम नौकरशाही के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमने कहा कि नौकरशाही नेताओं का स्थान नहीं ले सकती। जिस तरह नेता लोगों से मिलता है, उस तरह से अधिकारी नहीं मिल सकते।’’

इससे पहले, पिछले लगभग दो सालों में पहली बार जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेतृत्व के साथ वार्ता का हाथ बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस केंद्रशासित प्रदेश के भविष्य की रणनीति का खाका तैयार करने के लिए बृहस्पतिवार को वहां के 14 नेताओं के साथ एक अहम बैठक की।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान हटाए जाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद यह पहली ऐसी बैठक है जिसकी अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री मोदी ने की।

राजधानी के 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर लगभग साढ़े तीन घंटे चली इस बैठक में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के चार पूर्व मुख्यमंत्री और चार पूर्व उपमुख्यमंत्री शामिल हुए।

इन नेताओं में नेशनल कॉन्फ्रेंस के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला, उनके पुत्र व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, कांग्रेस नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर प्रमुख हैं।

इनके अलावा बैठक में पीपल्स कांफ्रेंस के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग, पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के मोहम्मद यूसुफ तारिगामी, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी और पीपल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन मौजूद थे।

भाजपा की ओर से बैठक में शामिल होने के लिए जम्मू एवं कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रवींद्र रैना, पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंद्र गुप्ता और निर्मल सिंह भी प्रधानमंत्री आवास पहुंचे।

बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी के मिश्रा, गृह सचिव अजय भल्ला और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौजूद थे।

यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब एक दिन पहले ही परिसीमन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जम्मू-कश्मीर के सभी उपायुक्तों के साथ मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्गठन और सात नयी सीटें बनाने पर विचार-विमर्श किया था।

अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में इस दिसम्बर से अगले साल मार्च के बीच चुनाव कराने को तत्पर हैं। कोशिश है कि इससे पहले परिसीमन के काम को पूरा कर लिया जाए।

परिसीमन की कवायद के बाद जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी।

ज्ञात हो कि पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त कर राज्य को जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था।

इसके बाद फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक संसद में पारित किए जाने के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने आश्वासन दिया था कि केंद्र उपयुक्त समय पर जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करेगा।

सात महीने पहले ही इस केंद्रशासित प्रदेश में जिला विकास परिषद के चुनाव संपन्न हुए थे। इस चुनाव में गुपकर गठबंधन को 280 में से 110 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। गठबंधन के दलों में नेशनल कांफ्रेस को सबसे अधिक 67 सीटों पर विजय हासिल हुई थी जबकि 75 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी।

जम्मू-कश्मीर में 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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