NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
जौन एलिया : एक अराजक प्रगतिशील शायर!
सोशल मीडिया ने जौन एलिया की एक ख़ास तरह की पहचान बना दी है; एक शायर जो इश्क़ में नाकाम होकर ख़ून थूकने लगे। लेकिन जौन की शायरी के कई और पहलू भी हैं। आज, जौन एलिया की 17वीं बरसी पर, हम नज़र डाल रहे हैं जौन एलिया की उस शायरी पर जो वामपंथ से और प्रगतिशील मसलों से जुड़ी हुई है।
सत्यम् तिवारी
08 Nov 2019
jaun
सौजन्य : मोहसिन ज़ैदी

हर शायर का एक दौर होता है। इस दौर में उस शायर को पढ़ने वाले, सुनने वाले उसे दीवानगी की हद तक पसंद करने लगते हैं। उर्दू शायरी में तमाम शायर अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन दौर से गुज़रे हैं, चाहे वो उनके जीते जी गुज़रा हो, या फिर उनकी मौत के बाद। आज जब हम 2019 में उर्दू शायरी के बेहतरीन शायरों की बात करते हैं, तो हमारे सामने जौन एलिया का नाम आना लाज़मी हो जाता है। ये जौन का दौर है। हिन्दुस्तान के अमरोहा में जन्मे शायर जौन एलिया की मौत के 17 साल बाद, सामईन ने जैसे उनकी शायरी और उनकी शख़्सियत को दोबारा ज़िंदा कर दिया है। जौन 26 साल की उम्र में हिंदुस्तान से रुख़सत हो कर पाकिस्तान चले गए थे, और 2002 तक वहीं रहे, और आज कराची के एक क़ब्रिस्तान में दफ़्न हैं। जौन के पाकिस्तान चले जाने का हासिल ये है कि आज हिंदुस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान में भी उनको सुनने-पढ़ने वालों की तादाद में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है।

जौन एलिया के मुख्तलिफ़ अंदाज़ की वजह से वो लोगों के दिलों में 'रॉकस्टार' (Rockstar) की तरह रहते हैं। जौन की शायरी के कई पहलू हैं। आज उनके मशहूर होने की वजह कई पहलुओं पर ग़ौर किया जा चुका है। जौन की शायरी में अमरोहा, इश्क़ में ख़ून थूकने, धर्म-ख़ुदा पर प्रहार करने जैसी चीज़ों का ज़िक्र बार-बार नज़र आता है और लोग इस पर बात भी करते हैं, उस कलाम को पढ़ते भी हैं। लेकिन इस सबके बीच जो एक चीज़ छूट जाती है, वो है जौन का इंक़लाबी रंग। जौन एलिया ख़ुद को anarchist यानी अराजक कहते थे, उनकी शायरी में जितना इश्क़ है, उतना ग़ुस्सा भी है; जितनी मासूमियत है, उतना ही हाकिम-ए-वक़्त की मुखालिफ़त मौजूद है।

आज, जौन एलिया की 17वीं बरसी पर, हम नज़र डाल रहे हैं जौन एलिया की उस शायरी पर जो वामपंथ से और प्रगतिशील मसलों से जुड़ी हुई है।

जौन एक ऐसे परिवार से ताल्लुक़ रखते थे जिसका जुड़ाव साहित्य, फ़लसफ़ा, मौसीक़ी, ड्रामे से रहा था। जौन ने अपनी किताब शायद के दीबाचे में लिखा है;

"मैं एक ऐसे परिवार में रहता था, जहाँ मुझे खाने की मेज़ पर सब्ज़ी बाद में परोसी जाती थी, पहले मुझसे पूछा जाता था कि बताओ लियो टोल्स्तोय ने क्या लिखा है!"

बहरहाल, इस पढ़े-लिखे आदमी की शायरी जब पढ़ने को मिलती है, तो उसमें मुआशरे की तक़रीबन हर उस बात का ज़िक्र मिलता है, जो तारीख़ का हिस्सा रही या जो आने वाले वक़्त की हक़ीक़त बनी।

वामपंथ के आंदोलनों में 1 मई 1886 का एक अहम किरदार है। ये वो दिन था जब शिकागो में लाखों की संख्या में मज़दूर जमा हो गए थे, और उन्होंने 8 घंटे काम करने की मांग मनवाई थी। आज हम जो 8 घंटे काम करते हैं, वो हमें उन मज़दूरों के आंदोलन की वजह से ही हासिल हुआ है।

इस आंदोलन पर जौन ने 'ऐलान ए रंग' नाम से एक नज़्म लिखी, और उस अहद आफ़रीं तहरीर का मफ़हूम लिखा, जो यकुम मई (पहली मई) 1886 के अगले दिन मज़दूरों के एक अख़बार में छपी थी। जौन ने इस नज़्म में लिखा,

"हुजूम गुंजान हो गया था, अमल का ऐलान हो गया था
तमाम महरूमियाँ हम-आवाज़ हो गई थीं के हम यहाँ हैं
हमारे सीनों में हैं ख़राशें, हमारे जिस्मों पे धज्जियां हैं
हमें मशीनों का रिज़्क़ ठहरा के रिज़्क़ छीना गया हमारा
हमारी बख़्शिश पे पालने वालो
हमारा हिस्सा तबाहियाँ हैं!"


पहली मई यानी मज़दूर दिवस के बारे में जौन ने लिखा है:

यकुम मई खूँ शुदा उमंगों की हक़ तलब बरहमी का दिन है
यकुम मई ज़िंदगी के ज़ख़्मों की सुर्ख़रू शायरी का दिन है
यकुम मई अपने ख़ून ए नाहक की सुर्ख़ पैग़ंबरी का दिन
यकुम मई ज़िंदगी का ऐलान ए रंग है, ज़िंदगी का दिन है

जौन एलिया ने जब मज़दूरों की बात की, तो उन्हें बेचारा नहीं दिखाया, बल्कि उन मज़दूरों को वैसा ही दिखाया जैसे वे हैं। मज़दूर, जिनका किसी भी सभ्यता को स्थापित करने में सबसे बड़ा हाथ है, उनके बारे में जौन ने नज़्म लिखी "दो आवाज़ें"

जौन की इस नज़्म में उनकी विचारधारा के साथ-साथ उनके लिखने के फ़न का भी एक ज़िंदादिल नमूना सामने आता है। ये नज़्म दो हिस्सों में है, यानी इस नज़्म की दो आवाज़ें हैं। उस नज़्म का एक हिस्सा :

पहली आवाज़

हमारे सरकार कह रहे थे ये लोग पागल नहीं तो क्या हैं,
के फ़र्क़ ए अफ़लास ओ ज़र मिटा कर निज़ाम ए फ़ितरत से लड़ रहे हैं
निज़ाम ए दौलत ख़ुदा की नेमत ख़ुदा की नेमत से लड़ रहे हैं
हर इक रिवायत से लड़ रहे हैं, हर इक सदाक़त से
मशीयत ए हक़ से हो के ग़ाफ़िल ख़ुद अपनी क़िस्मत से लड़ रहे हैं
हमारे सरकार कह रहे थे अगर सभी मालदार होते
तो फिर ज़लील ओ हक़ीर पेशे हर एक को नागवार होते
ना कारख़ानों में काम होता, ना लोग मसरूफ़ ए कार होते,
अगर सभी मालदार होते
तो मस्जिद ओ मंदिर ओ कलीसा में कौन सन्नत गरी दिखाता
हमारे राजों की और शाहों की अज़्मतें कौन फिर जगाता
हसीन ताज और जलील अहराम ढाल कर कौन दाद पाता…

दूसरी आवाज़

तुम अपने सरकार से ये कहना ये लोग पागल नहीं हुए हैं
ये लोग सब कुछ समझ रहे हैं, ये लोग सब कुछ समझ चुके हैं
ये ज़र्दरू नौजवान फ़नकार जिनकी रग रग में वलवले हैं
ये जिनको तुमने कुचल दिया है, ये जिनमें जीने के हौसले हैं
दिया है फ़ाक़ों ने जन्म जिनको जो भूख की गोद में पले हैं
ये लोग पागल नहीं हुए हैं
तुम्हारे सरकार कह रहे थे ये लोग पागल नहीं तो क्या हैं
ये लोग जमहूर की सदा हैं, ये लोग दुनिया के रहनुमा हैं
ये लोग पागल नहीं हुए हैं!"

वामपंथ में लाल या सुर्ख़ रंग को क्रांति का रंग माना जाता है। जौन ने इस रंग का इस्तेमाल किया, तो इश्क़ की भी बातें कहीं, और बग़ावत या क्रांति की भी बातें कहीं। जौन ने शेर कहा,

ख़ुश बदन, पैरहन हो सुर्ख़ तेरा
दिलबरा, बाँकपन हो सुर्ख़ तेरा
(ये शेर जौन ने पाकिस्तान के लिए कहा था।)


जौन ने मज़दूरों की ज़िंदगियों के अहम हिस्से का इस्तेमाल इंसान के लिए एक रूपक (metaphor) की तरह किया और ग़ज़ल लिखी,

"हार आई है कोई आस मशीन
शाम से है बहुत उदास मशीन

यही रिश्तों का कारख़ाना है
इक मशीन और उसके पास मशीन

एक पुर्ज़ा था वो भी टूट गया
अब रखा क्या है तेरे पास मशीन"


जौन ने मुफ़लिसी पर शेर कहा,

"जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस ए जलवा है
लिबास ए मुफ़लिसी में कितनी बे-क़ीमत नज़र आती
यहाँ तो जाज़्बिय्यत भी है दौलत ही की परवरदा
ये लड़की फ़ाक़ा-कश होती तो बदसूरत नज़र आती"


जौन ने आंदोलनों, बग़ावतों पर शेर कहे और आने वाली सदियों के लिए ऐसे कई सवाल छोड़ गए जिनका जवाब हर युग को ढूँढना चाहिए,

"क्या लोग थे के रंग उड़ाते चले गए
रफ़्तार थी या ख़ून की रफ़्तार कुछ सुना!"


जौन के समाज की रोज़मर्रा की दिक़्क़तों और मसलों पर बात करते हुए ये भी ज़ाहिर तौर पर बताया है कि इश्क़, हुस्न या कोई भी चीज़ समाज के बदलाव और इंकलाब से इतर कर के नहीं देखी जा सकती। जौन ने एक आम आदमी की दिक़्क़तों की बात करते हुए कहा है,

"सुबह दफ़्तर गया था क्यूँ इंसान,
अब ये क्यूँ आ रहा है दफ़्तर से"
या ये शेर,
"ये ख़राबातियाने ख़िरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जाएंगे"

जौन ने शायरी की फ़रोशी की बात की है

"क्या मिल गया ज़मीर ए हुनर बेच कर मुझे
इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं"


आज जब जौन एलिया को एक नाकाम आशिक़, एक उदास, ख़ून थूकने वाले इंसान की तरह देखा जा रहा है, तब ज़रूरत है कि हम इस शायर के हर पहलू पर बात करें, उसके मेयार और उसकी पहुँच को बढ़ा कर देखें। जौन सिर्फ़ एक 'दिलजला' आशिक़ ही नहीं, एक बग़ावती शायर भी थे, जिसने क़ौमों से अपील की और इंकलाब के लिए उकसाने की कोशिशें अपनी शायरी के ज़रिये की।
जौन ने कहा,


"ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीयाद ए सितम
जुज़ हरीफ़ान ए सितम किसको पुकारा जाये
वक़्त ने एक ही नुक़्ता को किया है तालीम
हाकिम ए वक़्त को मसनद से उतारा जाये"


और फिर ये शेर,

"तारीख़ ने क़ौमों को दिया है यही पैग़ाम
हक़ मांगना तौहीन है, हक़ छीन लिया जाए"


जौन एलिया की शायरी का मंज़र बड़ा वसी'अ है। हालांकि सोशल मीडिया ने जौन की एक तरह की पहचान बना दी है, लेकिन उनकी शायरी के हर पहलू पर नज़र डालने की ज़रूरत है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

jaun eliya commint poet
death anniversary jaun eliya
progressive poetry
shayad by jaun eliya
niyaz mandana
jaun eliya anarchist
nihilism
jaun eliya on death
jaun eliya death
jaun elia

Related Stories

वाद-विवाद; विनोद कुमार शुक्ल : "मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था, कि मैं ठगा जा रहा हूँ"


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License