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भारत
राजनीति
जेवर एयरपोर्ट; जश्न और हक़ीक़त: कोई विस्थापित ग्रामीणों का भी दुख पूछे
जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किए गए दावों के उलट है विस्थापित ग्रामीणों की कहानी। न पूरा मुआवजा मिला, न घर का सहारा। न ही पीने के पानी की व्यवस्था है और न पूरी बिजली या शौचालय।
प्रशांत सिंह
28 Nov 2021
jewar airport

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार यानी 25 नवंबर को उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में बन रहे देश के सबसे बड़े इंटरनेशनल एयरपोर्ट व अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘जेवर एयरपोर्ट’(नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जेवर) का शिलान्यास किया। इस दौरान जहां मंच से लेकर रैली में आए लोगों में जश्न का माहौल रहा, वहीं दूसरी ओर जिन किसानों ने जेवर एयरपोर्ट के लिए अपनी जमीनें दी, वहां की तस्वीर पीएम मोदी के मंच से एकदम उलट रही।

जेवर बांगर में बसाए जा रहे विस्थापित ग्रामीणों के चेहरों पर उदासी छाई रही। कारण एक नहीं, हजार हैं! कोई अपने अधूरे बने मकान की चौखट पर उदास बैठा रहा, तो कोई तंबू में आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए मुआवजे का इंतजार कर रहा।

तंबू में गुज़र रही ज़िंदगी

दरअसल, जेवर एयरपोर्ट के क्षेत्र में आने वाले 7 गांवों की जमीनों को अधिग्रहीत कर उन्हें एयरपोर्ट से करीब 8 किलोमीटर दूर सेक्टर की तर्ज पर डवलेप किए जा रहे जेवर बांगर में बसाया जा रहा है। यहां पर यमुना प्राधिकरण की तरफ से सेक्टर में बिजली, पानी, सड़कें सहित उन सभी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था करनी है, जो विस्थापित ग्रामीणों से उनकी जमीन अधिग्रहीत करते समय वादा किया गया है। लेकिन अभी तक न तो सुचारू रूप से बिजली पहुंची है और न ही अभी तक पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। शौचालय के नाम पर मोबाइल टॉयलेट रखा गया है, जहां दुर्गंध व गंदगी इतनी ज्यादा है कि लोग मोबाइल टॉयलेट का इस्तेमाल न करके खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

पीएम मोदी का मुआवजे में पारदर्शिता बरतने का दावा, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट

अर्जुन सिंह व उनकी मां, गांव-किशोरपुर

जेवर एयरपोर्ट के लिए अधिग्रहीत किशोरपुर गांव के रहने वाले अर्जुन सिंह प्रशासन पर आरोप लगाते हुए बताते हैं कि, “हमें मुआवजा देने के ऐवज में घूस की मांग की जाती है, पटवारी से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक सभी लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। हमारे दो भाइयों के मकान का प्रशासन ने 21 लाख रुपया मुआवजा तय किया हुआ है लेकिन हमें अभी तक मात्र 9 लाख रुपये ही मिले हैं, जिसके लिए हमें 40 हजार रुपये पटवारी को घूस देना पड़ा। बाकी का मुआवजा कब मिलेगा हमें नहीं मालूम”

खेत के मुआवजे को लेकर अर्जुन बताते हैं, “शासन-प्रशासन द्वारा हमारे 4 बीघे खेत का मुआवजा करीब 85 लाख रुपया तय हुआ है, जिसका हमें अभी तक एक रुपया नहीं मिला है, और अब तो अपने ही मुआवजे को लेने के लिए पटवारी वकील करने की सलाह दे रहा है, जिसके लिए वकील भी 10 से 15 लाख रुपये का डिमांड कर रहे हैं। अब तो हमें तभी पूरा मुआवजा मिलने की उम्मीद है, जब हम वकील व पटवारी को पैसे दे देंगे”

वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के दौरान अपने संबोधन में पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए कहते हैं, “पहले की सरकारों के दौरान अनेक ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिनके लिए किसानों से जमीन तो ली गई लेकिन उनमें या तो मुआवजे से जुड़ी समस्याएं रहीं या सालों साल वो जमीन खराब पड़ी रही,  लेकिन हमने सुनिश्चित किया कि प्रशासन किसानों से समय पर पूरी पारदर्शिता के साथ भूमि खरीदे, और तब जाकर 30 हजार करोड़ रुपए की इस परियोजना का आज हम भूमि पूजन करने के लिए आगे बढ़े हैं।”

पीएम मोदी के संबोधन से यही मालूम पड़ता है कि या तो उन्हें मुआवजे की देने की प्रक्रिया की सही जानकारी नहीं दी गई है या वो सबकुछ जानते हुए भी जेवर एयरपोर्ट को महज चुनावी रैली तक ही सीमित कर देना चाहते हैं।

जिनकी ज़मीनों पर जश्न का माहौल, उनके चेहरों पर छाई रही उदासी

जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के दौरान शासन-प्रशासन ने अधिग्रहीत जमीन पर जश्न का माहौल बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। यमुना प्राधिकरण की ओर से बीजेपी कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को दूसरे जिलों व इलाकों से रैली में ले आने के लिए सैकड़ों बसों की व्यवस्था की गई। लेकिन जिन किसानों ने सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए अपनी जमीनें कुर्बान की, उनके चेहरों पर उदासी छाई रही।

उन उदास चेहरों में दयानतपुर खेड़ा के रहने वाले 30 वर्षीय रवि छोकर बताते हैं- “इसी साल प्रशासन ने जून माह में मकान का मुआवजा दिया और उसके तुरंत बाद मकान तोड़ने के लिए मात्र एक सप्ताह का अधिकतम वक्त देकर मकान तोड़ दिया। जबकि प्रशासन को 2 वर्ष पहले मकान का मुआवजा देना था। हमें प्लाट भी केवल 20 दिन पहले मिला, वह भी गांव की जमीन के मुकाबले आधी जमीन। हम अचानक से बेघर हो गए, अभी भी घर बनने में 3 माह से ज्यादा का वक्त लगेगा।”

रवि छोकर, निवासी दयानतपुर खेड़ा

खेत व मकान के मुआवजे की राशि को लेकर रवि बताते हैं- “हमारे दादा जी के नाम पर 25 बीघे की जमीन थी, जिसमें से हमारे चाचा होशियार सिंह की करीब 5 बीघे जमीन का आज तक एक रुपया भी मुआवजा नहीं मिला है। अगर प्रशासन की तरफ से कम से कम 6 माह का भी वक्त मिलता तो मकान बन जाता, लेकिन एक सप्ताह में कैसे मकान बनेगा? हमारा पूरा परिवार मुश्किल हालात से गुजर रहा है”

वहीं अधिग्रहीत गांव रोही के 60 वर्षीय मोहन सिंह अपनी आपबीती सुनाते हुए कहते हैं, “प्लॉट से लेकर मुआवजे देने में तमाम अनियमितताएं हैं। प्लाट देने की लिस्ट में पहले मेरे शादीशुदा बेटों का भी नाम था, लेकिन बाद में अचानक से लिस्ट से उनका नाम यह कहकर हटा दिया गया कि वह गांव में नहीं रहते हैं। अब हम छोटे खेतिहर गांव से बाहर जाकर ना कमाएंगे तो खाएंगे कैसे? वहीं मुआवजा देने से पहले हमारे गांव को शहर घोषित कर दिया गया और चार गुने के बजाय हमें दोगुना मुआवजा ही मिला”

मोहन सिंह, रोही निवासी

दड़बेनुमा प्लाट मिलने से लोग परेशान, आय के स्रोत भी छीने

जेवर एयरपोर्ट परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों की जिंदगी अब किसी दड़बे में रहने जैसी हो गई है। उन्हें अपनी ही अधिग्रहीत जमीन के मुकाबले के आधे से भी कम प्लाट मिले हैं। जहां न तो उनके आय के साधन ट्रैक्टर खड़े करने की और न ही मवेशियों के पालने की जगह है।

अधिग्रहीत गांव नंगला छीतर के रहने वाले 60 वर्षीय रोहतान अपने गांव की जिंदगी को याद करते हुए कहते हैं, “नई जगह पर बहुत ज्यादा दुखी हैं, हम रोते-रोते घर छोड़कर आए हैं। अभी भी मन कहता है, यहां से गांव भाग जाएं और झुग्गी-झोपड़ी डालकर रह लें, वहीं मेरे पास दो ट्रैक्टर आमदनी के स्रोत थे, अब दोनों बेचने पड़े, क्योंकि यहां ट्रैक्टर खड़ा करने की जगह नहीं है।”

रोहतान, नंगला छीतर निवासी

करीब-करीब सभी प्रभावित ग्रामीणों को अपने मवेशियों को औने-पौने दाम में या तो बेचना पड़ा या तो खुले में छोड़ने पर मजबूर हो गए।

अधिग्रहीत गांव बन गया शहर, नहीं दिया गया चार गुना मुआवज़ा

जेवर एयरपोर्ट के लिए अधिग्रहित जमीन को लेकर प्रभावित ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि हमारी गांव की जमीन कब शहरी जमीन में तब्दील कर दी गई, हमें इसकी भनक तक नहीं लगी। दरअसल नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के मुताबिक जमीनों का अधिग्रहण किये जाने पर शहरी क्षेत्र के लोगों को सर्किल रेट का दो गुना और ग्रामीण क्षेत्र की जमीनों पर चार गुना मुआवजा दिए जाने का नियम है। लेकिन यूपी सरकार द्वारा जेवर एयरपोर्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण से पहले सात गांवों की ज़मीनों का नेचर बदल दिया गया था। जिसके खिलाफ कोर्ट में किसानों की लड़ाई अभी भी जारी है।

खेड़ा दयानतपुर निवासी 62 वर्षीय अजय प्रताप सिंह 400 से ज्यादा किसानों के साथ मिलकर एयरपोर्ट के लिए हुए भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए हैं। अजय प्रताप सिंह का कहना है कि “मेरी 7 बीघा जमीन अधिग्रहीत की गई जिसका सर्किल रेट का दो गुना मुआवजा दिया जा रहा, जिसके विरोध में मेरे साथ सैकडों किसानों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जहां अभी भी ‘अजय प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 2019 केस चल रहा है”

अजय प्रताप सिंह, खेड़ा दयानतपुर निवासी

मुआवजे से ठीक पहले गांव को शहर बनाने को लेकर लेकर अजय सिंह आगे बताते हैं, “हमारे गांव में वर्ष 2016 में प्रधानी का चुनाव संपन्न हुआ, जहां प्रत्याशी विजेता भी घोषित हुआ। वहीं हमारी अधिग्रहीत जमीनों का करीब 9 साल से सर्किल रेट नहीं बढ़ाया गया, जबकि सभी को मालूम था हमारी जमीनें एयरपोर्ट के अंतर्गत आने वाली हैं, ये कहां का न्याय है?”

अजय प्रताप सिंह की एयरपोर्ट निर्माण को लेकर कोई शिकायत नहीं है, जो कुछ भी शिकायत है वह आधे-अधूरे मुआवजे और वादे के मुताबकि प्लाट ना देने को लेकर है।

मूलभूत सुविधाओं के आभाव में जीवन गुजारने को मजबूर विस्थापित ग्रामीण

मुआवजे मिलने की देरी से लेकर न मिलने तक की समस्याओं से इतर जेवर बांगर में पॉकेट बनाकर बसाए जा रहे लोग मुलभूत सुविधाओं के आभाव में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। पीएम मोदी के संबोधन के दौरान रैली में आए कार्कर्ताओं व समर्थकों के लिए प्यूरिफाइट पानी से लेकर बंद पैकटों में भोजन की व्यवस्था की गई, लेकिन जिन्होंने अपनी जमीन दी, वहां अभी भी पीने के पानी की टंकी निर्माणाधीन है। लोग मजबूरन 35 से 40 हजार रुपए खर्च करके समरसेबल लगवा रहे हैं।

जिन ग्रामीणों का गांव में पहले से ही बिजली का कनेक्शन था, उनसे बिजली कनेक्शन देने के ऐवज में 25 से 30 हजार रुपये की मांग की जा रही है। जिन ग्रामीणों को वादे के अनुरूप पहले बसाना था, फिर शिलान्यास करना था, उन्हें बेसहारा छोड़ दिया गया। बसाए जा रहे नए पॉकेट को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण अभी भी अधूरा है। जबकि रैली तक पहुंचने के लिए सड़क के एक-एक गड्ढे को भर दिया गया था। जिससे समर्थकों को रैली में आने में कोई समस्या उत्पन्न न हो।

जेवर विधायक ने स्वीकारा भूमि अधिग्रहण में हुई जल्दबाज़ी

विस्थापित ग्रामीणों की इन तमाम समस्याओं पर जेवर के बीजेपी विधायक धीरेंद्र सिंह का कहना है- “मैं यह स्वीकार करता हूं कि भूमि अधिग्रहण को लेकर जल्दबाजी हुई, जिन लोगों की हम जमीन ले रहे हैं, उन्हें मकान बनाने की मोहलत मिलनी चाहिए थी लेकिन जेवर एयरपोर्ट बनने की एक टाइमलाइन है, हम चाहते हैं कि वर्ष 2024 तक एयरपोर्ट बन जाए क्योंकि उसमें प्रावधान है कि समय से पूरा न होने पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।”

प्रभावित ग्रामीणों को दिए गए प्लाट व मुआवजे वितरण में आई खामियों को लेकर विधायक धीरेंद्र सिंह का कहना है- “हम एक्ट के अनुसार 50 मीटर से ज्यादा का प्लाट नहीं दे सकते, लेकिन हमने आबादी को परिभाषित करते हुए 1000 मीटर वाले भूमि मालिकों को अधिकतम 500 मीटर तक प्लाट देने की कोशिश की। साथ ही जिन किसानों को मुआवजा नहीं मिला है, वो ट्रेजरी में जमा है।”

धीरेंद्र सिंह, जेवर विधायक

वे आगे कहते हैं “मैं चाहता था कि किसानों को चार गुना मुआवजा मिले। इसके लिए मैंने सरकार से तीन महीने तक लड़ाई लड़ी है, लेकिन इंडस्ट्रियल एक्ट की धारा 12 ए के तहत संभव नहीं हो पाया लेकिन इतने बड़े विस्थापन में थोड़ी समस्या तो आएगी, किसानों के इस त्याग को हम याद रखेंगे, सरकारें उनकी आभारी रहेंगी।”

वहीं ग्रामीणों की आमदनी के मुख्य स्रोत मवेशी व कृषि उपकरणों के लिए नई बस्ती में जगह न होने को लेकर विधायक धीरेंद्र सिंह का कहना है. “हम उनके लिए पशुचर जमीन की व्यवस्था करा रहे हैं, साथ ही हमारी नज़र में किसानों की हर एक समस्या है”

मुआवजे की मांग को लेकर घूस की डिमांड की जाने के सवालों पर बीजेपी विधायक धीरेंद्र सिंह का कहना है- “हमारे संज्ञान में भी में ऐसी शिकायतें आई हैं, लेकिन मैं नाम पूछता हूं कि लेकिन कोई नाम नहीं बताया, अगर कोई घूसखोर अधिकारी है, तो मैं उसे जेल भेजवाउंगा। अगर किसी से घूस लिया गया है तो मुझे शिकायत लिखकर दें, मैं उसे सस्पेंड करवाउंगा।”

वहीं मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली कनेक्शन व विस्थापन से संबंधित समस्याओं को लेकर धीरेंद्र सिंह कहना है “ये सभी समस्याएं हमारे संज्ञान में हैं, प्रशासन से लगातार बात हो रही है, जल्द ही हम इसका निराकरण करेंगे।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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