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राजनीति
जेवर एयरपोर्टः दूसरे फेज के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं होगा आसान, किसानों की चार गुना मुआवज़े की मांग
जेवर एयरपोर्ट के निर्माण के दूसरे फेज के लिए छह अन्य गांवों से 1,334 हेक्टेयर और भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसको लेकर किसानों ने विरोध शुरू कर दिया है।
मुकुंद झा
29 Dec 2021
जेवर एयरपोर्ट के निर्माण के दूसरे फेज के लिए छह अन्य गांवों से 1,334 हेक्टेयर और भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसको लेकर किसानों ने विरोध शुरू कर दिया है।

"जब मैं शहर से बाहर था तब प्रशासन ने बिना किसी पूर्व जानकारी के हमारा घर तोड़ दिया। सरकार ने हमें हमारे घर से बेघर कर दिया। आज अपने परिवार और मवेशियों के साथ खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हूं। जमीन पर सहमति लेने से पहले सरकारी अधिकारियों ने बड़े बड़े वादे किए थे लेकिन अब कुछ नहीं दे रहे हैं। वो हमारी जमीनों को कौड़ियों के भाव में ले रहे हैं। इसलिए मैंने सरकारी मुआवजा़ नहीं लिया है। क्योंकि जो सरकार दे रही है वो हमारी पुश्तैनी ज़मीन का भाव नहीं बल्कि एक खैरात है।" ये शब्द हैं जेवर के रोही गांव के निवासी होशियार सिंह के जिनके दो बेटे हैं और दोनों सेना में है और वे सियाचिन में तैनात हैं। सिंह अपने उचित मुआवजे की मांग को लेकर कोर्ट भी जा चुके है।


उचित मुआवजा न मिलने को लेकर बेहद नाराज सिंह सरकार के रवैए से आहत थे। वे रविवार को एक पंचायत में हिस्सा लेने के लिए नरेहड़ा पहुंचे थे जहां दूसरे फेज में भी भूमि अधिग्रहण होना है। इस पंचायत के आयोजन में पहले फेज के प्रभावित किसान और दूसरे फेज में प्रभावित होने वाले किसान आए थे।

यहां पहले फेज के प्रभावित किसान ने अपना दर्द बयां करते हुए साफ तौर पर कहा कि वो सरकार की वर्तमान नीति के आधार पर अपनी ज़मीन नहीं देंगे। इसके लिए उन्हें चाहे जो भी करना पड़े वे करेंगे क्योंकि पहले फेज के किसानों की दुर्दशा वे देख रहे हैं।

ज्ञात हो कि नोएडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डे का निर्माण कार्य शुरू चुका है। इसके लिए भूमि अधिग्रहण का पहला फेज भी पूरा हो चुका है। यूपी सरकार ने भूमि अधिग्रहण के दूसरे फेज के लिए हरी झंडी दे दी है। अधिग्रहण की अधिसूचना के बाद से ही प्रभावित किसानों द्वारा कई मुद्दों को उठाया जा रहा है जिसमें भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत उचित मुआवजे, जबरन बेदखली, मुआवजे की गलत गणना समेत बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां शामिल हैं। इसके अलावा अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और पूरी तरह से अपर्याप्त पुनर्वास की समस्याएं भी बनी हुई हैं।
 


बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर को नोएडा के जेवर में बन रहे देश के सबसे बड़े एयरपोर्ट का शिलान्यास किया था। जहां वे इसका शिलान्यास कर रहे थे वहीं से कुछ सौ मीटर की दूरी पर ज़मीनी हकीकत कुछ और थी। जेवर एयरपोर्ट के लिए जमीन देने वाले किसान अपने लिए एक आशियाने के लिए भी तरस रहे हैं। एयरपोर्ट के भूमि अधिग्रहण के बाद सैकड़ों किसान ऐसे हैं जो अपने घर टूट जाने के बाद ठंड में तंबू बनाकर रहने को मजबूर हैं। कुछ किसानों को उनके घर गिराए जाने के बाद दूसरी जगह प्लॉट तक नहीं दी गई है तो कुछ किसानों को अब तक मुआवजा भी नहीं मिला है। आरोप है कि जिनको मुआवजा मिला है उसमें भी उन्हें घूस तक देनी पड़ रही है और वो भी पर्याप्त नहीं है।

गांव दयानतपुर निवासी लखीमचन्द जिनकी जमीन अधिग्रहण के पहले फेज में ली जा चुकी है उन्हें मुआवजा बाजार दर से बहुत कम दिया जा रहा है।


उन्होंने कहा कि स्थानीय बीजेपी विधायक धीरेन्द्र ने 10 साल पहले इसी ज़मीन का कई गुना अधिक मुआवज़ा लिया था। सरकार हमें आज का नहीं दस साल पुराना भाव ही दे दे। लेकिन वो ऐसा नहीं करेगी वो हमारी ज़मीन कौड़ियों के भाव लेना चाह रही है।

खेड़ा दयानतपुर के रहने वाले अजय प्रताप सिंह जेवर किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष है। उन्होंने लगभग 500 किसानों के साथ मिलकर इस एयरपोर्ट के लिए हुए भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस कर रखा है। अजय प्रताप का आरोप है कि सरकार ने किसानों को 4 गुना मुआवज़ा देने की बजाय दोगुना मुआवज़ा ही दिया है। सरकार ने पहले बड़ी चालाकी से गांव को शहरी क्षेत्र दिखाया, फिर तकनीकी खामी बताकर आबादी को ग्रामीण घोषित कर दिया। नियम के मुताबिक़ अगर जमीन शहरी है तो मुआवज़ा बाजार दर का दो गुना मिलता है और ग्रामीण क्षेत्र में मुआवज़ा चार गुना देना पड़ता है। इसलिए चालाकी से सरकार ने ऐसा किया।

अजय प्रताप सिंह और उनके भाई प्रमोद ने अपनी जमीन पहले फेज में दे दी और आज उसके उचित मुआवजे के लिए कोर्ट की चक्कर काट रहे हैं।

अपने 60 बीघा जमीन पर कृषि करने वाले किसान रामपाल नरेहड़ा ने पहले फेज में अपनी जमीन गंवा दी है। उन्होंने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि घर में जो 18 वर्ष से ऊपर हैं केवल उन्हीं को सरकार ज़मीन और मुआवज़ा दे रही है। ऐसे में मेरे चार बेटे है उनमें से एक ही 18 वर्ष का है। सरकार ने उसे तो ज़मीन दे दी लेकिन बाकी तीनों को नहीं दी। अब मैं उन्हें उनका हिस्सा कैसे दूंगा? क्योंकि मेरी संपत्ति में तीनों बराबर के अधिकारी है लेकिन अब सरकार ने सब छीन लिया और एक बेटे को उसका एक हिस्सा दे दिया है बाकी को छोड़ दिया है।

न्यूज़क्लिक ने इस पूरे मसले पर प्रशासन से उसका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क किया और मेल किया जिसके बाद मंगलवार को एडीएम बलराम सिंह से बात हुई। हमने इस पूरे मसले पर एडीएम से विस्तारपूर्वक बात की।

सबसे पहले हमने उनसे मुआवज़े में गड़बड़ी और मुआवज़ा नहीं मिलने पर सवाल किया तो
उन्होंने साफ कहा कि सभी को क़ानून के मुताबिक़ मुआवजा दिया गया है। प्राधिकरण पर किसान का कोई मुआवजा बाकी नहीं है। हालांकि बहुत से किसानों ने अभी तक मुआवज़ा नहीं लिया है, इनका मुआवजा हमने ट्रिब्यूनल में जमा कर दिया है। कई बार हमने विनती की कि वो अपना मुआवजा ले लें अन्यथा हमें इसे न्यायालय में जमा करना होगा। किसानों ने नहीं लिया तो अंतत हमने इन्हें जमा कर दिया है। अब ये लोग जब चाहें एक प्रार्थना पत्र देकर अपना मुआवजा ले सकते हैं। हमने पूरा विस्थापन का काम कानून के हिसाब से किया है।

शहरी और ग्रामीण जमीन की बाबत जब हमने उनसे सवाल किया कि किसानों का आरोप है कि आपने मुआवज़ा शहर के हिसाब से दो गुना दिया है जबकि आबादी ग्रामीण है और कानून के मुताबिक उन्हें चार गुना मुआवजा मिलना चाहिए तो बलराम सिंह ने कहा शासन (सरकार) ने इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एक्ट के हिसाब से जेवर को शहरी क्षेत्र घोषित किया है। उस हिसाब से मुआवजा भी शहरी क्षेत्र के हिसाब से दिया गया है।

किसानों के बाजार दर से कम पैसे देने के आरोप पर उन्होंने कहा हमने उन्हें बाजार दर से 500 रुपये अधिक ही दिया है। उन्होंने कहा कि साल 2018 में हमने कानून के हिसाब से बाज़ार मूल्य तय किया था जोकि 900 रूपए वर्ग मीटर था। इस हिसाब से 1800 रूपए ही मुआवजा बनता था , परन्तु किसान इससे खुश नहीं थे इसलिए हमने सरकार को चिट्ठी लिखी और सरकार ने भी इसमें सकारात्मक रुख अपनाते हुए 500 रूपये बढ़ाने के प्रस्ताव को पास किया। अब कुछ लोग गलत तरीकों से अधिक मुआवाजा लेना चाहते हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा कि लोग गलत तरीकों से अपनी उम्र 18 वर्ष दिखाकर मुआवज़ा चाहते हैं। हमारे पास ऐसे 100 से अधिक आवेदन है।

एडीएम की बातों से ऐसा लग रहा था कि उन्होंने किसानों को उनके जमीन की कीमत से अधिक मुआवजा दिया है लेकिन जब हम पीड़ित किसानों से मिले तो हक़ीक़त कुछ और ही है। जब हमने पुनर्वास के किसानों को देखा तो स्थिति बद से बदतर थी। कानून और नियम की बात करें तो जब तक किसी के पुनर्वास की उचित व्यवस्था न कर दी जाए तब तक उन्हें उजाड़ा नहीं जा सकता है। लेकिन यहां स्थिति इसके विपरीत दिखी। यहां अभी तक घर और सड़कें तक नहीं बनी हैं।

जब इस संबंध में एडीएम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है। सारी व्यवस्थाएं की जा रही है। अब फिर सवाल ये है कि बिना उचित व्यवस्था किए आप किसी को कैसे उजाड़ सकते हैं।

इसी तरह कई अन्य किसानों ने भी सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि सरकार 18 वर्ष से ऊपर भी केवल लड़कों को ही ज़मीन दे रही है, लड़कियों को नहीं दे रही है।


कुरेव गांव निवासी विजेंद्र सिंह ने कहा एक तरफ मोदी कहते हैं बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ वहीं दूसरी तरफ उन्हें अधिकारों से वंचित कर रहे हैं।

विजेंद्र आगे कहते है ये सरकार हमें गुमराह कर रही है। जहां हमको ये जमीन दे रही है वहां न तो मंदिर, मस्ज़िद, श्मशान, कब्रिस्तान हैं और न ही वहां शौचालय की व्यवस्था है। हालांकि प्रशासन ने वहां एक एक मंदिर, मस्जिद, शमशान और शौचालय का वादा किया है लेकिन कई स्थानीय लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं कि जब हमारे गांव में चार मंदिर हैं तो हम एक क्यों लें? शमशान को लेकर भी इनके सवाल हैं।



विजेंद्र ने कहा कि हम इस सरकार को लाए थे कि ये बेहतर रहेगी लेकिन ये तानाशाह बन गई। इससे पहले मायावती की सरकार ने भट्टा परसौल में जबरन ज़मीन लेने का प्रयास किया था तो वो आजतक सत्ता में वापस नहीं आ पाई है। अगर बीजेपी भी ऐसा ही करती है तो इनकी भी कुर्सी जानी तय है। अभी हम किसानों ने इस सरकार को झुकाकर तीन कृषि कानून वापस कराए हैं ठीक ऐसे ही हम चार गुना मुआवजा लेकर रहेंगे।

ज्ञात हो कि भूमि अधिग्रहण कानून की अनुसूची-3 के हिसाब से भूमि अधिग्रहणकर्ता को भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों को 25 अतिरिक्त सेवाएं प्रदान करना होगा। उन सेवाओं में स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़कें, सुरक्षित पेयजल, बाल सहायता सेवाएं, पूजा स्थल, कब्रिस्तान और श्मशान भूमि, डाकघर, उचित मूल्य की दुकानें और भंडारण सुविधाएं शामिल हैं। परंतु जब हम पुनर्वास की जगह पर गए तो पाया कि लोगों के पास इन सभी सेवाओं की कमी है। हालांकि हमें बताया गया है कि ऐसी सेवाएं तीन महीने के भीतर उपलब्ध करा दी जाएगी।

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