NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड: कोल ब्लॉक नीलामी के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार गई सुप्रीम कोर्ट, वामदलों ने दिया समर्थन
केंद्र सरकार द्वारा कोल ब्लॉक की नीलामी किए जाने के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार  ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र की मोदी सरकार ने वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोल ब्‍लॉक को वर्चुअल नीलामी के लिए लॉन्च किया है।
अनिल अंशुमन
22 Jun 2020
coal

रांची: 'केंद्र की सरकार द्वारा झारखंड में कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ हमने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। यह एक बहुत बड़ा निर्णय है और इसमें राज्य सरकार को भी विश्वास में लेने की आवश्यकता है। चूँकि खनन को लेकर राज्य में हमेशा ये विषय ज्वलंत मुद्दा रहा है। इतने वर्षों के बाद एक नयी प्रक्रिया अपनाई गयी है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम फिर उसी पुरानी व्यवस्था में जायेंगे, जिससे हम बाहर आये थे। लेकिन आने के बाद मौजूद व्यवस्था के माध्यम से भी यहाँ के रैयतों और लोगों को खनन से उनका वाजिब अधिकार नहीं प्राप्त हुआ है। अभी भी विस्थापन की समस्या बड़े पैमाने पर उलझी हुई है।

अभी भी ज़मीन का विवाद उलझा हुआ है। इसे लेकर आज सभी मजदूर संगठन सड़कों पर हैं। हमने इस विषय पर केंद्र की सरकार से ज़ल्दबाजी नहीं करने का आग्रह किया था। जब उधर से कोई आश्वासन नहीं प्राप्त हुआ, जिससे हमें लगे कि इसमें ट्रांस्परेसी है या इसमें राज्य के लोगों का फायदा है। तब हमने निर्णय लिया है कि इस मामले को लेकर हम सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देंगे।'

20 जून को झारखंड के मुख्यमंत्री ने मीडिया को जानकारी देते हुए उक्त बातें कहीं। खबरों के अनुसार झारखंड सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन से यहाँ के आदिवासियों की ज़िन्दगी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। नए सिरे से विस्थापन और पलायन की मार उन्हें झेलनी पड़ेगी। साथ ही कोयला खनन की मंजूरी देने से पूर्व खनन से वन भूमि पर सामाजिक–पर्यावरणीय प्रभाव का निष्पक्ष मूल्यांकन ज़रूरी है जो किये बगैर नीलामी की जा रही है। जिससे राज्य की बड़ी आबादी और पर्यावरण पर भयावह असर पड़ेगा।

दूसरे, कोरोना संक्रमण के मौजूदा हालात में कोयला खदानों की नीलामी में उचित मूल्य भी नहीं मिल सकेगा। इसलिए नीलामी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाने की मांग की गयी है। आगे यह भी कहा गया है कि इसके बाद भी ऐसा किया गया तो सरकार की इस व्यवस्था को एकतरफा माना जाएगा जो केंद्र–राज्य सम्बन्ध के लिए भी बेहतर नहीं होगा।

भाकपा माले, सीपीएम, सीपीआई व मासस वामपंथी पार्टियों ने सरकार और मुख्यमंत्री के इस क़दम का स्वागत किया है। 21 जून को इस सन्दर्भ में जारी उक्त सभी वामपंथी पार्टियों के प्रदेश सचिवों द्वारा जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य में झारखण्ड प्रदेश में कामर्शियल कोल माइनिंग के नाम पर यहाँ कि खनिज संपदाओं की लूट रोकने के सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा याचिका दायर किये जाने का समर्थन किया गया है।

वाम दलों के इस प्रेस वक्तव्य में मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र समेत सभी कोल ब्लाकों की नीलामी के फैसले का तीखा विरोध करते हुए कहा गया है कि झारखण्ड प्रदेश के कई इलाके पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आदिवासी विशिष्ठता को संरक्षित रखने हेतु निर्दिष्ट विशेष संवैधानीक दायित्वों पर काफी प्रतिकूल असर पड़ेगा।

इसके अलावा नए सिरे से व्यापक आदिवासी समाज के जीवन पर भी भयावह असर पड़ेगा। क्योंकि निजी कोयला खनन मुनाफ़ा केन्द्रित होने के कारण होनेवाली मनमाना खनन प्रक्रिया का खामियाजा क्षेत्र के व्यापक आदिवासी व मूलवासियों को ही भुगतना पड़ेगा।

मौजूदा हालातों में झारखंड प्रदेश के जल, जंगल ज़मीन व खनिज जैसी राष्ट्रीय संपदा को बचाने का संघर्ष अब एक नए जटिल दौर में पहुँच गया है क्योंकि कोयले के वाणिज्यिक खनन के बहाने खुद देश की केन्द्रीय सरकार सब कुछ कोर्पोरेट घरानों के हवाले करने पर तुली हुई है।

18 जून को कोल ब्लाकों की नीलामी के समय नरेंद्र मोदी जी के उपस्थित रहने को रेखांकित करते हुए कहा गया कि पिछले दिनों कोयला मजदूरों ने देश की संपत्ति को बचाने के लिए जो देशभक्तिपूर्ण संघर्ष छेड़ा है उससे कोर्पोरेट ताक़तें बौखला गयीं हैं। इसीलिए अब उनकी ओर से देश के प्रधानमंत्री को खुद कमान संभालने के लिए आना पड़ा।

वाम नेताओं ने कोयला क्षेत्र को निजी हाथों में बेचे जाने के सरकार के देश विरोधी फैसले के खिलाफ आगामी 2 से 4 जुलाई को सभी केन्द्रीय कोयला यूनियनों द्वारा आहूत मजदूर हड़ताल के सक्रीय समर्थन में 2 जुलाई को सभी वामपंथी दलों की ओर से राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाने की भी घोषणा की है।

झारखंड प्रदेश के झामुमो–कांग्रेस समेत अन्य सभी गैर भाजपाई दलों ने भी मोदी सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र को निजी हाथों में बेचे जाने का कड़ा विरोध किया है। वहीं बीजेपी के पूर्व कद्दावर नेता सरयू राय ने भी इसकी खुली मुखालफत की है।
         
प्रदेश के कोयला इलाके समेत राज्य भर के झारखंडी नागरिक समाज ने 18 जून को खुद प्रधानमंत्री द्वारा देश की कोयला संपत्ति को निजी कंपनियों के हवाले करने को देश का चरम दुर्भाग्य बताते हुए कहा है कि एक समय ऐसा था जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने सभी निजी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर राष्ट्र की स्वावलंबी संप्रभुता को मजबूत बनाया था।

आज इसी देश का प्रधानमंत्री राष्ट्र की संपत्ति को निजी कंपनियों के हवाले करने को देशहित बता रहा है। सबसे बड़ी विडंबना है कि इसी कोयला क्षेत्र की जिस विशाल मजदूर आबादी ने देशहित के नाम पर उन्हें बढ़ चढ़कर वोट दिया था, इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साधे बैठा है।जबकि वे भली भांति ये जानते हैं कि उनके माननीय नेता के इस देशविरोधी फैसले की मार खुद उनको भी झेलनी पड़ेगी।
     
सर्वविदित है कि सत्तर के दशक में देश के सभी कोयला खदानों का निजीकरण ख़त्म कर राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। उस दौर में लगभग सभी कोयला खनन क्षेत्र निजी मालिकों के ही हाथों में हुआ करता था। जिनके कोयला खदानों में काम करनेवाले सभी मजदूरों की गुलामों से भी बदतर स्थिति हुआ करती थी। जिसके ऐतिहासिक सबूत धनबाद इलाके के कई कोलियरियों में बचे हुए उस दौर के गुलाम सरीखे मजदूरों के बैरेकों के खंडहर गवाह के तौर पर आज भी मौजूद हैं।

फिलहाल गेंद अब देश के सुप्रीम कोर्ट के पाले में है कि वह क्या निर्णय लेता है? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शब्दों में क्या पुराने दौर के निजी कोयला खदान मालिकों की शोषण आधारित व्यवस्था को फिर से चालु करने के मोदी शासन के फैसले पर अपनी मुहर लगाता है अथवा उसे निरस्त्र कर देश की संघीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बहाल रखता है?

वैसे , सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जो भी होगा इतना तो तय है कि उससे इस बात का स्पष्ट संकेत मिल जाएगा कि एक संप्रभुता संपन्न स्वावालम्बी आर्थिक राष्ट्र के लिहाज से इस देश के आगे के आर्थिक भविष्य निर्माण का रास्ता क्या होगा! साथ ही , केंद्र – राज्यों के संबंधों और असंख्य कोयला श्रमिकों के मूलभूत संवैधानिक अधिकारों के साथ साथ निजी कोयला खनन के लिए जिन आदिवासियों–मूलवासियों की ज़मीनें किसी भी सूरत में ले ली जायेंगी उस विशाल आबादी के बेहतर भविष्य का निर्माण अब से कैसे सुनिश्चित किया जाएगा?     

Coal
coal mines
Coal Block Auction
Jharkhand government
Hemant Soren
left parties
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License