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कश्मीर प्रेस क्लब पर जबरन क़ब्ज़े पर पत्रकारों की संस्थाओं ने जताई नाराज़गी और हैरानी
केपीसी में “राज्य समर्थित” तख़्तापलट पर पत्रकारों द्वारा बड़े पैमाने पर आक्रोश जताया जा रहा है। इसे जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र अभिव्यक्ति और स्वतंत्र पत्रकारिता के दमन को तेज करने के लिए उठाया गया क़दम माना जा रहा है।
अनीस ज़रगर
17 Jan 2022
Scenes from the Kashmir press club
कश्मीर प्रेस क्लब से तस्वीर: फोटो: कामरान युसुफ

श्रीनगर: कश्मीर प्रेस क्लब (केपीसी) का पंजीकरण प्रशासन ने स्थगित कर दिया था। इसके बाद शनिवार को प्रदेश के कुछ पत्रकारों ने खुद से ही एक अंतरिम संस्था बनाकर केपीसी पर ‘कब्ज़ा’ कर लिया। इस संस्था के बारे में दूसरे पत्रकारों का कहना है कि यह “अवैध” है, कुछ ने तो इसे राज्य समर्थित तख़्तापलट की तक संज्ञा दी।

शनिवार को पत्रकारों का समूह जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षाकर्मियों की उपस्थिति में कश्मीर प्रेस क्लब में पहुंचा। इस समूह ने अपने-आपको नई अंतरिम संस्था घोषित कर दिया। बाद में अपने वक्तव्य में इस समूह ने पूरी घटना को प्रेस क्लब का “अधिभार” लेना बताया। 

इस स्व-नियुक्त अंतरिम संस्था ने अगले चुनाव तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एम सलीम पंडित को अध्यक्ष और डेक्कन हेराल्ड के पत्रकार जुल्फिकार मजीद को महासचिव, व डेली गदयाल के संपादक अरशद रसूल को कोषाध्यक्ष नियुक्त किया। 

समूह ने अपने वक्तव्य में कहा, “चुनी हुई संस्था का कार्यकाल दो साल का होता है, जो 14 जुलाई, 2021 को खत्म हो गया। चूंकि पिछली समिति ने अज्ञात वज़हों से चुनावों में देरी की, इसलिए क्लब करीब़ 6 महीने तक नेतृत्वविहीन था, जिसके चलते मीडिया समुदाय को अनचाही दिक्कतों से गुजरना पड़ा।”

करीब़ 9 पत्रकार समूहों ने इस घटना को बेहद “दुर्भाग्यपूर्ण” और “अलोकतांत्रिक” बताया है। इन संस्थाओं में प्रेस क्लब की पिछली समिति भी शामिल है। इन संस्थानों ने शनिवार देर शाम एक साझा वक्तव्य जारी कर कहा कि प्रेस क्लब में जबरदस्ती जाकर नई समिति ने कब्जा किया है, इस “बेहद निंदनीय और पूरी तरह गैरकानूनी काम के पहले” बड़ी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई थी।

संस्थानों ने साझा वक्तव्य में कहा, “कुछ असंतुष्ट तत्वों को क्लब का संविधान और सारे नियम-कानून तोड़ने की अनुमति देकर प्रशासन ने एक बेहद गलत और ख़तरनाक परिपाटी की शुरुआत की है।” 

साझा वक्तव्य में स्थानीय प्रेस संस्थाओं ने भारतीय प्रेस परिषद, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, फेडरेशन ऑफ प्रेस क्ल्बस और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया से इस घटना पर गंभीरता से ध्यान देने की अपील की है, जहां स्थानीय प्रशासन एक लोकतांत्रिक मीडिया संस्था का गला दबाने और अराजकता फैलाने में मदद कर रहा है। 

वक्तव्य में कहा गया, “अगल प्रेस क्लब ऑफ कश्मीर में ऐसी घटनाओं की अनुमति दी जाती है, तो यह भविष्य के लिए भी परिपाटी बन जाएगी।”

यह वक्तव्य जर्नलिस्ट फेडरेशन ऑफ कश्मीर (जेएफके), कश्मीर वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन (केडब्ल्यूजेए), कश्मीर प्रेस फोटोग्राफ़र एसोसिएशन (केपीपीए), कश्मीर प्रेस क्लब (केपीसी), जम्मू-कश्मीर जर्नलिस्ट एसोसिएशन (जेएकेजेए), कश्मीर वीडियो जर्नलिस्ट एसोसिएशन (केवीजेए), कश्मीर नेशनल टेलीविजन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (केएनटीजेए) और कश्मीर जर्नलिस्ट एसोसिएशन (केजेए) ने साझा तौर पर जारी किया है। 

इससे पहले शुक्रवार को प्रेस क्लब की प्रबंधन समिति ने क्लब को सूचित किया था कि उन्हें “रजिस्ट्रार ऑफ़ फर्म्स एंड सोसायटीज़” से एक आदेश मिला है। इस आदेश में कहा गया है कि 29 दिसंबर को सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1960 के तहत क्लब को पुनर्पंजीकरण का जो प्रमाणपत्र दिया गया था, उसे फिलहाल “स्थगित” कर दिया गया है। 

केपीसी ने कहा, “सरकारी प्रशासन द्वारा यह आदेश तब जारी किया गया, जब क्लब प्रबंधन ने नई प्रबंध समिति और कार्यकारी समिति के सदस्यों को चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।”

इससे पहले प्रबंधन ने अधिकारियों को ख़त लिखकर पुनर्पंजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की अपील की थी, ताकि जल्दी से जल्दी समिति के चुनाव जल्द से जल्द करवाए जा सकें। केपीसी ने कहा, “तय प्रक्रिया और अनुमति व्यवस्था का पालन करने के बाद ही क्लब को पंजीकरण प्रमाणपत्र दिया गया था, जिसमें पिछले महीने 24 दिसंबर को जिला आयुक्त के कार्यालय से जारी किया गया चरित्र प्रमाण पत्र भी शामिल है, जिसकी संख्या डीएमएसय/जेयूडी/एसओएस/21/742 है।

कश्मीर के पत्रकारों का कहना है कि वे प्रशासन के बेहद के दबाव के बीच काम कर रहे हैं, जिसके बारे में प्रेस क्लब ऑफ कश्मीर खुलकर बोलता था। खासकर 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35 (अ) के निरसन के बाद क्लब काफ़ी ज्यादा मुखर था। कई पत्रकारों ने प्रशासन पर उत्पीड़न और डराने का आरोप लगाया है। 

इस हफ़्ते की शुरुआत में उभरते पत्रकार सज्जाद गुल की गिरफ़्तारी के बाद केपीसी ने राज्य में पत्रकारिता की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी और प्रशासन से गुल के खिलाफ़ लगाई गई धाराओं को वापस लेने की अपील की थी। शनिवार को गुल को कोर्ट ने 10 दिन जेल में रहने के बाद जमानत दे दी। जबकि एक दूसरे पत्रकार आसिफ़ सुल्तान 2018 के बाद से ही उग्रपंथियों को “मदद” करने के आरोप में जेल में बंद हैं।

केपीसी में हुई ताजा घटना को कई लोग जम्मू-कश्मीर में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर होने वाले दमन के व्यापक नज़रिए से देख रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार गौहर गिलानी ने न्यूज़क्लिक से कहा, “केपीसी उन आखिरी संस्थानों में से था, जो स्वतंत्र होकर काम कर रहे थे। आज स्वतंत्र अभिव्यक्ति और स्वतंत्र पत्रकारिता का और भी ज़्यादा दमन करने वाला कदम, सरकार के समर्थन के बाद उठाया गया है।”

प्रेस क्लब पर कब्ज़े का पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी विरोध किया है, उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पत्रकारों को राज्य के समर्थन का आरोप भी लगाया है। 

उमर अब्दुल्ला ने पत्रकार के बारे में ट्वीट कर कहा, “ऐसी कोई सरकार नहीं है जिसके सामने यह ‘पत्रकार’ झुका ना हो, और ऐसी कोई सरकार नहीं है जिसके लिए इसने झूठ ना बोला हो। अब उसे एक राज्य समर्थित तख़्ता पलट से लाभ मिल रहा है।”

केपीसी के पंजीकरण के स्थगन के मुद्दे पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने भारतीय जनता पार्टी पर जानबूझकर पंजीकरण में देरी करवाने का आरोप लगाया है, ताकि पत्रकारों द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों को दबाया जा सके। 

उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, “भारत सरकार नहीं चाहती कि जम्मू-कश्मीर में जारी दमन पर चर्चा और विमर्श हो। केपीसी के पंजीकरण में जानबूझकर की गई देरी, स्थानीय पत्रकारों द्वारा उठाए जाने वाले असली मुद्दों को दबाने की कोशिश है। आज़ाद प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, लेकिन बीजेपी की नीतियां पत्रकारिता का पूरा दमन करना चाहती हैं।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Journalist Bodies Shocked Over ‘Forcible Takeover’ of Kashmir Press Club

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Kashmir Media
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