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भारत
राजनीति
कर्नाटक में बदनाम हुई भाजपा की बोम्मई सरकार, क्या दक्षिण भारत होगा- “भाजपा मुक्त”
भाजपा की मूल संस्था, आरएसएस ने जल्द ही समझ लिया है कि भ्रष्टाचार का कैंसर सभी भाजपा राज्य सरकारों में फैल रहा है। इसके प्रभाव से बचने के लिए ध्रुवीकरण की राजनीति को और अधिक टाइट किया जा रहा है। 
बी. सिवरामन
18 Apr 2022
Basavaraj Bommai

अपने ही झूठे दावों से शायद शर्मिंदा, भाजपा ने काफी समय से खुद को "एक अलग छवि वाली पार्टी" (party with a difference) कहना बंद कर दिया है। दरअसल, राज्य-दर-राज्य में होने वाले घटनाक्रम उसकी छवि बिगाड़ते रहते हैं।

हालांकि भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मेडिकल प्रवेश में व्यापम घोटाले को छिपाने की पूरी कोशिश की थी, फरवरी 2022 में, सीबीआई ने अदालत के निर्देशों के तहत घोटाले की जांच करते हुए, मध्य प्रदेश में 160 और अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की, यानी कुल चार्जशीट किए गए व्यक्तियों की संख्या को ले लिया जाए तो लगभग 650 होगी.

उत्तर प्रदेश में कुछ पत्रकारों ने योगी शासन में यूपी बोर्ड परीक्षाओं में प्रश्नपत्र लीक का पर्दाफाश किया। कानूनी प्रक्रियाओं का खुलेआम उल्लंघन करते हुए छोटे अपराधियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर भेजने वाला भगवाधारी बलवान तुरंत पत्रकारों को सलाखों के पीछे भेजता है।

गुजरात के राजकोट में भाजपा विधायक स्वयं कस्बे के पुलिस प्रमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और पुलिस आयुक्त को केवल दूसरे उंचे ओहदे पर स्थानांतरित कर दिया जाता है।

उसी महीने, गुजरात में कांग्रेस ने 6000 करोड़ रुपये के कोयला घोटाले का आरोप लगाया, जिसमें गुजरात में मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्योगों (MSMEs) के लिए आवश्यक कोयले को दूसरे राज्यों में बड़े उद्योगों को बेच दिया गया और वह भी अवैध रूप से। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि श्री नरेंद्र मोदी सहित गुजरात के चार मुख्यमंत्री इस घोटाले में शामिल थे। कांग्रेस ने इस मामले में न्यायिक जांच की मांग भी की। इस पर विपक्षी नेता राहुल गांधी ने व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री से जवाब मांगा। लेकिन इसके जवाब में गहरा सन्नाटा छाया रहा।

भाजपा शासित असम में, स्वयं मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की पत्नी  भूमि हड़पने के आरोप का सामना कर रही हैं। पता चला कि मुख्यमंत्री की पत्नी और भाजपा के असम किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष रंजीत भट्टाचार्य के संयुक्त स्वामित्व वाली कंपनी आरबीएस रीयलटर्स (प्राइवेट लिमिटेड) ने 18 एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया था। मुख्यमंत्री के बेटे के पास फर्म में 23% शेयर हैं। भूमि को मूल रूप से सरकार द्वारा भूमिहीन व्यक्तियों के लिए पुनर्वितरण हेतु सीलिंग-अधिशेष भूमि के रूप में अधिग्रहित किया गया था। असम के भूमि सुधार कानून में कहा गया है कि ऐसी भूमि को अलग नहीं किया जा सकता और 10 साल के लिए निजी पार्टियों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। भाजपा का एक ही जवाब है कि हिमंत बिस्व सरमा की पत्नी की कंपनी ने जब उस जमीन का अधिग्रहण किया था तब सरमा कांग्रेस के नेता थे!

मई 2020 में, भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में, राज्य भाजपा प्रमुख राजीव बिंदल के एक स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से कोविड -19 से संबंधित चिकित्सा उपकरणों की खरीद में भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

हरियाणा में भी, नए साल की शुरुआत रिश्वत के आरोप में पांच पुलिस अधिकारियों के निलंबन के साथ हुई, जिससे 2021 में भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबन का सामना करने वाले आईपीएस अधिकारियों की कुल संख्या एक दर्जन से अधिक हो गई। आरएसएस के कट्टर नेता द्वारा शासित इस राज्य में, भ्रष्टाचार में लिप्त तत्व केवल निलंबित हो जाते हैं पर शायद ही कभी जेल जाते हैं।

भाजपा शासित गोवा में जो हुआ वह किसी नाटक से कम नहीं है। भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खुद आरोप लगाया कि गोवा में भाजपा सरकार भ्रष्ट रही है।

और आगे चलें तो भाजपा शासित उत्तराखंड में हाल के वर्षों में हमने तीन मुख्यमंत्री देखे। पहले दो को भ्रष्टाचार और अक्षमता के आरोपों का सामना करने के बाद इस्तीफा देने के लिए कहा गया था।

अब कर्नाटक भाजपा इन सबसे ऊपर निकल गयी है। भाजपा मंत्री, व बोम्मई सरकार में नंबर 2, ईश्वरप्पा ने 14 अप्रैल 2022 को इस्तीफा दे दिया, जब एक सड़क निर्माण ठेकेदार ने सुसाइड नोट छोड़कर आत्महत्या कर ली, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि ईश्वरप्पा उसकी मृत्यु के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार थे क्योंकि उन्होंने एक अनुबंध के मूल्य का 40% रिश्वत के रूप में पहले से ले लिया था। लेकिन वह अनुबंध उसे नहीं दिया गया था। मैंगलोर पुलिस सुसाइड नोट को दबा नहीं पाई क्योंकि ठेकेदार ने पहले ही सभी स्थानीय समाचार पत्रों में वही नोट प्रसारित कर दिया था और शव बरामद होने से पहले ही खबर बाहर जा चुकी थी।

2014 में, मोदी ने गर्व से दावा किया था- “हम न खाएंगे, न खाने देंगे।“ 2022 में इस पर मुंह खोलने की उन्हें हिम्मत न होगी, यहां तक ​​कि अपनी ही कही बात पर भी!

आरएसएस की रणनीति फ्लॉप

भाजपा की मूल संस्था, आरएसएस ने जल्द ही समझ लिया कि भ्रष्टाचार का कैंसर सभी भाजपा राज्य सरकारों में फैल रहा है। आरएसएस ने सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिकाओं पर कब्जा करने की रणनीति विकसित कर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रहरी का रूप धारण कर लिया। कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के विपरीत, जिनमें से कोई भी एक कार्यकाल से अधिक कायम नहीं रह सकी, कुछ भाजपा सरकारें, व्यापम मामले जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद फिर से चुनी गईं। फिर भी, 2021 में, आरएसएस ने भाजपा के सभी मुख्यमंत्रियों को बदलने की रणनीति अपनाई। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने सितंबर 2021 में इस्तीफा दे दिया। भाजपा नेतृत्व ने उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्रियों को आरएसएस के आदेशानुसार पद से हटने के आदेश दिए।

सबसे बढ़कर, कर्नाटक में ही आरएसएस ने लिंगायतों के मजबूत नेता येदियुरप्पा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। यह येदियुरप्पा की जाति-शक्ति और आरएसएस के संगठनात्मक दबदबे के बीच ज़ोर आजमाइश का मामला बन गया। येदियुरप्पा ने पहले आरएसएस के फरमान का उल्लंघन किया और पार्टी को विभाजित करके व इस्तीफा देने के लिए मजबूर होने पर अपने ही विधायक अनुयायियों के साथ एक नई पार्टी बनाकर कर्नाटक में भाजपा सरकार को गिराने की धमकी दी। मोदी-शाह के उन्हें "स्वेच्छा से" इस्तीफा देने के लिए "मनाने" के प्रयास सफल नहीं हुए। अंत में, उन्हें येदियुरप्पा के बेटे को भ्रष्टाचार के मामले में बुक करने और उसे जेल भेजने की धमकी देने की चरम रणनीति का सहारा लेना पड़ा। उन्होंने उसे सबूत दिखाए और अगर येदियुरप्पा के बेटे को दोषी ठहराया जाता तो वह सात साल जेल में बिताता। इससे वह झुकने पर मजबूर हुए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। यह अपने ही मुख्यमंत्रियों के खिलाफ अवैध ढंग से धौंस के जरिये ब्लैकमेल रणनीति अपनाने की भ्रष्टाचार- विरोध की आरएसएस शैली है। इस मायने में जरूर यह एक अलग पार्टी है-Party with a difference!

भगवा परिवार में सभी को उम्मीद थी कि येदियुरप्पा सरकार के खिलाफ विकसित हो रही सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) को रोक लिया जाएगा। चूंकि नए पदधारी, श्री बोम्मई भी एक लिंगायत थे, इसलिए उन्हें प्रमुख लिंगायत मतदाताओं के बीच नुकसान को कम कर लेने की उम्मीद थी। लेकिन बोम्मई का संक्षिप्त कार्यकाल नीरस रहा। वह भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बढ़ा नहीं सके। इसलिए आरएसएस-बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की अपनी समय-परीक्षित रणनीति का सहारा लिया।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की समय-परीक्षित भगवा रणनीति

सबसे पहले, उन्होंने अपने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया, जिन्होंने बंगलौर, उपडुपी और चिकमगलूर और कई अन्य स्थानों में अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों पर हमला करना शुरू कर दिया था ताकि अल्पसंख्यकों में विपक्ष के साथ खड़े होने के विरोध में डर पैदा हो सके।

फिर उन्होंने क्रिसमस कैरोल (Christmas Carrols) पर प्रतिबंध लगा दिया।

फिर उन्होंने मस्जिदों और चर्चों में नमाज के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया।

फिर उन्होंने छिटपुट रूप से सांप्रदायिक हिंसा भी की।

अंत में, उन्होंने मुस्लिम स्कूल-कॉलेज की असहाय लड़कियों को निशाना बनाया और उनके हिजाब पहनकर शिक्षण संस्थानों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। हिंदू रूढ़िवादियों ने मुस्लिमों के खिलाफ उच्च जाति के मध्य वर्गों के बीच लोकप्रिय प्रतिक्रिया को जन्म दिया।

इस प्रकार कर्नाटक में एक भगवा उभार देखा गया। वह सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए नए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बन गया। इस सांप्रदायिक हमले के चरम पर, कर्नाटक में शिक्षा मंत्री ने घोषणा की कि 15 अगस्त को तिरंगे के बजाय भगवा झंडे फहराए जाएंगे क्योंकि हिंदू राष्ट्र का जन्म पहले ही हो चुका था।

कोई उनसे आगे न निकल जाए, सो कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने मुस्लिम युवाओं द्वारा जवाबी कार्रवाई में बजरंग दल के एक कार्यकर्ता की हत्या के बाद मुसलमानों के खिलाफ बेहद भद्दी बातें कहीं। 1 अप्रैल 2022 को, अदालत ने मुसलमानों के खिलाफ उनके उग्र सांप्रदायिक भाषण के लिए उनके खिलाफ जांच का आदेश दिया और उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। बमुश्किल एक पखवाड़े के बाद, वह एक ठेकेदार संतोष पाटिल के सुसाइड नोट द्वारा इस तरह आहत हुआ मानो किसी आत्मघाती बम द्वारा मारा गया हो। ईश्वरप्पा या भाजपा सरकार सुसाइड नोट को दबा नहीं सकी क्योंकि संतोष पाटिल पहले ही प्रेस से मिल चुके थे और वही आरोप लगा चुके थे जो कर्नाटक के कई समाचार पत्रों और समाचार पोर्टलों द्वारा व्यापक रूप से कवर किए गए थे। इसके अलावा, ठेकेदार पाटिल ने सीधे प्रधानमंत्री को भी लिखा था कि ईश्वरप्पा ने उन्हें अनुबंध दिए बिना अनुबंध मूल्य का 40% वसूल किया था और प्रधान मंत्री, जिन्होंने ‘खाने नहीं देंगे’ का वादा किया था, ने भी जवाब देने की ज़हमत नहीं उठाई । तो निराश ठेकेदार ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। कानूनी तौर पर हो न हो फिर भी क्या प्रधानमंत्री आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार नहीं हैं?

कर्नाटक में भ्रष्टाचार व भाजपा का गठजोड़

पहले बंगरप्पा के समय से ही कर्नाटक की राजनीति में एक शराब माफिया का दबदबा था और एक प्रमुख शराब कंपनी किंगमेकर के रूप में काम करती थी। आज शराब के सरगना भाजपा के समर्थक हैं।

बाद में खनन माफिया, विशेष रूप से जो बेल्लारी में स्थित थे, ने राज किया। यहां तक ​​कि सुषमा स्वराज जैसी भाजपा की राष्ट्रीय नेता को भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी, जब मीडिया ने यह खुलासा किया कि बेल्लारी खनन माफिया के सरगना ने 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान उनका सारा खर्च वहन किया था। बेल्लारी में अवैध खनन के मामलों का सामना करने वाले जनार्दन रेड्डी अभी भी भाजपा में हैं और खनन परिवार का एक सदस्य अभी भी मंत्रालय में है।अब ठेकेदार-माफिया ने कब्जा जमा लिया है।

"केवल '40% की सरकार' नहीं, लूट बहुत अधिक है"

कर्नाटक में दलित ईसाई आंदोलन के एक प्रमुख नेता, फादर मनोहर चंद्र प्रसाद ने न्यूज़क्लिक को बताया, "अजीब तरह से, कर्नाटक में ठेकेदारों को मौखिक रूप से ठेके पर काम शुरू करने के लिए कहा जाता है और पहले ‘कट मनी’ को अग्रिम भुगतान (advance) के रूप में लिया जाता है और फिर कार्य आदेश दिए जाते हैं। बाद में जबरन वसूली (extortion) की एक लम्बी श्रृंखला के बाद किश्तों में भुगतान किया जाता है। सभी ठेकेदारों ने एक एसोसिएशन बनाया था और उन्होंने केंद्र को एक पत्र लिखा कि भाजपा सरकार अनुबंध मूल्य का 40% अग्रिम के रूप में लेती है जबकि उन्होंने कांग्रेस के शासन के दौरान केवल 10% का भुगतान किया था। इस पत्र के सार्वजनिक रूप से जारी होने के बाद, बोम्मई सरकार को लोकप्रिय रूप से '40% सरकार' के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन वास्तव में केवल 40% नहीं है; बल्कि लूट बहुत अधिक है।"

ईश्वरप्पा प्रकरण का एक सामाजिक कोण भी है। वह भाजपा कर्नाटक में सबसे शक्तिशाली कुरुबा समुदाय के नेता हैं। कुरुबा ओबीसी समुदाय हैं। ईश्वरप्पा कुरुबा समुदाय के एक ओबीसी नायक संगोली रायन्ना के सम्मान में त्योहारों का आयोजन करते थे, जिन्होंने कित्तूर रानी चेन्नम्मा की सेना में एक जनरल की भूमिका में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी। संख्यात्मक रूप से, कुरुबा कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा (गौड़ा) के बाद तीसरी सबसे बड़ी जाति है। संयोग से कांग्रेस नेता सिद्धारमैया भी कुरुबा ही थे। ईश्वरप्पा प्रकरण के बाद, यदि अपने समुदाय के एकमात्र नेता के रूप में सिद्धारमैया को मानकर उनके पीछे सभी कुरुबा आते हैं तो कर्नाटक भाजपा के चुनावी आधार को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचेगा। वे केवल लिंगायत (राज्य की आबादी का लगभग 13%) और दलितों के एक वर्ग, विशेष रूप से मडिगा उप-जाति, जो आबादी का लगभग 9% हैं और जिनको वे शिद्दत से पोसते रहे हैं (ये माला सहित राज्य में कुल दलित आबादी के लगभग 17% हैं), के बल पर जीत की संख्या तक नहीं पहुंच सकते हैं। वे पहले से ही कुछ अत्याचारों और महामारी के प्रभाव के चलते भाजपा से दूर जाने के संकेत दे रहे हैं।

इस्तीफा कोई छोटी घटना नहीं है। इसके दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ हैं। दक्षिण भारत में कर्नाटक इकलौता ऐसा राज्य है, जहां भाजपा का पैर जमा हुआ था. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर हिंसा, राजनीतिक हत्याओं और हिंदू धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के बावजूद, भाजपा केरल में ज्यादा प्रगति नहीं कर सकी ।

अमित शाह और मोदी के बार-बार राज्य के दौरे के बावजूद वे तमिलनाडु में 4 से अधिक सीटें नहीं जीत सके। तेलंगाना में चंद्रशेखर राव अब एक विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस से हाथ मिलाना चाहते हैं।

वाईएस जगन मोहन रेड्डी भाजपा से उतने ही दूर हैं, जितने विपक्ष में शामिल न होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करते समय थे।

कर्नाटक में मई 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगर भाजपा कर्नाटक हार जाती है, तो भाजपा-मुक्त दक्षिण भारत हो सकता।

ये भी पढ़ें: मंत्री पर 40 फीसदी कमीशन मांगने का आरोप लगाने वाला ठेकेदार होटल में मृत मिला

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