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अफ़ग़ान की नई स्थिति के बीच कई कश्मीरी दल चुनावों की तैयारियों में मशगूल
फारूख अब्दुल्लाह का दावा है कि नेशनल कांफ्रेंस आगामी चुनावों में भारी जीत दर्ज करने जा रही है। उन्होंने कहा कि उन्हें 2018 के पंचायत चुनावों में अपनी पार्टी के बहिष्कार करने के फैसले पर खेद है।
अनीस ज़रगर
01 Sep 2021
J&K
फाइल फोटो

श्रीनगर: नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने मंगलवार को दावा किया कि जब कभी भी जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराये जायेंगे, उनकी पार्टी को भारी जीत हासिल होगी।

वे यहाँ पर शेर-ऐ-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एसकेआईसीसी) में आयोजित संसदीय राज संस्थानों (पीआरआई) को मजबूत करने के लिए संसदीय आउटरीच कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आये हुए थे।

बैठक पर अपनी बातचीत में अब्दुल्लाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस “सबसे बड़ी पार्टी” रही है और चुनावों के बाद वह सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त है।

नेशनल कांफ्रेंस नेता ने कहा कि उन्हें 2018 के पंचायत चुनावों में हिस्सा नहीं लेने के अपने पार्टी के फैसले पर “अफ़सोस” है। तब दोनों ही कट्टर-प्रतिद्वंद्वी एनसी और महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्ववाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने घोषणा की थी कि वे भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार के इस क्षेत्र के “विशेष दर्जे” वाली स्थिति से छेड़छाड़ करने की आशंका के चलते चुनावों में भाग नहीं लेंगे। उनकी आशंका 5 अगस्त 2019 को सच साबित हो गई, जब केंद्र ने धारा 370 को निरस्त कर दिया था।

वयोवृद्ध नेता, पीपुल्स अलायन्स फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) के भी प्रमुख हैं, जो कि क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का एक समूह है जो अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने का विरोध करता है और इसे फिर से बहाल किये जाने की मांग करता है।

रविवार को श्रीनगर में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन का दावा था कि अगले वर्ष मार्च या अप्रैल में चुनाव हो सकते हैं।

उनका कहना था कि “एक राजनीतिक दल के रूप में, हमें चुनावों के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि वर्तमान हालात और दिल्ली की चकित कर देने वाली मानसिकता को देखते हुए चुनाव किसी भी वक्त हो सकते हैं। किसी दिन ऐसा हो सकता है कि हम सुबह सोकर उठें (और सुनें) कि चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गई है। आजकल यही सब हो रहा है, लेकिन हम चुनावों के लिए तैयार हैं।” 

फारुख अब्दुल्लाह की यह टिप्पणी, पीडीपी के पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी के नेतृत्त्व वाली अपनी पार्टी द्वारा पीएजीडी नेतृत्व पर अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर ढिलाई बरतने के आरोप लगाने के एक दिन बाद आई है।

बुखारी ने अपने बयान में कहा था “हम देख रहे हैं कि एक तरफ जहाँ पीएजीडी अनुच्छेद 370 और 35ए पर ‘कोई समझौता नहीं’ की बात कर रहा है, लेकिन ठीक उसी समय विपक्षी मांगपत्र में एक हस्ताक्षरकर्ता भी बन जाता है, जिसमें इन विशेष कानूनों को बहाल किये जाने का कोई जिक्र तक नहीं होता।”

बुखारी ने पीएजीडी पर इस क्षेत्र में “तेजी से बदलते भू-राजनीतिक गतिशीलता” की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया है। 

अफगान स्थिति का प्रभाव 

मंगलवार को अलग से बोलते हुए फारूख अब्दुल्लाह ने अफगानिस्तान में तालिबान के तेजी से सत्ता हथियाने के बाद से क्षेत्रीय राजनीतिक स्थिति पर संभावित प्रभाव पर अपनी आशंकाओं को भी साझा किया था। 

उनका कहना था कि “हमारे पड़ोसी देश मुश्किल में हैं। मुझे नहीं पता कि किस देश पर तालिबान के सत्ता हस्तांतरण का सबसे अधिक असर पड़ने जा रहा है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और रूस हैं। क्या पता तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से कहीं अमेरिका पर ही न सबसे अधिक प्रभाव पड़े? मैं इस बारे में कुछ भी यकीं के साथ नहीं कह सकता, लेकिन हाँ, अफगान स्थिति से निश्चित रूप से प्रभाव पड़ने जा रहा है।”

पीएजीडी नेता ने उस दिन अपने विवेक को व्यक्त किया जब अफगानिस्तान में 20 साल पुराने खूनी युद्ध का अंत कर अमेरिकी सेना का आखिरी जत्था काबुल से स्वदेश के लिए रवाना हुआ। हालाँकि, अमेरिकी सरकार ने युद्ध से बर्बाद हो चुके इस क्षेत्र को तालिबान के नियंत्रण में छोड़ दिया है, एक ऐसा घटनाक्रम जिसे कई लोग भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के लिए प्रतिकूल मानते हैं, विशेषकर कश्मीर में उत्पन्न गतिरोध की पृष्ठभूमि को देखते हुए। नेशनल कांफ्रेंस समेत कई दलों को इससे उत्पन्न होने वाले पलटवार का डर सता रहा है।

अफगानिस्तान में सत्ता हस्तांतरण पर कई लोगों का कहना है कि इसके कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में कुछ के लिए इसमें ‘अवसर की खिड़की’ भी खुलती नजर आती है। कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक दलों ने 5 अगस्त 2019 को लिए गये फैसले के बाद चोट खाकर कुछ सबक सीखा होगा। लेकिन कई लोग अफगान संघर्ष से नए उत्साह के साथ संभावित छलकाव के मुद्दे पर भी ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

इयमोन माजिद, जो कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढाते हैं, उन्होंने कहा “मुझे इसमें कोई नया आत्मविश्वास का कारण नजर नहीं आता, लेकिन मुख्यधारा के दल चाहें तो अफगान स्थिति को एक राजनीतिक बयानबाजी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं, जहाँ वे एक ऐसे खतरे के बारे में बात कर सकते हैं और यह कि भारत को कश्मीर में लोगों को अलगाव में नहीं डाल देना चाहिए जिससे कि स्थिति और भी खराब हो सकती है।”

सुरक्षा प्रतिष्ठान में भी इसको लेकर चिंता है। जैसा कि अमेरिका ने मंगलवार को अफगानिस्तान से अपने आखिरी सैन्य टुकड़ी को वापस निकाल लिया है, जम्मू के पूँछ क्षेत्र में सोमवार को दो आतंकवादियों के मारे जाने की खबर है, जिसके बारे में भारतीय सेना की ओर से दावा किया गया है कि ये नियंत्रण रेखा (एलओसी) से घुसपैठ करने की कोशिशों का हिस्सा थे। यह अपने आप में इस साल में संदिग्ध आतंकवादियों की ओर से दूसरा ऐसा ज्ञात प्रयास है, जिसने नए सिरे से भारत और पाकिस्तान के बीच में हुए युद्धविराम का उल्लंघन किया है। 

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अंतिम अमेरिकी टुकड़ी की वापसी से पहले न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में बताया था कि पड़ोसी देश अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद से इस तरह के उल्लंघनों में एक बार फिर से तेजी आने की संभावना है।

उक्त अधिकारी का कहना था “एक बार अमेरिकी सैनिकों के पूरी तरह से अफगानिस्तान छोड़ देने के बाद ऐसी संभावना भी बन रही है कि युद्धविराम समझौते पर कायम रहने की बात ही बेमानी हो जाए।”

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Many-Kashmir-Parties-Warming-Elections-Amid-Afghan-Situation

Jammu and Kashmir
Gupkar Alliance
Farooq Abdullah
National Conference
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Article 370

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