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भारत
राजनीति
कश्मीर : क्या श्रीनगर ‘मुठभेड़’ की जांच होगी
जम्मू-कश्मीर में ऐसी ‘मुठभेड़ों’ का एक पैटर्न बन गया है और उसका सत्ता-निर्मित आख्यान (नैरेटिव) गढ़ लिया गया है।
अजय सिंह
06 Feb 2021
कश्मीर

केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पिछले महीने संकेत दिया था कि राजधानी श्रीनगर के बाहरी इलाके में हुई तथाकथित मुठभेड़ की छानबीन की जा सकती है। 30 दिसंबर 2020 को श्रीनगर में हुई इस घटना में सेना की गोलियों से तीन नौजवान मार डाले गये थे। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उन्हें ‘चरमपंथी’ (मिलिटेंट) बताया था और कहा था कि घेर लिये जाने पर समर्पण करने की बजाय उन्होंने गोलियां चलायीं, और सेना की जवाबी कार्रवाई में तीनों नौजवान मारे गये। उनके पास से हथियारों की बरामदगी भी दिखायी गयी।

मारे गये नौजवानों के परिवार वालों का कहना था कि यह तथाकथित मुठभेड़ पूरी तरह नकली और पहले से तय थी। लाशों के पास सेना ने हथियार रख दिये, मारे गये लोंगों का चरमपंथ (मिलिटेंसी) से कोई लेना-देना नहीं था, और वे निर्दोष थे। इन तीनों के नाम हैं- ज़ुबेर अहमद लोन (20), अतहर मुश्ताक़ (16) और अजाज़ मक़बूल (22)। ज़ुबेर शोपियां और अतहर व अजाज़ पुलवामा के रहने वाले थे। ज़ुबेर के दो भाई जम्मू-कश्मीर पुलिस में कर्मचारी हैं और अजाज़ के पिता पुलिस में हेड कांस्टेबल हैं।

परिवार वालों का कहना था कि ये तीनों नौजवान कामकाज की तलाश में श्रीनगर गये थे। इस तथाकथित मुठभेड़ की घटना की जांच कराने की मांग को लेकर श्रीनगर में परिवारवालों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने प्रदर्शन किये। उनका कहना था कि पिछले दिनों शोपियां में भी ऐसी ही घटना हुई थी, जो बाद में पूरी तरह फ़र्जी साबित हुई।

ग़ौर करने की बात है कि ऐसी ही एक घटना जुलाई 2020 में शोपियां में हुई थी, जहां राजौरी से कामकाज की तलाश में गये तीन नौजवान मज़दूरों को सेना ने ‘आतंकवादी’ बता कर मारा डाला था। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मुठभेड़ हत्या के मामले में सेना के एक अधिकारी और दो ग़ैर-सैनिक व्यक्तियों को नामजद करते हुए उनके ख़िलाफ़ शोपियां की एक अदालत में 26 दिसंबर 2020 को चार्जशीट दाख़िल की। चार्जशीट दाख़िल करने के चार दिन बाद ही 30 दिसंबर 2020 को श्रीनगर में यह वारदात हुई। जम्मू-कश्मीर में ऐसी ‘मुठभेड़ों’ का एक पैटर्न बन गया है और उसका सत्ता-निर्मित आख्यान (नैरेटिव) गढ़ लिया गया है।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्रीनगर में 7 जनवरी 2021 को पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि श्रीनगर ‘मुठभेड़’ घटना से जुड़े तथ्यों की जानकारी मैं ले रहा हूं। उन्होंने कहा कि इस मामले में अगर कोई भी चीज़ संदेहास्पद नज़र आयी, तो मैं उसकी ज़रूर जांच कराऊंगा।

ऐसे संकेत हैं कि जैसे शोपियां ‘मुठभेड़’ की जांच हुई और सेना के एक अधिकारी के ख़िलाफ मुक़दमा दर्ज़ हुआ, उसी तरह श्रीनगर ‘मुठभेड़’ की भी जांच हो सकती है। शोपियां में तभी यह मामला उजागर हुआ, जब मारे गये मज़दूरों के परिवार वालों ने अच्छा-ख़ासा दबाव बनाया और समाज के अन्य तबकों ने उनका साथ दिया। अगर वे ख़ामोश रहते, तो मामला आया-गया था। अभी 29 जनवरी 2021 को, पुलवामा में फिर तीन लोग सेना के साथ ‘मुठभेड़’ में मारे गये। क्या यहां की कहानी कुछ दूसरे ढंग की होगी?

केंद्र-शासित क्षेत्र बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ (मिलिटेंसी) की क्या स्थिति है? इस संबंध में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जो आंकड़े जारी किये हैं, वे चिंताजनक हैं। वे बताते हैं कि ख़ूनख़राबा बढ़ा है, और नौजवानों की हत्याएं भी बढ़ी हैं। पुलिस के आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2020 में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक 225 ‘चरमपंथी’ (मिलिटेंट) सेना व अन्य सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे गये (वर्ष 2019 में यह संख्या 157 थी)। ये सब-के-सब नौजवान थे। 2020 में 103 बार घेरो-तलाशी लो अभियान (कोसो) चलाया गया—90 बार कश्मीर में और 13 बार जम्मू में। इस दौरान 207 ‘चरमपंथी’ कश्मीर घाटी में मारे गये और 18 जम्मू क्षेत्र में।

क्या इन घटनाओं की—‘मुठभेड़’ की इन घटनाओं की, जिनमें इतने नौजवान मारे गये—जांच होगी?

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे पढ़ें : Kashmir: Families of Youth Killed in ‘Encounter’ Claim they were Civilians

Jammu and Kashmir
Srinagar
Encounter in Srinagar
manoj sinha

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