NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कश्मीर : क्या श्रीनगर ‘मुठभेड़’ की जांच होगी
जम्मू-कश्मीर में ऐसी ‘मुठभेड़ों’ का एक पैटर्न बन गया है और उसका सत्ता-निर्मित आख्यान (नैरेटिव) गढ़ लिया गया है।
अजय सिंह
06 Feb 2021
कश्मीर

केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पिछले महीने संकेत दिया था कि राजधानी श्रीनगर के बाहरी इलाके में हुई तथाकथित मुठभेड़ की छानबीन की जा सकती है। 30 दिसंबर 2020 को श्रीनगर में हुई इस घटना में सेना की गोलियों से तीन नौजवान मार डाले गये थे। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उन्हें ‘चरमपंथी’ (मिलिटेंट) बताया था और कहा था कि घेर लिये जाने पर समर्पण करने की बजाय उन्होंने गोलियां चलायीं, और सेना की जवाबी कार्रवाई में तीनों नौजवान मारे गये। उनके पास से हथियारों की बरामदगी भी दिखायी गयी।

मारे गये नौजवानों के परिवार वालों का कहना था कि यह तथाकथित मुठभेड़ पूरी तरह नकली और पहले से तय थी। लाशों के पास सेना ने हथियार रख दिये, मारे गये लोंगों का चरमपंथ (मिलिटेंसी) से कोई लेना-देना नहीं था, और वे निर्दोष थे। इन तीनों के नाम हैं- ज़ुबेर अहमद लोन (20), अतहर मुश्ताक़ (16) और अजाज़ मक़बूल (22)। ज़ुबेर शोपियां और अतहर व अजाज़ पुलवामा के रहने वाले थे। ज़ुबेर के दो भाई जम्मू-कश्मीर पुलिस में कर्मचारी हैं और अजाज़ के पिता पुलिस में हेड कांस्टेबल हैं।

परिवार वालों का कहना था कि ये तीनों नौजवान कामकाज की तलाश में श्रीनगर गये थे। इस तथाकथित मुठभेड़ की घटना की जांच कराने की मांग को लेकर श्रीनगर में परिवारवालों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने प्रदर्शन किये। उनका कहना था कि पिछले दिनों शोपियां में भी ऐसी ही घटना हुई थी, जो बाद में पूरी तरह फ़र्जी साबित हुई।

ग़ौर करने की बात है कि ऐसी ही एक घटना जुलाई 2020 में शोपियां में हुई थी, जहां राजौरी से कामकाज की तलाश में गये तीन नौजवान मज़दूरों को सेना ने ‘आतंकवादी’ बता कर मारा डाला था। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मुठभेड़ हत्या के मामले में सेना के एक अधिकारी और दो ग़ैर-सैनिक व्यक्तियों को नामजद करते हुए उनके ख़िलाफ़ शोपियां की एक अदालत में 26 दिसंबर 2020 को चार्जशीट दाख़िल की। चार्जशीट दाख़िल करने के चार दिन बाद ही 30 दिसंबर 2020 को श्रीनगर में यह वारदात हुई। जम्मू-कश्मीर में ऐसी ‘मुठभेड़ों’ का एक पैटर्न बन गया है और उसका सत्ता-निर्मित आख्यान (नैरेटिव) गढ़ लिया गया है।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्रीनगर में 7 जनवरी 2021 को पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि श्रीनगर ‘मुठभेड़’ घटना से जुड़े तथ्यों की जानकारी मैं ले रहा हूं। उन्होंने कहा कि इस मामले में अगर कोई भी चीज़ संदेहास्पद नज़र आयी, तो मैं उसकी ज़रूर जांच कराऊंगा।

ऐसे संकेत हैं कि जैसे शोपियां ‘मुठभेड़’ की जांच हुई और सेना के एक अधिकारी के ख़िलाफ मुक़दमा दर्ज़ हुआ, उसी तरह श्रीनगर ‘मुठभेड़’ की भी जांच हो सकती है। शोपियां में तभी यह मामला उजागर हुआ, जब मारे गये मज़दूरों के परिवार वालों ने अच्छा-ख़ासा दबाव बनाया और समाज के अन्य तबकों ने उनका साथ दिया। अगर वे ख़ामोश रहते, तो मामला आया-गया था। अभी 29 जनवरी 2021 को, पुलवामा में फिर तीन लोग सेना के साथ ‘मुठभेड़’ में मारे गये। क्या यहां की कहानी कुछ दूसरे ढंग की होगी?

केंद्र-शासित क्षेत्र बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ (मिलिटेंसी) की क्या स्थिति है? इस संबंध में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जो आंकड़े जारी किये हैं, वे चिंताजनक हैं। वे बताते हैं कि ख़ूनख़राबा बढ़ा है, और नौजवानों की हत्याएं भी बढ़ी हैं। पुलिस के आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2020 में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक 225 ‘चरमपंथी’ (मिलिटेंट) सेना व अन्य सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे गये (वर्ष 2019 में यह संख्या 157 थी)। ये सब-के-सब नौजवान थे। 2020 में 103 बार घेरो-तलाशी लो अभियान (कोसो) चलाया गया—90 बार कश्मीर में और 13 बार जम्मू में। इस दौरान 207 ‘चरमपंथी’ कश्मीर घाटी में मारे गये और 18 जम्मू क्षेत्र में।

क्या इन घटनाओं की—‘मुठभेड़’ की इन घटनाओं की, जिनमें इतने नौजवान मारे गये—जांच होगी?

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे पढ़ें : Kashmir: Families of Youth Killed in ‘Encounter’ Claim they were Civilians

Jammu and Kashmir
Srinagar
Encounter in Srinagar
manoj sinha

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा

आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद

जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती

जम्मू-कश्मीर परिसीमन से नाराज़गी, प्रशांत की राजनीतिक आकांक्षा, चंदौली मे दमन


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License