NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
“मज़हब और सियासत से हल नहीं होगा कश्मीर का मसला”
पिछले सात सालों और विशेषकर दो सालों में कश्मीर के मसले पर शेष भारत में कश्मीर विजय का जो आख्यान चलाया गया वह गहरी सियासत के साथ बदले की भावना से प्रेरित था।  
अरुण कुमार त्रिपाठी
22 Jun 2021
तस्वीर में जयप्रकाश नारायण (बाएं), महात्मा गांधी (मध्य में), विनोबा भावे (दाएं)। इन तीनों नेताओं ने हमेशा कश्मीर में प्यार और सद्भाव के साथ हस्तक्षेप की वकालत की।
तस्वीर में जयप्रकाश नारायण (बाएं), महात्मा गांधी (मध्य में), विनोबा भावे (दाएं)। इन तीनों नेताओं ने हमेशा कश्मीर में प्यार और सद्भाव के साथ हस्तक्षेप की वकालत की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुरुवार यानी 24 जून को यानी इमरजेंसी दिवस से एक दिन पहले कश्मीर के राजनीतिक दल के नेताओं से बात करेंगे तो उन्हें महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की बातें भले न याद रहें लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की बातें जरूर याद रहनी चाहिए कि कश्मीर का मसला इंसानियत के दायरे में हल होना चाहिए। पिछले सात सालों और विशेषकर दो सालों में कश्मीर के मसले पर शेष भारत में कश्मीर विजय का जो आख्यान चलाया गया वह गहरी सियासत के साथ बदले की भावना से प्रेरित था। वह बदला इस्लाम को मानने वाले आक्रांताओं से लेना था और अस्सी के दशक के अंत में उभरे आतंकवाद का उसी की भाषा में जवाब देना था।

लेकिन यहां विनोबा भावे की वह टिप्पणी बहुत प्रासंगिक लगती है जिससे सुर मिलाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने इंसानियत की बात की थी। ध्यान देने की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने वह बात तब कही थी जब शेष भारत के लोग संविधान के दायरे में कश्मीर की समस्या के समाधान की बात कर रहे थे और हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता उस दायरे को मानने को तैयार नहीं थे और आजादी पर अड़े हुए थे। ऐसे समय में सर्वोदयी विचारक और भूदानी संत विनोबा भावे की वह टिप्पणी गौर करने लायक है जो उन्होंने 22 मई 1959 को कश्मीर यात्रा के शुभारंभ के मौके पर कहा था। `` कश्मीर का, हिंदुस्तान का और दुनिया का मसला रूहानियत से ही हल होगा, सियासत से नहीं। क्योंकि मजहब के दिन अब लद गए इसके आगे दुनिया में रूहानियत और विज्ञान चलेगा। मजहब, कौम, जबान वगैरह सब तरह से तफरके मिटाकर अपने दिल को वसी बनाएंगे तभी कश्मीर और हिंदुस्तान की ताकत बनेगी। वह ऐसी ताकत होगी जिससे दुनिया का हर शख्स सुकून पाएगा।’’

विनोबा कश्मीर में चार महीने रहे और इस दौरान उन्होंने हर तबके से बात की। जेल में बंद शेख अब्दुल्ला से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि लोग उनके मिशन की तुलना शंकराचार्य के कश्मीर मिशन से कर रहे हैं। शंकराचार्य वहां अद्वैत का संदेश लेकर गए थे। विनोबा का कहना था कि इंशा अल्लाह मैं तीन तरह की बातें करना चाहता हूं। (1) मैं देखना चाहता हूं।(2) मैं सुनना चाहता हूं। (3) मैं प्यार करना चाहता हूं।

विनोबा के घुसते ही पठानकोट में उनसे मिलने कुछ मुसलमान भाई आए। उन्होंने उन्हें कुरान की प्रति भेंट की और विनोबा ने कहा कि उनके लिए इससे अच्छी कुछ भेंट हो नहीं सकती। विनोबा अपनी यात्रा में हर सुबह ग्यारह बजे कुरान शरीफ की तिलावत (पठन) करते थे। उन्होंने कहा कि कश्मीर लल्ला और अल्ला का देश है। मेरे पास प्यार की जितनी शक्ति है उसे यहां उड़ेलने मैं आया हूं। लल्ला यानी लल्लेश्वरी यानी लल्ला आरिफा (1320-1392) चौदहवीं सदी की कश्मीर की महान शैव संत हुई हैं। उनकी स्वीकार्यता कश्मीर के हिंदू और मुसलमानों में समान रूप से है। उनके शिष्य स्वयं नूरुद्दीन उर्फ नंद ऋषि हुए हैं। लल्ला की परंपरा हिंदू मुसलमानों के बीच भेद को मिटाती है और अध्यात्म के माध्यम से दोनों को एक करती है। बाद में सियासत और मजहब ने उन्हें बांट दिया।

विनोबा अपने समय से बहुत आगे की बात करते थे और कश्मीर पर जय जगत का कौल (मंत्र) भी लागू करना चाहते थे और यह भी कहते थे कि दुनिया की छह महत्वपूर्ण शक्तियां अगर चाहें तो कश्मीर की स्थिति स्विटजरलैंड जैसी हो सकती है। शायद दुनिया सियासत और मजहब से पूरी तरह जल्दी मुक्त न हो लेकिन इतना जरूर है कि हम किसी मसले का हल तभी निकाल सकते हैं जब सियासत और मजहब को इनसान की सेवा का उपकरण ही मानें और उनकी जकड़बंदी तोड़ें। सिर्फ गुप्कार गैंग कहकर गाली देने से काम चल जाता तो आखिर में केंद्र सरकार क्यों कश्मीरी नेताओं को बात करने के लिए बुलाती।

महात्मा गांधी

हालांकि महात्मा गांधी विनोबा की तरह सियासत और मजहब छोड़ने की बात तो नहीं करते थे क्योंकि वे विनोबा की तरह संत और महात्मा तो थे लेकिन उससे अलग बड़े सियासत दां भी थे। इसलिए अगस्त 1947 के पहले हफ्ते में महात्मा गांधी ने जब कश्मीर की यात्रा की तो उन्होंने एक अलग संदेश दिया जो आज लोगों की समझ में और अच्छी तरह से आ सकता है। गांधी कश्मीर में पांच दिन रहे। तीन दिन घाटी में और दो दिन जम्मू में। उन्होंने महाराजा हरि सिंह का आतिथ्य स्वीकार नहीं किया जबकि शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला के हाथ से दूध का गिलास लेना स्वीकार किया। वह कृष्ण जैसा राजनीतिक संदेश देने का प्रयास था, जिन्होंने दुर्योधन के घर मेवा वाला भोजन छोड़कर विदुर के घर साग खाया था। क्योंकि जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर कश्मीर गए गांधी उस रियासत के भारत में शामिल होने की संभावनाओं का पता लगाने गए थे। गांधी की यात्रा का उद्देश्य था महाराजा की जेल में बंद शेख अब्दुल्ला की रिहाई के लिए माहौल बनाना और कश्मीरियों का मन जानना। तभी उन्होंने एक स्पष्ट राजनीतिक बयान देते हुए जनता के मन को जीतने का प्रयास भी किया। गांधी ने कहा,  `` कश्मीर को महाराजा नहीं बचा सकते। उसे मुस्लिम, कश्मीरी पंडित, राजपूत और सिख समुदाय ही बचा सकते हैं।’’ हालांकि गांधी भी विनोबा की तरह ही वहां ज्यादा सामुदायिक एकता और आध्यात्मिक मसलों पर ही बोले। उन्होंने कहा कि अब तक राजाओं की संप्रभुता थी, अंग्रेजों की संप्रभुता थी लेकिन अब जनता की संप्रभुता शुरू होनी चाहिए। यानी वे वहां एक रेडिकल लोकतंत्र का संदेश देकर आए।

वहां गांधी का जबरदस्त स्वागत हुआ। वह स्वागत इतना भीड़ भरा था कि श्रीनगर के सभास्थल तक गांधी झेलम पर बने पुल से पार नहीं हो सके। लोग महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहे थे और पुल पर जाम लगा रखा था। गांधी नाव से उस पार गए और 25,000 की भीड़ को संबोधित किया। बाद में सितंबर महीने में महाराजा ने शेख अब्दुल्ला की रिहा कर दिया। 28 नवंबर को शेख अब्दुल्ला दिल्ली में गांधी की प्रार्थना सभा में उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि शेख अब्दुल्ला ने एक काम किया। उन्होंने हिंदू, सिख और मुसलमानों को एकजुट रखा।

जयप्रकाश नारायण

यहां यह याद दिलाना रोचक होगा कि जिन जयप्रकाश नारायण का नाम लेने से संघ और भाजपा वाले नहीं थकते और उनसे संबंधित जिस इमरजेंसी दिवस 25 जून के एक दिन पहले प्रधानमंत्री कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक करने जा रहे हैं वे जेपी कश्मीर के बारे में क्या सोचते थे। जेपी पूर्वोत्तर की समस्या के साथ कश्मीर की समस्या के हल के लिए भी सक्रिय थे। उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही जेल में बंद शेख अब्दुल्ला की रिहाई के लिए उन्हें पत्र लिखा। उन्होंने 1966 में लिखे अपने पत्र में कहा, `` हम धर्मनिरपेक्ष बनते हैं लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद को रेलमपेल मचाकर दमन के माध्यम स्थापित होने का मौका देते हैं। कश्मीर ने दुनिया में भारत की छवि को जितना नुकसान पहुंचाया है उतना किसी और ने नहीं।’’

लेकिन वे अगर इंदिरा गांधी को कश्मीर में हिंदू राष्ट्रवाद थोपने के विरुद्ध आगाह करते हैं तो 1968 में श्रीनगर में हुए एक सेमिनार में शेख अब्दुल्ला और कश्मीर के नेताओं को भी सतर्क करते हैं। उन्होंने शेख अब्दुल्ला की मौजूदगी में कहा कि इस रणनीतिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की गहरी रुचि है लेकिन कश्मीर को भारत से अलग नहीं होना चाहिए।

जाहिर सी बात है कश्मीर भारत की धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण है और वहीं भारत की इस पहचान का सबसे बड़ा इम्तिहान भी हो रहा है।

अगर कोई कश्मीर समस्या का हल सिर्फ कश्मीरी पंडितों के लिहाज से करना चाहेगा तो हल नहीं होगा और न ही वहां की समस्या सिर्फ मुसलमानों के नजरिए से हल होगी और न ही सिखों व राजपूतों के। कश्मीर समस्या का हल इन सबको अलग अलग बांटकर भी नहीं होगा। इन सबको एक साथ जोड़कर देखने और बड़े दिलो दिमाग के साथ कश्मीर मसले का हल संभव है।

एक उच्चस्तरीय नैतिकता भी चाहिए कश्मीर जैसी जटिल समस्या के हल के लिए। एक वैश्विक जनमत और सहयोग भी चाहिए कश्मीर को बचाने के लिए। उसकी झलक गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण के प्रयासों और विचारों में देखी जा सकती है।    

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Jammu and Kashmir
KASHMIR ISSUE
Kashmir conflict
Mahatma Gandhi
JP Narayan
Narendra modi
indira gandhi
Sheikh Abdullah

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License