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भारत
राजनीति
जीएसटी मुआवज़े पर केरल के रुख को मज़बूत समर्थन की दरकार
राजकोषीय न्याय और विश्वास-आधारित संघवादी प्रणाली के हित में, राज्यों को केरल के वित्तमंत्री के अच्छे विचार का समर्थन करना चाहिए, न कि ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ के मिथक का जिसे केंद्र सरकार की नाकामी को छिपाने के लिए उछला गया है।
भारत डोगरा
02 Sep 2020
Translated by महेश कुमार
केरल

29 अगस्त को एक महत्वपूर्ण संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, केरल के वित्तमंत्री थॉमस इसहाक ने कहा कि राज्यों को उनके जीएसटी मुआवजे का भुगतान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए केंद्र को ऋण लेना चाहिए। इसहाक ने सीधे तौर पर कहा, कि केरल  ने सेंटर के स्टैंड को खारिज कर दिया है, उक्त बात हाल ही में आयोजित जीएसटी की बैठक में कही गई थी। केंद्र ने कहा है कि राज्यों को जीएसटी बकाए का भुगतान न होने के कारण पैदा होने वाले वित्तीय संकट को हल करने के लिए कर्ज लेना चाहिए, और भारतीय रिजर्व बैंक इस प्रक्रिया में मदद करेगा।

थॉमस इसहाक पहले ही कह चुके हैं कि उनके प्रस्ताव को केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का ही नहीं, बल्कि कई अन्य मुख्यमंत्रियों का समर्थन हासिल है। जीएसटी काउंसिल की बैठक में इसकी पुष्टि हुई, जिस पर कई राज्यों ने कहा कि केंद्र को धन उधार लेना चाहिए और राज्यों के बीच उसका वितरण करना चाहिए। इसहाक ने यह भी कहा है कि केरल इस मुद्दे पर अधिक से अधिक राज्यों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा।

हाल के दिनों में केंद्र सरकार द्वारा पैदा किए गए संसाधन संकट या संसाधनों में कमी के उस पहलू पर व्यापक रूप से चर्चा हुई जिसके तहत केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जुलाई तक राज्यों को संवैधानिक रूप से अनिवार्य 1.5 लाख करोड़ रुपये जीएसटी मुआवजे का भुगतान नहीं किया है। जब राज्यों के प्रति जीएसटी मुआवजे की कुल कमी का आधिकारिक तौर पर अनुमान लगाया गया तो यह करीब 2.35 लाख करोड़ रुपए बैठा, जिनमें से 97,000 करोड़ रुपये का अनुमान “GST कार्यान्वयन” और शेष कोविड-19 संबंधित कारकों के कारण आँका गया है।

कई राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के धन न मुहैया कराने के रुख का पुरजोर विरोध किया है क्योंकि उन्हें जीएसटी समझौते को स्वीकार करने के बदले मुवाअजे की गारंटी दी गई थी, जो पहले की संघीय व्यवस्था को दोहराता है। केंद्र द्वारा बकाए का भुगतान न करने को असंवैधानिक करार दिया गया है। इसी तरह, पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा है कि “जीएसटी परिषद की सातवीं बैठक में अध्यक्ष ने कहा था कि शत-प्रतिशत मुआवजे का भुगतान करना केंद्र सरकार की संवैधानिक प्रतिबद्धता है............ सहकारी संघवाद को प्रतिरोधी संघवाद में बदला जा रहा है।"

केरल के स्टैंड को व्यापक समर्थन मिलने की संभावना है क्योंकि अगर केंद्र का सुझाव माना गया तो राज्यों को कई अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ निभानी होंगी जबकि उनकी राजस्व स्थिति यानि सरकारी खजाने में उल्लेखनीय रूप से गिरावट आई है। ऐसा कई कारणो से हुआ है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारक केंद्र द्वारा जीएसटी संबंधित दायित्वों को पूरा नहीं करने से है। राज्यों ने अपनी कुछ स्वायत्तता केंद्र के समक्ष दांव पर इसलिए लगाई थी ताकि एकीकृत टैक्स प्रणाली के माध्यम से सबकी भलाई के सपने को पूरा किया जा सके जिसे उन्हें केंद्र सरकार ने दिखाया था और आश्वासन दिया गया था कि शुरुआती वर्षों में उनके नुकसान की भरपाई की जाएगी। अब मुआवजा नहीं मिल रहा है, इसलिए राज्यों में कल्याण और विकास दायित्वों को पूरा करने, और यहां तक कि नियमित प्रशासनिक कार्यों को करने की क्षमता पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। यह विशेष रूप से आम लोगों, और खासकर गरीबों के ऊपर बड़े पैमाने पर प्रतिकूल असर डालेगा।

कई राज्यों के पास पूंजीगत व्यय बढ़ाने का शायद ही कोई विकल्प बचा है, जबकि कुछ ने वेतन भुगतान करने में समस्याएं जताई हैं। वर्तमान संकट कई राज्यों की पहले से बिगड़ती ऋण स्थिति के सर चढ़ कर बोल रहा है। पिछले पांच वर्षों के दौरान राज्य सरकारों पर कर्ज़ का बोझ दोगुना हो गया है, और लगभग 50 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक ने तेजी से बढ़ते कर्ज पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

इसके अलावा, केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वायरस से आई महामारी को "एक्ट ऑफ गॉड” बताया है। उनकी इस बात पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और यहां तक कि व्यंग भी कसे जा रहे हैं। कारण यह है कि मंत्री खुद यह मान रही हैं कि महामारी मानव नियंत्रण से परे की बात है, और इसलिए सरकार को इसके कारण होने वाले किसी भी व्यवधान के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है। यह स्पष्ट रूप से तर्कसंगत दृष्टिकोण नहीं है और न ही इसका कोई वैज्ञानिक आधार है बल्कि यह एक गढ़ा गया सफ़ेद झूठ है। कोई भी महामारी और उसकी वजह हमेशा वैज्ञानिक व्याख्या के दायरे में आती हैं और इसका तेजी से प्रसार भी इसी व्याख्या का मोहताज होता है। इसे "एक्ट ऑफ गॉड" कहना, इसके कारणों और इसके प्रसार की प्रकृति को विस्तृत वैज्ञानिक जानकारी की आवश्यकता को नकारना है।

क्या महामारी के बारे में वित्तमंत्री की समझ भारत सरकार का आधिकारिक दृष्टिकोण है? यदि ऐसा नहीं है, तो केंद्र सरकार इसका स्पष्टीकरण दे।

यहां तक कि अगर हम इस तर्क को स्वीकार कर लें कि महामारी मानव नियंत्रण से परे की बात है, तो हमें तब भी इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि कोविड-19 का असर विभिन्न देशों में अलग-अलग रहा है, यहां तक कि देश के भीतर के क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक जीवन दोनों पर बहुत अलग परिणाम पड़े हैं। इसका सबसे महत्वपूर्ण तथ्य नीति से है जिसमें वायरस के प्रसार से निपटने और इससे कैसे नष्ट किया जाए पर खास ध्यान दिया गया है।

“एक्ट ऑफ गॉड” की परिभाषा सख्त रूप से कानूनी है। इसे निजी अनुबंध में उपयोग किया जाता है ताकि नियंत्रण के बाहर यदि कोई नुकसान होता है तो अनुबंधित शर्तों के माध्यम से उस क्षतिपूर्ति को पूरा किए जाने की छूट देता है। हालाँकि, निजी अनुबंधों से संबंधित वैधता या शर्तों को लोकतांत्रिक संघीय संबंधों या व्यवस्था पर लागू नहीं किया जा सकता है, न ही संवैधानिक दायित्वों के लिए इसका उपयोग किया जा चाहिए। जैसा कि बादल ने कहा, "जीएसटी को शुरू करने वाला संवैधानिक ढांचा 'एक्ट ऑफ गॉड' के माध्यम से पलायन करने का कोई रास्ता नहीं देता है।"

कुछ देशों में, कोविड-19 के कारण पैदा हुअ संकट काफी नियंत्रित रहा क्योंकि वहां की स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था बेहतर थी, जबकि भारत सहित अन्य देशों में, स्वास्थ्य व्यवस्था दुनिया में सबसे खराब हैं।

भारत के संदर्भ में, हमें केंद्र से यह पूछने की जरूरत है कि क्या लंबे समय तक लागू किए गए लॉकडाउन जिसकी वजह से लाखों प्रवासियों/मजदूरों को अत्यंत दर्दनाक पैदल यात्राएं करनी पड़ी थीं, क्या वह सब साक्ष्य और तर्कसंगतता पर आधारित थीं? स्पष्ट रूप से कहा जाए तो इसका जवाब न है, क्योंकि लॉकडाउन में अत्यधिक-प्रतिबंधात्मक कार्यवाही तबाही की मिसाल साबित हुई है।

इन सभी कारणों, और न्याय और विश्वास-आधारित संघवाद के हित में, सरकार जीएसटी पर राज्यों के प्रति तय दायित्वों को पूरा करने से “एक्ट ऑफ गॉड” की कल्पना कर बच नहीं सकती है। राजस्व बढ़ाने के चक्कर में केंद्र द्वारा उपकर पर उपकार लगाने से राज्यों पर भारी बोझ बढ़ने की प्रवर्ति है, जिनकी आय राज्यों के साथ साझा भी नहीं की जाती है। यह स्पष्ट तौर पर बताता है कि केंद्र राजस्व बढ़ाने के अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करने में अक्षम है- जैसे कि सबसे अमीर व्यक्तियों पर कर बढ़ाना, जिसमें बड़े कॉर्पोरेट पर वेल्थ टैक्स बढ़ाना और उसे हासिल करना शामिल हैं। आर्थिक कठिनाइयों के इस दौर में, सरकार को विदेशी खातों में जमा अरबों रुपए वापस लाने के अपने भूले वादे को याद रखना चाहिए।

अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण, केंद्र बेकार की परियोजनाओं को खारिज कर अपने वित्त में सुधार कर सकता है, और ऐसा ही राज्य सरकारें कर सकती हैं जो बेकार और पारिस्थितिक और सामाजिक रूप से विघटनकारी योजनाओं में फंसी हुई हैं। कई ऐसी परियोजनाओं को धकेला जा रहा है, जिनका लाभ कुछ संकीर्ण समूहों को मिलता है वह भी आम नागरिकों और सरकारी खजाने की कीमत पर।

भारत को न केवल इस वित्तीय वर्ष के बारे में सोचना है बल्कि आने वाले वर्षों के बारे में भी सोचना है। अगर उधार का बोझ राज्यों पर डाला जाता है, तो यह आने वाले वर्षों में उनकी हालत खराब कर देगा। राजस्व जुटाने के लिए केंद्र के पास अधिक विकल्प हैं, और इसलिए केरल सरकार और उसके वित्तमंत्री को अवश्य सुना जाना चाहिए: केंद्र को ऋण लेना चाहिए और जीएसटी मुआवजे का भुगतान राज्यों को कर देना चाहिए।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

Kerala Finance minister
GST
Economy
Modi Govt
COVID 19

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