NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
भारत
किसान आंदोलन: शहीद जवानों और किसानों की याद में कैंडल मार्च
पुलवामा हमले और किसान आंदोलन के शहीदों को श्रद्धाजलि देने के लिए संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर पूरे भारत के गांवों और कस्बों में मशाल जुलूस और कैंडल मार्च का आयोजन किया गया।
मुकुंद झा
15 Feb 2021
किसान आंदोलन

किसान आंदोलन 80 से अधिक दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा है। रविवार, 14 फरवरी के दिन किसानों ने पुलवामा हमले के शहीदों और अभी तक इस किसान आंदोलन में शहीद हुए 200 से अधिक किसानों को श्रद्धांजलि दी। इसके लिए संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली बॉर्डर के आंदोलन स्थलों समेत पूरे भारत के गांवों और कस्बों में मशाल जुलूस और कैंडल मार्च का आयोजन किया गया।

दिल्ली में सिंघु, टिकरी, गाजीपुर और शाहजहांपुर के पास, राजस्थान-हरियाणा सीमाओं पर जहां किसानों का एक और समूह डेरा डाले हुए हैं, वहां सभी जगह इसी तरह के आयोजन किए गए।

किसान संगठनों के नेताओं के अनुसार इस आंदोलन के दौरान अब तक 228 किसान शहीद हो चुके हैं।

इस कार्यक्रम के तहत दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने भी कैंडल मार्च किया। जिसमें बड़ी संख्या में किसान और संयुक्त मोर्चा के नेता शामिल हुए। 

सिंघु बॉर्डर पर किसानों का यह प्रदर्शन स्थल लगभग दस किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसलिए किसान लगातार समूह में कैंडल लेकर मुख्य मंच तक पहुंचे जहाँ नेता संबोधित कर रहे थे। 

झारखंड से आए 50 वर्षीय परमजीत सिंह, जो दिन के उजाले में इस कैंडिल मार्च की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने कहा, "यहां पर 50,000 से अधिक मोमबत्ती के पैकेट वितरित किए जा चुके हैं।"

इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों के एक हाथ में गुलाब का फूल और दूसरे में कैंडल थी। उनका कहना था इसका संदेश एक है कि देश का किसान और जवान दोनों एक हैं। वहां लगातार जय जवान और जय किसान के नारे बुलंद किए जा रहे थे।   

हरियाणा के करनाल के रहने वाले 53 वर्षीय बलवंत सिंह ने कहा, "यह शुरू से ही हमारा नारा रहा है और यही वह संदेश है जिसे हम सरकार को समझाना चाहते हैं।"

गुरप्रीत कौर जो पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर से आईं थीं। उन्होंने कहा: “उन्हें आज गर्व है कि वो इस प्रदर्शन का हिस्सा हैं। एक तरफ जवान देश की सुरक्षा के लिए बॉर्डर पर है जबकि देश को खिलाने वाले किसान देश की राजधानी के बॉर्डर पर बैठने को मज़बूर हैं।”

कुल हिंद किसान सभा पंजाब के महासचिव मेजर सिंह पन्नूवाल ने कहा, "किसानों ने पहले भी ट्रैक्टर परेड के साथ इस एकता का प्रदर्शन करने की कोशिश की थी।"

उन्होंने कहा कि सीमाओं पर जो जवान हैं, वे किसानों और श्रमिकों के परिवारों से ही  हैं, और इसलिए यह  नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने किसानों की शहादत के साथ ही शहीद जवानों को भी याद करें। 

इसी तरह की कुछ भावनाएं झामुरी किसान सभा के अध्यक्ष  डॉ. सतनाम सिंह ने व्यक्त की। उन्होंने पूरे प्रकरण का "राजनीतिक लाभ" लेने के लिए मोदी सरकार पर भी सवाल खड़े किए। हमले को लेकर मोदी सरकार पर इस तरह के आरोप लगाने और संदेह जताने वाले वे अकेले नहीं थे बल्कि वहां मौजूद कई लोग इसी तरह के आरोप लगा रहे थे।   

पुलवामा हमला 14 फरवरी, 2019 में उस समय हुआ था जब देश में आम चुनाव होने वाले थे। हमले के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राष्ट्रवादी भावनाओं पर सवार होकर चुनाव प्रचार किया।

सतनाम ने कहा “वे (तत्कालीन भाजपा शासित केंद्र सरकार) नोटबंदी लाए, और फिर जीएसटी; यह केवल पुलवामा जैसी दुखद घटनाएँ थीं, जिनसे राजनीतिक लाभ भाजपा को मिला और वो जीत गए” उन्होंने कहा, "वर्ना तो वो जीत ही नहीं सकते थे।"

किसान नेताओं ने कहा कि हाल ही में सरकार ने संसद में जवाब दिया कि किसान आंदोलन के शहीदों को कोई सहायता देने का विचार नहीं है। संसद के इस सत्र में शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने में भी भाजपा व सहयोगी दलों के सासंदो ने जो असंवेदनशीलता दिखाई उससे भी किसानों में रोष है। उन्होंने कहा अब तक 228 किसान शहीद हो चुके हैं। हम सरकार से पूछना चाहते है कि और कितने किसानों का बलिदान चाहिए?

किसान नेताओं का कहना है कि कलम और कैमरे पर इस सरकार का सख्त दबाव है। इसी कड़ी में पत्रकारों की गिरफ्तारी और मीडिया के दफ्तरों पर छापेमारी हो रही है। हम न्यूज़क्लिक मीडिया पर बनाए जा रहे दबाव की निंदा करते हैं। ऐसे वक़्त में जब गोदी मीडिया सरकार का प्रोपेगेंडा फैला रहा है, चंद मीडिया चैनल लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की लाज बचाए हुए हैं और उन पर हमला निंदनीय है।

आपको मालूम ही है कि ‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ के नेतृत्व में तीन नए विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह तीन विवादित कानून हैं- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता हेतु सरकार का विरोध कर रहे हैं। दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन का प्रतिकूल मौसम के बाद भी कई दिनों से चल रहा है। वहीं किसान संगठनों द्वारा किसान महापंचायतों का दौर भी जोर शोर से चलाया जा रहा है। किसान नेताओं ने कहा है कि देशभर में किसानों से मिल रहे भारी समर्थन से यह तय है कि सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस करना ही पड़ेगा। आयोजित महापंचायतों में किसानों एवं जागरूक नागरिकों का भारी समर्थन मिला है। संयुक्त मोर्चा के नेता राकेश टिकैत लगातार अपने भाषणों में कह रहे हैं कि रोटी को तिजोरी की वस्तु नहीं बनने देंगे और भूख का व्यापार नहीं होने देंगे।

farmers
Farmers’ Protest
Singhu Border
Pulwama
tribute
Tikri
Ghazipur
BJP
Narendra modi
Farm Laws

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License