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किसान आंदोलन अपडेट: किसान एक दिन के अनशन पर, प्रदर्शन करेंगे और तेज़
नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे किसानों ने अब भूख हड़ताल शुरू कर दी है। दिल्ली की सीमाओं पर और अधिक किसान आते जा रहे हैं और एक बार फिर पूरे देश में प्रदर्शन करने की तैयारी की गई है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
14 Dec 2020
किसान आंदोलन अपडेट

किसान नेताओं ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को एक दिवसीय भूख हड़ताल शुरू की और कहा कि सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया जाएगा। इस बीच, दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन से और लोगों के जुड़ने की संभावना है। किसान नेता बलदेव सिंह ने कहा, ‘किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने सिंघु बॉर्डर पर भूख हड़ताल शुरू कर दी है।’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रविवार को कहा था कि वह सोमवार को एक दिवसीय भूख हड़ताल करेंगे। उन्होंने केंद्र सरकार से ‘अहम त्यागने और कानूनों को रद्द करने’ की अपील की थी। किसानों के एक बड़े समूह ने हरियाणा-राजस्थान सीमा पर पुलिस द्वारा रोके जाने पर रविवार को दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध कर दिया था। राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के तहत सोमवार को किसानों का देश के सभी जिला मुख्यालयों में धरना देने का कार्यक्रम है। राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने शहर की सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी है।

कृषि कानून किसानों की ‘मौत का परवाना’: हन्नान मोल्लाह

राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने रविवार को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए केंद्र सरकार के इन कानूनों के प्रावधानों में संशोधन के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और स्पष्ट किया इन्हें रद्द किए जाने से कम पर कोई बात नहीं बनेगी। आंदोलन की अगुआई कर रहे किसान संगठनों में से एक अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने एक साक्षात्कार में इन कानूनों को किसानों की ‘मौत का परवाना’ करार दिया और कहा कि कुछ ‘कॉस्मेटिक’ संशोधनों से किसान विरोधी इन कानूनों को किसान हितैषी नहीं बनाया जा सकता है।

1980 से 2009 तक लगातार आठ बार लोकसभा के सदस्य रह चुके मोल्लाह ने कहा कि जब सरकार 70 साल पुराने 44 श्रम कानूनों को एक झटके में समाप्त कर सकती है तो इन कानूनों को समाप्त क्यों नहीं कर सकती। सिंघु और टिकरी बॉर्डर समेत राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न बॉर्डर पर पिछले 17 दिनों से हजारों प्रदर्शनकारी जमा हैं और इस बीच किसान संगठनों ने जयपुर-दिल्ली राजमार्ग बंद करने की घोषणा की है। सरकार के साथ इन किसानों की पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठन एक बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी बैठक कर चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर रहा है। किसानों ने घोषणा की कि आंदोलन में शामिल संगठनों के प्रतिनिधि 14 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शन के दौरान भूख हड़ताल पर बैठेंगे।

मोल्लाह ने कहा, ‘इन कानूनों को रद्द करना ही हमारी एकमात्र मांग है। हमने शुरू से कहा है कि ये कानून ‘ए टू जेड’ किसान विरोधी हैं। दो-तीन संशोधनों से यह किसान हितैषी कानून नहीं बन जाएगा। ‘कॉस्मेटिक बदलाव’ करने से किसानों का हित नहीं होने वाला है।’ उन्होंने कहा कि आजादी के बाद यह पहला मौका है जब छोटे-बड़े लगभग 500 किसान संगठन एक साथ आए हैं और एक सुर में बात कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार अडाणी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों के निर्देश पर काम कर रही है और इन कानूनों के सारे फायदे किसानों को नहीं, उन्हें मिलेंगे।

उन्होंने कहा, ‘उन लोगों ने हजारों एकड़ जमीनें खरीद ली हैं। गोदाम बनाने शुरू कर दिये हैं। यही वजह है कि सरकार इन कानूनों को रद्द करना नहीं चाहती। 70 सालों से चल रहे 44 श्रम कानूनों को एक घंटे में समाप्त कर दिया गया। सारे मजदूरों का हक छीन लिया और सुविधाएं मालिकों को मुहैया करा दी गईं। तो कृषि कानूनों को समाप्त करने में क्या परेशानी है?’

सरकार द्वारा वार्ता के लिए आमंत्रित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर मोल्लाह ने आरोप लगाया कि वह वार्ता को लंबा खींच रही है तथा किसानों की बात सुनने की बजाय अपनी बातें थोपना चाह रही है। उन्होंने कहा, ‘सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है। हमें टीबी की बीमारी है और सरकार हैजा की दवा पिला रही है। ऐसे में आंदोलन जारी रखना, हमारी मजबूरी है। हम किसान लोग हैं। खेती-किसानी हमारी संस्कृति है और जीवन पद्धति भी है। हम इसे बरकरार रखना चाहते हैं लेकिन सरकार जबरदस्ती हमें ट्रेडर बनाना चाहती है।’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित अन्य मंत्रियों द्वारा इन कानूनों को बार-बार किसानों के हित में बताये जाने के सवाल पर पूर्व सांसद मोल्लाह ने कहा, ‘ये गाना हम किसान बहुत दिनों से सुन रहे हैं। सुन-सुन कर हम थक गए हैं। ये गाना हमारी मौत का परवाना है। ये जिंदगी देने वाला नहीं है।’ उन्होंने दोहराया कि इन कानूनों को रद्द करना ही किसान के हित में होगा। ‘संशोधन में हमें कोई विश्वास नहीं है।’

उन्होंने कहा कि किसान संगठन पिछले छह महीनों से आंदोलन कर रहे थे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी और अब वह संशोधन का प्रस्ताव दे रही है। उन्होंने कहा, ‘छह महीने तक हमने यह लड़ाई लड़ी। लेकिन सरकार ने हमारी बात सुनी नहीं। लोकतंत्र में जनता की आवाज सुनने के बाद कार्रवाई की जाती है। मगर ये सरकार तो लोकतांत्रिक है ही नहीं। चुनी हुई लेकिन फासीवादी सरकार है।’ सरकार पर फैसले थोपने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से किसानों के आंदोलन को रोकने और बदनाम करने की भी भरपूर कोशिश हुई लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके।

उन्होंने कहा, ‘हमने दिल्ली चलो का आह्वान किया तो सरकार ने इसे भी रोकने की भरपूर कोशिश की। सर्दियों में किसानों पर पानी की बौछारें की गई। लाठियां चलाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। बदनाम करने की भी कोशश की गई। खालिस्तानी, उग्रवादी, आतंकवादी और नक्सली न जाने क्या-क्या किसानों को बताया गया।’ उन्होंने कहा कि इतना कुछ करने के बावजूद किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन जारी रखा। उन्होंने दावा किया कि आंदोलन के दौरान अब तक 15 आंदोलनकारी किसानों की मौत भी हो चुकी है।

उन्होंने कहा, ‘इस सरकार में मानवीयता है ही नहीं। जनता का दुख दर्द समझने के लिए इसके पास कोई समय नहीं है। इसलिए आंदोलन जारी रखने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। ये आंदोलन शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण रहेगा। कोई भी हिंसा की बात करेगा तो उसे आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।’

किसान आंदोलन को ‘राजनीतिक’ करार देना देश के अन्न-उत्पादकों का अपमान: कांग्रेस

कांग्रेस ने कहा कि यह कहना गलत है कि किसानों का विरोध प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों तक ही सीमित है तथा इस आंदोलन को ‘राजनीतिक’ करार देना देश के अन्न-उत्पादकों का अपमान है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि मोदी सरकार को अपना ‘अहंकार’ त्याग देना चाहिए और ‘काले कानूनों’ को वापस लेकर अपने राजधर्म का पालन करना चाहिए क्योंकि ये कानून कृषि क्षेत्र एवं कृषकों की आजीविका पर खतरा पैदा करते हैं। उन्होंने कहा, ‘यह केवल 62 करोड़ किसानों की आजीविका एवं जिंदगी की नहीं बल्कि 120 करोड़ लोगों की लड़ाई है जो किसानों द्वारा उगायी जाने वाले अनाज खाते हैं। प्रदर्शन को राजनीतिक करार देना देश के अन्न-उत्पादकों का बड़ा अपमान है। मोदी सरकार को अहंकार त्यागकर राजधर्म का पालन करना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘यह कहना गलत है कि किसानों का विरोध प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित है। इन काले कानूनों से समूचा देश प्रभावित है। मध्यप्रदेश में मंडियों में कारोबार घटने से एक साल में बोर्ड की कर वसूली 1200 करोड़ रूपये से घटकर 220 करोड़ रह गयी है।’

मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कृषि कानून बनने के बाद अकेले मध्यप्रदेश में 47 मंडियां और 298 उपमंडियां बंद हो गयीं। उधर वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने कहा, ‘मंत्रियों ने कृषि कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को खालिस्तानी, पाकिस्तान और चीन के एजेंट, माओवादी और टुकड़े टुकड़े गैंग करार दिया है।’

उन्होंने ट्वीट किया, ‘यदि आपकी ये सारी श्रेणियां खत्म हो गयी हों तो इसका मतलब है कि हजारों प्रदर्शनकारियों में किसान नहीं हैं। यदि किसान नहीं हैं तो सरकार उनसे बातचीत क्यों कर रही है।’ इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पेट्रोल के बढ़ते दाम को लेकर सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि पेट्रोल पर कर से होने वाली कमाई सेंट्रल विस्टा परियोजना, प्रधानमंत्री के लिए नये विमान खरीदने एवं प्रचार पर खर्च की जा रही है।

गतिरोध दूर करने के लिए किसानों से जल्द अगले दौर की वार्ता करेगी सरकार : केंद्रीय मंत्री

केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के अपना प्रदर्शन तेज करने के बीच केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने रविवार को कहा कि सरकार जल्द ही एक तारीख तय कर किसान संघ के नेताओं को अगले दौर की वार्ता के लिये बुलाएगी। केंद्र सरकार और 40 किसान संघों के प्रतिनिधियों के बीच पहले हुई पांच दौर की वार्ता बेनतीजा रही थीं। कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिये सरकार के मसौदा प्रस्ताव को किसान नेताओं द्वारा खारिज किये जाने और बैठक में हिस्सा लेने से इनकार करने के बाद छठे दौर की बातचीत नहीं हुई थी। सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वह किसी भी समय चर्चा के लिये तैयार है।

किसान संघों ने हालांकि स्पष्ट रूप से कहा है कि वे बातचीत के लिये तभी आएंगे जब कानून निरस्त होंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार अगले दौर की बैठक करेगी, चौधरी ने कहा, “बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी। हम चर्चा के लिये तैयार हैं। तारीख अभी तय नहीं हुई है।” उन्होंने कहा कि गतिरोध को खत्म करने के लिये सरकार “कोई समाधान” तलाश लेगी। चौधरी ने कहा, “हमें पूरा भरोसा है। अगली बैठक में, यह मुद्दा सुलझ जाएगा।” कृषि राज्य मंत्री चौधरी ने कहा कि वरिष्ठ मंत्री अमित शाह और नरेंद्र सिंह तोमर इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं।

घर-गृहस्थी में सामंजस्य बनाने के साथ प्रदर्शन में भी साथ दे रही हैं सैकड़ों महिलाएं

खेत और परिवार की जिम्मेदारियों से घिरी पंजाब और हरियाणा की सैकड़ों महिलाएं अब किसानों के आंदोलन में शामिल होकर अपनी व्यस्त जिंदगी के एक अलग ही पहलु से रूबरू हो रही हैं। दोनों राज्यों से आईं ये महिलाएं दिल्ली के विभिन्न प्रवेश मार्गों पर किसानों के साथ कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं। केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए जब उनके पति, बेटा और भाई घर से निकले तो वे भी उनके साथ हो लीं और गांव से राष्ट्रीय राजधानी की तरीफ कूच कर दिया।

लुधियाना की रहने वाली 53 वर्षीय मनदीप कौर ने कहा, ‘खेती के पेशे की पहचान लिंग से नहीं की जा सकती है। हमारे खेतों में मर्द और औरत के आधार पर फसल पैदा नहीं होती। कई पुरुष किसान यहां प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में हमें घरों में क्यों बैठना चाहिए।’ उन्होंने रूढ़िवादी भूमिका को भी खारिज कर दिया। मनदीप बस के जरिये सिंघु बॉर्डर पर आई जहां पर करीब दो हफ्ते से किसानों का प्रदर्शन चल रहा है और रात में प्रदर्शन कर घर लौट गईं।

उन्होंने कहा, ‘मैं वापस आऊंगी। हमें अपना घर भी देखना है और लड़ाई भी जारी रखनी है। यहां आने से पहले मैंने खेतों में सिंचाई की और मेरे लौटने तक उसमें नमी रहेगी।’ उल्लेखनीय है कि दिल्ली को पंजाब के शहरों से जोड़ने वाले मुख्य मार्ग टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर जहां पुरुष प्रदर्शनकारी जमें हुए हैं, वहीं महिलाएं प्रदर्शन स्थल और अपने घरों के बीच संतुलन बनाने के लिए आ-जा रही हैं ताकि घर और खेतों की देखभाल भी कर सकें और प्रदर्शन में भी अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकें। मनदीप के साथ बस से पांच घंटे का सफर कर लुधियाना से सिंघु बॉर्डर उनकी पड़ोसी सुखविंदर कौर भी पहुंची हैं। कौर 68 वर्षीय विधवा हैं और घर में बैठ कर उब गई थीं क्योंकि परिवार के पुरुष सदस्य प्रदर्शन स्थल पर हैं और इसलिए उन्होंने थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन दिल्ली की सीमा पर आने का फैसला किया।

उन्होंने कहा, ‘मैं रात को ठीक से सो नहीं पा रही थी। मैं घर में नहीं बैठ सकती जब भाई और भांजे और मेरे सभी किसान भाई यहां लड़ रहे हैं। यहां आने पर पहली बार रात को मैं ठीक से सोई।’ उन्होंने कहा कि यहां पर सुविधा नहीं है और शौचालय की समस्या है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्लेखनीय है कि मनदीप कौर सहित सैकड़ों महिलाएं अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन खालसा ऐड द्वारा मुहैया कराए गए टेंट में रह रही हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

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