NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन: यह किसानों और जवानों की साझा लड़ाई है
किसान-नेताओं से सरकार की आज निर्णायक चक्र की बातचीत है-आर या पार, जिसकी ओर स्वाभाविक रूप से सबकी निगाह लगी है।
लाल बहादुर सिंह
30 Dec 2020
किसान आंदोलन: यह किसानों और जवानों की साझा लड़ाई है

आज देश कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के ऐतिहासिक जनांदोलन का साक्षी है, जिसने अपनी लड़ाकू दृढ़ता, रणनीतिक कौशल, सृजनात्मकता, अनुशासन, संसाधनों की अभूतपूर्व व्यवस्था और प्रबंधन तथा टिकाऊपन से पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया है और एक बेहद निरंकुश सत्ता के दांत खट्टे कर दिए हैं।

मोदी-खट्टर सरकार द्वारा खड़ी की गई सारी विघ्न बाधाओं को पार करते हुए वे न सिर्फ राज-प्रासाद के सिंह-द्वार पर दस्तक देने में कामयाब रहे, वरन बेहद शांतिपूर्ण ढंग से एक महीने से अधिक समय से दिलेरी के साथ वे दिल्ली की निरंकुश सत्ता के खिलाफ डटे हुए हैं। आंदोलन अनुशासित और व्यवस्थित ढंग से तो संचालित हो ही रहा है, वह बेहद रचनात्मक भी है। सरकार के प्रचारतंत्र और गोदी मीडिया का मुकाबला करने के लिए आंदोलन का अखबार भी निकल रहा है और ऑनलाइन पोर्टल भी चल रहा है।

भारत ही नहीं, विश्व-इतिहास के इस अनोखे आंदोलन के विविध पहलुओं के बारे में आने वाले न जाने कितने सालों तक इतिहासकार, बुद्धिजीवी अनेक कोणों से शोध करते रहेंगे। इसके पीछे जहां कुशल, वरिष्ठ नेतृत्व ( veteran leadership ) में लंबे समय से चल रही वैचारिक-सांगठनिक तैयारी है, वहीं इसकी अपराजेय प्रहार क्षमता, शौर्य तथा सृजनात्मकता के पीछे की प्रमुख ताक़त पंजाब की युवा पीढ़ी है।

दरअसल, पंजाब के युवाओं के लिए ये कानून दोहरी त्रासदी का सबब बन कर आये हैं। बेरोजगारी का दंश तो वे पहले से झेल ही रहे थे, अब कृषि जो उनके लिए न्यूनतम, subsistence level पर जिंदा रहने का एकमात्र सहारा थी, सुरक्षा का एकमात्र आश्वासन थी, वह भी खतरे में है।

मार्च, 2020 में बजट-सत्र के दौरान पंजाब विधानसभा में पेश Economic Survey के अनुसार पंजाब में बेरोजगारी दर 15 से 29 साल के आयुवर्ग के लिए 21.6% थी, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक थी। औसत बेरोजगारी दर लॉकडाउन के फलस्वरूप छलांग लगाकर मई 2020 में 33.6% तक पहुंच गई थी। (CMIE के अनुसार)। इन बेरोजगार युवाओं में अधिकांश शिक्षित और कुशल हैं। Unemployment ब्यूरो में दर्ज युवाओं में 85% हाई स्कूल से ऊपर शिक्षित तथा 91% स्किल्ड हैं।

बेरोजगारी की पीड़ा कैसे इस आंदोलन की एक crucial motive force है, इसे इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि जिन तीन राज्यों, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान की मौजूदा किसान आंदोलन में भागेदारी सर्वाधिक है, वे बंगाल-बिहार-झारखंड के अतिरिक्त देश के सर्वाधिक बेरोजगारी दर वाले राज्य हैं। हरियाणा में यह 25% तो राजस्थान में 18.6% है। ( शायद इसीलिए देश के सर्वाधिक बेरोजगारी दर वाले हरियाणा को मोदी-खट्टर लाख कोशिश के बावजूद पंजाब के खिलाफ खड़ा नहीं कर सके।)

दरअसल, हरित क्रांति का केंद्र रहे पंजाब में समृद्धि आयी, शिक्षा का स्तर उन्नत हुआ,  लेकिन औद्योगीकरण नहीं हुआ, फलस्वरूप बड़े पैमाने पर युवा बेरोजगार हुए, जिनमे डिग्री-डिप्लोमाधारी उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों की भारी संख्या शामिल हैं। जाहिर है, शिक्षा के स्तर के अनुरूप उनके लिए सम्मानजनक रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं थे,  जिसने  उनके अंदर गहरी कुंठा और हताशा को जन्म दिया। आखिर, 80 के दशक में हरित क्रांति के संकट से उपजे किसान आक्रोश के विस्फोट से, जो बेशक धार्मिक-राजनैतिक आवरण में था, निपटने की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की कुटिल चालों ने अंततः पंजाब को आतंकवाद के रास्ते पर धकेल दिया, जिसके लंबे अंधेरे दौर में बेरोजगार युवा ही चारा बने।

दुर्भाग्यवश, उस त्रासदी से कोई बड़ा नीतिगत सबक नहीं लिया गया, पंजाब में औद्योगीकरण की दिशा में, गैर-कृषि रोजगार-सृजन के क्षेत्र में कोई बड़ा गतिरोध-भंग नहीं हुआ, उल्टे बाद के वर्षों में बड़े पैमाने पर उद्योगों का विनाश ही ( de-industrialisation ) हुआ है, विशेषकर 2010 के बाद से। जालंधर, गुरदासपुर, मंडी गोबिंदगढ़, लुधियाना के मैन्युफैक्चरिंग clusters उजड़ते जा रहे हैं, बड़े पैमाने पर closures हो रहे हैं।

रोजी रोटी की तलाश में भारी तादाद में नौजवान विदेश चले गए, किसानों ने खेत बेचकर बेटों को बाहर भेजा-यूएस, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया। विदेशों की ओर migration और Brain drain में पंजाब केरल के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। दूसरी ओर, बेरोजगारी और असुरक्षा के माहौल में युवा बड़ी तादाद में डिप्रेशन, शराब और ड्रग्स की चपेट में आते गए, देखते-देखते यह पंजाबी समाज का नासूर बन गया। 2015 में AIIMS द्वारा करवाये गए एक अध्ययन के अनुसार पंजाब में 2 लाख ड्रग addicts थे, लेकिन 2017 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 15 से 35 वर्ष के आयु-समूह में 8 लाख 60 हजार युवा किसी न किसी फॉर्म में ड्रग की चपेट में थे जो राष्ट्रीय औसत के 3 गुने से अधिक है। " पंजाब आतंकवाद से निकलकर नारकोटिक्स आतंकवाद की गिरफ्त में फंस गया। "

National Mental Health Survey ( 2016-17) के अनुसार पंजाब में आबादी के 18% से अधिक लोग मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे हैं, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। ऐसे लोगों की तादाद 20 लाख के ऊपर है।

जो भी हो, भयावह बेरोजगारी के दौर में आज युवा पीढी भी अंततः कृषि पर ही किसी न किसी रूप में, employment या diguished unemployment के फॉर्म में निर्भर है।

उन्हें सरकारी नौकरी, शिक्षा के अनुरूप रोजगार तो नहीं ही मिला, कृषि के माध्यम से जो आजीविका की सुरक्षा मिली थी, वह समस्याग्रस्त तो पहले से थी, अब इन 3 कृषि कानूनों के माध्यम से पूरी तरह उसके छिन जाने का खतरा उनके सामने आकर खड़ा हो गया है। इसने पंजाब की समूची युवा पीढी के समक्ष अस्तित्व का अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया, एक गहरी असुरक्षा की भावना से उन्हें भर दिया है।

इस त्रासदी का एहसास तब और गहरा गया जब उन्होंने देखा कि यह सब उस मोदी जी के राज में हो रहा है, जिन्होंने भारत को चीन की तरह manufacturing हब बनाकर घर-घर रोजगार पैदा करने और किसानों की आमदनी दो गुना करने का सब्जबाग दिखाया था और उनका एकमुश्त वोट झटक लिया था। उन्होंने अपने को cheated महसूस किया, उन्हें लगा कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। चरम निराशा और छले जाने का यह वो एहसास है, जिसने आज चट्टान की तरह पंजाब की समूची युवा पीढी को किसान आंदोलन के पीछे लामबंद कर दिया है, जिसके अपराजेय आवेग के आगे मोदी-खट्टर सरकार के बैरिकेड टिक न सके।

शायद उन्होंने सोचा था कि 80 के दशक में इंदिरा गाँधी ने जिस तरह अपमानित कर अकाली दल की न्याय यात्रा (जो अपनी अंतर्वस्तु में कृषि संकट से उपजी किसान यात्रा ही थी) को अपमानित करके हरियाणा से ही पीछे खदेड़ दिया था, उसी तर्ज पर अबकी बार भी उन्हें हरियाणा से आगे नहीं बढ़ने देंगे।

पर, यहीं वे चूक कर गए। वे यह नहीं समझ सके कि समय बदल गया है। तब से सतलज और यमुना में बहुत पानी बह चुका है। और अबकी बार पाला बिल्कुल नए तरह के किसानों से पड़ा है। आज किसान युवाओं के जीन्स के पैंट, पिज़्ज़ा देखकर और अंग्रेज़ी सुन के ही गोदी मीडिया हैरान नहीं है, 85 साल की मार्च करती बूढ़ी दादियों, बेफिक्री से फर्राटे भरती 250 किमी जीप ड्राइव करके औरतों का जत्था लेकर सिंघू बॉर्डर पहुंचती मनजीत कौरों को देखकर सरकार के पसीने छूट रहे हैं।

मोदी जी की सौ-मुँह वाली सेना ने पहले उन्हें खालिस्तानी, आतंकवादी, टुकड़े टुकड़े गैंग , पाकिस्तानी और न जाने क्या क्या कहकर अपमानित किया, बदनाम किया और उनके दमन का माहौल बनाया।

अब मोदी जी गुरुद्वारे जाकर, अरदास करते अपनी फोटो छपवाकर, गुरुओं के बलिदान पर भावुक होकर उसकी भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं।

पर यहां भी वे अपने शातिरपने से बाज़ नहीं आ रहे हैं, और पूरे मामले को साम्प्रदयिक रंग देने के लिए याद दिला रहे हैं कि उन्होंने हमारी संस्कृति को pure रखने के लिए बलिदान दिया।

इस नफ़रती सीख की जगह, आज किसानों से निर्णायक वार्ता में जाते समय मोदी सरकार को इतिहास का यह असली सबक याद रखना चाहिए कि अपनी अंतर्वस्तु में सिख धर्म का पूरा विकास ही दमनकारी सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक ढांचे के खिलाफ किसानों का विद्रोह था और अपने गुरुओं और सेनापतियों के नेतृत्व में अनगिनत कुर्बानी देने के बावजूद सिख किसानों ने कभी दिल्ली दरबार के आगे घुटने नहीं टेके, वह मध्यकाल रहा हो,  ब्रिटिश-राज हो या आज़ादी के बाद की  हुकूमतें।

इसी अदम्य संकल्प को व्यक्त करते हुए आंदोलन के अखबार Trolley Times के संपादक सुख दर्शन नथ ने लिखा, " मोदी सरकार को तो छोड़िए, अत्याचारी ब्रिटिश हुकूमत भी हमारे एकताबद्ध, अनुशासित प्रतिरोध आंदोलन को कुचल नहीं सकी। उकसावे और बंटवारे की साजिश का जवाब हम धैर्य, एकता और सतर्कता से देंगे। हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे।"

और आज तो पंजाब के किसानों और जवानों के साथ पूरे देश के किसानों की ताकत जुड़ चुकी हैं, सबसे ताजा सबूत पटना में कल, मंगलवार का अखिल भारतीय किसान महासभा व अन्य वाम-जनतांत्रिक संगठनों के नेतृत्व में किसानों का जुझारू राजभवन मार्च है।

बेहतर हो कि मोदी सरकार अपनी कारपोरेट-भक्ति से बाज आए, अपनी अहंकारी हठधर्मिता का त्याग करे और किसानों की मांगें स्वीकार कर उनसे उन अनगिनत तकलीफों के लिए, उन जख्मों के लिये माफी मांगे जो अपनी संवेदनहीन क्रूरता से उसने उन्हें दिए हैं।

 नया साल किसानों के लिए खुशी लाये, तभी हमारा देश और लोकतंत्र भी खुशहाल होगा।

 (लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

kisan andolan
youth and farmer
unemployment
agricultural crises

Related Stories

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

बिहार बजट सत्र: विधानसभा में उठा शिक्षकों और अन्य सरकारी पदों पर भर्ती का मामला 

झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

बार-बार धरने-प्रदर्शन के बावजूद उपेक्षा का शिकार SSC GD के उम्मीदवार


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License