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भारत
राजनीति
क्या जद-यू को अस्थिर करने में लोजपा-भाजपा सफल होंगी?
जिस बात को कतई नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, वह यह कि दलित आबादी में भाजपा के प्रति नाराज़गी बढ़ रही है। इस तथ्य को देखते हुए कि लोजपा, भाजपा की सहयोगी पार्टी है, यह देखना बाक़ी है कि क्या मतदाताओं की सहानुभूति वास्तव में चुनावी जीत में बदल सकती है।
मोहम्मद इमरान खान
12 Oct 2020
Translated by महेश कुमार
Chirag Nitish

हाजीपुर (बिहार): दो दिन पहले, रामबली प्रसाद और हरिओम पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी जनता दल (युनाइटेड) या जद-यू के बजाय लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) का समर्थन करने का फैसला किया है। एलजेपी के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की मौत के मद्देनजर उनका मन बदला है। 'सहानुभूति वोट' की यह घटना आने वाले चुनावों में "सुशासन बाबू" मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडी-यू के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

हालांकि, भूमिहीन दलित मजदूर और घौसपुर के निवासी हरेन्द्र राम का कहना है कि वह भाजपा से निराश हैं और इसलिए वह लोजपा का भी समर्थन नहीं करेंगे। वे भगवा पार्टी की गरीब-विरोधी और दलित-विरोधी नीतियों से नाराज़ है, खासकर हाथरस बलात्कार मामले के बाद।

वैशाली के जिला मुख्यालय हाजीपुर में रहने वाले रामबली और हरिओम दोनों ने कहा कि लोकप्रिय नेता पासवान के आकस्मिक निधन से वे यहां के अन्य लोगों की तरह ही दुखी हैं। “हम अब तक नीतीश कुमार की जेडी-यू का समर्थन करते रहे हैं, लेकिन पासवान जी की मृत्यु से हम बहुत दुखी महसूस कर रहे हैं। मैंने लेजेपी को वोट देने का फैसला किया है, ”प्रसाद जोकि सड़क किनारे फल बेचते हैं ने न्यूज़क्लिक को बताया। प्रसाद को इस बात की जानकारी नहीं है कि बीजेपी, लोजपा और जद-यू के बीच समीकरण कैसे बनेंगे और लोजपा को उनका वोट का लाभ कौन उठा सकता है।

रिक्शा-चालक और करनपुर गाँव के निवासी हरिओम ने अपना मत बताया। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने हमेशा से लोकसभा चुनावों में रामविलास पासवान को और विधानसभा चुनावों में जेडी-यू को समर्थन दिया है, लेकिन इस बार उनकी मृत्यु की वजह से आगामी चुनावों में उनकी पार्टी का समर्थन करने के लिए मजबूर हैं। 

दलित समुदाय के भीतर पनपी ये भावनाएं जेडी-यू की चिंता का एक बड़ा कारण हैं। लेकिन जेडी-यू नेता इस तथ्य को मानने से हिचक रहे हैं, लेकिन वे इसे निजी तौर पर तो स्वीकार कर लेते हैं कि पासवान के प्रति सहानुभूति उनकी पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी। रामविलास पासवान के बेटे और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने पिछले हफ्ते नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था, जो एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। लोजपा ने विधान सभा के होने वाले तीन चरणों के चुनावों में जेडी-यू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, लेकिन भाजपा के खिलाफ एक भी उम्मीदवार नहीं है। चिराग पासवान ने बार-बार स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी राजग के साथ बनी रहेगी और उसे भाजपा से कोई समस्या नहीं है, यहाँ तक कि उनका यह भी कहना है कि उनकी पार्टी बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार चाहती है। चिराग ने जोर देकर कहा है कि चुनाव जीतने वाले एलजेपी के सभी उम्मीदवार भाजपा का समर्थन करेंगे।

राजनीतिक पर्यवेक्षक सत्यनारायण मदन ने कहा कि भाजपा नीतीश कुमार के वोटों को काटने के लिए चिराग का इस्तेमाल कर रही है। पासवान के निधन की वजह से चुनाव में लोजपा को सहानुभूति वोटों के मिलने की प्रबल संभावना है। पार्टी इसका इस्तेमाल करेगी। यदि अधिक नहीं है, तो इससे कम से कम 15 से 20 सीटों पर जेडी-यू की हार सुनिश्चित होगी, और इस जद्दोजहद में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना चाहती है और वह मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहती है।” महा-गठबंधन के कारण भी कुछ सीटों पर जेडी-यू की हार की संभावना है। त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा को वास्तविक लाभ पहुंचा सकता है।

मदन ने कहा कि इसमें भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि अगर बीजेपी, जेडी-यू से अधिक सीटें जीतकर चुनाव के बाद के परिदृश्य में बड़ा भाई बन कर उभरने की अपनी रणनीति में कामयाब हो जाती है, जबकि जेडी-यू 2005 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़कर और अधिक सीट जीतने की  भूमिका में रही है। 

मंगलवार को घोषित एनडीए के सीट-बंटवारे के फार्मूले के अनुसार, जेडी-यू बिहार विधान सभा की कुल 243 सीटों में से 122 और भाजपा 121 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चुनाव 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होने हैं। जेडी-यू अपने ही कोटे से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की  हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को सात सीटें देगी। इसी तरह, बीजेपी ने भी अपने नए सहयोगी विकास इंसांन पार्टी (वीआईपी) के साथ 11 सीटें साझा की हैं। यह पहली बार है जब बिहार विधानसभा चुनावों में जेडी-यू और बीजेपी लगभग 50 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे कई लोग नीतीश कुमार की सौदेबाजी की घटती ताकत के रूप में देख रहे हैं।

हालांकि बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने नीतीश कुमार को बार-बार आश्वासन दिया है कि अगर  एनडीए सत्ता में लौटती हैं तो वे ही अगले सीएम होंगे, जबकि यह चर्चा आम है कि बीजेपी उन्हें धोखा दे सकती है जैसे जद-यू ने महा-गठबंधन को धोखा दिया था।

पटना से लगभग 30 किलोमीटर दूर हाजीपुर को पिछले तीस सालों से पासवान का गढ़ माना जाता है। उन्होंने 1977 में हाजीपुर से 4.24 लाख मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी- एक उपलब्धि जिसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ किया गया था। पासवान ने हाजीपुर के विकास के लिए बहुत काम किया है और वहाँ एनआईपीईआर (NIPER) और सीआईपीईटी (CIPET) सहित पूर्व मध्य रेलवे के जोनल मुख्यालय को लाए हैं। यह अलग बात है कि निजी निवेश अभी भी वहाँ नहीं आया हैं।

“पासवान ने हाजीपुर के विकास में योगदान दिया है; हम इसे अस्वीकार नहीं कर सकते हैं। अगर उनका बेटा हमें लोजपा का समर्थन करने का आग्रह करेगा, तो हम उनकी याद में जरूर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे,” दौलतपुर गांव के निवासी और सरकारी स्कूल में एक संविदा शिक्षक कमलेश सिंह ने उक्त बातें कही।

इसी तरह, व्यस्त रहने वाले पासवान चौक के पास सड़क के किनारे फल बेचने वाले भोला कुमार ने बताया कि पासवान की मौत से हाजीपुर के लोगों को बड़ा झटका लगा है। “वे कहते थे कि हाजीपुर उसकी माँ की तरह है जिसकी वह अपनी अंतिम सांस तक सेवा करता रहेगा। लोगों के दिलों में उनके लिए अपनापन है और उनकी मृत्यु निश्चित रूप से चुनाव में उनकी पार्टी के लिए सहानुभूति पैदा करेगी, ”उन्होंने कहा।

हाजीपुर से शनिवार को उनके समर्थकों सहित सैकड़ों लोग राजकीय सम्मान के साथ किए गए उनके दाह संस्कार से पहले अपने नेता के सम्मान में पटना गए थे। भावुक समर्थकों ने मांग की थी कि पासवान के पार्थिव शरीर को सम्मान के लिए हाजीपुर लाया जाए। इसे उनकी पार्टी के लिए उभरती सहानुभूति के संकेत के रूप में माना जा सकता है।

यहां यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दलित- राज्य की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की 104 मिलियन लोगों की आबादी में दलित लगभग 16 प्रतिशत हैं। यहाँ 22 दलित उप-जातियों में से 21 की पहचान 'महादलितों' के रूप में की है। जिनमें मुसाहर, भुइयां, डोम, चमार, धोबी और नट शामिल हैं। पासवान जाति को महादलित श्रेणी से हटा दिया गया था, लेकिन बाद में फिर से शामिल कर लिया गया था।

मदन ने कहा कि राज्य में कम से कम आधा दर्जन जिलों में दलित मतदाता मायने रखते हैं जहां उनके वोट परिणाम को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। ये जिले नालंदा, जमुई, समस्तीपुर, वैशाली और खगड़िया हैं। "इन जिलों में विधानसभा सीटें, जिनमें नालंदा भी शामिल है, जो नीतीश कुमार का जिला भी है, में, एलजेपी के प्रति सहानुभूति और जेडी-यू के लिए परेशानी देखने को मिल सकती है।"

जमुई, एक आरक्षित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र है जिसका प्रतिनिधित्व चिराग के पास है, और हाजीपुर, एक और आरक्षित संसदीय सीट जिसे चिराग के छोटे चाचा पासुपति कुमार पारस द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। रामविलास पासवान ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण पिछली बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। रामचंदर पासवान के बेटे चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज, आरक्षित समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि खगड़िया संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर करते हैं। खगड़िया पासवान का गृह जिला है।

एक युवा और आक्रामक नेता के रूप में जाने जाने वाले, चिराग पासवान ने जेडी-यू को हराने के लिए एल अलग ही रणनीति बनाई है। उन्होंने वर्तमान विधायक से लेकर पूर्व विधायकों सहित आधा दर्जन से अधिक भाजपा नेताओं को मैदान में उतारा है। ये वे लोग हैं जिन्हे पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया था क्योंकि सीट-साझा करने के सौदे के तहत उनकी सीटें जेडी-यू के खाते में चली गईं थी। चिराग ने जेडी-यू के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए आरएसएस के जाने माने व्यक्ति और भाजपा के प्रदेश पूर्व उपाध्यक्ष और पूर्व भाजपा विधायकों उषा विधार्थी, रामेश्वर चौरसिया और राजेंद्र सिंह को पार्टी का चुनाव चिह्न सौंप दिया हैं।

झाझा सीट से बीजेपी के मौजूदा विधायक रविंद्र यादव भी लोजपा में शामिल हो गए हैं और जेडीयू उम्मीदवार दामोदर राउत के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा, जद-यू के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा भी लोजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे।

एलजेपी के प्रवक्ता अशरफ अंसारी के अनुसार, कुछ और बीजेपी नेता जेडी-यू के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए एलजेपी में शामिल होंगे।

पार्टी का दावा है कि जेडी-यू के साथ उसकी लड़ाई वैचारिक है, लेकिन भाजपा के साथ उसकी कोई लड़ाई नहीं है, और वे राज्य में भाजपा-एलजेपी सरकार बनाने के लिए उत्सुक है। मुख्य रूप से लोजपा की जेडी-यू के खिलाफ 122 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है; यह भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी और बदले में भाजपा भी 20 से 25 सीटों पर इसके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगी।

भाजपा के बड़े नेताओं ने कथित तौर पर नीतीश कुमार को आश्वासन दिया है कि एलजेपी को अपने अभियान में पीएम मोदी की तस्वीरों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी; हालाँकि, लोजपा नेता ऐसा करने पर अड़े हैं। ऐसा भी कहा जा रहा है कि भाजपा ने कथित तौर पर नीतीश कुमार की मांग कि एलजेपी को एनडीए से बाहर करने और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को मंत्रीमंडल से बर्खास्त करने की मांग को खारिज कर दिया था।

दूसरी बात, हालांकि, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वह यह कि दलित आबादी के बीच भाजपा के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है। इस तथ्य को जानते हुए कि लोजपा भाजपा की सहयोगी पार्टी है, यह देखना होगा कि क्या मतदाताओं की सहानुभूति वास्तव में चुनावी जीत में बदल सकती है। “मैं बिहार में बीजेपी-जेडी-यू सरकार को उखाड़ने के लिए वोट देना चाहता हूं। राम ने कहा कि दूसरों की तुलना में गरीब दलित बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, महंगाई, झूठे वादों और शराब बंदी से प्रभावित हुए हैं।

मीनापुर गाँव के सीमांत किसान महेश्वर राय ने कहा, “हम लोजपा, भाजपा या जद-यू का समर्थन नहीं करने जा रहे हैं; हम उनके शासन को समाप्त करना चाहते हैं।”

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Will LJP-BJP Succeed in Making JD-U Dispensable?

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