NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
उत्पीड़न
मज़दूर-किसान
भारत
श्रम क़ानूनों और सरकारी योजनाओं से बेहद दूर हैं निर्माण मज़दूर
निर्माण मज़दूर राजेश्वर अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं “दिल्ली के राजू पार्क कॉलोनी में मैंने 6-7 महीने तक काम किया था। मालिक ने पूरे पैसे नहीं दिए और धमकी देकर बोला ‘जो करना है कर ले पैसे नहीं दूँगा’। तब मुझे क़रीब 30,000 रुपये का नुक़सान हुआ था।”
सत्येन्द्र सार्थक
23 May 2022
workers
नगला लेबर चौक का एक दृश्य

नोएडा के औद्योगिक क्षेत्र फ़ेज़-2 स्थित नगला लेबर चौक पर सुबह के 9 बजे सड़क के दोनों ओर मज़दूरों की भीड़ खड़ी है। मज़दूरों की तलाश में लोग आ रहे हैं और मोलभाव के बाद मज़दूरों को साथ ले जा भी रहे हैं। इसी भीड़ में काम की तलाश में हाथों में खाने की टिफ़िन लिए खड़े 55 वर्षीय राजेश्वर ने हमसे कहा- “मैं 18 वर्ष की उम्र से ही दिहाड़ी मज़दूरी कर रहा हूँ, मुझे पहली मज़दूरी के तौर पर 10 रुपये मिले थे। इस समय 300-400 और औसतन 350 रुपये मिल रहे हैं। एक महीने में औसतन 15-20 और बारिश के महीनों में अधिकतम 15 दिनों तक काम मिल जाता है। एक निर्माण मज़दूर के तौर पर अभी तक मुझे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है, मेरा श्रम कार्ड भी नहीं बना है।” 

राजेश्वर

बुलंदशहर निवासी औसत क़द के राजेश्वर को लेबर चौक अब जल्दी काम नहीं मिलता। फिर भी वह काम की तलाश में नियमित आते हैं।     

दिहाड़ी मज़दूरों की सबसे बड़ी रोज़गार की असुरक्षा तो है ही कई बार मज़दूरों को काम करवाने के बाद भी ठेकेदार और मालिक पैसे देने की बजाए धमकी देकर भगा देते हैं। राजेश्वर अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं “दिल्ली के राजू पार्क कॉलोनी में मैंने 6-7 महीने तक काम किया था। मालिक ने पूरे पैसे नहीं दिए और धमकी देकर बोला ‘जो करना है कर ले पैसे नहीं दूँगा’। तब मुझे क़रीब 30,000 रुपये का नुक़सान हुआ था।”

मैमुननिशाँ ने अपने पेशे की चुनौतियों के बारे में जानकारी देते हुए बताया- “मैं 6 महीने से यहाँ पर काम कर रही हूँ। कार्यस्थल पर शौचालय का कोई इंतज़ाम नहीं है, हम लोगों को शौचालय के लिए भी बहुत दूर जाना पड़ता है। बच्चों के लिए आसपास कोई स्कूल भी नहीं है, उनकी पढ़ाई छूट चुकी है। 8 घंटा काम करने के लिए मुझे 300 रुपये मिलते हैं। महँगाई काफ़ी तेज़ी से बढ़ती जा रही है लेकिन हमारी मज़दूरी दर नहीं बढ़ती है।”

मैमुननिशाँ

वह बिहार के बेगुसराय ज़िले की निवासी हैं, फ़िलहाल परिवार सहित नोएडा के सेक्टर 136 में एक निर्माणाधीन भवन में मज़दूरी करती हैं। उनके पति भी एक मज़दूर हैं। कार्यस्थल से क़रीब 500 मीटर की दूरी पर सड़क किनारे 8 कमरे हैं। सभी कमरों की दीवारें कच्ची हैं और छत की जगह पर टीन शेड लगाया गया है। 

आवास की चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा “कमरे की चौड़ाई 6 फ़ीट, लंबाई 8 और ऊंचाई 5 फ़ीट है। हमारा 5 सदस्यों का परिवार इसी कमरे में गुज़ारा करता है। रात में कुछ लोग बाहर सो जाते हैं। कमरे के अंदर औसत लंबाई का व्यक्ति भी खड़ा नहीं हो सकता है। हम खाना भी ईंटों को जोड़कर बनाते हैं और फ़िलहाल किसी भी सरकारी योजना से पूरी तरह वंचित हैं।”

नोएडा की स्थापना के बाद से ही यहाँ पर निर्माण कार्यों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें, आवासीय परिसर, शॉपिंग मॉल, औद्योगिक इकाइयाँ, स्कूल, हॉस्पिटलों, कारपोरेट ऑफिसों और प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों का निर्माण लगातार होता जा रहा है। इनके निर्माण से नोएडा की चमक तो बढ़ती जा रही रही है लेकिन जिनकी मेहनत से नोएडा चमक रहा है वह निर्माण मज़दूर जीवन की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। बढ़ती महँगाई और कम मज़दूरी के कारण उनकी ज़िंदगी लगातार बद से बदतर होती जा रही है।

350-400 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी पर काम करने वाले इन मज़दूरों को महीने में मुश्किल से 15-20 दिन तक काम मिल पाता है। जब काम नहीं मिलता है तो लेबर चौक तक आने जाने का किराया भी बेकार हो जाता है। महीने में अधिकतम यह 8-10 हज़ार रुपये कमा पाते हैं। ज़्यादातर मज़दूर प्रवासी होते हैं और इन पैसों में वह बचत करके परिवार के लिए भेजते हैं। लगातार बढ़ती महँगाई के बीच दिहाड़ी मज़दूरों के लिए जीवनयापन करना लगाता मुश्किल होता जा रहा है।

श्रम क़ानूनों से पूरी तरह से वंचित हैं निर्माण मज़दूर 

भारत में अधिकांश श्रम क़ानून संगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर लागू होते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के लिए जो श्रम क़ानून हैं भी उन्हें लागू करने के प्रति केन्द्र व राज्य सरकारें उदासीन हैं। 

2019 में जारी आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार भारत में असंगठित क्षेत्र में कुल मज़दूरों का 93 प्रतिशत कार्यरत है। देश में असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की संख्या 45 करोड़ से अधिक है। इतनी बड़ी आबादी के लिए रोज़गार की सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरणों के इंतज़ाम, वेतन का नियमित भुगतान, सशुल्क छुट्टियाँ, साप्ताहिक अवकाश, आवश्यक भत्ते, न्यूनतम मज़दूरी, पेंशन आदि के मुद्दों पर सरकार गंभीर नहीं है। 

कोई स्पष्ट नियम नहीं होने के कारण असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का वेतन अनिश्चित होता है। काम के अभाव के कारण इनके मोलभाव की क्षमता भी बेहद सीमित होती है। सुविधाएँ देना तो दूर की बात है सरकार और प्रशासन यह जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं कि ज़िले या राज्य में निर्माण मज़दूर, पेंटर, राजगीर, दिहाड़ी मज़दूर, बढ़ई कितने हैं? 

अशिक्षा और कम राजनीतिक समझ के कारण दिहाडी मज़दूर इस बात से भी अंजान हैं कि सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि उन्हें सुरक्षित रोज़गार मिले और श्रम क़ानूनों के अनुसार वेतन प्राप्त हो। 48 वर्षीय शफ़ीक़ कहते हैं “सरकार ने हमारे लिए भी कोई योजना लागू की है मुझे नहीं पता, मेरा ई-श्रमिक कार्ड भी नहीं बना है। सरकार के पास वैसे ही दुनियाभर के काम हैं, वह हमारी चिंता क्यों करने लगी?”

उत्तर प्रदेश सरकार की योजनायें केवल काग़ज़ों तक सीमित

उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्माण सहित असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए कई योजनाओं को लागू किया है। सरकार ने यह योजनाएँ महज़ औपचारिकता पूरी करने के लिए घोषित कर रखी हैं। काग़ज़ों से बाहर आम मज़दूर इन योजनाओं के बारे में जानते ही नहीं हैं। शासन या प्रशासन सरकार की योजनाओं और विकास के दावों का तो प्रचार करते हैं। “मज़दूर हितैषी” इन योजनाओं का कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता है। 

कोरोना काल में सरकार ने उत्तर प्रदेश में रहने वाले 15 लाख दिहाड़ी मज़दूरों और निर्माण क्षेत्र (रिक्शा वाले, खोमचे वाले, रेवड़ी वाले, फेरी वाले, निर्माण कार्य करने वाले) 20.37 लाख मज़दूरों को 1,000 रुपये उनकी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देने का वादा किया था। इसे सरकार की उपलब्धि के तौर पर तो प्रचारित कर दिया गया। जबकि वास्तविक पात्रों के बेहद छोटे हिस्से को योजना का लाभ मिला।

उत्तर प्रदेश भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार सरकार ने भवन एवं निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों के लिए 28 योजनाओं को लागू किया है। प्रमुख योजनाओं में दुर्घटना सहायता योजना, गंभीर बीमारी सहायता योजना, अक्षमता पेंशन योजना, औज़ार क्रय सहायता योजना, कौशल विकास तकनीकी उन्नयन एवं प्रमाणन योजना, आवास सहायता योजना, निर्माण कामगार मृत्यु एवं विकलांगता सहायता योजना, महात्मा गांधी पेंशन योजना, आवास सहायता योजना (मरम्मत हेतु), आवासीय विद्यालय योजना आदि हैं। 

योजनाओं के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार की गंभीरता इसी से स्पष्ट होती है कि विभाग की वेबसाइट पर विकल्प होने के बावजूद भी लाभार्थियों की संख्या के बारे कोई जानकारी नहीं दी गई है। नगला, भंगेल लेबर चौक सहित कई मज़दूरों से बात करने पर भी हमें इन योजनाओं के लाभार्थी नहीं मिले। दरअसल, मज़दूरों को इन योजनाओं के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। 

ये भी पढ़ें: बिहार: रोटी-कपड़ा और ‘मिट्टी’ के लिए संघर्ष करते गया के कुम्हार-मज़दूर

labor laws
Rural laborer
majdoor

Related Stories


बाकी खबरें

  • लाल बहादुर सिंह
    शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा
    16 May 2022
    इस दिशा में 27 मई को सभी वाम-लोकतांत्रिक छात्र-युवा-शिक्षक संगठनों के संयुक्त मंच AIFRTE की ओर से दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित कन्वेंशन स्वागत योग्य पहल है।
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!
    16 May 2022
    फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कहना है कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि किसान का बेटा भी एक फिल्म बना सके।
  • वर्षा सिंह
    उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!
    16 May 2022
    “किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।
  • बादल सरोज
    कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी
    16 May 2022
    2 और 3 मई की दरमियानी रात मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के गाँव सिमरिया में जो हुआ वह भयानक था। बाहर से गाड़ियों में लदकर पहुंचे बजरंग दल और राम सेना के गुंडा गिरोह ने पहले घर में सोते हुए आदिवासी धनसा…
  • सत्यम श्रीवास्तव
    एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया
    16 May 2022
    इस योजना का मुख्य लाभार्थी प्रदेश की कन्याएँ हैं, जिनके लिए दो दशकों से प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद मामा की भूमिका में पेश करते आए हैं। कन्या, वर, विवाह, दहेज़, मंगलसूत्र, पायल, बिछिया…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License