NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आसमान छूती महंगाई के बीच आम आदमी के लिए राहत बनकर आये ‘श्रमजीबी बाज़ार’
‘श्रमजीबी बाज़ार’ उपभोक्ताओं को तो राहत दे ही रहा है, साथ ही रोजगार का सृजन भी कर रहा है। ‘श्रमजीबी कैंटीन’ की तर्ज पर इसके संचालन के लिए भी छात्र, युवा, महिला और मजदूर संगठन के कार्यकर्ता आगे आये हैं।
सरोजिनी बिष्ट
14 Oct 2020
श्रमजीबी बाज़ार

पश्चिम बंगाल में अपनी खोयी हुई ज़मीन वापस हासिल करने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम नित्य नये प्रयोग कर रही है। जनता के सवालों पर लगातार संघर्ष जारी रखने के साथ ही, अब वह उसे राहत पहुंचाने के भी उपायों पर काम कर रही है। आम तौर पर जिन कामों को सरकार का माना जाता है, वैसे कामों को विपक्ष में रहने के बावजूद अपने हाथ में ले रही है। भले अभी यह छोटे स्तर पर ही हो।

जादवपुर में सीपीएम ने पहली ‘श्रमजीबी कैंटीन’ शुरू की, जहां सिर्फ 20 रुपये में आम आदमी भरपेट और पौष्टिक खाना खा सकता है। बहुत से अक्षम लोगों को तो मुफ्त में भी खाना दिया जाता है। पार्टी का यह प्रयोग काफी कामयाब रहा है और हर दिन यहां से बड़ी संख्या में मजदूर, कामगार, छोटा-मोटा रोजी-रोजगार करनेवाले लाभान्वित हो रहे हैं। जादवपुर से शुरू हुआ यह प्रयोग अब राज्य में कई जगहों पर पहुंच चुका है। नये-नये रूपों में।

सीपीएम ने अब कोलकाता महानगर और उसके उपनगरीय क्षेत्रों में कई जगहों पर ‘श्रमजीवी बाज़ार’ खोले हैं। ये किसी आम किराना स्टोर की तरह ही हैं, मगर यहां चीजें बाज़ार दर से कम पर मिलती हैं। मकसद यह है कि खाने-पीने की जो चीजें मुनाफोखोरी की वजह से कम आमदनी वाले लोगों की पहुंच से बाहर हो रही हैं, उन्हें उनकी पहुंच में लाया जा सके। मुख्य रूप से अभी इन बाजारों के जरिये शाक-सब्जियां बेची जा रही हैं।

सीपीएम का एक ‘श्रमजीबी बाज़ार’ हाल ही में कोलकाता की मशहूर कुम्हार टोली के मदनमोहनतला के सामने खुला है, जो देखते ही देखते आसपास के लोगों में काफी लोकप्रिय हो गया है। यहां चीजें सस्ती मिलती हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वैरायटी की कोई कमी है। इस बाज़ार में 25 से 30 किस्म की सब्जियां उपलब्ध रहती हैं। आलू, प्याज, लहसुन, मिर्ची, अदरक से लेकर तरोई, लोबिया, कुम्हड़ा, लौकी, गोभी और तरह-तरह के साग मिलते हैं। आजकल जब सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं और बाज़ार में उनकी कीमत 60 से 120 रुपये किलो हो गयी है, यहां आपको वो 20-25 रुपये किलो तक सस्ती मिल जायेंगी। तुलनात्मक रूप से जो सब्जियां बाज़ार में कुछ सस्ती हैं, उनकी कीमत में भी आपको यहां 5 से 10 रुपये किलो का फर्क मिलेगा। ऐसे में, आसपास रहनेवाले निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए ‘श्रमजीबी बाज़ार’ बढ़ती महंगाई और कोरोना महामारी से खस्ताहाल रोजी-रोजगार के बीच बड़ी राहत लेकर आया है।

खरीदारी के लिए यहां आनेवाले लोगों का कहना है कि एक तो यहां दाम कम रहते हैं, और साथ में अच्छी बात यह है कि कोई घटतौली भी नहीं होती। आम सब्जी बाजारों में वजन में गड़बड़ी एक बड़ी समस्या है।

‘श्रमजीबी बाज़ार’ उपभोक्ताओं को तो राहत दे ही रहा है, साथ ही रोजगार का सृजन भी कर रहा है। ‘श्रमजीबी कैंटीन’ की तर्ज पर इसके संचालन के लिए भी छात्र, युवा, महिला और मजदूर संगठन के कार्यकर्ता आगे आये हैं। एक तरह से यह पार्ट टाइम काम की तरह है। रोज सुबह सात से 11 बजे तक यह बाज़ार चलता है। खरीदारों की भीड़ उम्मीद से बढ़कर हो रही है।

‘श्रमजीबी बाज़ार’ के संचालन से जुड़े लोगों का कहना है कि बाज़ार में जहां 60-65 रुपये किलो प्याज बिक रहा है, वहीं इस बाज़ार में इसकी कीमत 40 रुपये किलो है। 35 रुपये किलो वाला आलू यहां 30 में बेचा जा रहा है। यह पूछने पर कि आप लोग कम कीमत पर सब्जियां कैसे बेच पा रहे हैं? उनका कहना है कि वे आढ़तियों या बिचौलियों की जगह सीधे किसानों से सब्जी खरीद रहे हैं। इससे किसानों को भी अच्छी कीमत मिल रही है और आम आदमी को भी राहत पहुंच रही है।

IMG-20201013-WA0003.jpg

बीते महीने ही कोलकाता के जादवपुर के बाघाजतिन इलाके में भी ‘श्रमजीबी बाज़ार’ खोला गया है। सीपीएम के युवा संगठन डीवाईएफआई के दिवंगत कार्यकर्ता दीपांजन मित्र की स्मृति में खुले इस बाज़ार का 23 सितंबर को उद्घाटन किया गया। फिलहाल सप्ताह में चार दिन यह बाज़ार खोला जा रहा है। उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीपीएम नेताओं ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से आम आदमी की जिंदगी और भी दुश्वार हो गयी है। सभी चीजों के दामों में आग लगी हुई, लेकिन तृणमूल के शासन में राशन और राहत के पैसों की चोरी चल रही है। उधर केंद्र की भाजपा सरकार देश की कृषि व्यवस्था को कॉरपोरेट के हवाले करने में लगी है। किसानों को एक तरफ अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल रहा, तो दूसरी तरफ गरीब और मध्यवर्गीय लोग महंगाई की चक्की में पिस रहे हैं। किसानों को भी फायदा हो और उपभोक्ताओं को भी चीजें उचित मूल्य पर मिलें, इसी दिशा में एक छोटी सी कोशिश है ‘श्रमजीबी बाज़ार’।

‘दीपांजन मित्र श्रमजीबी बाज़ार’ के उद्घाटन के मौके पर विधानसभा में विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती समेत कई सीपीएम नेता उपस्थित थे। इस दौरान सीपीएम के नेता सुदीप सेनगुप्त ने कहा कि किसानों को अपनी उपज की लागत तक मिलना मुश्किल होता है और बिचौलिये जेबें भरते हैं। श्रमजीबी बाज़ार किसानों को अच्छा दाम दिला रहा है और उपभोक्ताओं को आसमान छूती कीमतों से बचा रहा है। उन्होंने तृणमूल सरकार पर युवाओं को रोजगार देने में विफल बताते हुए राज्य में बेरोजगारी चरम पर होने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस बाज़ार का एक अन्य बड़ा उद्देश्य इलाके के बेरोजगारों के लिए काम-धंधा जुटाना है। इसके अलावा इसके जरिये सरकार को यह संदेश दिया जा रहा है कि जो काम सरकार को करना चाहिए वह वामपंथी सत्ता से बाहर रहते हुए भी कर रहे हैं।

ऐसा ही एक अन्य ‘श्रमजीबी बाज़ार’ 24 परगना के कामारहाटी में भी खोला गया है। तृणमूल और भाजपा के लोग इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जनता को लुभाने की कोशिश बता रहे हैं। इस संबंध में सीपीएम नेताओं ने कहा कि जनता से उनका रिश्ता केवल वोट का नहीं है। जनता के साथ खड़े रहने का मतलब ही वामपंथी होना है। खैर जो हो, इसमें कोई शक नहीं कि ये 'श्रमजीबी बाज़ार' और 'श्रमजीबी कैंटीन' महंगाई के इस दौर में आम लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आये हैं।

(लेखिका सरोजिनी बिष्ट एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पश्चिम बंगाल की राजनीति और गतिविधियों पर करीब से नज़र रखती हैं।) 

Labor market
Inflation
Rising inflation
West Bengal
CPM
CPM Canteen Open

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत

प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License