NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बंगाल में गठबंधन के लिए बिहार से सीख : ज्यादा नहीं, बल्कि जिताऊ सीटें लड़ने पर ज़ोर
अब इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि बिहार की गलती बंगाल में नहीं दोहरायी जाए। जो गठबंधन बने उसमें पार्टियां सीटें अपने पुराने प्रदर्शनों और राजनीतिक ‘कद’ के आधार पर नहीं, बल्कि एक-एक क्षेत्र में मौजूदा वास्तविक हालात के आधार पर लें।
सरोजिनी बिष्ट
17 Nov 2020
बंगाल में गठबंधन के लिए बिहार से सीख
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी (बाएं) और बंगाल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी (दाएं)

पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए लेफ्ट और कांग्रेस के बीच एक ऐसा कारगर गठबंधन बनाने पर काम चल रहा है, जो भाजपा और राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से एक साथ मुकाबला करने में सक्षम हो सके। इसके लिए एक बड़ी सीख मिली है हाल में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव से।

बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटें लड़ीं और सिर्फ 19 पर जीत दर्ज की। वहीं लेफ्ट ने सिर्फ 29 सीटें लड़कर 16 पर जीत हासिल की। लेफ्ट में सीपीआई ने छह और सीपीएम ने चार सीटें लड़ीं और दो-दो पर जीत पायी। जबकि, सीपीआई (एमएल) ने 19 में से 12 सीटें जीतीं। एक सीट उसने केवल 462 वोटों से गंवा दी। क्रिकेट की भाषा में बात करें तो कांग्रेस का स्ट्राइक रेट केवल 27 फीसदी रहा, जबकि लेफ्ट का 55 फीसदी। अकेले सीपीआई (एमएल) की बात करें तो उसका स्ट्राइक रेट 63 फीसदी रहा। भाजपा के अलावा किसी भी पार्टी का यह इस बिहार चुनाव में सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट है।

कमोबेश सभी का मानना है कि बिहार में महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से सिर्फ कांग्रेस के बेहद निराशाजनक स्ट्राइक रेट के कारण चूक गया। कांग्रेस ने अपनी जमीनी हकीकत का आकलन करने के बजाय अपनी पार्टी के ‘कद’ के आधार पर गठबंधन में सीटें लीं। उसे 70 सीटें देने की वजह से लेफ्ट को कम सीटें मिलीं और कुछ अन्य छोटे दलों को भी गठबंधन में जगह नहीं दी जा सकी। दूसरी तरफ, सीपीआई (एमएल) और अन्य वामपंथी दलों ने केवल वो सीटें लड़ीं जहां उनका पुराना और ठोस काम है। इसका नतीजा हुआ कम सीटें लड़कर भी अच्छी सफलता। अगर कांग्रेस 70 की जगह 50 सीटों पर लड़ती तो बिहार की कहानी कुछ और हो सकती थी।

अब इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि बिहार की गलती बंगाल में नहीं दोहरायी जाए। जो गठबंधन बने उसमें पार्टियां सीटें अपने पुराने प्रदर्शनों और राजनीतिक ‘कद’ के आधार पर नहीं, बल्कि एक-एक क्षेत्र में मौजूदा वास्तविक हालात के आधार पर लें। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने बंगाल के संदर्भ में कहा है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलें, इस संख्या के बजाय जोर इस पर होना चाहिए कि अभी कौन कहां से जीतने की स्थिति में है। येचुरी के इस मत का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने भी पूरा समर्थन किया है। बिहार चुनाव के नतीजों के बाद येचुरी ने कहा कि आनेवाले कुछ महीनों के अंदर पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम जैसे राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे। इन सब राज्यों में सीपीएम ने कांग्रेस और अन्य सेकुलर पार्टियों के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों से वह अपील करेंगे कि कौन कितनी सीटों पर लड़े, इस संख्या को लेकर विवाद करने से कोई लाभ नहीं। बल्कि एक-एक सीट की स्थिति पर विचार होना चाहिए कि कहां किसकी कितनी ताकत है। जहां से जिसके जीतने की संभावना ज्यादा हो, वहां से उसी पार्टी को लड़ने दिया जाए। पहले से संख्या तय करने की जगह, जमीनी वास्तविकता को सीट बंटवारे का आधार बनाया जाए।’

येचुरी की इस अपील पर बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘येचुरी का प्रस्ताव एकदम ठोस वास्तविकता पर आधारित है। उनके साथ मैं पूरी तरह सहमत हूं। कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, इसे लेकर किसी पार्टी का झिकझिक करना उचित नहीं है।’ उन्होंने यह भी कहा कि औपचारिक चुनावी गठबंधन पूरा होने के पहले ही ब्लॉक और जिला स्तर पर लेफ्ट और कांग्रेस के कार्यकर्ता लगातार संयुक्त कार्यक्रम कर रहे हैं।

बंगाल उन राज्यों में है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो भाजपा को आज तक वहां कुछ खास सफलता नहीं मिल पायी है। बंगाल को जीतना उसके लिए सिर्फ राजनीतिक जीत की नहीं, बल्कि वैचारिक जीत की भी लड़ाई है। इस संदर्भ में येचुरी ने कहा, ‘आगामी चुनाव बंगाल के लिए बेहद अहम है। बंगाल को सांप्रदायिक ताकतों के हाथों में नहीं जाने दिया जा सकता। इसलिए हर हाल में वोटों का बंटवारा रोकना होगा और इसके लिए यथार्थपरक ढंग से सीटों का बंटवारा करना होगा।’

दुश्मन नंबर एक की दुविधा

बिहार में गठबंधन के सामने एक ही दुश्मन था, भाजपा। बंगाल में स्थिति इस मामले में दुविधापूर्ण है। यहां भाजपा और तृणमूल कांग्रेस से एक साथ मुकाबला करना है। लेफ्ट और कांग्रेस में इस बात पर एका है कि सैद्धांतिक रूप से दुश्मन नंबर एक भाजपा ही है। लेकिन जो जमीनी हालात हैं उसमें कांग्रेस और सीपीएम की अगुवाई वाला वाम मोर्चा यह मानता है कि बंगाल में तृणमूल के प्रति नरम नहीं हुआ जा सकता। तृणमूल के प्रति नरम होने से सारा तृणमूल विरोधी वोट भाजपा के पास चला जायेगा और आखिरकार इसका फायदा भाजपा को ही होगा।

बिहार में सबसे ज्यादा सफलता पाने वाली सीपीआई (एमएल), जो कि बंगाल के पारंपरिक वाम मोर्चा का हिस्सा नहीं है, ने इस बारे में थोड़ी अलग राय रखी है। एमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि तृणमूल सरकार के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों के खिलाफ उनकी पार्टी संघर्षरत है, लेकिन मौजूदा हालात में भाजपा और तृणमूल को एक ही खाने में रखना ठीक नहीं होगा। तृणमूल के बजाय मुख्य निशाना भाजपा ही होना चाहिए। अगर राज्य में भाजपा सरकार आती है, तो यह तृणमूल सरकार से बड़ा खतरा होगा, इस बात को कांग्रेस और वाम मोर्चा को समझना होगा। देश में भाजपा के और मजबूत होने का मतलब है लोकतंत्र और संविधान का खतरे में पड़ना। उन्होंने बंगाल में कांग्रेस के ‘बड़ा भाई’ बनने की प्रवृत्ति पर भी निराशा जतायी। उन्होंने आगाह किया कि कांग्रेस के सामने किसी तरह का समर्पण करना लेफ्ट के लिए आत्मघाती होगा।

लेकिन तृणमूल और भाजपा को समान दुश्मन नहीं मानने की राय से सीपीएम और कांग्रेस एकमत नहीं हैं। पूरे सीपीएम नेतृत्व का यह मानना है कि इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा बड़ा खतरा है, लेकिन इस राज्य में सरकार में तृणमूल है और उसे ‘रियायत’ देकर भाजपा से लड़ना संभव नहीं है। सीपीएम का मानना है कि दोनों पार्टियों के खिलाफ एकसाथ मोर्चा खोलना ही यथार्थपरक है। बंगाल वाम मोर्चा के चेयरमैन विमान बसु इस बारे में कहते हैं कि बंगाल और बिहार के हालात अलग हैं। यहां तृणमूल और भाजपा दोनों ही ताकतें राज्य के लिए नुकसानदेह हैं। भाजपा सांप्रदायिक पार्टी है और तृणमूल के भी बहुत से क्रियाकलाप उसके जैसे ही हैं। उन्होंने कहा कि बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल के प्रति नरम रवैया अपनाने या उससे किसी तरह के समझौते का सवाल ही नहीं है। बंगाल कांग्रेस के नेताओं का भी कहना है कि तृणमूल और भाजपा में कोई फर्क करना संभव नहीं है।

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 

West Bengal
West Bengal Elections 2021
bihar election
TMC
mamta banerjee
Congress
BJP
CPM
CPIML

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • BIRBHUMI
    रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    टीएमसी नेताओं ने माना कि रामपुरहाट की घटना ने पार्टी को दाग़दार बना दिया है
    30 Mar 2022
    शायद पहली बार टीएमसी नेताओं ने निजी चर्चा में स्वीकार किया कि बोगटुई की घटना से पार्टी की छवि को झटका लगा है और नरसंहार पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री के लिए बेहद शर्मनाक साबित हो रहा है।
  • Bharat Bandh
    न्यूज़क्लिक टीम
    देशव्यापी हड़ताल: दिल्ली में भी देखने को मिला व्यापक असर
    29 Mar 2022
    केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा आवाह्न पर किए गए दो दिवसीय आम हड़ताल के दूसरे दिन 29 मार्च को देश भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं दिल्ली के सरकारी कर्मचारी और…
  • IPTA
    रवि शंकर दुबे
    देशव्यापी हड़ताल को मिला कलाकारों का समर्थन, इप्टा ने दिखाया सरकारी 'मकड़जाल'
    29 Mar 2022
    किसानों और मज़दूरों के संगठनों ने पूरे देश में दो दिवसीय हड़ताल की। जिसका मुद्दा मंगलवार को राज्यसभा में गूंजा। वहीं हड़ताल के समर्थन में कई नाटक मंडलियों ने नुक्कड़ नाटक खेलकर जनता को जागरुक किया।
  • विजय विनीत
    सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी
    29 Mar 2022
    "मोदी सरकार एलआईसी का बंटाधार करने पर उतारू है। वह इस वित्तीय संस्था को पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। कारपोरेट घरानों को मुनाफा पहुंचाने के लिए अब एलआईसी में आईपीओ लाया जा रहा है, ताकि आसानी से…
  • एम. के. भद्रकुमार
    अमेरिका ने ईरान पर फिर लगाम लगाई
    29 Mar 2022
    इज़रायली विदेश मंत्री याइर लापिड द्वारा दक्षिणी नेगेव के रेगिस्तान में आयोजित अरब राजनयिकों का शिखर सम्मेलन एक ऐतिहासिक परिघटना है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License