NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन : कैसे जी रहा है इन दिनों ‘अफ़सर तैयार करने वाला’ मुखर्जी नगर
यहां अधिकतर विद्यार्थियों का खाना बनाने से लेकर कपड़ा धोने तक का काम कोई दूसरा करता है। इन दूसरों लोगों से ही मुखर्जी नगर का बाजार बनता है। ये दिन भर प्रतियोगी किताबों में अपना सर गड़ाए रहते हैं।  
अजय कुमार
01 Apr 2020
मुखर्जी नगर
Image courtesy: New Indian Express

हमारे समाज में सरकारी नौकरी पाने की लड़ाई तकरीबन हर नौजवान लड़ता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए अपना घर परिवार छोड़कर बड़े शहरों में आकर तैयारी करना ज़रूरत के साथ एक फैशन बन चुका है। दिल्ली का मुखर्जी नगर का इलाका भी इसी ज़रूरत/फैशन का हिस्सा है।

हर साल अपना सबकुछ छोड़कर अपनी अच्छी-बुरी पढ़ाई के साथ केवल प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के मकसद से हजारों नौजवान यहां आते हैं। बेसिकली इनके लिए कुछ सालों का एक ही मकसद होता है कि कोचिंग में पढ़ाई की जाए, प्रतियोगी परीक्षा की किताबों में डूबा रहा जाए और यहां से कोई न कोई एक सरकारी नौकरी लेकर निकला जाए।

इस तरह से आप समझ सकते हैं कि किताबो के चंद सवालों-जवाबों के अलावा इनके लिए जिंदगी की रोज़ाना लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के कोई मायने होते हैं?

इनमें से अधिकतर विद्यार्थियों का खाना बनाने से लेकर कपड़ा धोने तक का काम कोई दूसरा करता है। इन दूसरों लोगों से ही मुखर्जी नगर का बाजार बनता है। ये दिन भर प्रतियोगी किताबों में अपना सर गड़ाए रहते हैं।  

कोरोनावायरस की वजह से मुखर्जी नगर की गलियों में भी तालाबंदी का माहौल है। सिविल सेवा की तैयारी का रहे राकेश कुमार से फोन पर बात हुई। राकेश  कहते हैं कि सिविल सेवा की तैयारी करने वाले अधिकतर विद्यार्थियों के सफर को समझना जरूरी है। शुरुआत में मुझे लगा कि साल दो साल में परीक्षा पास कर यहां से निकल जाऊंगा। लेकिन अब मुझे यहां रहते हुए तकरीबन 6 साल हो गए।

इसलिए मुझे लगता है कि जो बहुत समय से यहाँ पर रह रहे हैं, उन्होंने अपने रहने का ठीक ठाक इंतज़ाम कर लिया है लेकिन जिन्होंने अभी मुखर्जी नगर की गलियों में इंट्री मारी है, उन्हें बहुत परेशानी हो रही होगी। राकेश कुमार ने राजू मिश्रा का नंबर दिया, जिन्होंने तीन महीने पहले ही सिविल सेवा की तैयारी के समंदर में छलांग लगाई है।  

राजू मिश्रा को जब मैंने अपना परिचय बताया और बात करने की वजह बताई तो राजू मिश्रा ने झट से कहा कि मोदी जी ने सही किया है, सबको थोड़ी परेशानी सहनी पड़ेगी। हम भी सह रहे हैं।  इसमें कोई गलत बात नहीं है। मैंने कहा अपनी बात थोड़ा अलग-अलग करके बताइये। बताइये कि आपको क्यों लगता है कि सरकार ने सही कदम उठाया है और आपको कैसी परेशानी सहनी पड़ रही। राजू मिश्रा ने जवाब दिया कि सारी दुनिया में कोरोनावायरस से लड़ने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का मॉडल अपनाया जा रहा है। मोदी जी ने भी अपने भाषण में कहा कि अमेरिका जैसा देश इस वायरस से लड़ नहीं पा रहा है इसलिए हमारे देश में इस कड़े फैसले को लागू करना जरूरी है।

मैंने सवाल पूछा लेकिन आप तो जानते होंगे की दुनिया बहुत बड़ी है और सारे देशों की अपनी अलग-अलग परिस्थितियां हैं , इस लिहाज से भारत को आधार बनाकर मोदी जी को अपना स्पीच देना चाहिए था। मिश्रा जी ने कहा कि यह सवाल-जवाब करना आप पत्रकारों का काम है। वैसे ही हम आईएएस की तैयारी कर रहे हैं। हमारी क्रिटिकल थिंकिंग सरकारों पर आकर खत्म हो जाती है। हम अभी से इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं। अगर हम इंटरव्यू बोर्ड में यह बोल देंगे कि सरकार को अपना फैसला लेते हुए भारत की स्थितियों के बारें में सोचना चाहिए था। प्लानिंग करके फैसला लेना चाहिए था। तो आपको लगता है कि हम को एक भी नंबर मिलेगा। उसके बाद हम दोनों हंसने लगे। राजू मिश्रा ने कहा कि समझिये अभी से तैयारी चल रही है।  

उसके बाद राजू परेशानी बताने लगे। राजू ने कहा चाय पीने से लेकर खाना बनाने तक की दिक्कत आ रही है। दो महीने ही पहले दिल्ली आये थे। सोचा था कि प्री जो कि 31 मई को होने वाला है, देकर निकल जायेंगे। अगर एक्ज़ाम अच्छा हुआ तभी रहेंगे। इसलिए एक दोस्त के साथ नेहरू विहार में एडजस्ट हो लिए। लाइब्रेरी ज्वाइन कर लिए थे। सोचे थे कि दिन और रात में लाइब्रेरी में पढ़ेंगे और रात में आकर रूम पर रहेंगे। इसलिए खाने पीने का सारा जुगाड़ टिफिन से लेकर बाजार पर निर्भर था। अब पढ़ाई छोड़कर सब हो रहा है। मन कर रहा है घर भाग जाएं। लॉकडाउन खुलते ही घर भाग जाएंगे। इस बार हम तो परीक्षा नहीं दे पाएंगे। बढी मुश्किल से एक गैस चूल्हा का जुगाड़ किये हैं। उस चूल्हें पर दिन भर अब खाना ही बनता है। अगल-बगल के सभी लड़कों का खाना अब इसी चूल्हे पर बनता है।

राजू से मैंने लाइब्ररी वाले साथी अमित मलिक का नम्बर लिया। अमित से बात हुई। अमित ने कहा लाइब्रेरी पर लगा ताला तो समझिये मुखर्जी नगर की पढ़ाई पर भी हुई तालाबंदी।  मुखर्जी नगर में लाइब्ररी का बिजनेस अच्छा चल पड़ा है। मैं खुद स्टाफ सर्विस सलेक्शन की तैयारी करता हूँ। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले दो से चार स्टूडेंट एक कमरे में रहते हैं। किराया कम पड़ता है और लाइब्रेरी में आकर पढ़ाई करते हैं। इन लोगों की पढ़ाई तो खाई में गयी ही होगी। पता नहीं सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में यह रहते कैसे होते होंगे।  

अमित मालिक चूँकि लाइब्रेरी वाले थे तो उनसे चाय वाले भाई का नंबर लिया। चाय वाले भाई चंदन ने बताया कि क्योंकि मुखर्जी नगर का पूरा बाज़ार इस बात पर टिका है कि स्टूडेंट की बाज़ार में चहलकदमी कितनी है। हम तब छुट्टी लेकर घर जाते हैं, जब स्टूडेंट परीक्षा के बाद घर जाता है तो आप समझ लीजिये कि इस लॉकडाउन हमें कितनी परेशानी होती होगी। यह केवल हमारे साथ नहीं है। टिफ़िन वालों से लेकर ठेलों वालों तक के साथ है। क्योंकि एक आम स्टूडेंट होटल में जाने की बजाए ठेले पर मिल रहे सस्ते खाने से ही अपना जुगाड़ कर लेता है। इसलिए अगर स्टूडेंट इस समय परेशान होगा तो ठेले वाले उससे ज्यादा परेशान होंगे।  

मुखर्जी नगर के इस इलाके में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र भी रहते हैं। मुखर्जी से सटा हुआ गांधी विहार का इलाका है। इस इलाके में यूनिवर्सिटी और और सिविल सेवा की तैयारी करने वाले नार्थ ईस्ट के स्टूडेंट समूहों में रहते हैं। बहुत मुश्किल से इनमें से मिजोरम के स्टूडनेट मुत्से लिंग से बात हुई।  मुत्से बताते हैं कि अगर हम किसी दुकान पर सामान खरीदने जाएं तो सामान तो हमें आसानी से मिल जाता है लेकिन दुकान वाले और लोग हमें बहुत दूर रहने के लिए कहते हैं। दूरी को लेकर इतनी सख्ती नॉर्थ इंडियन के लोगों के साथ नहीं बरती जाती। अगर दुकान पर कुछ देर खड़े रह गए तो दुकानदार खुद कहता  है आप जाइए यहां से। ये तो चलिए आम बात है।  

हम भी समझते हैं कि लोगों में जल्द ही धारणाएं बन जाती हैं। लेकिन इसे लेकर लॉकडाउन खुलते ही रूम छोड़कर जाने की बात करना। इसे सहना बहुत मुश्किल है। इसके साथ हमसे जुड़ा हर नार्थ इंडियन दोस्त हंसी मजाक में हमसे पूछ ही लेता है कि तुम लोग क्यो ये सब खाते हो? हम पूछते हैं क्या कहना चाहते हो तो वह कहता है कि जीव जानवर क्यों खाते हो? अब बताइये हम इसका क्या जवाब दें?

इन सबसे बात करने के बाद छह सालों से रह रहे राकेश कुमार से फिर बात हुई। राकेश कुमार ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी है कि परीक्षा दो महीने बाद है। ये दो महीने महत्वपूर्ण होते हैं। समझिये सौ सुनार के तो ये दो महीने लुहार के। खाने-पीने के परेशानी के अलावा सबसे बड़ी बात है कि लाइब्रेरी बंद हैं, जहां बहुत सारे लड़के दिन रात एक करके लगे रहते हैं। यहाँ की दुकाने टेस्ट पेपर से भरी होती हैं। जो परीक्षा के लिहाज से बहुत जरूरी होता है। वह नहीं मिल पा रहा है। मैंने अपना वाई-फाई दो महीने पहले ही डिस्कनेक्ट करवा दिया था। सोचा था कि नेट से भटकाव होता है। ऐसा सोचने वाले बहुत हैं। उनके लिए नोट्स का काम बाज़ार की दुकाने ही करती हैं। ये सब बंद हैं।

ये सारे चीज़ें मानसिक तनाव पैदा करते हैं। लेकिन मानसिक तनाव से कुछ नहीं होता उल्टा खुद पर ही असर पड़ता है। असलियत तो यही है कि हमसे ज्यादा बड़ी परेशानी प्रवासी मजदूरों की है। और सबसे ज्यादा बड़ी परेशानी कोरोना वायरस की है। ज्यादा परेशानी का एहसास होते ही यह सोचना चाहिए कि हम अगर प्रधानमंत्री होते तो क्या करते और हम मजदूर होते तो क्या करते? इन दोनों सवालों का जवाब का बहुत मुश्किल है। भारत में मौजूद हर वक्त की परेशानियों और कोरोनावायरस के हल के बीच संतुलन बिठाने की ज़रूरत है। जिस पर बीते हुए कल में सरकार नहीं ध्यान दे पायी तो आने वाले कल में ध्यान दे तो बहुत अच्छा हो।  

COVID-19
Coronavirus
Corona Crisis
mukharjee Nagar
India Lockdown
Delhi University

Related Stories

दिल्ली: दलित प्रोफेसर मामले में SC आयोग का आदेश, DU रजिस्ट्रार व दौलत राम के प्राचार्य के ख़िलाफ़ केस दर्ज

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार

कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट को लेकर छात्रों में असमंजस, शासन-प्रशासन से लगा रहे हैं गुहार

कोरोना लॉकडाउन के दो वर्ष, बिहार के प्रवासी मज़दूरों के बच्चे और उम्मीदों के स्कूल

यूजीसी का फ़रमान, हमें मंज़ूर नहीं, बोले DU के छात्र, शिक्षक

नई शिक्षा नीति ‘वर्ण व्यवस्था की बहाली सुनिश्चित करती है' 

कर्नाटक: वंचित समुदाय के लोगों ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, सूदखोरी और बच्चों के अनिश्चित भविष्य पर अपने बयान दर्ज कराये

लॉकडाउन में लड़कियां हुई शिक्षा से दूर, 67% नहीं ले पाईं ऑनलाइन क्लास : रिपोर्ट

शिक्षा बजट: डिजिटल डिवाइड से शिक्षा तक पहुँच, उसकी गुणवत्ता दूभर


बाकी खबरें

  • maliyana
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल
    23 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह न्यूज़क्लिक की टीम के साथ पहुंची उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के मलियाना इलाके में, जहां 35 साल पहले 72 से अधिक मुसलमानों को पीएसी और दंगाइयों ने मार डाला…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    बनारस : गंगा में नाव पलटने से छह लोग डूबे, दो लापता, दो लोगों को बचाया गया
    23 May 2022
    अचानक नाव में छेद हो गया और उसमें पानी भरने लगा। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते नाव अनियंत्रित होकर गंगा में पलट गई। नाविक ने किसी सैलानी को लाइफ जैकेट नहीं पहनाया था।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी अपडेटः जिला जज ने सुनवाई के बाद सुरक्षित रखा अपना फैसला, हिन्दू पक्ष देखना चाहता है वीडियो फुटेज
    23 May 2022
    सोमवार को अपराह्न दो बजे जनपद न्यायाधीश अजय विश्वेसा की कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली। हिंदू और मुस्लिम पक्ष की चार याचिकाओं पर जिला जज ने दलीलें सुनी और फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?
    23 May 2022
    2019 के बाद से जो प्रक्रियाएं अपनाई जा रही हैं, उनसे ना तो कश्मीरियों को फ़ायदा हो रहा है ना ही पंडित समुदाय को, इससे सिर्फ़ बीजेपी को लाभ मिल रहा है। बल्कि अब तो पंडित समुदाय भी बेहद कठोर ढंग से…
  • राज वाल्मीकि
    सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा
    23 May 2022
    सीवर, संघर्ष और आजीविक सीवर कर्मचारियों के मुद्दे पर कन्वेन्शन के इस नाम से एक कार्यक्रम 21 मई 2022 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया मे हुआ।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License