NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद सके।
समीना खान
30 Apr 2022
lucknow

देश में महंगाई और बेरोजगारी ने ईद के रंग को फीका कर दिया है। रमजान का पाक महीना चल रहा है और मुस्लिमों के त्योहार ईद को बस दो दिन ही शेष रह गए हैं। ऐसे में लोग इसकी तैयारी में जुटे हैं। त्योहार की खरीदारी के लिए लोग बाजार तो निकलते हैं लेकिन बढ़े हुए सामान की कीमतों से उनकी खुशियां कम हो रही है। इस मौके से हर कोई अपने लिए और अपने बीवी-बच्चों के लिए नए कपड़े के साथ-साथ ईद के दिन खुद अपने परिवार के लिए और घर आने जाने वाले मेहमानों के लिए खाने-पीने की वस्तुएं खरीदना चाह रहे हैं लेकिन इस बार कोरोना महामारी के बाद महंगाई की मार ने उनके बजट को बिगाड़ दिया है। एक तरफ लोगों के हाथ में पैसा नहीं है जिससे वे अपनी ख्वाहिश के मुताबिक खरीदारी कर सकें वहीं दूसरी तरफ त्योहार के मौके से आमदनी की आस में कर्ज लेकर दुकान में सामान को भरने वाले दुकानदार भी चिंतित हैं। उनके चिंता की वजह है कि लोग दुकान पर आ तो रहे हैं लेकिन उनके जेब में पैसा न होने या कीमत के ज्यादा होने के चलते वे खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दुकानदारों का हाल भी की कुछ इसी तरह का है। ईद की खरीदारी को लेकर पुराने लखनऊ के नक्खास के बाज़ार में एक बार फिर से चहल पहल है और माहौल मेले जैसा है। बीते दो वर्षों में महामारी और लॉकडाउन के कारण ईद के मौके पर यहां का कारोबार देश के अन्य हिस्सों की तरह ठप रहा। इस बार हालात कुछ बदले हुए दिखाई देते हैं। बाजार में रौनक लौटी है। दुकानदारों ने मार्केट बहाल करने का हर मुमकिन कोशिश भी की है। खरीदार भी इन बाज़ारों में पहुंच रहे हैं। इन सबके बावजूद ग्राहकों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति का साफ़ असर इस ऐतिहासिक बाज़ार में भी देखने को मिल रहा है।

रेशमा जितना पैसा लेकर दो बेटियों के लिए ईद की खरीदारी करने निकली हैं उतने में सिर्फ एक बेटी के लिए ही सामान ले पाना संभव है। मां के साथ आई रमशा और शीबा खामोश हैं। उधर मां रेशमा दुकानदार से कपड़े की कीमत कम करने की फ़रियाद कर रही हैं। वहीं दुकानदार भी बढ़ी महंगाई का हवाला देते हुए अपनी मजबूरी बता रहा है। मेले जैसे माहौल में खुशियां की जगह झुंझलाहट ने ले ली है। ऐसा मंज़र किसी एक जगह नहीं बल्कि हर दुकान में आम है।

करीब दो सदी पुराने लखनऊ स्थित नक्खास के इस बाज़ार की ख़ासियत रही है कि ये काफी कम कीमत में मध्य और निम्न मध्य वर्ग की ख़्वाहिशें उनकी हैसियत के अंदर ही पूरी कर दिया करता था। लेकिन इस बार नक्खास के बाज़ार की इस खूबी को ग्रहण लग गया है। बढ़ी हुई बेरोज़गारी के साथ बेतहाशा बढ़े कीमतों का असर ग्राहकों की ख़्वाहिशों पर पानी फेर रहा है। बेटे के लिए फुटपाथ पर से रेडिमेड कपड़ा तलाशती रेशमा ने दुकानदार से जब ये कहा कि आपके कपड़े की कीमत तो स्टोर जितने महंगे हैं। इस पर दुकानदार ने कहा, 'जितने में आपको दे रहे हैं उतने पैसे में स्टोर वाला दुकान के अंदर आने के इजाज़त भी नहीं देगा।' इतनी बात सुनकर रेशमा खामोश हो गई और कहा कि 'भैय्या कुछ गुंजाईश कर दीजिए। बस बच्चे का इंतेज़ाम हो जाए, मेरे पास इससे ज़्यादा रक़म नहीं है।'

ईद के मौके पर हर दुकानदार ने अपनी-अपनी दुकान में माल भरने की पूरी कोशिश की है। ऐसा नहीं है कि बाजार में ग्राहकों की कमी हो। त्योहार को देखते हुए भारी भीड़ भी है लेकिन कीमत ज्यादा होने और पैसे की कमी से लोग खरीदारी में कटौती कर रहे हैं। एक शू स्टोर के मालिक अनवर बताते हैं कि क़र्ज़ लेकर दुकान के लिए माल खरीदा है। दुकान में दो स्टाफ को बढ़ाया है और रात के दो बजे तक पूरी मुस्तैदी से काम कर रहे हैं। लोग आते हैं सामान देखते हैं और खरीदारी तक बात इसलिए नहीं पहुंचती क्योंकि उनकी जेब इसकी इजाज़त नहीं देती।

बढ़े हुए दाम और घटी हुई आमदनी की शिकायत इस वक़्त ईद की ख़रीदारी का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। नक्खाश बाजार के आस पास के इलाक़े में जरदोजी के काम से जुड़े ज़्यादातर कारीगर रहते हैं। उनके मालिक महामारी के दौरान या तो कारोबार बंद कर चुके हैं या फिर उसे इतना समेट लिया है कि ज़्यादातर वर्कर को नौकरी से हटाना पड़ा है। अनवर हुसैन एक ज़रदोज़ी के कारखाने में हाथ से कढ़ाई करने का काम करते थे। उनके मालिक ने दो साल पहले कोविड के पहले लॉकडाउन में ही काम बंद कर दिया था। तब से अनवर कभी गली गली जाकर सेनेटाइजर बेचते रहे या फिर एक दो होटल में काम किया मगर परिवार का पेट पालने भर की आमदनी भी जुटाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था। उन्हें पिछले दिनों एक पैथोलॉजी लैब में काम मिला है लेकिन उससे भी घर का खर्च नहीं चल पाता है। वे ईद के मौके से अपनी बेटी को सस्ते से सस्ता कपड़ा व अन्य चीजें दिलाने के लिए कई दुकानों पर भटकने को मजबूर हैं।

सामान से अटे पड़े इस बाज़ार में ग्राहकों की भीड़ है। खरीदारी को लेकर कुछ ऐसा ही जवाब यहां एक स्टोर में पांच साल से काम कर रहे जकी से सुनने को मिला। ज़की बताते हैं कि इस बार लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि ज़्यादातर मां-बाप बच्चों की जरूरत का ही सामान खरीद रहे हैं और अपने लिए समझौता करते नज़र आ रहे हैं। ज़की जिस स्टोर पर काम करते है वहां रेडीमेड सूट के अलावा दुपट्टे और लेस बेची जाती है।

दुकानदार और फुटपाथ वाले दोनों को ही शिकायत है कि बाज़ार में इस समय हर सामान मुहैया है, लोगों का सैलाब है मगर खरीदारी हमेशा के मुक़ाबले बिलकुल कम हो रही है। नागरे जूते की दुकान में भी यही बात देखने को मिली। नागरा जूता खरीदने आई नग़मा को शिकायत है कि हमेशा उन्होंने जो नागरा इस दुकान से दो-ढाई सौ रूपये में खरीदा था आज उसकी कीमत साढ़े पांच सौ बताकर उन्हें लूटा जा रहा है। वहीं नगमा से दुकानदार शोएब कहते है, 'लेदर का दाम बढ़ने से लागत बढ़ी है और इतने पर बेचना हमारी मजबूरी है।' वे आगे बताते हैं कि इस समय नागरा जूते की लागत दोगुनी से ज़्यादा हो गई है। इस महंगाई में हमें अपने स्टाफ को भी हटाना पड़ा और अब सारा दिन लोगों को ये बताने में गुज़र जाता है कि हमने दाम नहीं बढ़ाए बल्कि महंगाई की वजह से लागत बढ़ गई है। चूड़ी और आर्टिफिशियल ज्वेलरी की दुकानों पर भी औरतों और लड़कियों की भीड़ ज़रूर है मगर जेब इनकी भी ख्वाहिशें पूरी करने की हैसियत नहीं रखती। लोग सामान उठाते हैं, दाम पूछते हैं और वापस रख देते हैं।

एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाली ज़किया कहती हैं कि उनके पति जिस पब्लिकेशन में काम करते थे उसे बंद हुए दो साल बीत गए हैं। अभी तक कोई नौकरी नहीं मिल पाई है। इस बार ईद के मौके से कुछ आमदनी की उम्मीद में उन्होंने करीबी लोगों कुछ क़र्ज़ लिया और घूम घूम कर बच्चों के कपड़े बेचने का काम किया लेकिन वह काम भी ठीक ढ़ंग से नहीं चला। उदास जकिया कहती हैं कि कभी नहीं सोचा था कि पेट पालने के लिए ये दिन देखना पड़ेगा, पर मेहनत की कमाई के लिए ये भी करने को राज़ी हुए। मगर अफ़सोस इस बात का है कि हर दिन ये सोच कर घर से निकले कि शायद आज ठीक ठाक बिक्री हो जाएगी और अब तो ईद का वक़्त करीब आ गया मगर अभी तक लगाई गई कीमत भी नहीं वसूल हो सकी है। जकिया की मुश्किलें यहीं पर ही ख़त्म नहीं होती, वह आगे कहती हैं कि हम दो लोग हैं अपना कुछ नहीं बनाएंगे चलेगा मगर घर आने वालों के लिए खोये और मेवे की न सही दूध और शकर की सादी सिवई बनाने के लिए भी सोचना पड़ रहा है।

ईद की तैयारियों पर लंबे समय से कारोबार को पटरी पर लाने की उम्मीद हर व्यापारी यही शिकायत करता मिला कि हर घर की आर्थिक स्थिति कोविड से पहले वाली ईद की तुलना में बहुत ख़राब है। ऐसे में केवल वही लोग ख़रीदारी कर रहे हैं जिनकी आय पर कम असर पड़ा है लेकिन इन लोगों का प्रतिशत बहुत ही कम है। इन्हीं लोगों की बदौलत खाने, कपड़े और दूसरे सामन की बिक्री हो रही है मगर कम आय की मार झेलने वालों की संख्या बहुत ज़्यादा है और इसका सीधा असर हम सबके कारोबार पर पड़ा है।

Eid al-Fitr
eid
Inflation
unemployment
Lucknow
Rising inflation
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License