NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सीमांचल में एमआईएम, बीजेपी की बी-टीम, युवा आकांक्षाओं की प्रतीक या कुछ और!
सीमांचल के इलाके में एमआईएम का भविष्य क्या है? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पुष्यमित्र ने इस इलाके के लोगों का मन टटोला।
पुष्यमित्र
06 Nov 2020
सीमांचल

चार रोज पहले मैं बिहार के अररिया जिले के भरगामा प्रखंड में अपने दोस्त के घर पर ठहरा था। इस दौरान उसके पिता सिरसिया कलां पंचायत के पूर्व मुखिया अब्दुल रहमान से मुझे लंबी बातचीत करने और बिहार के सीमांचल इलाके में मुसलमानों की राजनीति को समझने का मौका मिला। मैंने उन्हें देखा कि वे अपने एक करीबी मित्र से फोन पर बात कर रहे थे, जो एमआईएम के प्रत्याशी का चुनाव प्रचार संभाल रहे थे। अब्दुल चाचा उन्हें कह रहे थे कि वैसे तो आप राजनीति में मुझसे अधिक तजुर्बेकार हैं, आप अगर कह रहे हैं कि एमआईएम मजबूत है तो ठीक कह रहे होंगे, मगर इस बात का ख्याल रखियेगा कि कहीं ऐसा न हो कि एमआईएम भी रह जाये और महागठबंधन भी। कोई ऐसी पार्टी आगे निकल जाये, जिसे आप-हम पसंद नहीं करते। उनकी इस बात में मुझे सीमांचल की मुस्लिम राजनीति का वह सूत्र मिल गया, जिसे एमआईएम बदलना तो चाहती है, मगर तमाम कोशिशों के बावजूद बदल नहीं पा रही।

गुरुवार, 5 नवम्बर 2020 को कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने जब प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए एमआईएम को बिहार में भाजपा की बी टीम बताया तो एक तरह से वे सिरसिया कलां के पूर्व मुखिया अब्दुल रहमान जैसे सीमांचल के मुसलमानों के मर्म पर ही प्रहार करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि अपने गृह राज्य तेलंगाना में सिर्फ नौ विधानसभा पर चुनाव लड़ने वाली ओवैसी की पार्टी एमआईएम बिहार के सीमांचल में क्यों 24 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उनका एक ही मकसद बिहार में धर्मनिरपेक्ष मतों में विभाजन कर भाजपा को मजबूत करना है। उन्होंने इसके लिए कई कारण गिनाये।

सुरजेवाला के इस बयान से यह साफ है कि एमआईएम सीमांचल के इलाके में लगातार मजबूत हो रही है और वह महागठबंधन के लिए खतरा बनती जा रही है। इसके बावजूद कि अब्दुल रहमान जैसे लोगों को भय है कि कहीं यह भाजपा की जीत का कारण न बन जाये। आखिर इसकी मजबूती की वजह क्या है, क्या सीमांचल के मुसलमान इस बात को नहीं समझते या फिर उनके लिए अब भाजपा को हराने से ज्यादा जरूरी अपने सवालों का जिक्र करना हो गया है? भाजपा के बी टीम का टैग मिलने के बावजूद आखिर क्यों एमआईएम सीमांचल में लगातार मजबूत हो रही है, इस बात को समझने के लिए मैंने युवा पत्रकार और एक्टिविस्ट हसन जावेद से बातचीत की, जिन्होंने हाल ही में एमआईएम की सदस्यता ली है और वे बहादुरगंज विधानसभा के पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे।

हसन सीमांचल के इलाके में युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं, वे एक फेसबुक ग्रुप खबर सीमांचल के नाम से संचालित करते हैं, जिसमें सदस्यों की संख्या पांच लाख के करीब है। यह समूह सीमांचल के इलाके में मेनस्ट्रीम मीडिया से अधिक पापुलर है और इसी वजह से एमआईएम ने उन्हें अपने साथ जोड़ा था, उन्हें बहादुरगंज का टिकट भी मिलने वाला था, मगर ऐसा कहा जाता है कि किसी पैसे वाले प्रत्याशी की वजह से उनका टिकट कट गया।

हसन कहते हैं कि दरअसल इस इलाके में राजद-जदयू और कांग्रेस जैसी पुरानी पारंपरिक पार्टियां हर बार कुछ बुजुर्गों और घिसे-पिटे चेहरों को टिकट दे देती हैं। उनकी जीत बीजेपी को हराने के नाम पर हो जाती है और वे अमूमन अगले पांच साल कोई काम नहीं करते। लोगों को लगता है कि मुसलमानों के लिए बीजेपी को हराना ही एकमात्र चुनावी मुद्दा है, जबकि सच यह है कि हमें भी अपने क्षेत्र में विकास चाहिए, बदलाव चाहिए। यह जो बदलाव की ख्वाहिश है, वह इस इलाके के युवाओं को एमआईएम से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। चूंकि एमआईएम को अभी यहां अपना पांव जमाना है, इसलिए वह सामाजिक राजनीतिक रूप से सक्रिय युवाओं को टिकट देती है। इन युवाओं को भी अपना पोलिटिकल कैरियर शुरू करने के लिए एक बढिया प्लेटफार्म मिल जाता है।

पर अगर पारंपरिक पार्टियां भी युवाओं और सक्रिय लोगों को टिकट देने लगे तो क्या इस इलाके में एमआईएम जैसी पार्टियों की जरूरत खत्म हो जायेगी? इस सवाल पर हसन कहते हैं, बहुत मुमकिन है। इस बार भी महागठबंधन ने कुछ सीटों पर नये चेहरों को जगह दी है, वहां लोगों ने इसका भरपूर स्वागत किया है। हसन की बातों से ऐसा लगता है कि एमआईएम इस इलाके में राजनीति से जुड़ने वाले उन युवाओं के लिए एक बेहतर आप्शन है, जिन्हें दूसरी बड़ी पार्टियां इग्नोर करती हैं।

हालांकि अररिया के सीनियर जर्नलिस्ट परवेज इस बात से इनकार करते हैं कि सभी युवा एमआईएम से जुड़ना चाहते हैं। वे कहते हैं कि इस इलाके में जो पढ़े-लिखे, समझदार और बौद्धिक मुसलमान हैं, वे आम तौर पर एमआईएम से परहेज करते हैं। वे भले इसे बीजेपी की बी-टीम न मानें, मगर यह तो समझते ही हैं कि इस पार्टी का मिजाज कम्यूनल है, और इस इलाके की अपनी तहजीब बड़ी सेक्युलर किस्म की है। इस इलाके में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, मगर वे हिंदुओं और दूसरे मजहब के लोगों के साथ मिलजुल कर रहना चाहते हैं।

वे कहते हैं कि एमआईएम का जोर जरूर बढ़ा है, मगर वह सोशल मीडिया पर एक्टिव कच्ची और कच्ची समझ ने नौजवानों के बीच और देहाती इलाकों की औरतों के बीच अधिक है। उन्हें ओवैसी के भाषणों को सुनकर ऐसा लगता है कि वे मुसलमानों के सवालों को अधिक पुख्ता तरीके से उठाते हैं।

इस सवाल पर कि क्या वे भी मानते हैं, एमआईएम यहां बीजेपी की बी-टीम है? वे कहते हैं, हां उनकी मौजूदगी से बीजेपी को लाभ तो पहुंचता ही है। मगर सवाल वह नहीं है, मुसलमानों को बीजेपी से कोई लेना-देना नहीं है। इस बार अगर वह महागठबंधन से जुड़ा है तो इसलिए कि उसके मुद्दे उसे भी छू रहे हैं। नौकरी तो मुसलमान युवकों को भी चाहिए।

वे कहते हैं कि एमआईएम के होने से भले बीजेपी को फायदा हो जाता हो, मगर मुझे ऐसा नहीं लगता कि वे सिर्फ इसी मकसद से इस इलाके में आये हैं। वे दरअसल एक पोलिटिकल पार्टी के रूप में यहां स्थापित होना चाह रहे हैं। तभी इस बार उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और बसपा के साथ मिलकर गठजोड़ किया है और यह मैसेज देने की कोशिश की है कि वे भी दूसरी पोलिटिकल पार्टियों की तरह हैं। हसन बताते हैं कि इस बार एमआईएम ने दो हिंदू उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है।   

मगर सीमांचल के इलाके में एमआईएम का भविष्य क्या है? इस बारे में हमने जेएनयू के पास आउट युवा फिरोज आलम से बातचीत की। वे 2019 के उपचुनाव में सीपीआई के टिकट से किशनगंज सीट पर चुनाव लड़ चुके हैं। और इस बार फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर उसी सीट से उम्मीदवार हैं। वे कहते हैं, जब तक देश में हिंदू-मुस्लिम को आपस में लड़ाने की राजनीति चलती रहेगी, ऐसी पार्टियां मजबूत होती रहेंगी। मगर एमआईएम की राजनीति भी कोरोना की तरह एक एपिडेमिक है, यह नशा एक दिन जरूर उतरेगा। अभी भी ये लोग इस इलाके के बुजुर्गों को और पढ़े-लिखे लोगों को प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं, यही सीमांचल की बड़ी ताकत है।

(पुष्यमित्र वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Bihar
Bihar election 2020
Bihar Polls
Seemanchal
MIM
BJP
Congress
Randeep Singh Surjewala
RJD
jdu

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License