NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
मध्य प्रदेश: मानसून के पहले, बढ़ते संकट के बीच किसानों को बीज का इंतज़ार 
कृषि वैज्ञानिक सौरभ शर्मा कहते हैं, कुछ स्थानीय राजनीतिकों और कुछ कारोबारियों की सांठगांठ की वजह से राज्य में किसान बीज-संकट का सामना कर रहे हैं। उनकी मिलीभगत यह सुनिश्चित करती है कि प्रदेश में बीजों की आपूर्ति की कोई स्थायी व्यवस्था ही न बन पाए। 
रवि कौशल
19 Jun 2021
मध्य प्रदेश: मानसून के पहले, बढ़ते संकट के बीच किसानों को बीज का इंतज़ार 
कैप्शन: छवि केवल प्रतीकात्मक उपयोग के लिए 

मध्य प्रदेश में रीवा जिले के मोहनी गांव के एक किसान शिवेन सिंह इस उधेड़बुन में हैं कि वे धान कैसे रोपेंगे जबकि मानसून रोज-रोज करीब आता जा रहा है। हालांकि कुछ किसानों ने पहले से धान के बीज गिरा रखे हैं। वे उम्मीद करते हैं कि सरकार के स्टोर, जिसे विक्रय केंद्र के रूप में जाना जाता है, से अपने लिए बीज ले सकेंगे। 

शिवेन सिंह की तरह राज्य में लाखों किसान इस खरीद का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं या निजी विक्रेताओं से मुंहमांगे दामों पर धान एवं सोयाबीन, एवं अन्य फसलों के बीज खरीद रहे हैं, जिनसे कि बुआई की शुरुआत की जा सके। 

अपनी इस परेशानी के बारे में शिवेन सिंह ने कहा कि वह विक्रय केंद्र पर रोजाना 15 दिन से जा रहे हैं, फिर भी उन्हें बीज नहीं मिला है। उन्होंने न्यूजक्लिक से कहा, “बरसात शुरू होने ही वाली है और सभी विक्रय केंद्रों से बीज नदारद हैं। निजी कारोबारी तीन किलो धान के बीज का बैग 700 रुपये में बेच रहे हैं। इसे मैं नहीं खरीद सकता।” 

शिवेन सिंह ने आगे कहा कि थोक खरीद-बिक्री का काम बिना किसी रसीद के ही होता है। निजी कारोबारी अपनी चमड़ी बचाने के लिए यह काम धड़ल्ले से करते हैं ताकि बीज के खराब होने यानी खेतों में उनके न उगने की हालत में इसका दारोमदार उनके सिर न आए। बीज के मौजूदा संकट की वजह पूछने पर उन्होंने कहा, “मैं वास्तव में इसका कारण नहीं जानता लेकिन यह तो हर साल का चलन हो गया है। किसानों के पास सरकार के कुकर्मों का खमियाजा भुगतने के सिवा और कोई चारा नहीं है।”

रीवा से 600 किलोमीटर दूर उज्जैन में शेर खान एक सोयाबीन उत्पादक किसान हैं। उनकी भी यही कहानी है। वह भी जाहिल प्रशासन और निजी कारोबारियों की लूट-खसोट से हलकान-परेशान हैं। खान ने कहा कि सोयाबीन के बीज की बुआई एक तय समय पर करनी होती है, जबकि मिट्टी में बहुत ज्यादा नमी नहीं होती है।

खान ने कहा “मैं पिछले पांच दिनों से बीज पाने की उम्मीद में एक विक्रय केंद्र से दूसरे विक्रय केंदों का चक्कर काट रहा हूं लेकिन बीज कहीं उपलब्ध ही नहीं हैं। निजी व्यवसायी 10,000  प्रति क्विंटल के भाव पर बीज बेच रहे हैं, जो सरकारी दाम से सीधे दूना है। इस पर भी वे इसकी रसीद या कोई गारंटी देने को राजी नहीं हैं कि बीज के उगने में कोई गड़बड़ी नहीं है। हम तीन-चार दिन और इंतजार करेंगे, फिर सड़कों पर उतरेंगे,” ।

बीजों के न उगने, या पर्याप्त मात्रा में न उग पाने की शिकायतें आम किसानों की हैं। इसकी बड़ी वजह, खुले बाजारों में बिना किसी विधिवत जांच और प्रमाणीकरण के ही खराब मानक वाले बीजों का धड़ल्ले से बेचा जाना है। एक अन्य किसान रामजीत सिंह हैं, जो सहकारिता बीज उत्पादन समिति चलाते हैं, उनका कहना है कि विक्रेता संकर बीज (हाईब्रिड सीड्स) बेचते हैं, जो हमेशा नहीं उपजते हैं। इसलिए कि उन्हें आनुवंशिक तौर पर इस रूप में संशोधित जाता है कि वे अपने जीवनकाल में एक ही बार फल दे सकते हैं। इसलिए, किसानों को हरेक सीजन में बाजार से नए बीज खरीदने की जरूरत पड़ती है। 

चूंकि अधिकतर सहकारिता बीज उत्पादन समितियों से प्रभावी लोग जुड़े होते हैं, इसलिए उनके फर्जीवाड़े के जांच नहीं हो पाती है। सिंह ने समझाया कि बिल्कुल यही स्थिति उर्वरक मामले में है, इसकी बोरी लेने के लिए किसानों को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ता है। हालांकि पिछले साल इन्हीं कमियों के चलते सोयाबीन के फसल न होने के लिए राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल को जिम्मेदार ठहराया गया था, पर कृषि विशेषज्ञ इसकी भयंकर कमी की कई और वजहें भी बताते हैं। 

न्यूजक्लिक ने आनुवंशिक रूप से संशोधित-परिवर्द्धित किए गए बीजों के एक बार ही उत्पादन-सक्षम हो सकने के सही तथ्यों का पता लगाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली  में कार्यरत एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक से बातचीत की।

अपना नाम न जाहिर करने का अनुरोध करते हुए कृषि वैज्ञानिक ने बताया, “खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए संकर बीजों को लाया गया था। वे बीज दोबारा क्यों नहीं उग सकते, इसका सरल कारण यह है कि पारंपरिक उच्च उपज वाली किस्में स्व-परागण वाली किस्में हैं,जिसका मतलब है कि उनका पराग उनके स्वयं के बीजांड (ओव्यूल) के जरिए से निषेचित किया जाएगा। लेकिन संकर बीज पर-निषेचन (क्रॉस-फर्टिलाइजेशन) के जरिए तैयार किए जाते हैं।

कृषि वैज्ञानिक ने समझाया “अब, चावल का डीएनए 12 गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स) होते हैं। जब हम पर-निषेच (क्रॉस-फर्टिलाइज) करते हैं, तो इसकी बहुत संभावना रहती है कि दोनों किस्मों के लक्ष्ण उन बीजों में रह जाएं लेकिन यह उनकी प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है, इसका मतलब यह है कि ऐसे बीजों में से बहुत सारे बीज दोबारा नहीं उगाए जा सकते हैं।” 

उन्होंने आगे कहा, “कृपया बीज की उपलब्धता को सरकार के नजरिए से समझें। केंद्र और राज्य सरकारें कृषि विश्वविद्यालयों की आधारभूत संरचना के विकास में पर्याप्त निवेश नहीं करतीं, जिससे कि वह बीज का एक अच्छा-खासा स्रोत होता, बजाय निजी क्षेत्र को सौंपे जाने से। दूसरे, संकर बीज के चलते कई दशों में खाद्य सुरक्षा आई है, जो इसके पहले वे खाने के मोहताज होते थे। अब चूंकि सरकार अपने हिस्से का काम करने में फेल हो गई, इसलिए, संकरबीज को खलनायक नहीं बनाया जाना चाहिए।”

एक अवकाशप्राप्त कृषि वैज्ञानिक और मध्य प्रदेश विज्ञान सभा के अध्यक्ष सौरभ शर्मा ने न्यूजक्लिक से कहा कि बीज की कमी कुछ स्थानीय राजनीतिकों एवं कुछ व्यवसायियों की सांठगांठ का नतीजा है। ये लोगों मिलीभगत कर सुनिश्चित करते हैं कि बीज आपूर्ति की कोई स्थायी सुचारु व्यवस्था ही न बनने पाए।

शर्मा ने कहा, “राज्य के बीज निगम या स्थानीय बीज उत्पादन समिति द्वारा किसानों को बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। अब, यहां एक बात समझने की है कि समिति को अपने बीजों की विधिवत जांच कराने तथा उनके प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है। सर्टिफिकेट देने वाली एजेंसियां सामान्य तौर पर यही जांच करती है कि ये बीजों उग पाएंगे या नहीं। वे यह नहीं देखतीं कि बीज प्रजनन के लिए आनुवंशिक तौर पर उपयुक्त हैं नहीं। यह जांच केवल प्रयोगशाला में ही जा सकती है और प्रदेश की प्रयोगशालाओं में बीजों की नियमित जांच लायक पर्याप्त मानव संसाधन नहीं हैं और न आधारभूत सुविधाएं ही।”

शर्मा ने आगे कहा, “दूसरे, समितियां, जो राजनीतिक संरक्षण में चलती हैं, उनका ग्रेडिंग करने, पैकेजिंग करने की आवश्यकता है। फिर उन्हें राज्य बीज निगम को बीजों की आपूर्ति करनी चाहिए। पर यहां से भुगतान होने में महीनों लग जाते हैं। इस प्रकार, समितियां खुले बाजार में बीज बेचना पसंद करती हैं और ग्रेडिंग-पैकेजिंग का खर्चा बचा लेती हैं। आप गौर करें कि वे इसके अलावा, सरकार से सब्सिडी के रूप में भारी रकम भी पाती हैं।”

सौरव शर्मा के मुताबिक तीसरा कारण यह है कि यदि वे समितियां भांप लेती हैं कि कोई खास फसल की भारी मांग होने वाली है, तो वे उन्हें अपने उत्पाद के रूप में खुले बाजार में बेचना चाहती हैं। उनका कहना है, “उदाहरण के लिए सरसों का तेल अब महंगा से महंगा होता जा रहा है। इसलिए वे इसको बीज के रूप में वितरण करने के बजाय ऊंचे दामों पर मिलों को बेचना पसंद करेंगी। यही सोयाबीन के साथ भी हो सकता है।” 

बीजों के बेतहाशा बढ़े दामों के बारे में पूछने पर कृषि वैज्ञानिक सौरव शर्मा ने कहा, “नियामक व्यवस्था पूरी तरह विफल हो गई है। राष्ट्रीय बीज निगम एक क्विंटल सोयाबीन के बीज का उत्पादन 7100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर सकता है। सब्सिडी के बाद, इसे 5500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचा जाता है। इसलिए अगर सरकार चिंतित है तो वह इस रेट पर उत्पादन कर सकती है, मैं यह समझ नहीं पाता हूं कि क्यों वे इसे 10,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेच रहे हैं।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

MP: Ahead of Monsoon, Farmers Wait for Seeds Amid Growing Crisi

Seed Scarcity
National Seed Corporation
Madhya Pradesh
farmers protest
Rice Seedlings
Corporate Entry in Agriculture
Modi government

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

युद्ध, खाद्यान्न और औपनिवेशीकरण

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

किसान आंदोलन: मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License