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भारत
राजनीति
बिना अनुमति जुलूस और भड़काऊ नारों से भड़का दंगा
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी सहित आठ राजनीतिक दलों की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल ने खरगोन के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया।
राजु कुमार
28 Apr 2022
Khargone

रामनवमी के दिन निकाले गए जुलूस के बाद मध्यप्रदेश  के खरगोन में हुए दंगों के बाद प्रशासन की एकतरफा कार्रवाई को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। 

शुरुआती दिनों में राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को शहर में प्रवेश नहीं दिया गया था। 25 अप्रैल को माकपा, भाकपा, राजद, एनसीपी, भाकपा (माले), समानता दल, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और सपा की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल ने खरगोन के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। 

उन्होंने एक जांच रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि शहर में रामनवमी पर निकलने वाली जुलूस का समापन शांतिपूर्ण हो चुका था, लेकिन इसके बाद बिना अनुमति के एक बार फिर जबर्दस्ती जुलूस निकाला गया और उसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए गए। रिपोर्ट आगे बताती है कि इसके बाद माहौल खराब हुआ और दंगे भड़क गए। इस मामले में पुलिस  प्रशासन ने निष्पक्ष कार्रवाई के बजाय अल्पसंख्यकों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की है। कई निर्दोष लोगों को भी नामजद किया गया है।

एक पत्रकार वार्ता में जांच रिपोर्ट को साझा करते हुए माकपा के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने बताया कि, “संयुक्त जांच दल ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर पीड़ितों और आम जनता से बात की।”

जांच दल में माकपा के राज्य सचिव जसविंदर सिंह, सचिव मंडल सदस्य कैलाश लिंबोदिया, इंदौर सचिव सी.एल. सरावत, भाकपा के इंदौर सचिव रुद्रपाल यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश सचिव स्वरूप नायक शामिल थे।

उन्होंने बताया कि पिछले एक साल से विभिन्न अवसरों पर खरगोन में दोनों समुदायों में तनाव पैदा करने की साजिश हो रही है। पिछले 10 मार्च को जब भाजपा उत्तरप्रदेश सहित चार राज्यों में विधानसभा चुनाव जीती तब खरगोन में निकाले गए विजय जुलूस में भी न केवल मस्जिद के बाहर उत्पात मचाते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए गए थे, बल्कि मस्जिद प्रांगण में भी पटाखे फेंक कर उत्तेजना पैदा करने की कोशिश की गई। इसकी रिपोर्ट कोतवाली थाने में दर्ज है।

जसविंदर सिंह ने बताया कि, “रामनवमी पर आमतौर पर एक जुलूस निकलता है। इस बार भी जब पहला जुलूस निकला तो अल्पसंख्यक समुदाय ने भी उसका स्वागत किया। जगह-जगह पर प्याऊ की व्यवस्था की। तालाब चौक पर उस जुलूस के शांतिपूर्वक समापन हो जाने के बाद भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम महाजन ने न केवल जुलूस को अल्पसंख्यक बस्ती में ले जाने की जिद की, बल्कि एडीशनल एसपी नीरज चौरसिया को देख लेने की धमकी दी। महाजन ने तुरंत तबादला करवा देने की धमकी दी। वहीं से सबको 2 बजे तालाब चौक पर एकत्रित होने के उत्तेजक आह्वान किये गए। फिर वहां पर शाम 5.30 बजे तक भीड़ को एकत्रित होने दिया गया। भीड़ के पास धारदार हथियार भी थे। वे उत्तेजक और एक समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे। इसी भीड़ ने मस्जिद के बाहर जब नमाज के लिए लोग एकत्रित हो चुके थे, आपत्तिजनक नारे और गाने बजाए। जिससे विवाद पैदा हुआ और दंगा फैल गया। यह जुलूस बिना अनुमति निकाला गया और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। इस दूसरे जुलूस के कारण ही यहां दंगा हुआ। इसका नेतृत्व अनिल कंट्रोल वाला और राहुल दूध डेयरी वाला कर रहे थे। जिनके आरएसएस और उनके विभिन्न संगठनों से रिश्ते हैं। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम महाजन तो जुलूस में थे ही, दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा भी खरगोन में थे और खतरनाक ट्वीट कर रहे थे।

प्रतिनिधि मंडल ने प्रशासन से मांग की है कि बिना अनुमति के निकले जुलूस में जो लोग धारदार हथियार और तीन बंदूक लेकर चल रहे थे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। एकतरफा कार्रवाई को रोका जाए। जिन मकानों और दुकानों को बिना न्यायालीन आदेश या कलेक्टर के आदेश के गिराया गया है, उन सबके नुकसान का आंकलन कर उसे तुरंत पूर्ण मुआवजा दिया जाए। इस अवैधानिक कार्रवाई को करने वालों के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। सभी धार्मिक स्थलों को खोला जाए और वहां इबादत करने की अनुमति दी जाए। इदरीस की मौत की सीबीआई जांच की जाए।

जसविंदर सिंह ने  बताया कि, “उन्हें यह पता चला कि इंटेलीजेंस रिपोर्ट में आठ दिन पहले ही प्रशासन को हर स्तर पर सूचना दे दी गई थी कि रामनवमी पर साम्प्रदायिक टकराव हो सकता है। इस सूचना के आधार पर अगर उचित कदम उठाए होते तो इस दंगे को टाला जा सकता था। मगर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी स्वीकारा है कि तालाब चौक पर पर्याप्त पुलिस बल नहीं था। रामनवमी पर हुए विवाद में पुलिस अधीक्षक सहित पांच लोगों को गोली लगना बताया जाता है। इस घटना के बाद गृहमंत्री के बयान कि पत्थरबाजों के घरों को पत्थरों का ढेर कर दिया जाएगा, के बाद तो प्रशासन और पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की मुहिम ही चला डाली जो अभी भी जारी है।”

रिपोर्ट आगे कहती है, “प्रशासन की ओर से तोड़े गए सभी मकान और दुकाने अल्पसंख्यक समुदाय की हैं। वह मकान दंगाग्रस्त क्षेत्र से डेढ़ दो किलोमीटर दूर की बस्तियों में भी तोड़े गए हैं, जहां दंगा हुआ ही नहीं। यह कार्रवाई इसलिए भी एकतरफा दिखाई पड़ती है क्योंकि तालाब चौक की मस्जिद की 9 दुकानों को तोड़ा गया। तीन हिंदू दुकानदारों को तो दुकान तोड़ने से पहले ही अपना सामान निकालने के लिए कहा गया, जबकि मुस्लिम दुकानदारों का सामान भी दुकानों के साथ ही नष्ट कर दिया गया। सारी कार्रवाई बिना सूचना और बिना किसी आदेश के की गई हैं। अब न तो जिला प्रशासन और न ही कलेक्टर इसकी जिम्मेदारी ले रहा है।”

रिपोर्ट पेश करत्व हुए जसवींद्र जानकी देते हैं कि, “ऐसे-ऐसे घरों को तोड़ा गया है, जो तीस साल पहले के बने हुए थे, जिनकी पास पानी बिजली के बिल भी हैं और हाउस टैक्स की रिपोर्ट भी। इसमें हसीना फाखरू का मकान भी तोड़ दिया गया जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना था। दोनों हाथ कटे होने के बाद भी पत्थर फेंकने के आरोप में वसीम शेख की गुमटी भी तोड़ दी गई।”

वो आगे बताते हैं, “अयूब खान की 70 साल पुरानी 7 दुकानों को तोड़ दिया गया, जबकि उसके पास पूरे कागजात भी हैं। वह किसी दंगे में भी शामिल नहीं था। उनकी दुकानें इसलिए तोड़ी गई हैं क्योंकि उसके पीछे भाजपा नेता श्याम महाजन की जमीन है। वह उसे बार-बार इन दुकानों को उसे बेचने को कहता था, मगर अब दंगे का बहाना बनाकर उसकी दुकानों को तोड़ दिया गया। अल्ताफ अस्पताल में भर्ती था, मगर उसका नाम भी दंगाइयों में है और उसका मकान भी तोड़ दिया गया। आजम 8 अप्रैल से 14 अप्रैल तक कर्नाटक में था और उसका मकान भी तोड़ दिया गया है।”

प्रशासन के दावों पर प्रश्न खड़े करते हुए वो आगे बताते हैं, “शिवम शुक्ला घायल हैं। पहले उसे गोली लगने की बात कही गई थी, अब पत्थर लगने की बात कही जा रही है। एसपी सहित जिन पांच लोगों को गोली लगी है, उनकी फोरेंसिक रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। रमजान के महीने में भी शहर की सारी मस्जिदों को बंद कर रखा गया है। कुछ दिनों बाद शहर के मंदिर खोल दिए गए हैं, लेकिन मस्जिदों को नहीं खोला गया है। यदि धार्मिक स्थल बंद करना है तो दोनों ही तरफ के होने चाहिए थे। मगर ऐसा नहीं किया गया है। इस दंगे में सबसे महत्वपूर्ण पहलू इदरीस उर्फ सद्दाम की मौत का है। प्रश्न यह है कि जब 11 अप्रैल को ही उसकी मौत हो गई थी तो उसे 18 अपैल तक क्यों छिपाया गया? उसे लेकर भी पुलिस के बयान विरोधाभासी हैं।”

भाकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य शैलेंद्र कुमार शैली ने कहा कि, “खरगोन दंगा और उसके बाद की एकतरफा कार्रवाई को देखते हुए मध्यप्रदेश के गृह मंत्री का इस्तीफा लिया जाना चाहिए।”

राजद के राज्य सचिव स्वरूप नायक ने बताया कि कई ऐसे अल्पसंख्यकों के घरों को तोड़ा गया है, जिनके घर 7 महीने पहले चले अतिक्रमण विरोधी मुहिम में नहीं तोड़े गए। बुलडोजर संस्कृति को बढ़ावा देकर न्यायपालिका भूमिका को कमजोर किया जा रहा है। 

सपा के यश भारतीय ने कहा कि भड़काऊ भाषण देने वाले दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा लगातार मध्यप्रदेश के दौरे पर आ रहे हैं। इससे लगता है कि प्रदेश में सांप्रदायिक धु्रवीकरण की साजिश की जा रही है। 

जसविंदर सिंह ने कहा कि भाजपा सांप्रदायिक धु्रवीकरण कर चुनाव जीतने की साजिशें कर रही है। इससे दोनों समुदायों के दिलों में जो दूरी बढ़ रही है, उसका खामियाजा अमन पसंद लोगों को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि वे जिला पुलिस अधीक्षक से भी मिलना चाहते थे, लेकिन बार-बार समय देने के बाद भी वे मिल नहीं पाए। पुलिस- प्रशासन को अपनी नाकामियों को छिपाने के बजाय निष्पक्ष कार्रवाई कर प्रदेश में कानून का राज स्थापित कराना चाहिए।

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