NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
रंगमंच
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र: मराठी रंगकर्मी संकट में, 5 नवंबर से आंदोलन की चेतावनी
मराठी नाट्य निर्माता संघ ने एक बयान जारी किया है, जिसमें पूछा गया है कि बीते कई दिनों से अपनी दो जून की रोटी के लिए जूझता कोई नाट्य कलाकार यदि भूख से दम तोड़ता है तो क्या इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी!
शिरीष खरे
24 Oct 2020
मराठी रंगकर्मी संकट में
पिछले आठ महीनों से नाट्य प्रस्तुतियां बंद होने से कलाकारों के पास काम नहीं है। गडकरी रंगायन, ठाणे में मंचित मराठी नाटक 'गोष्ट तशी गमतीची' का दृश्य। साभार: शशांक केतकर

पुणे: कोरोना और लॉकडाउन के दौरान पिछले आठ महीनों से नाटक बंद होने के कारण देश भर में सर्वाधिक समृद्ध कहे जाने वाले मराठी रंगमंच का बुरा हाल हो चुका है। यही वजह है कि मराठी नाट्य कलाकारों में राज्य सरकार के प्रति लगातार आक्रोश बढ़ता जा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार के संस्कृति विभाग के रवैये से नाराज मराठी रंगकर्म से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने की तैयारी कर रहे हैं। इसी कड़ी में मराठी नाट्य निर्माता संघ ने एक बयान जारी किया है। इस बयान में पूछा गया है कि बीते कई दिनों से अपनी दो जून की रोटी के लिए जूझता कोई नाट्य कलाकार यदि भूख से दम तोड़ता है तो क्या इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी।

वहीं, नाट्य व्यवसाय से जुड़े कई संगठनों का कहना है कि यदि 5 नवंबर तक सरकार की तरफ से उन्हें सरकारत्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो राज्य के हजारों नाट्य कलाकार सड़कों पर आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। बता दें कि महाराष्ट्र में करीब पच्चीस हजार रंगकर्मी हैं। ये तालाबंदी की वजह से मार्च महीने से बेरोजगार हैं। इसका नतीजा है कि उनकी माली हालत बद से बदतर होती जा रही है और अब उन्हें अपनी घर-गृहस्थी चलानी मुश्किल लग रही है।

मराठी नाटक 'बंधमुक्त' का एक दृश्य.  001.jpg

मराठी नाटक 'बंधमुक्त' का एक दृश्य (फाइल फोटो)। साभार: सोशल मीडिया

इस बारे में नाट्य निर्माता संघ के मुख्य संचालक राहुल भंडारे बताते हैं कि राज्य सरकार के संस्कृति मंत्री अमित देशमुख के साथ लगातार संपर्क और चर्चा करने के बावजूद सरकार द्वारा समस्या के समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में उन्हें मराठी रंगकर्मियों की यह नाराजगी जायज लगती है।

राहुल भंडारे कहते हैं, "संकट के इस दौर में यदि भूख से कोई नाट्य कलाकार मरता है तो क्या इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार होगी? नाट्य व्यवसायिक संघ ने यह निश्चय किया है कि सरकार ने यदि 5 नवंबर तक इस मामले में कोई समाधान नहीं निकाला तो हम आंदोलन करेंगे।"

शफाअत खान द्वारा लिखित 'मुंबई चे कावले' नाटक का पोस्टर. सौजन्य_ अविष्कार प्रोडक्शन 003.jpg

शफाअत खान द्वारा लिखित 'मुंबई चे कावले' नाटक का पोस्टर। साभार: अविष्कार प्रोडक्शन

बता दें कि सरकार द्वारा शौकिया रंग-मंडलों को दिए जाने वाला अनुदान का मुद्दा अब तक सुलझाया नहीं जा सका है। इसी तरह, सरकार द्वारा अनेक नाट्य प्रतियोगिताओं के लिए दी जाने वाली राशि भी फिलहाल बंद है। इसलिए, अपनी रोजीरोटी के लिए नाट्य कलाकार अन्य धंधों में काम की तलाश कर रहे हैं। लेकिन, कोरोना और लॉकडाउन में ज्यादातर कलाकारों को काम नहीं मिल रहा है। इसलिए, रंगकर्म से जुड़े कई कलाकारों की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है।

दूसरी तरफ, मराठी रंगकर्म से जुड़े कलाकारों का मानना है कि पिछले कुछ महीनों से सरकार द्वारा लॉकडाउन में ढील दी जा रही है और इसके तहत कई उद्योग तथा व्यवसायिक गतिविधियों को अनुमति दी गई हैं। ऐसे में प्रश्न यह है कि राज्य में करीब पच्चीस हजार रंगकर्मी और उनके परिजनों को ध्यान में रखते हुए आखिर नाट्य प्रस्तुतियां करने में ही क्यों अड़चन आ रही है। कुछ नाट्य निर्देशकों का कहना है कि नाट्य आदि गतिविधियों से सरकार को खास राजस्व हासिल नहीं होता है, लिहाजा कला व संस्कृति से जुड़े लोगों की आजीविका का मुद्दा सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। यह भी एक वजह है कि फिलहाल राज्य में नाटकों की कोई संभावना नहीं है और इसलिए भी विशेष रुप से नाट्य कलाकारों की स्थिति अपेक्षाकृत अधिक खराब हो गई है।

मराठी नाट्य व्यवसायिक संघ के अध्यक्ष संतोष काणेकर बताते हैं, "भारत में मराठी रंगमंच को न सिर्फ सांस्कृतिक बल्कि आर्थिक रुप से भी सबसे अधिक समृद्ध माना जाता है। लेकिन, कोरोना और लॉकडाउन के महीनों में यह पूरी तरह बैठ गया है। ऐसे समय सरकार से राहत की उम्मीद थी। लेकिन, सरकार ने इस दिशा में अब तक कोई सहयोग नहीं किया है। अब तालाबंदी में नियम शिथिल किए जा रहे हैं और कई व्यवसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है तो उम्मीद है कि सरकार नाट्य गतिविधियों को भी अनुमति देगी, पर वह हमें ज्यादा ही अनदेखा कर रही है।

राज्य में नाट्यगृह खोलने और उस दौरान नियमों से संबंधित गाइडलाइन का एक नमूना सुझाने के लिए मराठी नाट्य निर्माता संघ ने गत 15 सितंबर को ई-मेल के जरिए संस्कृति मंत्री को अवगत कराया था। उसके बाद गत 30 सितंबर को मराठी नाट्य निर्माता संघ के पदाधिकारियों ने इस मामले में संस्कृति मंत्री से मुलाकात करके चर्चा भी की थी। उस बैठक के दौरान संस्कृति मंत्री ने पंद्रह दिनों में इस मामले के निपटारे के लिए फिर से बैठक आयोजित करने का आश्वासन दिया था। लेकिन, बीस दिनों बाद भी मराठी नाट्य संघ के पदाधिकारियों की इस संबंध में संस्कृति मंत्री के साथ बैठक आयोजित नहीं हुई है। ऐसी स्थिति में मराठी नाट्य संघ आंदोलन को ही आखिरी विकल्प बता रहे हैं। इसी के साथ नाट्य गतिविधियों से जुड़े निर्माता, निर्देशक, कलाकार और कर्मचारी के करीब पच्चीस हजार परिवार नाट्य मंचन के लिए नाट्यगृह का पर्दा जल्दी ही उठने की उम्मीद कर रहे हैं।

इस बारे में संतोष काणेकर कहते हैं कि यदि संस्कृति मंत्री लगातार उनकी समस्या की अनदेखी करते रहे और इसी तरह आगे भी उन्हें संकट से बाहर निकालने की पहल नहीं करते हैं तो राज्य भर के रंगकर्मी अगले कुछ दिनों में संस्कृति मंत्री के बंगले के सामने धारना देंगे। यदि रंगकर्मी आंदोलन करने के लिए मजबूर होते हैं तो इस आंदोलन को नाटकों के अस्तित्व के लिए संघर्ष के रूप में भी देखा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कि गए आठ महीनों के ब्रेक के बाद यदि नाटक फिर शुरू होते हैं तो नाट्य व्यवसायिक संस्थाओं को इसके लिए शुरुआती निवेश जुटाना आसान नहीं होगा। इसमें विज्ञापन से लेकर नाट्य-प्रस्तुतियों के निर्माण और फीड बेक प्रसार आदि पर खर्च किया जाने वाला बजट शामिल है। इसका परिणाम न सिर्फ निर्माता को उठाना होगा, बल्कि इस खर्च का बोझ पूरी टीम को उठाना होगा। इसलिए, यहां सरकार की भूमिका सिर्फ नाट्य प्रस्तुतियों की अनुमति तक सीमित नहीं है, बल्कि शुरुआती संकट से उभरने के लिए उसे नाट्य संगठनों को पर्याप्त अनुदान भी देना चाहिए।

वर्ष 2018-19 से नहीं मिला अनुदान

महाराष्ट्र सरकार राज्य में मराठी नाटकों के संरक्षण और संवर्धन के लिए 'ए' और 'बी' श्रेणी नाटकों को निर्धारित कुछ प्रस्तुतियों पर क्रमश: 25 और 20 हजार रुपये अनुदान के रूप में देती रही है। लेकिन, वर्ष 2018-19 से किसी भी मराठी नाट्य संगठन को अनुदान नहीं दिया जा रहा है। यह स्थिति तब की है जब कोरोना संक्रमण का कोई खतरा नहीं था। इसलिए, कई नाट्य संगठन सरकार से पिछले अनुदान को जारी करते हुए वित्तीय मदद की गुहार लगा रहे हैं।

राहुल भंडारे के मुताबिक सरकार इस बात से अनजान बनी रहना चाहती है कि नाट्य कलाकारों के पेट खाली हैं। जबकि, स्थितियां इतनी भयावह होती जा रही हैं कि नाट्य कलाकार मौत और आत्महत्या की कगार तक पहुंच गए हैं। किसानों की तरह ही यदि नाट्य कलाकार भी आत्महत्या करने लगे और सरकार किसानों की तरह नाट्य कलाकारों को भी आत्महत्या के बाद मुआवजा राशि घोषित करे तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी। क्योंकि, सरकार संरक्षक की भूमिका में नहीं दिख रही है, इसलिए जिस प्रकार तीसरी घंटी के बाद नाटक शुरू करने के लिए मंच से पर्दा उठता है, ठीक उसी प्रकार सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के लिए हमारी ओर से तीसरी घंटी बजेगी। 

इसी तरह, संतोष काणेकर बताते हैं कि कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र राज्य विधानपरिषद की डिप्टी स्पीकर नीलम गोरहे ने नाट्य कलाकारों से मुलाकात की थी। इस मौके पर उन्होंने राज्य के थियेटरों को जल्दी खोलने की बात की थी। यह बात यदि सच में साकार होती है तब ठीक है, पर महज आश्वासन होने की स्थिति में रंगकर्मियों के लिए आंदोलन ही आखिरी चारा होगा। शीघ्र ही इस संबंध में मराठी नाट्य संघ के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक होगी और उसमें आंदोलन की रूपरेखा बनाने के बाद इसकी विधिवत घोषणा की जा सकती है। 

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Maharashtra
Marathi play
marathi
Marathi Theater
Theater Artists
Coronavirus
Lockdown
unemployment

Related Stories

महाराष्ट्र की लावणी कलाकार महामारी की वजह से जीवनयापन के लिए कर रहीं संघर्ष

कोरोना-संकट: राजा-रानी की भूमिकाएं निभाने वाले तमाशा कलाकार रास्ते पर

कोरोना-काल: जीने की जद्दोजहद में फंसे सर्कस कलाकार, ऑनलाइन खेल दिखाने को तैयार

महाराष्ट्र: सांस्कृतिक संस्थाओं के सामने भी आर्थिक संकट, कलाकार-कर्मचारी मुश्किल में

स्थानीय कलाकारों का दर्द : “...मरने पर लकड़ी भी 3500 की मिलती है, हज़ार का क्या करेंगे”

"ये हिटलर के साथी...इनकी सूरत को पहचानों भाई"


बाकी खबरें

  • ram_navmi
    अफ़ज़ल इमाम
    बढ़ती हिंसा व घृणा के ख़िलाफ़ क्यों गायब है विपक्ष की आवाज़?
    13 Apr 2022
    हिंसा की इन घटनाओं ने संविधान, लोकतंत्र और बहुलतावाद में विश्वास रखने वाले शांतिप्रिय भारतवासियों की चिंता बढ़ा दी है। लोग अपने जान-माल और बच्चों के भविष्य को लेकर सहम गए हैं।
  • varvara rao
    भाषा
    अदालत ने वरवर राव की स्थायी जमानत दिए जाने संबंधी याचिका ख़ारिज की
    13 Apr 2022
    बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में कवि-कार्यकर्ता वरवर राव की वह याचिका बुधवार को खारिज कर दी जिसमें उन्होंने चिकित्सा आधार पर स्थायी जमानत दिए जाने का अनुरोध किया था।
  • CORONA
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 1,088 नए मामले, 26 मरीज़ों की मौत
    13 Apr 2022
    देश में अब तक कोरोना से पीड़ित 5 लाख 21 हज़ार 736 लोग अपनी जान गँवा चुके है।
  • CITU
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: बर्ख़ास्त किए गए आंगनवाड़ी कर्मियों की बहाली के लिए सीटू की यूनियन ने किया प्रदर्शन
    13 Apr 2022
    ये सभी पिछले माह 39 दिन लंबे चली हड़ताल के दौरान की गई कार्रवाई और बड़ी संख्या आंगनवाड़ी कर्मियों को बर्खास्त किए जाने से नाराज़ थे। इसी के खिलाफ WCD के हेडक्वार्टस आई.एस.बी.टी कश्मीरी गेट पर प्रदर्शन…
  • jallianwala bagh
    अनिल सिन्हा
    जलियांवाला बाग: क्यों बदली जा रही है ‘शहीद-स्थल’ की पहचान
    13 Apr 2022
    जलियांवाला बाग के नवीकरण के आलोचकों ने सबसे महत्वपूर्ण बात को नज़रअंदाज कर दिया है कि नरसंहार की कहानी को संघ परिवार ने किस सफाई से हिंदुत्व का जामा पहनाया है। साथ ही, उन्होंने संबंधित इतिहास को अपनी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License