NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
मणिपुर चुनाव: भाजपा के 5 साल और पानी को तरसती जनता
ड्रग्स, अफस्पा, पहचान और पानी का संकट। नतीजतन, 5 साल की डबल इंजन सरकार को अब फिर से ‘फ्री स्कूटी’ का ही भरोसा रह गया है। अब जनता को तय करना है कि उसे ‘फ्री स्कूटी’ चाहिए या पीने का पानी?    
शशि शेखर
26 Feb 2022
manipur

राजधानी इम्फाल से कुछ दूर स्थित बिष्णुपुर जिला के सलाम बिजेन सिंह दिल्ली में रहते हैं। वे जब भी अपने गाँव जाते हैं, पीने के पानी के लिए उन्हें ठेला गाड़ी ले कर खुद कई किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है, जहां से वे पीने के पानी का इंतजाम कर पाते हैं। अब साल में कुछेक दिनों के लिए ऐसा करना पड़े, तो ये एक अलग बात है, लेकिन ज़रा सोचिए कि जिन लोगों को रोजाना ये काम करना पड़ता हो, उनकी हालत क्या होगी? और यह सबकुछ एक ऐसी सरकार के रहते हुआ है, जो खुद को डबल इंजन सरकार कहती है।

अब ये अलग बात है कि चुनावी साल में (2021 के जुलाई में), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3050 करोड़ रुपये की मणिपुर जल आपूर्ति परियोजना की आधारशिला रखी थी। अब इस काम के लिए डबल इंजन सरकार ने 5 साल का इंतज़ार क्यों किया, समझ से परे है? खैर, इस योजना की आधारशिला रख दी गयी है। इस साल जनवरी में राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मणिपुर का दौरा भी किया।

मणिपुर में लगभग 4.51 लाख ग्रामीण परिवार हैं, जिनमें से 1.67 लाख (37 प्रतिशत) घरों में नल के पानी की आपूर्ति उपलब्ध है। गौरतलब है कि मणिपुर का 60 से 70 फीसदी हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र है, जहां मात्र 10 फीसदी जनसंख्या रहती है। इस इलाके को हिल एरिया कहते हैं, जहां विधानसभा की 20 सीटें है। भाजपा यहाँ अब भी काफी कमजोर स्थिति में है। 

2017 में सत्ता में आने के बाद, मुख्यमंत्री एन बीरें सिंह ने “गो टू हिल” का नारा भी दिया था लेकिन 5 साल बाद भी पानी की समस्या से निजात नहीं दिला सके। और तो और, राजधानी इंफाल की हालत भी इस मामले में काफी दयनीय है। 

इंफाल शहर अब पीने के पानी की भारी कमी का सामना कर रहा है। सिंगदा बांध में जल स्तर में भारी कमी और लीमाखोंग नदी के सूखने के कारण सामान्य जलापूर्ति प्रभावित हो रही है। लोगों को निजी पानी टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। कुछ लोगों के लिए निजी जलापूर्ति एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया है। लोग 10,000 लीटर के लिए 1,500 रुपये और 1,700 लीटर के लिए 400 रुपये दे रहे हैं। अब जिनके पास पैसा होगा, उनके लिए तो ठीक है लेकिन शहरी गरीब परिवारों के लिए इतनी बड़ी रकम का बोझ उठाना कितना कठिन होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

ड्रग्स में फंसी जवानी

मणिपुर की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं, जिन पर ड्रग्स कारोबार में सीधे-सीधे शामिल होने का आरोप लगता रहा है। यहाँ तक कि एक तत्कालीन पुलिस अधिकारी टी वृंदा देवी ने तो मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह तक का नाम ड्रग्स कारोबार में बता दिया था। वृंदा अब पुलिस विभाग से इस्तीफा दे कर चुनाव लड़ रही है। भाजपा के कई नेता अब तक पुलिस  द्वारा ड्रग्स कारोबार करते पकडे गए है। नतीजतन, मणिपुर की लगभग आधी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नशीले पदार्थों से प्रभावित है। द मैग्निट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज इन इंडिया, 2019 की रिपोर्ट में मणिपुर को शीर्ष 10 शराब पर निर्भर राज्यों में शामिल किया गया है। सामाजिक जागरूकता और सेवा संगठन (एसएएसओ) नाम के एक स्थानीय एनजीओ के अनुसार, मणिपुर में लगभग 34,500 आईडीयू (इंजेक्शन से ड्रग्स लेने वाले, जिसके कारण यहाँ एड्स के मरीज की संख्या भी अप्रत्याशित रूप से एक समय बढ़ गयी थी) हैं। एनजीओ के अनुसार, यह संख्या राज्य की आबादी का लगभग 1.9-2.7% के बीच है और 85-90% पुरुष यूजर्स हैं। इसके अलावा, मणिपुर और नागालैंड में लगभग 10% नशा करने वाली महिलाएं भी है। सवाल है कि मणिपुर की यह हालत क्यों है? दरअसल, इसकी सीमा थाईलैंड, लाओस, वियतनाम और म्यांमार से सटी हुई है, जो ड्रग्स कारोबार के लिए एक शानदार गोल्डन ट्राएंगल बनाती है और इस धंधे से अकूत पैसा भी मिलता है, जिसका इस्तेमाल चुनावी राजनीति में भी संभव है।

पहचान का संकट

इनर लाइन परमिट मणिपुर के लोगों की एक पुरानी मांग रही है। चुनावी साल में भाजपा सरकार ने इसे पास भी कर दिया। लेकिन, इसे ले कर विवाद अभी थमता नहीं दिख रहा है। स्थानीय मैती समुदाय (बहुसंख्यक मणिपुरी जनता) का आरोप है कि बंगाली लोग उनके स्थानीय पहचान पर संकट खडा कर रहे हैं। स्थानीय लोगों को ऐसा लगता है कि उनकी जमीन और संस्कृति खोती जा रही है। दूसरी तरफ, पश्चिम बंगाल स्थित एक संगठन अमारा बंगाली ने मणिपुर में इनर लाइन परमिट सिस्टम को लागू करने का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इनर लाइन परमिट सिस्टम पर मणिपुरी जनता की संयुक्त समिति ने कहा है कि मणिपुर में रहने वाले बंगालियों को राज्य से आईएलपीएस को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसका हमें विरोध करना चाहिए। मामला वापस लेने के लिए अमरा बंगाली पर मैती समुदाय के लोगों को दबाव बनाना चाहिए। दरअसल, मणिपुर के जिरीबाम जिले पर बंगाली समुदाय का प्रभाव है, जिससे जिरीबाम में मैती अल्पसंख्यक हो गए हैं। इनर लाइन परमिट लागू किए जाने के बाद भी, स्थानीय लोग उपरोक्त हालात की वजह से नाखुश हैं, लेकिन इस मसले पर भाजपा अब तक ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है।

अफस्पा: भाजपा की परेशानी

भाजपा के लिए यह मुद्दा गले की हड्डी बन गयी है। मणिपुर में इस क़ानून के दुरुपयोग के संबंध में संतोष हेगड़े कमेटी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा है कि इसे मणिपुर से ख़त्म किया जाना चाहिए। राजनीतिक सबक सीख चुकी कांग्रेस ने इस बार वादा किया है कि सत्ता मिलती है तो मणिपुर से अफस्पा ख़त्म करेंगे। लेकिन, भाजपा के लिए ऐसा कहना आसान भी नहीं। इसलिए, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कहते हैं, “हम अफस्पा के खिलाफ है, लेकिन नेशन फर्स्ट है।” यह बयान भाजपा के ऊहापोह बताने के लिए काफी है। वैसे यह बयान इस बात का भी संकेत है कि भाजपा को भरोसा है कि राष्ट्र और राष्ट्रवाद का मुद्दा उत्तर भारत की तरह ही पूर्वोत्तर भारत के इस सुन्दर से राज्य में भी शायद काम करेगा। अन्यथा, अफस्पा के खिलाफ होने के साथ ही नेशन फर्स्ट की बात कर के अफस्पा का पिछले दरवाजे से समर्थन करना, वह भी ऐन चुनाव के वक्त, इस वक्त मणिपुर में राजनीतिक रूप से किसी भी दल के लिए खतरनाक हो सकता था। लेकिन, भाजपा को शायद इस बात का यकीन होगा कि उसने जिस फ्री स्कूटी का वादा किया है, उसके आगे अफस्पा का मुद्दा मंद पड़ जाएगा। बहरहाल, देश में एक तरफ जहां सब्सिडी को मुफ्तखोरी बता-बता कर रसोई गैस और तेल के दाम रोज-ब-रोज बढ़ा कर आमलोगों की जेब काट दी गयी, वहीं दूसरी तरफ भाजपा का घोषणापत्र देखिये, जहां सबकुछ मुफ्त है। शुक्र है, इस देश में ड्रग्स अभी भी पैसा दे कर खरीदना पड़ता है।

आपको बता दें कि मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में मतदान होने जा रहा है। पहले चरण में 38 सीटों के लिए सोमवार, 28 फरवरी को वोट पड़ेंगे जबकि दूसरे चरण में 5 मार्च को 22 सीटों के लिए मतदान होगा। मतगणना 10 मार्च को होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

manipur
Manipur elections
BJP
Water crisis
AFSPA
Nongthombam Biren Singh

Related Stories

हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?

लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

विश्लेषण: विपक्षी दलों के वोटों में बिखराव से उत्तर प्रदेश में जीती भाजपा

आर्थिक मोर्चे पर फ़ेल भाजपा को बार-बार क्यों मिल रहे हैं वोट? 

विचार: क्या हम 2 पार्टी सिस्टम के पैरोकार होते जा रहे हैं?

यूपी चुनाव के मिथक और उनकी हक़ीक़त

विधानसभा चुनाव: एक ख़ास विचारधारा के ‘मानसिक कब्ज़े’ की पुष्टि करते परिणाम 

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!

उत्तराखंडः 5 सीटें ऐसी जिन पर 1 हज़ार से कम वोटों से हुई हार-जीत


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License