NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
भारत
स्मृति शेष : सबके थे जब्बार
भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित लोगों के लिए संघर्षरत भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार की असमय मृत्यु ने सबको स्तब्ध कर दिया है।
राजु कुमार
16 Nov 2019
Abdul jabbar

महज़ एक हफ़्ते पहले तक किसी ने नहीं सोचा था कि अब्दुल जब्बार की बीमारी इतनी गंभीर है कि वे सबका साथ छोड़ कर चल देंगे। कुछ सालों से वे लगातार बीमार चल रहे थे। गैस त्रासदी का प्रभाव उन पर भी था और वे बीमारियां समय के साथ-साथ उन पर हावी होती जा रही थीं। इस तरह उनका अस्पताल आना-जाना लगा हुआ था, तो उनके दोस्त और मिलने वाले सोचते थे कि अगले दिन मिल लेंगे या फिर जब अस्पताल से वापस आएंगे, तो मिल लेंगे। लेकिन वे इस बार अस्पताल से वापस नहीं आए, अनंत की यात्रा पर निकल गए।

अब्दुल जब्बार एक ऐसी शख़्सियत थे, जिनके नाम के बिना भोपाल गैस त्रासदी के बाद के संघर्षों की कहानी पूरी नहीं हो सकती। अब्दुल जब्बार को लोग जब्बार भाई के नाम से बुलाते थे। जब्बार भाई का पूरा परिवार यूनियन कार्बाइड कारख़ाने से कुछ ही दूरी पर रहता था, जब गैस त्रासदी हुई थी। उस त्रासदी ने उनसे उनके माता-पिता और भाई को छीन लिया था। उन्होंने पहले ही दिन से गैस पीड़ितों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था। गैस ने उनके स्वास्थ्य पर भी असर किया था, जिससे वे ताउम्र छुटकारा नहीं पा सके थे। उन्होंने स्थानीय न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गैस पीड़ितों के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं। उनके पीआइएल पर कई ऐसे फ़ैसले आए, जिसने गैस पीड़ितों को राहत दी। आरोपियों को सज़ा दिलवाना, स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतज़ाम करवाना, मुआवज़ा एवं पुनर्वास की व्यवस्था करना जैसे कामों के साथ-साथ समाज में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए भी उन्होंने प्रतिबद्धता दिखाई। वे जन विज्ञान एवं पर्यावरण संरक्षण के साथ गहराई से जुड़े हुए थे।

IMG-20191116-WA0010.jpg

पिछले दो दिनों में जब्बार भाई पर बहुत सारे लोगों ने लिखा है। कई ने अपने मर्मस्पर्शी संस्मरणों से इस बात की ओर इशारा करने की कोशिश की है कि समाज के लिए सबकुछ न्यौछार कर देने वाले के लिए आख़िर समाज आगे क्यों नहीं आता? हर किसी को लग रहा है कि यदि समाज कुछ माह पहले सचेत हो जाता, तो शायद जब्बार भाई अपने बीच होते।

जब्बार भाई ने भोपाल के पर्यावरण को बचाने के लिए भी आंदोलनों की अगुवाई की। भोज वेटलैंड की बात हो या फिर शहर में विकास के नाम पर पेड़ों को काटने से रोकने का मामला हो, हर बात में वे आगे रहते थे। भोपाल के तालाबों के संरक्षण के प्रति वे प्रतिबद्ध थे। उन्होंने हज़ारों नीम के पेड़ वितरित किए। केन्द्र के आसपास को उन्होंने हरा-भरा बना दिया है। अभी वे जब आईसीयू में भर्ती थे, तब उन्हें अपनी चिंता नहीं थी, बल्कि भोपाल के ऐतिहासिक पार्क शाहजहांनी पार्क को बचाने की चिंता थी। वे अपने दोस्तों को आईसीयू से फ़ोन कर-कर के कह रहे थे कि यह पार्क शहर के प्रमुख आयोजनों का गवाह है, विकास के नाम पर इसे तहस-नहस नहीं किया जा सकता। 

आख़िरकार उनके फ़ोन और संदेशों का असर हुआ और सरकार को अपने क़दम वापस खींचने पड़े। उनका मानना था कि स्मार्ट सिटी एक ढकोसला है, शहरों का विकास वहां की ज़रूरतों, संस्कृति, विविधता और भौगोलिक बनावट के आधार पर अलग-अलग तरीक़े से होना चाहिए, जिसमें पर्यावरण का कोई नुक़सान न हो।

जब्बार भाई अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर भी स्थानीय आवाज़ को बुलंद करते थे। उनका मानना था कि दुनिया में यदि कहीं अन्याय हो रहा है, तो उसका असर पूरी मानवता पर पड़ता है और उस अन्याय एवं हिंसा के ख़िलाफ़ स्थानीय स्तर पर भी विरोध दर्ज कराया जाना चाहिए। वे दोस्तों को अमेरिकी दादागिरी, इज़रायल के रवैये और फ़िलिस्तीन में मर रहे बच्चों को लेकर भी आगाह कराते रहे और विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई करते रहे। न केवल भोपाल बल्कि देश-दुनिया के हर संघर्षों के साथ वे साझेदारी करते रहे, जो प्रगतिशील मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। वे जन संघर्षों के राष्ट्रीय समन्वय के साथ भी जुड़े हुए थे।

दो साल पहले जब उन्होंने एंजियोग्राफ़ी करवाई थी, तब दिल की तीनों धमनियों में ब्लॉकेज था। डॉक्टर ने तत्काल बायपास सर्जरी कराने की सलाह दी। उन्होंने ईमेल के माध्यम से देश भर के लोगों को बताया था कि वे सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं और अब उसके बाद ही सबसे संपर्क होगा। लेकिन शुगर के कारण तब सर्जरी नहीं हो पाई। फिर वे अपने जीवन के प्रति आशंकित भी होने लगे और जीवन भर दूसरों के लिए संघर्ष करते हुए अपने लिए कुछ आर्थिक संसाधन न जोड़ पाने के कारण आर्थिक असुरक्षा से भी घिरे हुए थे। पिछले छह माह से उनका अस्पताल आना-जाना लगा हुआ था। उनके पैर का एक घाव गैंगरिन में बदल गया और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे जब्बार भाई का जीवन जोखिम से भर गया। जब तक दोस्त सचेत होते और सरकार मदद के लिए आगे आती, तब तक हालात ज़्यादा मुश्किल हो गए। और जब गंभीरता से उनके इलाज की बारी आई, तब तक देर हो गई और 14 नवंबर को वे नहीं रहे।

IMG-20191116-WA0006.jpg

बीमारी के दिनों में जारी की गई अपील अब दोस्तों ने उनके परिवार की मदद के लिए अपील में बदल दिया है। निश्चय ही समाज का यह कर्त्तव्य है कि जिन्होंने पूरा जीवन समाज के लिए दिया, उनके परिवार की ज़िम्मेदारी समाज ले। ऐसे में उनके परिवार के लिए योगदान की अपील को अवश्य पढ़ना चाहिए और मदद के लिए आगे आना चाहिए क्योंकि जब्बार भाई केवल गैस पीड़ितों के लिए ही नहीं थे, बल्कि हम सबके थे जब्बार।

Abdul jabbar
Abdul jabbar passed away
Bhopal gas tragedy

Related Stories


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License