NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
भारत में फैली घातक महामारी के लिए मोदी अकेले हैं ज़िम्मेदार
चूंकि भारत में, कोविड संक्रमण और उसकी वजह से मृत्यु भयानक गति से बढ़ रही हैं, इसलिए स्पष्ट रूप से इस संकट के लिए प्रधानमंत्री खुद बड़े दोषी नज़र आते हैं।
सोनाली कोल्हटकर
03 May 2021
Translated by महेश कुमार
कोरोना

भारत कोरोना वायरस महामारी की नई धुरी बन गया है, जहां रोजाना संक्रमण 300,000 से अधिक पार हो गया है और आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या लगभग 10 लाख से अधिक हो गई है। अस्पतालों में मरीजों की संख्या बहुतायत में हैं, और ऑक्सीजन की कमी से संकट गहरा रहा है। भारतीय न्यायपालिका ने देश के प्रभावित क्षेत्रों में ऑक्सीजन की आपूर्ति को रोकने के किसी भी प्रयास में पकड़े गए लोगों को मृत्युदंड की धमकी दी है। इस दौरान हुई दर्जनों मौतें ऑक्सीजन की कमी से जुड़ी हुई हैं।

कुछ महीने पहले ही, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वायरस को हराने की सफलता की खुद की गढ़ी कहानी में डूबे हुए थे और यह तब हो रहा था जब महामारी वैज्ञानिक-विशेषज्ञ इस बात की उलझन में थे कि कोविड-19 संक्रमण से संबंधित मौतें क्यों हो रही हैं। भारत में दो वैक्सीन हैं, एक बायोटेक द्वारा देश में विकसित कोवैक्सीन और दूसरी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन है जिसका उत्पादान भारतीय कारखानों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। हमें मालूम है कि, मास्क पहनना लगभग सार्वभौमिक जरूरत है,  और वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भारत की "साबित महामारी की रणनीति" की काफी तारीफ़ भी की थी। 

तो, फिर यह संकट क्यों छाया?

बैंगलोर के रहने वाले एक पत्रकार और उपन्यासकार अमनदीप संधू, जो ब्रावडॉ टू फियर टू एबैंडमेंट: मेंटल हेल्थ एंड द कोविड-19 के लेखक हैं, उनके पास इन हालत का बयान करने के लिए एक ही शब्द था: "आत्मतुष्टि"। एक साक्षात्कार में, उन्होंने मोदी सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार "अहंकारी, नीतिगत पक्षाघात की शिकार तो है ही साथ ही उसने पिछले साल के अनुभवों से सीखने का भी कोई प्रयास नहीं किया है।“ एक धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा वाली सरकार ने अल्पसंख्यक समूहों पर उस वक़्त निशाना साधा था और फासीवादी हिंदू वर्चस्व के ढांचे को बढ़ावा दिया है और देश के लोगों को भयंकर रूप से विफल कर दिया है।

संधू ने बताया कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो जिसे भारतीय राजनीति में बहुमत हासिल किए है, ने राज्य के चुनावों में वोट हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर रैलियों का आयोजन किया। मोदी का ट्विटर अप्रैल की शुरुआत से ही (यहां, और वहां हुई रैलियों से) उनके भाषणों के वीडियो से भरा हुआ है, जहां उन्होंने बड़ी भीड़ को बढ़ावा दिया, और "जश्नरूपी" भीड़ बिना मास्क उनका होंसला बढ़ाती नज़र आती है। यह घटना पिछले साल संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की राजनीतिक रैलियों के विपरीत नहीं है, जिनकी बजह से आने वाले हफ्तों में संक्रमण की बढ़ती दर नोट की गई थी। 

मोदी ने हर 12 साल में होने वाले कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों हिंदुओं को प्रोत्साहित किया। पृथ्वी सबसे बड़े धार्मिक तीर्थस्थल गंगा नदी में लाखों भक्तों की भीड़ को डुबकी लगाते हुए देखा गया। इस वर्ष कुंभ में लगभग 3.5 मिलियन लोगों ने भाग लिया, यहां तक कि उससे संक्रमण की दर भी बढ़ने लगी थीं और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने संभावित गंभीर परिणामों की चेतावनी भी दी थी।

एक साल पहले, सरकारी नेताओं ने तब्लीगी जमात नामक एक मुस्लिम संगठन द्वारा आयोजित  छोटी सी जमात को वायरस को बढ़ाने का कारण बताया था। कर्नाटक राज्य विधान सभा के एक भाजपा विधायक ने मुस्लिमों की भीड़ पर हिंसक हमले की वकालत करते हुए कहा था कि, "कोविड-19 का प्रसार भी आतंकवाद जैसा अपराध है, और वायरस फैलाने वाले सभी देशद्रोही हैं।" इस वर्ष, हिंदूओ की भीड़ के मामले में ऐसी किसी चेतावनी सुनने को नहीं मिली जो एक काफी बड़ा धार्मिक आयोजन था।

मोदी ने कृषि के निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए जिन कृषि-कानूनों को पारित किया है और जिनके खिलाफ राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाके में हजारों गरीब किसान आंदोलन जारी रखे हुए हैं उनसे मोदी ने बातचीत करने से इनकार कर दिया है। जब वसंत की वार्षिक फसल की कटाई के दौरान विरोध करने वाले किसानों की संख्या घटने लगी, क्योंकि वे अपने खेतों पर फसलों की कटाई करने चले गए थे, तब भी करीब 15,000 किसान विरोध स्थलों पर जमे हुए थे, और संधू के अनुसार, जरूरत पड़ने पर हजारों किसान वापस लौटने को तैयार हैं।

"ऐसी स्थिति में किसानों के पास क्या विकल्प है?" संधू ने पूछा। "कृषि-कानून अगले कुछ वर्षों में उन्हें खत्म कर देंगे, और, खुदा माफ़ करे, अगर वायरस आ गया तो वह उन्हें जल्दी मार देगा। तो, मौत दोनों तरफ है। वे करें तो क्या करें?" और इसलिए, किसान विरोध जारी हैं, हालांकि, संधू के अनुसार, राजधानी के बाहर विरोध को अभी तक कोविड-19 के प्रसार से नहीं जोड़ा गया है। इसके बजाय, किसानों को अब डर है कि मोदी सरकार उनके विरोध को खत्म करने के लिए महामारी का इस्तेमाल कर सकती है। 

ट्रम्प की तरह, मोदी ने भी इस तरह का श्रेय लेने की कोशिश की उन्होने वायरस का मुकाबला सफलतापूर्वक कर लिया है, और इसके लिए पिछले साल एक राहत कोष बनाया गया जिसका नाम ‘पीएम केयर्स’ रखा गया था जिसके माध्यम से भारी मात्रा में धन/दान एकत्र किया गया था। और ट्रम्प की तरह ही, मोदी भी फंड को बांटने और उसके प्रबंधन के मामले में अपारदर्शी रहे हैं। एक एक्टिविस्ट ने पीएम केयर फंड को "एक ज़बरदस्त घोटाला" करार दिया है।

भारत कोविड-19 टीकों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता होने के बावजूद, भारत ने आंतरिक रूप से इस्तेमाल किए गए टीकों की तुलना में अन्य देशों को कहीं अधिक खुराक का निर्यात किया है। मोदी पर "वैक्सीन कूटनीति" में उलझने का आरोप लगा है, जिसके तहत उन्होने अन्य देशों को खुद के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए लाखों भेंट चढ़ा दिए। संधू ने कहा कि हालांकि वे भारत के वैक्सीन निर्यात के मामले में मोदी सरकार के खिलाफ नहीं है चूंकि महामारी एक वैश्विक आपदा है, लेकिन वे दुखी इस बात से हैं कि एक तो टीकों का उत्पादन कम है दूसरे भारतीय स्वास्थ्य सुविधाओं के निजीकरण ने टीकों को सबसे गरीब तबकों की पहुंच से बाहर कर दिया हैं।

संधू के अनुसार, "टीके को खुले बाजार में नागरिकों को टीका लगाने के सीमित प्रावधान के साथ लागू किया गया है।" दूसरे शब्दों में, गरीब भारतीयों को अमीर भारतीयों की तुलना में वैक्सीन हासिल करने में अधिक समय इंतजार करना पड़ता है क्योंकि अमीर तबका किसी भी निजी क्लिनिक में जा सकता हैं और खुराक खरीद सकता हैं। संधू ने पूछा, ''भारत का गरीब टीका कैसे लगवाएगा? यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो हम एक समाज के रूप में, और दुनिया में बड़े पैमाने पर असुरक्षित हो जाएंगे। टीका सभी को मुफ्त मिलना चाहिए।

अब, जब भारत सरकार की हर दिन सैकड़ों हज़ारों बढ़ते संक्रमणों के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तौहीन हो रही है, तो मोदी, जो ट्रम्प की तरह उनके गायब होने से पहले ट्विटर पर उतने ही प्रफुल्लित थे जीतने कि ट्रम्प, अब वे अपनी छवि के बारे में अधिक चिंतित दिखाई देते हैं। उनके प्रशासन को इस संकट के दौरान समय मिला कि वे ट्विटर से महामारी से निपटने के उनके महत्वपूर्ण ट्वीट्स को हटा दे और सोशल मीडिया कंपनी ने इसका अनुपालन भी किया है।

यह सिर्फ ट्विटर नहीं है जो मोदी को मान्य बना रहा है। अमेरिका में भारतीय मूल के दक्षिणपंथी समर्थक नियमित रूप से मोदी सरकार के फासीवादी शैक्षिक कार्यक्रमों और राष्ट्रवादी समूहों को ज़िंदा रखने के लिए लाखों डॉलर दान करते हैं। दरअसल, ह्यूस्टन स्थित सेवा इंटरनेशनल जैसे कुछ समूह हैं जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अमेरिकी सहायक संगठन माना जाता है, और जो भाजपा का मूल संगठन है। भारत के कोरोनोवायरस संकट पर अंतर्राष्ट्रीय चिंता का लाभ उठाते हुए सेवा इंटरनेशनल ने ऑक्सीजन कनसंटरेटर अन्य चिकित्सा आपूर्ति के लिए 10 मिलियन डॉलर जुटाने का बीड़ा उठाया है। लेकिन, 2004 में, यह संगठन एक घोटाले में फंस गया था, जहां उसने भूकंप से राहत के लिए ब्रिटिश जनता लिए चंदे को वैचारिक हिंदू वर्चस्ववादी स्कूलों के निर्माण की दिशा में मोड दिया था। हाल ही में, समूह ने केरल में बाढ़ पीड़ितों में सिर्फ हिन्दू समुदाय को राहत देने के लिए काम किया था।

राष्ट्रपति जोए बाइडेन के प्रशासन को भी भाजपा और उसके अधिनायकवाद निज़ाम को गले लगाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, यह प्रवृत्ति पिछले प्रशासन के समय से  जारी है। बाइडेन ने श्री प्रेस्टन कुलकर्णी को जोकि एक भारतीय अमेरिकी है को अमेरिकोरप्स में एक प्रमुख पद पर नियुक्त किया है जो आरएसएस के करीबी है। कुलकर्णी ने रमेश भुटड़ा की  जो सेवा इंटरनेशनल के निदेशक हैं, की फंडिंग की मदद से टेक्सास की कांग्रेस सीट से असफल अभियान चलाया था।

बाइडेन प्रशासन पर दबाव था कि वह कोविड-19 टीकों पर से बौद्धिक संपदा अधिकारों की शर्तों को हटाए ताकि करोड़ों लोगों के जीवन के खिलाफ मुनाफा वसूलने वाली फार्मास्युटिकल कॉर्पोरेशनों पर नकेल लगाई जा सके। अब, भारत में आए विनाशकारी संकट से, बाइडेन ने एक बार फिर 30 अप्रैल को हुई विश्व व्यापार संगठन की बैठक से पहले इस विकल्प पर विचार किया था। लेकिन जब तक पेटेंट की शर्त हटाई जाएगी और इसके इस्तेमाल की अनुमति दी जाएगी तब तक हजारों लोग मर चुके होंगे।

इस बीच, भारतीय लोग इतनी बड़ी संख्या में मर रहे हैं कि राजधानी नई दिल्ली रात में सामूहिक दाह संस्कार की आग से धधकती नज़र आती है। जैसे ही हैशटैग #ResignModi ट्रेंड नई ऊंचाइयों को छूने लगा, इस पर संधू की संक्षेप टिपणी याहे थी कि "सरकार सभी मामलों में विफल हो गई है।"

सोनाली कोल्हटकर टेलीविजन और रेडियो शो "राइजिंग अप विद सोनाली" की संस्थापक हैं, और उसकी मेजबान और कार्यकारी निर्माता हैं, जो कार्यक्रम फ्री स्पीच टीवी और पैसिफिक स्टेशनों पर प्रसारित होते हैं। वे इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट में इकोनॉमी फॉर ऑल प्रोजेक्ट की राइटिंग फेलो हैं।

यह लेख इकोनॉमी फॉर ऑल में प्रकाशित हो चुका है, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट की एक परियोजना है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Is Singularly Responsible for India’s Pandemic Disaster

corona pandemic
COVID-19
Narendra modi
BJP
shortage of oxygen

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License