NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी के भाषण सिर्फ़ अपने बारे में हैं! : यह भाजपा के लिए बुरा क्यों है?
मैं, मेरा और सिर्फ़ मैं की जुगाली, किसी भी पार्टी के नेता के लिए अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है।
शकुंतला राव 
17 Oct 2019
Translated by महेश कुमार
PM modi

मोदी ने 2019 में अपने चुनाव अभियान की अगुवाई करते हुए उस एक महीने के दौरान 32 घंटों में जो भाषण दिए उसमें जो एक निरंतरता दिखी थी: वह थी ख़ुद के बारे में बोलना। यह असामान्य बात नहीं है कि वे रैलियों को संबोधित करते हुए ख़ुद को ही धन्यवाद देते हैं, अपनी नीतियों को धन्यवाद देते हैं और देश के प्रति अपनी दृष्टि को धन्यवाद देते हैं। जैसा की 2014 के आम चुनावों के दौरान देखा गया था ठीक वैसे ही 2019 के चुनावों में भी सोशल मीडिया और वेबसाइटों पर बिलबोर्ड, पोस्टर, डिजिटल विज्ञापन के माध्यम से मोदी की छवि का सर्वव्यापक रूप से देखा गया।

मिशिगन विश्वविद्यालय में संचार विषय के विद्वान स्वप्निल राय ने इस घटना को "भारतीय राजनीति का जश्न मनाने" के रूप में संदर्भित किया है, और एक तरह से मोदी के व्यक्तित्व को एक सेलिब्रिटी जैसी हस्ती और उसकी आभा बनाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी, सामाजिक और पारंपरिक मीडिया का सामूहिक तौर पर रणनीतिक इस्तेमाल बताया है। हालांकि भारत की राजनीति में व्यक्तिगत राजनेताओं का ऐसा जश्न असामान्य बात नहीं है, लेकिन मोदी के भाषण विशेष रूप से ख़ुद के संदर्भों से भरे पड़े हैं।

यदि इतिहास एक सबक़ है, तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर इंदिरा गांधी के बड़े पैमाने पर मौजूद पदचिह्न अपने आप में इस तरह की विकट व्यक्तित्व वाली राजनीति के ख़तरे को दर्शाते हैं। इंदिरा गांधी सत्ता में इसलिए आई थीं क्योंकि उनमें विभिन्न या विरोधाभाषी राजनीतिक योग्यताएँ प्रतीत होती थीं, जो कि ख़ासतौर पर भिन्न थीं(देश के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू की बेटी होने के नाते) और उनमें अस्पष्टता भी थी कि उनके भीतर नीतियों को लेकर कोई दृष्टि नहीं थी। फिर भी, उन्होंने नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस की बहुसंस्कृति वाली संरचना को सफलतापूर्वक एकजुट किया और कुछ हद तक आगे बढ़ाया।

हालांकि, उसके बाद जो हुआ उसे राजनीतिक वैज्ञानिक सुदीप्त कविराज यानी इन्दिरा के शासन काल को  "बादशाही शासन" के रूप में संदर्भित करते हैं, जब पार्टी के भीतर किसी भी असंतोष बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था, बिना किसी सलाह या सहयोग के निर्णायक फ़ैसले लिए जाने लगे, और अंतत: इसने एक वंशवादी शासन की दृष्टि का आकार ले लिया। राजीव गांधी की हत्या के बाद, वास्तव में कांग्रेस अपनी चमक वापस नहीं पा सकी, हालांकि उसके बाद वह एक दशक तक सत्ता में रही।

आज, 25 साल बाद, जब हम कांग्रेस को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त देख रहे हैं, तो उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जो कभी उपनिवेशवाद के बाद के काल में राष्ट्रीय विकास का मुख्य अंग थी वह सत्ता को बनाए रखने का एक विशेष साधन बन गया। दरअसल, कांग्रेस पार्टी एक विस्तृत संसदीय मशीन बन गई, जहां चुनावों को जीतने के लिए बड़े धन के इस्तेमाल की अनुमति थी और पार्टी नेतृत्व के भीतर किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी से मुंह  मोड़ने की लत लग गई जिसने इसे वैचारिक रूप से पतवारहीन बना दिया।

गांधी परिवार के बाहर, अन्य वरिष्ठ नेता, जिन्हें साहस या बुद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता था, ज़ाहिर तौर पर वे भी शासन और आम जनता के बीच बढ़ती खाई की न तो कोई ज़िम्मेदारी ले रहे थे और न ही कोई दिलचस्पी। 21 वीं सदी तक कांग्रेस पार्टी, आपस में एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले नेताओं और चाटुकारिता का प्रतीक बन कर रह गई, और ये सब नेता गांधी परिवार की चाटुकारिता करते नहीं थकते थे, वे चुनाव को लेकर ज़मीनी स्तर पर हो रहे बदलावों से पूरी तरह से बेख़बर थे।

अगर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर नज़र डालें तो रिपब्लिकन पार्टी में डोनाल्ड ट्रम्प की त्वरित वृद्धि और संयुक्त राज्य अमेरिका की सीनेट और सदन के नेताओं की सार्वजनिक चुप्पी से पता चलता है कि इस तरह की राजनीति पारंपरिक पार्टी के प्रभुत्व को कैसे समाप्त कर सकती है। अधिकांश रिपब्लिकन नेता अब मीडिया से बात नहीं करते हैं और चमक-दमक से बाहर रहना पसंद करते हैं, वे ऐसा कुछ तो डर और कुछ मर्यादा के तहत करते हैं। हालांकि कुछ आलोचकों ने रिपब्लिकन को "भेड़ की पार्टी" कहा है, कठोर शब्दों वाले रूढ़िवादी राजनीतिक टिप्पणीकार जॉर्ज विल ने हाल ही दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था, कि ट्रम्प की लीडरशीप में रिपब्लिकन पार्टी "विनम्र, अल्पज्ञानी और अयोग्य बन गई है।"

यहां तक कि अगर रिपब्लिकन पार्टी में ज़्यादातर लोग ये मानते हैं कि ट्रम्प पार्टी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, तो ऐसा कर वे अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर लेंगे। ट्रम्प के ख़िलाफ़ बोलने से उनकी तात्कालिक राजनीतिक हस्ती गंभीर रूप से ख़तरे में पड़ जाएगी। ट्रम्प की शक्ति के सिद्धांत ने रिपब्लिकन पार्टी के पारंपरिक आदर्शवाद और वैश्विक सुरक्षा के सिद्धान्त को पलट दिया और उन्हें "पहले ट्रम्प, बाद में अमेरिका" के छद्म राष्ट्रवादी उत्थान के नारे में बदल दिया है।

ट्रम्प के विपरीत, जिनके भाषण और ट्वीट शुद्ध संकीर्णता से भरे वाले रहे हैं, मोदी के भाषण प्रत्यक्ष कम लेकिन समान रूप से खुद के संदर्भ में रहे हैं। उनके भाषणों का जो एक तत्व है वह यह कि हर तीसरे व्यक्ति के रूप में उनका निरंतर संदर्भ होता है। 25 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के बांदा में दिए गए 41 मिनट के एक भाषण में, उन्होंने 30 बार तीसरे व्यक्ति के रूप में ख़ुद को संदर्भित किया। जबकि मोदी की भाषा में इस तरह की भाषाई रणनीति के इस्तेमाल के मनोवैज्ञानिक कारणों पर बहस की जा सकती है, लेकिन वह अपनी सफलता के लिए तीसरे व्यक्तिवाद का इस्तेमाल करते हैं और आलोचना को टाल जाते हैं।

इस राजनीति का एक और सिरा यह भी है कि हर सार्वजनिक नीति का बयान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है, जैसे कि मोदी के व्यक्तिगत अनुभव ही हैं जो राष्ट्रीय नीतिगत निर्णय की तरफ़ ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, वे देश की "बहनों और माताओं" के लिए घरों में बाथरूम की आवश्यकता का वर्णन करते हैं और कहते हैं कि "मैंने अपनी ग़रीब माँ को घर से शौच के लिए बाहर जाने के लिए अपमानित होते देखा है।"

मोदी के भाषणों में एक तीसरा तत्व भीड़ के आकार के आधार पर अपना जुनूनी ध्यान केंद्रित करना है। जैसा कि उन्होंने कई रैलियों में इसे उल्लासपूर्वक देखा और उसके बारे में कहा है, "जहाँ तक मेरी आँखें देख सकती हैं वहाँ तक मैं जनता को पाता हूँ।" वह इसे पारदर्शी बना देते हैं कि भीड़ उन्हें देखने आती है, भले ही उनका प्रत्येक भाषण और रैली में आना अन्य भाजपा नेताओं और मंत्रियों के भाषणों के बाद या पहले होता है।

मोदी की इस सर्वव्यापकता को किसी भी अन्य भाजपा राजनेता के संदर्भों की पूर्ण अनुपस्थिति के साथ किया जाता है जैसे कि भाजपा में मोदी को छोड़ कोई अन्य नेता है ही नहीं। वे शासन के किसी भी पहलू, नीति लेखन या कार्यान्वयन, या अभियान में मदद करने के लिए अपनी पार्टी के या फिर कैबिनेट मंत्री या सांसद के योगदान को कभी स्वीकार नहीं करते है। बीजेपी को मोदी का पर्याय बना दिया गया है।

बीजेपी के लिए इसके मायने क्या है?

मोदी की सत्ता में मज़बूती से तरक़्क़ी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। जिसे क्रूर हितों का गठजोड़ कहा गया जो हिंदुत्व, व्यापार और सत्ता के कुलीन लोगों से मिलकर तैयार हुआ है, और एक धनी लेकिन रूढ़िवादी प्रवासी लोगों के जमावड़े ने मोदी को अन्य प्रतिस्पर्धी राजनीतिक नेताओं से बढ़त दिला दी है। लेकिन अगर इतिहास से कोई एक चीज़ सीखनी है, तो वह यह है कि भाजपा के मोदी के इर्द-गिर्द घूमने से पार्टी अपने राजनीतिक करिश्मे को खो रही है - और ख़ासकर जिन कारणों या मुद्दों की वजह से आम लोग भाजपा को सत्ता में लाए थे उन्हे भी वह खो रही है।

जब भी मोदी सार्वजनिक जीवन से रिटायर होंगे, तो सत्ता की शून्यता व्यापक होगी। क्योंकि मोदी लहर को बनाए रखना मुश्किल होगा यदि कोई नीतिगत पहल नहीं होती है जिसे कि दूसरे स्तर का नेतृत्व अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करने में सक्षम हो। अगर हमेशा मोदी और उनके राजनीतिक कौशल के बारे में कहानी चलती रहेगी तो एक चतुर मतदाता एक बिना नाम के पार्टी प्रचारक की ओर क्यों रुख करेगा? यहां तक कि पार्टी के नौकरशाह अमित शाह, जो मोदी की छाया बने रहते हैं, उन्हें भी लोग केवल एक छाया ही समझते हैं।

हालांकि, मोदी के बाद की भाजपा की शव यात्रा निकालना थोड़ी जल्दबाज़ी है, लेकिन इतिहास हमें बताता है कि कोई भी पार्टी एक व्यक्ति के प्रदर्शन के नाम पर ज़्यादा देर तक सत्ता में नहीं रह सकती है। कांग्रेस उस समय अपने उत्कर्ष पर थी जब इसमें विभिन्न विचार के लोग शामिल थे। नेहरू का मंत्रिमंडल बुद्धिजीवियों से और नीति निर्माताओं से भरा था और यह उस समय विलुप्त होने लगा जब पार्टी ने अपने भाग्य को गांधी परिवार के साथ जोड़ दिया। भाजपा उसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है।

शकुंतला राव, संचार अध्ययन विभाग, न्यूयॉर्क के स्टेट विश्वविद्यालय, प्लेट्सबर्ग में पढ़ाती हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

Modi’s Speeches Are All About Himself: Why That is Bad for BJP

BJP and Modi
Trump and Modi
indira gandhi
Modi Speeches
Celebrity politics

Related Stories

पंजाब में आप की जीत के बाद क्या होगा आगे का रास्ता?

प्रधानमंत्रियों के चुनावी भाषण: नेहरू से लेकर मोदी तक, किस स्तर पर आई भारतीय राजनीति 

सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष: सभी रूढ़िवादिता को तोड़ती उनकी दिलेरी की याद में 

कई दस्तावेज़ी सबूत हैं कि आरएसएस ने आपातकाल का समर्थन किया था!

इंदिरा निरंकुशता से मोदी निरंकुशता तक

तुम कौन सी इमरजेंसी के बारे में पूछ रहे थे?

उस घोषित आपातकाल से ज्यादा भयावह है यह अघोषित आपातकाल

वो आपातकाल और अब ये

“मज़हब और सियासत से हल नहीं होगा कश्मीर का मसला”

संपूर्ण क्रांति की विरासत और जेपी-संघ का द्वंद्व


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने " प्रोफिटिंग फ्रॉम पेन" नाम से रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में उन ब्यौरे का जिक्र है जो यह बताता है कि कोरोना महामारी के दौरान जब लोग दर्द…
  • bhasha singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    हैदराबाद फर्जी एनकाउंटर, यौन हिंसा की आड़ में पुलिसिया बर्बरता पर रोक लगे
    26 May 2022
    ख़ास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बातचीत की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर से, जिन्होंने 2019 में हैदराबाद में बलात्कार-हत्या के केस में किये फ़र्ज़ी एनकाउंटर पर अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया।…
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   
    26 May 2022
    बुलडोज़र राज के खिलाफ भाकपा माले द्वारा शुरू किये गए गरीबों के जन अभियान के तहत सभी मुहल्लों के गरीबों को एकजुट करने के लिए ‘घर बचाओ शहरी गरीब सम्मलेन’ संगठित किया जा रहा है।
  • नीलांजन मुखोपाध्याय
    भाजपा के क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करने का मोदी का दावा फेस वैल्यू पर नहीं लिया जा सकता
    26 May 2022
    भगवा कुनबा गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का हमेशा से पक्षधर रहा है।
  • सरोजिनी बिष्ट
    UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश
    26 May 2022
    21 अप्रैल से विभिन्न जिलों से आये कई छात्र छात्रायें इको गार्डन में धरने पर बैठे हैं। ये वे छात्र हैं जिन्होंने 21 नवंबर 2021 से 2 दिसंबर 2021 के बीच हुई दरोगा भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया था
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License