NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चौथे लॉकडाउन पर फ़ैसला करने में डर रहे हैं मोदी?
जब पहले लॉकडाउन की घोषणा हुई तो भाव था ‘अहम् ब्रह्मास्मि’। लेकिन अब राय- मशविरा किया जा रहा है। दरअसल राष्ट्रीय स्तर के लॉकडाउन के अच्छे या बुरे परिणाम की ज़िम्मेदारी ख़ुद केंद्र सरकार को लेनी होगी। इसी ज़िम्मेदारी को प्रांतों के सिर पर थोपने की कोशिश कर रही है मोदी सरकार।
प्रेम कुमार
12 May 2020
narendra modi
Image courtesy: Twitter

लॉकडाउन पर सियासत न हो- इस चिंता के साथ चर्चा हो रही है चौथे लॉकडाउन पर। यह चिंता खुद इस बात का सबूत है कि चौथे लॉकडाउन पर राजनीति हो रही है। चौथे ही क्यों, हर लॉकडाउन पर सियासत होती आयी है जिस पर मुकम्मल चर्चा जरूरी है। मगर, आज का सबसे बडा सवाल यही है कि यह राजनीति क्या है? कौन राजनीति करना चाहता है और कौन इससे बचना चाहता है या कि हर कोई राजनीति ही करना चाहता है?

जब पहले लॉकडाउन की घोषणा हुई तो भाव था ‘अहम् ब्रह्मास्मि’। किसी से राय-मशविरा नहीं करना और खुद के लिए ग्लोबल लीडर का डंका पिटवाना ही लक्ष्य था। सबूत यह है कि 15 मार्च को हुए सार्क देशों के सम्मेलन में मिल-जुलकर कोरोना से संघर्ष की बात हुई थी। मगर, हिन्दुस्तान में यही साझा संघर्ष का संकल्प गायब दिखा।

संकल्प के बिना प्रार्थना कहां सफल होती है- यह विभिन्न धर्मों से परे आध्यात्मिक मान्यता है। जाहिर है पहले लॉकडाउन के चौथे दिन ही मज़दूर बगावत को उतर आए। जान जोखिम में डालकर भी पैदल चलने का जो सिलसिला तब शुरू हुआ, अब भी देश के अलग-अलग हिस्सो में जारी है। गरीब मज़दूरों के तेवर ने सत्ता को डरा दिया। सत्ता जब डर जाती है तो राजनीति और प्रपंच ही उसका बचाव हो जाता है।

मरकज़ का सर्कस और दूसरा लॉकडाउन

याद कीजिए वो मरकज़ का सर्कस, जिसके सारे पात्र और परिस्थितियां आज की राजनीति में पीछे छूटते दिख रही हैं। मगर, उस सर्कस ने मज़दूरों के संघर्ष को और मुश्किल बना दिया। कोरोना का संक्रमण जहां देश के अभिजात्य वर्ग को सता रहा था, वहीं कोरोना के कारण लॉकडाउन से पैदा हुआ संकट मज़दूरों को भूख और मौत की चपेट में धकेल रहा था। दूसरे लॉकडाउन की सियासत का आधार मरकज़ और तबलीग़ी जमात बनी। जमात न होता, तो ऐसा होता। जमात न होता तो वैसा होता। यह कहते हुए एक और लॉकडाउन 14 अप्रैल के बाद 3 मई तक के लिए थोप दिया गया। इस बार इतना जरूर हुआ कि मुख्यमंत्रियों से बातचीत की गयी। ‘जमात समर्थक’ कहलाने के डर ने विपक्ष की जुबान पर ही मानो ताला लगा दिया। दूसरे लॉकडाउन में ‘सर्वसम्मति’ के पीछे यह बड़ी वजह थी।

प्रांतीय स्तर पर पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में कोरोना के गंभीर खतरे को देखते हुए लॉकडाउन को आगे बढ़ाने की वजह समझी जा सकती है,भले ही वे गैर बीजेपी शासित प्रदेश हों। मगर, इसे ही आधार बना कर राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे लॉकडाउन को 17 मई तक के लिए एक बार फिर थोप दिया गया। यह कौन सा आधार था?

तीसरे लॉकडाउन की घोषणा होने तक यह बात साफ हो चुकी थी कि देश के टॉप 10 कोरोना पीड़ित राज्यों में 90 फीसदी कोरोना के मरीज हैं। देश में करीब 40 शहर हैं जो मुख्य रूप से कोरोना की चपेट में हैं। ऐसे में राष्ट्रीय लॉकडाउन की आवश्यकता न होकर हॉटस्पॉट वाली थ्योरी पर अमल की ज्यादा आवश्यकता थी। मगर, इस देश में संपन्न वर्ग की सोच लॉकडाउन को बढ़ाने की है। उनकी प्राथमिकता वे खुद हैं। इस स्वार्थी सोच ने गरीबों को भूख से मरने की हालत में ला खड़ा किया है।

लॉकडाउन पर बदलने लगा है शासकीय नजरिया

लौटते हैं चौथे लॉकडाउन की सियासत पर। आज संपन्न वर्ग की शुभचिंतक मोदी सरकार लॉकडाउन बढ़ाने की नहीं, लॉकडाउन हटाने की चिंता में जुटी है। अचानक यह यू टर्न कैसे आया है, इसे समझिए। मज़दूरों को 12 घंटे काम करने का कानून बनाया जा रहा है। उनके सारे अधिकार छीने जा रहे हैं। अब काम करने वाला वर्ग कोरोना से भी मरेगा और काम के बोझ से भी। मगर, उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकल पाएगी। इसके लिए वक्त ही नहीं होगा। 12 घंटे काम के और 3 से 5 घंटे घर से कारखाने तक आने-जाने के बाद उसके पास वक्त ही कहां होगा!

राजनीति यह है कि किसी भी तरह से हवाई अड्डों को खोल दिया जाए। हवाई यात्राओं में ही सुविधाभोगी संपन्न वर्ग की ज़िन्दगी बसती है। यह यात्राएं उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों के पांच सितारा होटलों से जोड़कर रखती हैं। इसके बगैर नेता, उद्योगपति, कारोबारी, दलाल बेचैन हैं। उनके लिए लॉकडाउन का मतलब हवाई अड्डे का बंद होना और लॉकडाउन खुलने का मतलब हवाई अड्डों का खुलना है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि देश के ज्यादातर कोरोना संक्रमित शहर हवाई अड्डों से जुड़े हैं। इस देश में हवाई जहाज के जरिए ही कोरोना आया। पहले विदेशी और विदेश में रहने वाले एनआरआई कोरोना लेकर आए। फिर घरेलू विमानों के जरिए यह बड़े से छोटे शहरों में फैलता गया।

पूर्वोत्तर में क्यों हो लॉकडाउन?

पूर्वोत्तर कोरोना से तकरीबन मुक्त है। बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में कोरोना के पहुंचने में वक्त लगा है तो इसकी वजह यहां हवाई जहाज वाले बाबुओं का आना-जाना कम रहना है। देश को ऊपर से नीचे अगर पूरब और पश्चिम हिस्सों में बांट कर देखें तो पश्चिम की अमीरी और पूरब की गरीबी कोरोना के संक्रमण में भी साफ देखा जा सकता है। गरीबों तक कोरोना नहीं पहुंचा है इसलिए यह देश बचा हुआ है। जैसे-जैसे यह गरीबों तक पहुंचेगा, वैसे-वैसे कोरना का रूप वीभत्स नजर आएगा। वैसे रिसर्च यह भी कहता है कि मेहनतकश अवाम जिसे विटामिन डी की कमी नहीं होती क्योंकि वह सूर्य की रोशनी में दिनरात मेहनत करता है, उस पर कोरोना का असर अपेक्षाकृत कम रहता है। मेहनतकश अगर बचे हैं या बचेंगे तो उनका मेहनकश होना ही इसके पीछे मूल वजह है।

देश नहीं प्रदेश की बात कर रहे हैं सीएम

प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों के वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग में नीतीश कुमार ने लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में अपनी राय रखी है तो इसके पीछे उस राजनीति का खौफ है जिसके कारण बड़ी तादाद में प्रवासी मज़दूर बिहार लौटे हैं या लौटने वाले हैं। उनका रखरखाव उन्हें चिंतित करता है। वे ‘जो जहां हैं, वहीं रहें’ के पक्ष में हैं। उन्हें लगता है कि प्रवासी मज़दूर कोरोना लेकर आएंगे तो वे संभाल नहीं पाएंगे। इसी तरह केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन जब हवाई अड्डों और ट्रेनों को नहीं खोलने की बात करते हैं तो उनकी चिंता यही है कि जिस शिद्दत से उन्होंने कोरोना मरीजों की संख्या को 500 के आसपास अपने राज्य में रोक रखा है, कहीं उस पर पानी न फिर जाए।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम की मौजूदगी में खुले तौर पर कहा कि पश्चिम बंगाल के साथ राजनीति नहीं की जाए। यह राजनीति राज्य पर केंद्र की मनमर्जी थोपने से जुड़ी है। गृहमंत्रालय अब तक कई बार कड़ी चिट्ठियां पश्चिम बंगाल को लिख चुका है। उद्धव ठाकरे और अशोक गहलौत निश्चित रूप से कोरोना के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे लॉकडाउन को बढ़ाने के हक में हैं।

देशव्यापी लॉकडाउन पर फ़ैसला लेने में डर रही है सरकार

देश का विपक्ष और तमाम विपक्षी दल चाहते हैं कि लॉकडाउन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए गरीबों में खाद्यान्न वितरण, उनकी जेब में रकम और उनके लिए रोजगार खत्म न होने की गारंटी दी जाए। इसके लिए देश के एमएसएमई सेक्टर के लिए विपक्ष कोरोना पैकेज की मांग कर रहा है। आधार यह है कि ऐसे एमएसएमई सेक्टर को कैसे बर्बाद होने छोड़ दिया जा सकता है जो देश की जीडीपी में 30 फीसदी और निर्यात में 48 फीसदी का योगदान देता है। देश में 15 करोड़ रोजगार देने वाला यह सेक्टर लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार झेल रहा है तो उसे सरकार की ओर से मदद क्यों नहीं दी जाए?

महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी प्रांत अपने-अपने प्रदेश में लॉकडाउन जारी रख सकते हैं। जो प्रदेश अपने यहां छूट देना चाहे, वो दे सकते हैं। मगर, राष्ट्रीय स्तर पर उस लॉकडाउन को पूर्वोत्तर के प्रदेश क्यों सहें? वे 10 टॉप टेन राज्य जहां 90 फीसदी कोरोना मरीज हैं, उनके अलावा बाकी राज्य इस लॉकडाउन का आर्थिक दुष्परिणाम क्यों बर्दाश्त करें? चौथे लॉकडाउन के बाद आर्थिक दबाव की स्थिति का ठीकरा कहीं केंद्र सरकार पर न फूटे, इसलिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों की हामी ली जा रही है।

पीएम के साथ वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग में मुख्यमंत्रियों की हामी देशव्यापी लॉकडाउन के लिए नहीं है। क्या कोरोना के प्रभाव से बचे हुए राज्य राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन बढ़ाने के लिए बोलने की हिम्मत दिखाएंगे? कहने का अर्थ यह है कि राज्य अपनी परिस्थितियों के हिसाब से फैसला ले, मगर राष्ट्रीय स्तर के लॉकडाउन के अच्छे या बुरे परिणाम की जिम्मेदारी खुद केंद्र सरकार को लेनी होगी। इसी जिम्मेदारी को प्रांतों के सिर पर थोपने की कोशिश कर रही है मोदी सरकार। क्या चौथे लॉकडाउन पर फैसला लेने में डर रहे हैं नरेंद्र मोदी?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Coronavirus
Lockdown
Lockdown Extension
Narendra modi
Lockdown 4
economic crises
Economic Recession
modi sarkar
Lockdown crisis

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License