NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी का दौर, अस्मिता की राजनीति और गोदी मीडिया की भूमिका
एक न्यूज़ एंकर द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर विवादास्पद टिप्पणी को लेकर लोग तर्क–कुतर्क में लगे हैं। लेकिन खेल कहीं और चल रहा है। इसके पीछे की राजनीति समझिये।
अंशुल त्रिवेदी
23 Apr 2020
modi
फाइल फोटो, साभार : naukarshahi

कॉर्पोरेट मीडिया का आर्थिक कारणों से हमेशा सत्ता पक्ष की तरफ़ झुकाव रहा है। लेकिन पहले सभ्यता की सीमा और तटस्थता का दिखावा ज़रूर रहा है। यह दिखावा भी अपने आप में बहुत ज़रूरी था क्योंकि ये मीडिया को कुछ सवाल तो सत्ता से पूछने पर मजबूर कर देता था। कल से सोशल मीडिया पर एक न्यूज़ एंकर द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर विवादास्पद टिप्पणी को लेकर लोग तर्क – कुतर्क में लगे हैं। लेकिन खेल कहीं और चल रहा है। इसके पीछे की राजनीति समझिये।

मोदी पहले संघ प्रचारक हैं जो देश के प्रधानमंत्री बने जिनका जीवन हिंदुत्व के पूर्णकालिक प्रचार में बीता है।  संघ की राजनीति चुनाव नहीं बल्कि लोगों के दिन-प्रतिदिन के जीवन का उनकी आदतों का हिस्सा बनकर की जाती है। प्रचारक होने के अनुभव से टीवी के लोगों के दैनिक जीवन में प्रभाव को भी भली– भांति जानते हैं और इसका उपयोग करते हैं। नतीजतन जब मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई तो एक नए मीडिया मॉडल का उदय हुआ। प्रचारक होने के नाते उनकी ट्रेनिंग हर स्तर पर प्रतिदिन – घर से लेकर विश्व पटल पर – बेहिचक हिंदुत्ववादी अस्मिता और विचारधारा को तीखा करना और समाज में एक लकीर खींच एक कांस्टीट्यूएंसी – मजोरिटी – के नेता बनने की है। उनको आज के दौर में मीडिया की ताकत का भी बखूबी अंदाज़ा है और वो इसका उपयोग करते हैं।

अस्मिता की राजनीति और मीडिया 

अस्मिता की राजनीति की एक खास बात होती है – वो अपने आप अपने दुश्मन बना लेती है। जब मैं ये परिभाषित करता हूं की मैं कौन हूं तो अपने आप मैं कौन नहीं हूं ये परिभाषित हो जाता है। जैसे जब मैं कहता हूं – “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” या “मैं ब्राह्मण हूं” तो अपने आप ही मेरे और गैर – हिन्दुओं और गैर – ब्राह्मणों के बीच में एक लकीर खिंच जाती है। मोदी के दौर में मीडिया भी इस राजनीति का जरिया और  कैनवस दोनों बन गया। मीडिया में भी एक लकीर खींच दी गई है।

एक तरफ संगठित हिंदुत्ववादी कांस्टीट्यूएंसी के दम पर चलने वाला मीडिया है और एक तरफ़ बाकी। इस कांस्टीट्यूएंसी की “सुनिश्चित टीआरपी” के दम पर ये सारे चैनल आर्थिक आत्मनिर्भरता पा लेते हैं और इस मॉडल का अनुसरण न करने वाले एंकर “ज़ीरो टीआरपी” एंकर कहलाते हैं। इस मीडिया का काम ही दिन – रात – “हिन्दू खतरे में है”, वाली विचारधारा का प्रसार करना है ताकि हिन्दू होने और उसके खतरे में होने का एहसास आपको और मुझे हमेशा होता रहे। यह पहले टीवी पर प्रसारित किया जाता है फिर सोशल मीडिया और वॉट्सएप के जरिए एक इको – सिस्टम से नैरेटिव बनाकर इसको घर – घर पहुंचाया जाता है। पत्रकारिता के स्कूलों में पढ़ाया जाता है की मीडिया का काम सच रिपोर्ट करना है। लेकिन आज के युग सच ‘बनाना’ भी है क्योंकि अधिकतर लोगों के लिए जो उन्हें महसूस होता है वही सच है।

क्या आपने कभी सोचा की लॉकडाउन के वक़्त सरकार ने आपको रामायण ही क्यों दिखाया? भारत एक खोज या संविधान क्यों नहीं  प्रसारित किया? क्योंकि मीडिया आज के दौर में पहचान बनाने का सबसे प्रभावी माध्यम है और जब लॉकडाउन में आपके पास ख़ाली वक़्त है तो सरकार चाहती है की आप संविधान की बात न करे और अपनी धार्मिक पहचान के बारे में देखें, सोचें और बात करें। इससे मेरा आशय धर्म को गलत बताना नहीं बल्कि उसका कैसे हर स्तर पर राजनीतिक उपयोग हो रहा है यह बताना था।

पालघर की घटना और सोनिया गाँधी पर टिप्पणी

पालघर में हिंसक भीड़ के द्वारा दो साधुओं को जान से मारे जाने की खबर आयी। इस मॉब लिंचिंग की घटना पर समाज के कई तबकों से गुस्से की प्रतिक्रया आई। अब वो इंसान की मॉब लिंचिंग पर थी या साधु की यह अलग विषय है। क्या साधु इंसान नहीं होते या आम इंसान की जान की कीमत एक साधु से कम होती है यह भी सोचने का विषय है। लेकिन इस मुद्दे पर भी राजनीति का वही ढर्रा चला – पहले बोला गया की हिन्दू बनाम मुसलमान का केस है। जब वो झूठा पाया गया तो कहा गया की वामपंथी दोषी हैं। जब आरोपियों में से कोई वामपंथी नहीं निकला तब एक अभद्र टिप्पणी से मीडिया का नैरेटिव घुमा दिया गया।

इसलिए कल जब एक टीवी एंकर ने खुलेआम सोनिया गांधी पर पालघर की हत्याओं पर खुश होने और वैटिकन को रिपोर्ट देने के निम्न स्तर के आरोप लगाए तो इसमें आश्चर्यचकित होने की कोई बात नहीं है। अधिकतर मीडिया चैनल इसी राजनीति का हिस्सा हैं। देश में करोड़ों लोग जो हिंदुत्व की राजनीति के समर्थक हैं वो आपस में यही बोलते हैं। उस टीवी एंकर ने  टीवी पर बोल दिया बस यही फर्क है। उसका काम ही यही है। हाँ, इस दौर में इस कड़वे विचार को मीठा बनाने के लिए अटल की कविता और सुषमा स्वराज की वाकपटुता नहीं है। ये मोदी – संबित – रंगोली रनौत जैसे लोगों का दौर है। लेकिन गनीमत है अब भी कम से कम संसद में किसी सदस्य की कनपटी पर बंदूक रख कर  उसको वहां लाने की नौबत नहीं आई है।

अस्मिता की राजनीति का सबसे बड़ा ख़तरा ये है की वह अपने प्रतिद्वंदी से अपने आप को अलग बनाने की कोशिश में या तो उसको अपने जैसा बना लेता है या खुद वैसा बन जाता है। जब समय के पहिये के साथ सत्ता परिवर्तन होगा तब यदि विपक्ष ने भी यही रुख अख्तियार कर लिया तो स्थिति संभाले नहीं संभालेगी। वो इसलिए की समाज में वैचारिक लकीर खींच देने से सत्ता तो मिल जाती है लेकिन उस विभाजन की कीमत देर – सवेर समाज को चुकानी पड़ती है। अस्मिता की राजनीति तो ख़तम नहीं होगी लेकिन उसके प्रभाव की सीमाएं जनता तय करेगी।

बहरहाल, देश के मीडिया का एक पूरा धड़ा लॉकडाउन के दौरान हमें हिन्दू – मुसलमान – ईसाई में अटकाने में ही लगा रहेगा। ताकि कहीं हमारे देश में जन स्वास्थ व्यवस्था पर जन संवाद खड़ा न हो जाए। जब लॉकडाउन ख़तम होगा तो मैं और आप धर्म के बारे में सोचते हुए बाहर निकलेंगे चाहे फिर वो सोनिया गाँधी का हो या राम – लक्ष्मण का। हमारे देश के गरीब लोगों और जन स्वास्थ्य व्यवस्था की बरबादी के बारे में सोचने का मौका आपको नहीं दिया जाएगा। आखिर महामारी और देशव्यापी संकट के वक़्त राजनीति नहीं करनी चाहिए। ये गन्दी चीज होती है।

इसलिए घर बैठकर आराम से रामायण देखिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। आप जेएनयू में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज से एमफिल कर चुके हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Palghar mob lynching
arnab goswami
Narendra modi
BJP
sonia gandhi
Congress
Mumbai
mob lynching
Palghar
Religion Politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप
    21 May 2022
    पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद और उनके परिवार के दर्जन भर से अधिक ठिकानों पर सीबीआई छापेमारी का राजनीतिक निहितार्थ क्य है? दिल्ली के दो लोगों ने अपनी धार्मिक भावना को ठेस लगने की शिकायत की और दिल्ली…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी पर फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज़मानत मिली
    21 May 2022
    अदालत ने लाल को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही जमानत राशि जमा करने पर राहत दी।
  • सोनिया यादव
    यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?
    21 May 2022
    प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़…
  • असद रिज़वी
    उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव का समीकरण
    21 May 2022
    भारत निर्वाचन आयोग राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा  करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश समेत 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। मतदान 10 जून को…
  • सुभाष गाताडे
    अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !
    21 May 2022
    ‘धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं। वे हमारे रास्ते के रोड़े साबित हुए हैं। और उनसे हमें हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिए। जो चीज़ आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License