NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
कमरतोड़ महंगाई को नियंत्रित करने में नाकाम मोदी सरकार 
गेहूं और आटे के साथ-साथ सब्ज़ियों, खाना पकाने के तेल, दूध और एलपीजी सिलेंडर के दाम भी आसमान छू रहे हैं।
सुबोध वर्मा
16 May 2022
Translated by महेश कुमार
inflation

भारत, मुद्रास्फीति के एक घातक दौर से गुजर रहा है, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों की क़मरतोड़ महंगाई ने परिवार के बजट को तबाह कर दिया है और आर्थिक नीतियों को लागू करने वाले दिग्गज अब हालात को सुधारने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमेशा की तरह, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सामान्य संकेतों का प्रदर्शन कर रही है जिसके कि भारतीय काफी अभ्यस्त हो गए हैं – यानि शीर्ष स्तर की बैठकें करना, जिन्हे विशेष रूप से खुद प्रधान मंत्री बुलाते हैं और  ऐसा-वैसा करने के निर्देश देते हैं जिन्हे डरपोक मीडिया सुर्खियों में छापता है। फिर, अचानक यू-टर्न लिया जाता है, और पूरी तरह से एक अलग निर्णय, फिर से डरपोक मीडिया उसे भी सुर्खियाँ देता है और कहानी इसी तरह चलती रहती है।

गेहूं और आटा (गेहूं का आटा) इसका एक उदाहरण है। केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग ने देश भर से जो आंकड़े एकत्र किए हैं उसके अनुसार, आटे की औसत कीमतें 13 मई, 2021 को 28.80 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 13 मई, 2022 को 33.14 रुपये हो गई हैं - यानी 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जोकि एक साल में पूरे एक दशक में सबसे बड़ा उछाल है। आटा कई परिवारों के लिए मुख्य रूप से उत्तर और मध्य भारत में स्टेपल ख़ुराक है। आटे की कीमतों में वृद्धि से गरीबों के परिवार के बजट को भारी नुकसान होगा। दालों या खास मौसमी सब्जियों के विपरीत, कोई भी परिवार गेहूं को प्रतिस्थापित या खाना बंद नहीं कर सकता है और जब तक आटे की कीमतें कम नहीं हो जातीं, तब तक इसका मतलब यह है कि इस तरह की भारी कीमत वृद्धि से होने वाले नुकसान से कोई नहीं बच सकता है।

जैसा कि न्यूज़क्लिक ने पहले बताया था, गेहूं का उत्पादन गिर गया है, खरीद घट गई है, और निर्यात बढ़ गया है क्योंकि सरकार ने व्यापारियों को यूक्रेन युद्ध के बाद संकटमयी वैश्विक बाजारों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया था। 12 मई को घोषणा करने के बाद कि सरकार के प्रतिनिधि, निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई देशों का दौरा करेंगे और आने वाले महीनों में 1 करोड़ टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य निर्धारित करेंगे, 14 मई को अनजान सरकार ने अचानक घोषणा की कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गेहूं का निर्यात तुरंत प्रतिबंधित कर दिया जाता है। 

लेकिन इस बीच कीमतों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।

कुछ अन्य आवश्यक वस्तुओं, विशेष रूप से खाना पकाने के तेलों में जारी कीमतों में वृद्धि से  संकट तेजी से असहनीय पैमाने पर पहुंच रहा है। दूध 50 रुपये प्रति लीटर से ऊपर बिक रहा है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले खाना पकाने का तेल लगभग 200 रुपये प्रति लीटर पर बेचा जा रहा है। कुछ सब्जियां मौसमी महंगाई से गुजर रही हैं जो उन्हें आम नागरिक की पहुंच से बाहर कर रही है। उदाहरण के लिए, आलू 22 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक पर बिक रहा है, जो पिछले साल की इसी समय की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है, जबकि टमाटर की कीमतें दोगुनी से अधिक 38.26 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं।

पिछले पांच वर्षों में मूल्य वृद्धि

पांच साल पहले की तुलना में, कीमतें असहनीय ऊंचाइयों तक पहुंच गई हैं, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है।

(डेटा, उपभोक्ता मामले के विभाग से लिया गया है) 

चावल और गेहूं की कीमतों में जहां 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं आटे की कीमत में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। तुर/अरहर, मूंग और मसूर जैसी कुछ दालों में भी 20-30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन जिस चीज ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, वह है खाना पकाने के तेल की आसमान छूती कीमतों ने, जिनमें से कई ऊपर दिखाए गए दामों के अनुसार दोगुनी हो गई हैं।

लगातार पांच साल के रिकॉर्ड अनाज की फसल के बाद, मोदी सरकार को केवल व्यापारियों का मुनाफा दिखाई दे रहा था। 2020 में, भयंकर महामारी की आड़ में, उन्होंने खरीद प्रणाली को खत्म करने और मुक्त व्यापार, भंडारण और मूल्य निर्धारण की अनुमति देने के लिए कानून लाकर निजी व्यापारियों को सुविधा प्रदान देने का प्रयास किया था। आंदोलित किसानों के एक साल लंबे चले संघर्ष ने सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन इस साल, सरकार ने सोचा कि वह मुक्त निर्यात को प्रोत्साहित करेगी और गेहूं की उच्च वैश्विक कीमतों का लाभ उठाएगी। इस बीच, घरेलू कीमतों में आग लग गई - इसलिए निर्यात को कम करने के लिए वह अब हाथ-पांव मार रही है।

मूल्य वृद्धि केवल खाद्यान्न और खाना पकाने के तेल तक ही सीमित नहीं है। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है, सब्जियों के बीच 'बिग थ्री' सब्जियों की कीमतें – यानि आलू, प्याज और टमाटर - पिछले पांच वर्षों में नाटकीय रूप से बढ़ी हैं। बेशक, मौसमी उतार-चढ़ाव होते हैं, लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी और सब्जी की आपूर्ति के बारे में एक नीतिगत पक्षाघात का संकेत मिलता हैं, जो हमेशा कगार पर रहता है।

(डेटा, उपभोक्ता मामले के विभाग से लिया गया है) 

इसके अलावा, ध्यान दें कि कुछ विविध लेकिन आवश्यक वस्तुएं भी गंभीर मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं। दूध की कीमतों में जहां 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं चाय की पत्तियों में 41 फीसदी और यहां तक कि नमक में भी 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

रसोई गैस और पेट्रोल/डीजल

बदकिस्मती से महंगाई के ज़रिए लूटपाट की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। घरेलू इस्तेमाल वाले 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर की रसोई गैस (एलपीजी) की कीमतों में केवल एक वर्ष में अविश्वसनीय रूप से 431.50 रुपये की वृद्धि हुई है - जो कि 76 प्रतिशत की वृद्धि है। इस बीच, वयवसाय के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 19 किलो का सिलेंडर अब 2,397 रुपये में आता है, जो पिछले साल के 1059.5 रुपये से 126 प्रतिशत अधिक है। (नीचे चार्ट देखें)

इस दौरान, केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी को जारी रखा है। मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले 137 दिनों तक कीमतों पर रोक लगा दी थी। जैसे ही ये चुनाव समाप्त हुए, कीमतें कई दिनों तक रोजाना बढ़ाई गईं। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) द्वारा जारी दैनिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में पेट्रोल की कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक और डीजल की कीमतों में लगभग 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन ईंधनों की कीमतों में वृद्धि का सभी आवश्यक वस्तुओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है क्योंकि इससे परिवहन लागत बढ़ गई है।

अब क्या होगा?

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर अप्रैल के लिए जारी आंकड़ों से पता चला है कि खुदरा मुद्रास्फीति आठ साल के उच्च स्तर यानि 7.79 प्रतिशत को छू गई है। ग्रामीण मुद्रास्फीति 8.38 प्रतिशत की ऊंचाई पर है। इस बीच, ग्रामीण क्षेत्रों में 8.5 फीसदी के साथ खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति 8.38 फीसदी रही है। स्पष्ट रूप से, मूल्य वृद्धि अभी उग्र और बेकाबू है।

18 अप्रैल को जारी अंतिम आंकड़ों के अनुसार, थोक कीमतों में रिकॉर्ड 14.55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आमतौर पर, थोक मूल्य कुछ महीनों के अंतराल के बाद उपभोक्ता या खुदरा कीमतों में परिवर्तित हो जाते हैं। ईंधन (पेट्रोल, डीजल) थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का एक बड़ा हिस्सा होते है, और उनकी वृद्धि आने वाले महीनों में अधिकांश अन्य वस्तुओं की कीमतों को प्रभावित करने वाली है।

व्यापारियों द्वारा (निर्यात को ध्यान में रखते हुए) उच्च कीमतों पर खरीदे गए गेहूं को अब उच्च कीमतों पर घरेलू खुले बाजार में वापस लाया जाएगा। जो लोग पहले से ही अपने राशन कोटे के  गेहूं से वंचित हैं, वे अब खुले बाजारों से अधिक कीमत वाला अनाज खरीदने को मजबूर होंगे।

संक्षेप में कहा जाए तो, तत्काल भविष्य एक गंभीर कीमत की स्थिति को दर्शाता है। संकट के समय में मोदी सरकार ने अपने सामान्य रवैये का प्रदर्शन किया है, और लोगों के पहले से ही संकटग्रस्त जीवन स्तर में और अधिक विनाशकारी आघात दिया है। 

इस भागती/दौड़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका, सरकार द्वारा मुनाफाखोरी और जमाखोरी पर शिकंजा कसना है, जिसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का विस्तार करना होगा ताकि विभिन्न वस्तुओं को इसके दायरे में लाया जा सके (जैसे खाना पकाने का तेल, सब्जियां, दूध, आदि), और गेहूं के साथ-साथ अन्य अनाजों की खरीद में तेजी लाएं। महत्वपूर्ण रूप से, सरकार को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क को कम करने की जरूरत है ताकि कीमतों में कमी आए। इसी तरह, रसोई गैस की कीमतों को नियंत्रित करने और सब्सिडी को बहाल करने की जरूरत है। क्या सरकार यह सब करने को तैयार है? या यह लोगों को भेड़ियों के हवाले कर देना चाहती है?

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Modi Govt Struggles to Control Runaway Price Rise

PRICE RISE
Inflation
LPG Price
petrol price
Fuel Price
PDS
Economy
Narendra modi

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License