NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
कोविड-19
भारत
राजनीति
लॉकडाउन में फंसी मुंबई की आदिवासी आबादी की बदहाली में गुजर रही जिंदगी
बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंबई के हृदयस्थल संजय गांधी नेशनल पार्क में आदिवासी रहते हैं और आजीविका के अभाव में वे गहरे संकट में हैं। 
अमेय तिरोदकर
11 May 2021
लॉकडाउन में फंसी मुंबई की आदिवासी आबादी की बदहाली में गुजर रही जिंदगी

गणेश भोईर मुंबई में केत्किपदा की आरे कालोनी के अपने घर में बेकार बैठे हैं। वह अंधेरी में काम करने जाते थे लेकिन मुंबई में अभी लॉकडाउन लगा है, इसलिए गणेश के पास काम का कोई जरिया नहीं है। "पिछले साल की तरह इस बार भी हम बगैर काम-धंधे के हैं, बिना पैसे के हैं। इससे हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है। अगर यह लॉकडाउन अगले महीने भी जारी रहा तो हम लोग खाएंगे क्या?"  गणेश पूछते हैं।  यह सवाल न केवल गणेश भोईर को परेशान करता है, बल्कि मुंबई में रहने वाली 10,000 आदिवासी आबादी  को  भी  हलकान किए हुए हैं। एक साल बाद दोबारा लगे लॉकडाउन ने उन्हें फिर से असहाय कर दिया है। 

मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है।  लेकिन बहुत  कम लोगों को यह पता है कि मुंबई में आदिवासी भी निवास करते हैं।  यहां आदिवासियों की कुल 222  बस्तियां हुआ करती थीं। लेकिन  उनमें से अब केवल 59 बस्तियां ही रह गई हैं और बाकी नगर के विकास में खप  गई हैं। उन 59 बस्तियों में से 27 आरे कॉलोनी में हैं,  नौ गोराई क्षेत्र में और बाकी संजय गांधी नेशनल पार्क इलाके में निवास करती हैं। 

कोविड-19 की दूसरी मारक लहर की गिरफ्त में आने के बाद मुंबई में 14 अप्रैल से ही लॉकडाउन लगा दिया गया है। इसका मुंबई में  हाशिए पर रहने वाले लोगों  की रोजी-रोटी पर जबरदस्त दुष्प्रभाव पड़ा है। अनुमान है कि 10,000 आदिवासी आबादी इसकी बुरी तरह शिकार हुई है।

प्रकाश भोईर मुंबई नगरपालिका के जल विभाग में काम करते हैं।  वह भी केत्किपदा की आरे कालोनी में ही रहते हैं। चूंकि वे सरकारी सेवक हैं, इसलिए वित्तीय विपदा से फिलहाल बच गए हैं। लेकिन उनके भाई और बहन  इस आपदा का  रोजाना सामना कर रहे हैं।  

"स्थिति इतनी बुरी है कि लोग विहार झील में मछली मार कर किसी तरह अपने को जिंदा रखे हुए हैं। कुछ लोगों ने तो जंगल में सब्जियां उगा रखी हैं। वे सुबह के समय इसे  जंगल के किनारे बेच देते हैं।  लेकिन और लोगों के पास तो यह विकल्प भी नहीं है। इस लॉकडाउन ने बहुत सारे लोगों से उनके काम-धंधे छीन लिये हैं।" प्रकाश भोईर कहते हैं।

आदिवासी परिवारों की महिलाएं घरों में  चौका-बर्तन  का काम करती थीं।  लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है और कोरोना वायरस की दूसरी लहर आई है,  बहुत कम सोसाइटियां इन महिलाओं को अपने यहां काम करने आने की छूट दी हुई हैं। इससे बहुत सारी महिलाओं से उनका काम छूट गया है। 

गोराई गांव की मंगल कचरु भोये उन्हीं महिलाओं में से एक हैं, जो चौका-बर्तन का काम करती  थीं। उनका कहना है,"हाउसिंग सोसाइटियां अपने घरों में  चौका-बर्तन  और साफ-सफाई का काम करने के लिए आने से उन्हें मना कर दिया है। फिर  कई सोसाइटियों में भी कोरोना-संक्रमण के कई-कई मामले आए हैं। इसलिए हम लोग भी काम पर जा कर कोई जोखिम नहीं लेना चाहतीं।  इससे हमारी आमदनी पूरी तरह ठप पड़ गई है।" 

महाराष्ट्र सरकार ने  लोगों के घरों में काम करने वाली इन महिलाओं  की मदद के लिए एक स्कीम लाई है।  लेकिन मंगल को  इस स्कीम के तहत कुछ नहीं मिला है। वह कहती हैं, "हमारे संगठन ने तो हम लोगों के नाम और बैंक खाते का नम्बर दे दिए हैं।  लेकिन अभी तक हम लोगों को कुछ नहीं मिला है।" 

राज्य सरकार ने गरीबों के लिए सरकारी राशन की दुकानों से खाद्यान्न देने की घोषणा की है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। "वे केवल चावल और गेहूं दे रहे हैं। क्या यह एक व्यक्ति के गुजारे के लिए काफी है?" गोराई गांव के अनंत भोए पूछते हैं।  यह मांग की जाती रही है कि राशन की दुकानों से चावल-गेहूं के साथ कम से कम आलू और प्याज भी मुहैया कराये जाएं। अनेक संगठन सरकार से इसको शुरू करने  का अनुरोध करते रहे हैं। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई  पहल नहीं की गई है। 

आदिवासी लोगों को नगदी सहायता देने की योजना भी सरकारी  औपचारिकताओं में फंसी हुई है।  इस स्कीम के तहत प्रति परिवार 2000 रुपये और बुनियादी वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया गया है। लेकिन इनके तहत लाभान्वित होने वाले परिवारों की सूची अभी नहीं बनी है। लिहाजा, इन आदिवासियों को न तो पैसा मिला है और न ही बुनियादी वस्तुएं ही।  बिना किसी सरकारी सहायता के नगदी और रोजमर्रे के जीवन के लिए काम आने वाली वस्तुओं का जुटान आदिवासियों के लिए तो असंभव ही मालूम पड़ता है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Mumbai's Tribal Population Struggles for Livelihood Due to Lockdown

Aarey Colony
Adivasis Mumbai
Maharashtra Lockdown

Related Stories


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License