NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में 'अंकरी' खाने को मजबूर हुए कोइरीपुर बस्ती के मुसहर!
वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने कहा अंकरी एक दाल होती है। ये प्रोटीन का सोर्स है जो चने की तरह और मटर की तरह गाँव के बच्चे सामन्यतया खाते हैं। हालांकि कृषि वैज्ञानिक इसे घास बता रहे हैं। फिलहाल इस खबर को सबसे पहले छापने वाले पत्रकार को प्रशासन ने नोटिस भेज दिया गया है।
रिज़वाना तबस्सुम
27 Mar 2020
कोइरीपुर बस्ती के मुसहर!

वाराणसी: कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए देशभर में लॉक डाउन और धारा 144 के तहत कर्फ्यू की स्थिति है। ऐसे माहौल में सभी को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग तो किसी तरह से जीवन-यापन कर भी ले रहे हैं लेकिन उन लोगों की हालत बद से बदतर हो गई है जो समाज में हाशिए पर हैं। इसमें हमारे देश का मुसहर समाज भी शामिल है।  

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के कोइरीपुर गाँव में कुछ मुसहर लोग गेहूं के खेत में पैदा होने वाली अंकरी नाम के फसल को निकालकर खुद ही खा रहे हैं और अपनी भेड़ बकरियों को भी खिला रहे है। यहाँ की चंद्रावती बताती हैं कि, 'जनता कर्फ्यू वाले दिन बच्चे दिनभर भूखे थे, उस दिन उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला था, दिन भर भूख से इधर-उधर तड़प रहे थे, फिर उसके अगले दिन भी खाने को नहीं मिला, जब उनसे भूख बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो लोग खेत में जाकर अंकरी ही खाने लगे।

सूखी पूड़ी खाकर बिताए तीन दिन

यहाँ के दशरथी बताते हैं कि, 'पास के ही एक दूसरे गाँव में एक व्यक्ति के यहां तेरही हुई थी। कुछ सूखी पूड़ियां बची थीं। वही पूड़ियां लेकर आए, उसी पूड़ी को खाकर कुछ घंटों के लिए पेट की आग शांत हुई। इन्हीं पूड़ियों ने जान बचाई।' दशरथी कहते हैं कि, 'तीन दिन पहले वही आखिरी निवाला भी पेट में गया था।'

भूखे बच्चे.jpg

खेत से आलू बीनकर लाये थे बच्चे

इसी जगह के सोमारू बताते हैं कि, 'बच्चे कई दिन से भूखे थे, पहले बच्चे उस खेत में आलू बीनने भी गए थे, जिसमें से आलू निकाली जा चुकी है, लेकिन कुछ आलू मिल गया, उसे उबालकर खाये। फिर तीन दिन तक कुछ खाने को नहीं मिला और इन बच्चों से भूख बर्दाश्त नहीं हुआ तो ये लोग गेहूं के खेत में चले गए और अंकरी निकालकर खाने लगे।

पूर्व विधायक और प्रशासन ने भिजवाया राशन

मुसहर समाज अंकरी खा रहे हैं, ये बात वहाँ के कुछ युवकों को मालूम चली तो उन्होने तुरंत  इसकी सूचना पिंडरा एसडीएम मणिकंडन को दी। जिनके निर्देश पर शाम के वक्त बड़ागांव थानाध्यक्ष संजय सिंह व ग्राम प्रधान प्रतिनिधि शिवराज यादव ने वनवासी बस्ती में खाद्यान पहुंचाया। इस बात की जानकारी जब पिंडरा के पूर्व विधायक अजय राय को हुई तो उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को तत्काल मौके पर खाद्यान्न सामग्री लेकर भेजा।  

बड़ागांव ब्लाक से सटी हुई है मुसहर बस्ती

कोइरीपुर गाँव का मुसहर बस्ती बड़ागांव ब्लाक से सटा हुआ है। यह बस्ती कुड़ी मोड़ (जगह का नाम) पर बसी है। यहां मुसहरों के लगभग 17 परिवार हैं। इनमें पांच परिवार ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए गांव से पलायन कर गए हैं। बाकी चंद्रावती, पूजा, सोनू, चंपा, अनीता, भोनू, चमेला, मंगरु, कल्लू, दशरथी, राहुल यहाँ पर रहते हैं। इनके बच्चे  रानी, सीमा, सुरेंद्र, पूजा, विशाल, आरती, निरहु, अर्जुन, चांदनी, सोनी, निशा, गोलू को देखकर लगता है कि ये कब से भूखे हैं।

मुसहर समाज.jpg

सरकार बदली लेकिन नहीं बदली मुसहर समाज की स्थिति

मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले समाजसेवी डा.लेनिन रघुवंशी ने बुधवार को मुसहर बस्तियों में राशन पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें रास्ते में सुरक्षा बलों ने रोक दिया। डा.लेनिन ने कहा कि बनारस जिले में दर्जन भर मुसहर बस्तियां हैं जहां रहने वाले लोग ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं अथवा दोना-पत्तल बनाते हैं। सरकार किसी की रही हो, इस समुदाय को आज तक कुछ भी नसीब नहीं हुआ। चुनाव के दौरान हर दल के नेता आते हैं और कहते हैं कि स्थितियां बदलेंगी। मगर आज तक इनके हालात नहीं बदले। लॉकडाउन होने के कारण इनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही है।

जिस झोपड़ी में रहता है पूरा परिवार, उसी में पलती हैं भेड़-बकरियां

इन परिवारों की दयनीय स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि, 'जिस प्लास्टिक की झोपड़ी में करीब दस लोगों का पूरा परिवार रहता है, उसी झोपड़ी में इनकी भेड़-बकरियां भी पलती हैं, ना तो इनके पास रहने के लिए घर है और ना ही जानवरों को देने के लिए चारा।

खबर छापने वाले पत्रकार को मिला नोटिस

इस खबर को सबसे पहले दैनिक अखबार जनसंदेश टाइम्स में लिखा गया, जिसपर वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा ने वहाँ के स्थानीय संपादक को जवाब दिया है कि, 'मैंने भी इस खबर पर वर्क किया है ये बच्चे घास नही बल्कि गांव में होरहा खा रहे थे।' जनसंदेश टाइम्स के संपादक विजय विनीत को व्हाट्सप्प पर भेजे गए मेसेज में डीएम वाराणसी लिखते हैं कि, 'इस गांव में बच्चे फसल के साथ उगने वाली अखरी दाल और चने की बालियां तोड़ कर खाते हैं। ये बच्चे भी अखरी दाल की बालियां खा रहे है।'

गुरुवार को प्रशासन ने जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय और संवाददाताओं को कानूनी कार्यवाही का नोटिस थमा दिया। नोटिस में कहा गया है कि वे खबर का खंडन छापें अन्यथा उन पर कार्यवाही की जाएगी। वाराणसी के डीएम कौशल राज शर्मा ने कहा है कि शुक्रवार तक यदि अखबार ने खंडन नहीं जारी किया ये कहते हुए कि, 'जो बच्चे खा रहे थे वो घास नहीं थी और ये जो लोग है वो घास पर जिंदा नहीं हैं, उनको अनाज अवेलेबल है। अगर स्पष्ट खंडन नहीं जारी करते हैं तो उस पर कार्रवाई होगी और उसमें प्रेस ट्रस्ट के माध्यम से हो या क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी और महामारी कानून के तहत मुकदमा किया जाएगा।'

अंकरी प्रोटीन का सोर्स: जिलाधिकारी वाराणसी

गुरुवार को ही वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, 'अंकरी नाम एक दाल होती है जो सामान्यता खेतों में पाई जाती है और गेहूं के बीच में लग जाती है, उसमें मटर के दाने जैसे बहुत-बहुत छोटी-छोटी फली होती है, उसी को बच्चे खा रहे थे। जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा कहते हैं कि, 'वो जो अंकरी के बाली होते हैं, उसकी फली होती है, उसको तोड़कर मेरे द्वारा भी खाया गया, मेरे बच्चे के द्वारा भी खाया गया और हम लोगों ने देखा कि ये प्रोटीन का सोर्स है जो चने की तरह और मटर की तरह गाँव के बच्चे सामन्यतया खाते हैं और बचपन में हम सब लोग खाते रहे हैं।'

अपने बच्चे के साथ वाराणसी डीएम कौशल राज शर्मा.jpg

अंकरी- घास या दाल?

अंकरी का बोटैनिकल नाम विसिया हृष्टा है। इसकी दो प्रजातियां हैं। एक है लाल और दूसरी सफेद। मूलतः यह घास है। यह घास बीज के साथ मिलकर खेतों में पहुंच जाती है। इसे खाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने संस्तुति नहीं दी है। आमतौर पर यह घास गेहूं, चना, मसूर, खेसारी, मटर के साथ उगती है। जिस फसल में उगती उसका उत्पादन चालीस फीसदी कम कर देती है।

बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर रमेश कुमार सिंह कहते हैं कि, 'अंकरी घास है। कृषि वैज्ञानिक इसे खर-पतवार की श्रेणी में रखते हैं। इसे खाने के लिए रिकमेंड नहीं किया गया है। यह इंसान के खाने योग्य नहीं है। मवेशियों को अधिक खिलाने पर डायरिया की समस्या हो जाती है। उन्होंने बताया कि अंकरी में कैनामिनीन पाया जाता है, जो अमीनो एसिड बनाने वाले प्रोटीन को प्रभावित कर देता है। इसे खाने से लीवर और फेफड़ों में सूजन की समस्या आ जाती है। पाचन क्रिया में दिक्कत होती है।

Coronavirus
COVID-19
Corona Crisis
varanasi
poor workers
Poor People's
India Lockdown
Narendra modi

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License