NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन की जीत का जश्न कैसे मना रहे हैं प्रवासी भारतीय?
किसानों की जीत का जश्न न सिर्फ भारत में मनाया गया, बल्कि विदेशों में बसने वाले भारतीय लोगों ने भी अपनी खुशी का इज़हार किया है। प्रवासी भारतीयों ने किसान आंदोलन के विजयी रूप में स्थगित होने के बाद बड़े और छोटे स्तर पर जश्न मनाया।
शिव इंदर सिंह
14 Dec 2021
kisan andolan
Image courtesy : The Indian Express

केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की सभी मांगें मान लिए जाने के लिखित आश्वासन के बाद संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा आंदोलन को स्थगित कर दिया गया है, जिसे किसानों की जीत के रूप में देखा जा रहा है। इस जीत का जश्न न सिर्फ भारत में मनाया गया, बल्कि विदेशों में बसने वाले भारतीय लोगों ने भी अपनी खुशी का इज़हार किया है। प्रवासी भारतीयों ने गत 26 नवंबर को दिल्ली के बॉर्डरों पर आंदोलन के एक साल होने और आंदोलन के विजयी रूप में स्थगित होने के बाद बड़े और छोटे स्तर पर जश्न मनाया। 

प्रवासी भारतीय इसे अहंकारी सरकार पर देश के किसानों-मज़दूरों की जीत के रूप में देख रहे हैं।

कनाडा में भारतीय मूल के पत्रकार और रेडीकल देसी के सम्पादक गुरप्रीत सिंह ने अपने मीडिया संस्थान की तरफ से किसान आंदोलन की जीत की खुशी और उसके एक साल पूरे होने पर साल 2022 का एक कैलेंडर जारी किया है, जो बिल्कुल अलग तरह का कैलेंडर है। इस कैलेंडर में किसान आंदोलन से जुडी व आंदोलन में घटी घटनायों से सम्बन्धित ख़ास तरीखों का ज़िक्र किया गया है जैसे कि 13 जनवरी 2021 को लोहड़ी वाले दिन सरकार के तीनों कानूनों की प्रतियाँ जलाना, 26 जनवरी को लाल किले वाली घटना, 16 फरवरी को दिशा रवी की गिरफ़्तारी की घटना, 23 फ़रवरी को ब्रिटिश भारत में किसान आंदोलन के बड़े नेता सरदार अजीत सिंह का जन्मदिन आदि। 

गुरप्रीत सिंह बताते हैं, “किसान आंदोलन ने एक नये इतिहास का सृजन किया है। आमतौर पर कैलेंडर में आम दिनों या छुट्टियों का ज़िक्र होता है पर इस कैलेंडर की खासियत यह है कि इसमें आंदोलन के दौरान घटी घटनायों का ही ज़िक्र है यह पूरी तरह किसान आंदोलन को अर्पित है।”

गुरप्रीत आगे बताते हैं, “प्रवासी भारतीय शुरु से ही इस आंदोलन से पूरी शिद्दत के साथ जुड़े रहे हैं। लोगों ने चौराहों पर, अपनी दुकानों/होटलों और सार्वजनिक जगहों पर हाथ में किसानी झण्डे पकड़ कर आंदोलन से अपनी एकजुटता जाहिर की है। भारतीय दूतावासों के आगे भी काले कानूनों के विरुद्ध प्रदर्शन होते रहे हैं। प्रवासी भारतीय खासकर विदेशों में बसने वाले पंजाबी ज़ज्बाती तौर पर पंजाब से जुड़े होने के कारण उन्होंने इस आंदोलन के पक्ष में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। भारत सरकार द्वारा अपने दूतावासों के जरिए आंदोलन में हिस्सा लेने वाले प्रवासी भारतीयों को डराने की कोशिशें भी हुई। कभी उन्हें ‘काली सूची’ में डालने का डर दिखाया गया। कभी उनकी ओ.सी.आई. रद्द करने की बात कह कर डराया गया।

किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे कई प्रवासियों के मल्टीपल एंट्री वीज़ा कैंसिल कर दिए गये। आंदोलन के हिमायतीयों को डराया जाता रहा कि यदि वे किसान संघर्ष में शामिल हुए तो उन्हें भारत आने का वीजा नहीं मिलेगा। पिछले दिनों अमेरिका में रहने वाले पंजाबी दर्शन सिंह धालीवाल को दिल्ली हवाई अड्डे से वापिस मोड़ा गया क्योंकि उनके द्वारा सिंघू बार्डर पर एक लंगर चलाया गया था।”

यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सोशल मीडिया पर भी किसान आंदोलन को प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़े स्तर पर समर्थन मिलता रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉक्टर दर्शनपाल का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा व अन्य देशों में प्रवासी भारतीयों द्वारा किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया गया। पिछले कई महीनों से प्रवासी भारतीय अपने स्तर पर खुद ही रैलियां और रोष-प्रदर्शन करते रहे हैं। हाल ही में मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भी कृषि कानूनों के विरोध में मोदी को काले झंडे दिखाए गए थे।

अमेरिका में किसान आंदोलन के हिमायती डॉक्टर सुरेंद्र गिल बताते हैं, “जब मोदी अमेरिका यात्रा पर आए तो 16 सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने साझे तौर पर मोदी के विरुद्ध और आंदोलन के पक्ष में प्रदर्शन किया था। हम किसानों के हक में भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन करते रहे हैं और लम्बे समय से व्हाइट हाउस के सामने सांकेतिक प्रदर्शन करते रहे हैं। हर रोज़ हमारे पांच लोग किसानी झंडे व तख्तियां लेकर व्हाइट हाउस के सामने खड़े हो जाते थे। हमारे इस तरह करने से किसानों की आवाज़ पूरी दुनिया में पहुँचने में आसानी हुयी और इस सब के चलते हमारे देश के नेताओं ने भी बहरी भारतीय हकूमत को भारतीय किसानों के मुद्दे हल करने के लिए गुहार लगाई। आज जब भारतीय सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा तो इस की खुशी हमें दूर बैठे लोगों को क्यों न हो? इस खुशी में अनेक धार्मिक स्थानों पर भगवान के शुकराने के लिए अरदासे हो रही हैं। अमेरिका में भी भंगड़े पाए गये। मुझे लगता है कि यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करेगा अब लोगों में तानाशाह नेताओं के विरुद्ध बोलने की हिम्मत पैदा होगी।”

जब हमने सुरेंदर गिल से पूछा कि भारत के मीडिया का बड़ा हिस्सा तो यह प्रचार कर रहा है कि विदेशों में किसान आंदोलन को हिमायत करने वाले सभी खालिस्तानी हैं तो वह हंस कर कहते हैं, “वो कौन सा झूठ है जो भारत के गोदी मीडिया ने नहीं बोला। खालिस्तानीयों का एक छोटा सा हिस्सा हो सकता है पर बड़ी गिनती में किसान संघर्ष के पक्ष में खड़े वो लोग थे जिन्हें अपने पुराने देश और उस देश के लोगों से मुहब्बत है। हमारे प्रदर्शनों में एक भी अलगाववादी झंडा नहीं था न ही ऐसा करने की इजाजत थी सिर्फ किसानी झंडा और किसानी मांगें थीं हमारी”

कनाडा के मैनीटोबा में `इंडियन फ़ार्मर्स एंड वर्कर्स स्पोर्ट्स` ग्रुप ने भी किसान संघर्ष की जीत के जश्नों को धूम धाम से मनाया है। कनाडा के एडमिनटन के पत्रकार कुलमीत सिंह संघा जानकारी देते है, “किसान संघर्ष की जीत का जश्न न सिर्फ प्रवासी भारतीयों ने ही बल्कि कनाडा के गौरे लोगों ने भी साथ आकर मनाया। ढोल धमाके से जहाँ खुशीयाँ मनाई गयीं वहीं 700 से ऊपर शहीद हुए किसानों को भी याद किया गया।”

आस्ट्रेलिया के सिडनी में रहने वाले सीनियर सिटीजन मनजीत सिंह तो खुशी में फुले नहीं समा रहे थे। वे अपनी खुशी को शब्दों में बयान करते हुए वह कहते हैं, “इस संघर्ष की जीत एक नई सुबह की ओर इशारा करती है। मुझे लगता है यह आंदोलन हमें हकों के लिए लड़ना सिखा कर गया है। आंदोलन ने हमें सबक दिया है कि हुक्मरान कितना भी ज़ालिम क्यों न हो पर उस को लोगों के आगे एक न एक दिन झुकना ही पड़ता है। किसान आंदोलन ने लोगों में साम्प्रदायिक सद्भावना पैदा की है और सभी हुकूमती साजिशों को फेल किया है। इस आंदोलन ने एक बार फिर दुनिया को पंजाब की क्रांतिकारी विरासत के दर्शन करवाये हैं।”

ये भी देखें: जीत कर घर लौट रहा है किसान !

kisan andolan
New Farm Laws
Farmers' victory
NRI
Non Resident Indian
Narendra modi
Modi government

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License