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नगालैंड व कश्मीर : बंदूक को खुली छूट
इन मुठभेड़ हत्याओं के विरोध में आफ़्सपा को हटाने और सेना को बैरकों में वापस भेजने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। नगालैंड, मणिपुर व मिज़ोरम में यह आवाज़ तेज़ हो रही है।
अजय सिंह
08 Dec 2021
Funeral
नगालैंड में मारे गए नागरिकों का अंतिम संस्कार। फोटो साभार: Telegraph India

नगालैंड में 5 दिसंबर 2021 को और भारत के हिस्से वाले कश्मीर में 14 नवंबर व 24 नवंबर 2021 को तथाकथित मुठभेड़ों की जो घटनाएं घटीं, उनमें क्या समानता है? यही कि दोनों जगह सेना की बंदूकों को खुली छूट मिली है कि वे गोलियों की बौछार पर भारतीय नागरिकों को हलाक कर दें। सेना को यह छूट सशस्त्र बल विशेष अधिकार क़ानून (आफ़्सपा, 1958) के तहत मिली हुई है, जो सशस्त्र बलों को ‘विशेष अधिकार’ और ‘विशेष छूट’ देता है। यह क़ानून सशस्त्र बलों को क़ानूनी जवाबदेही और दंडात्मक कार्यवाही से मुक्त रखता है।

यह क़ानून (आफ़्सपा) 1958 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के समय देश की संसद ने बनाया था। तब से यह जस-का-तस चला आ रहा है।

इस अलोकतांत्रिक व दमनकारी क़ानून को रद्द करने की मांग नागरिक समाज व मानवाधिकार समूह लंबे समय से करते रहे हैं। आफ़्सपा को रद्द करने की मांग को लेकर मणिपुर की कवि व मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने 16 साल तक, वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2016 तक, इंफाल में भूख हड़ताल की थी।

नगालैंड में 5 दिसंबर को मोन ज़िले के ओटिंग नामक क़स्बे में सेना ने तथाकथित आतंकवादियों/उग्रवादियों की मौजूदगी बतायी और मुठभेड़ दिखाकर 14 नागरिकों को, जो पूरी तरह निहत्थे थे, मार डाला। सेना का झूठ जल्दी पकड़ में आ गया। पता चला कि मारे गये लोगों में कई कोयला खान मज़दूर थे, जो काम के बाद अपने घर लौट रहे थे। बाक़ी आम नागरिक थे।

नगालैंड के नागरिक समाज ने इस घटना को नस्ली जनसंहार (जेनोसाइड) कहा है। ख़ास बात यह है कि नगालैंड सरकार पुलिस ने भारतीय सेना के ख़िलाफ़ एफ़आईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज़ की है, जिसमें कहा गया है कि सेना ने जानबूझकर—इरादतन—नागरिकों की हत्या की। यह एफ़आईआर मोन ज़िले के तिज़ित थाने में दर्ज़ की गयी है।

सेना का ऐसा ही मुठभेड़ी झूठ कश्मीर में भी बेनक़ाब हुआ। कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 14 नवंबर और 24 नवंबर को दो अलग-अलग मुठभेड़ दिखाकर सेना ने सात भारतीय नागरिकों को मार डाला। वे आम लोग थे। यहां भी सेना ने वही प्रचार चलाया कि मारे गये लोग आतंकवादी/मिलिटेंट/पाकिस्तानी थे।

इन मुठभेड़ हत्याओं के विरोध में जनता श्रीनगर की सड़कों पर उतरी, और जन दबाव के चलते सेना को मारे गये सात लोगों में से कम-से-कम तीन की लाशें उनके परिवारवालों को सौंपनी पड़ी। श्रीनगर प्रशासन ने मुठभेड़ हत्या की एक घटना की जांच कराने का आश्वासन दिया है। प्रशासन ने एक प्रकार से मान लिया है कि यह मुठभेड़ संदेह के दायरे में है।

इन मुठभेड़ हत्याओं के विरोध में आफ़्सपा को हटाने और सेना को बैरकों में वापस भेजने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। नगालैंड, मणिपुर व मिज़ोरम में यह आवाज़ तेज़ हो रही है। देश के अन्य हिस्सों में भी यह मांग उठ रही है। कश्मीर की जनता यह मांग लंबे समय से करती रही है। सवाल है, सेना पर कौन लगाम कसेगा?

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Nagaland
Nagaland Killings
Kashmir crises
AFSPA
NDA Govt
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North East
Fake encounter

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