NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नंद कुमार बघेल की गिरफ़्तारी: भूपेश बघेल का नैतिक साहस है या तुष्टीकरण का दांव?
नंद कुमार बघेल की राजनैतिक विचारधारा हमेशा से दलितों, वंचितों और पिछड़ों की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक दशा की उपज से प्रेरित बल्कि उद्वेलित रही है। सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय नंद बघेल की असहमतियाँ अपने बेटे की राजनैतिक विचारधारा से भी हमेशा रही हैं।
सत्यम श्रीवास्तव
08 Sep 2021
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (बाएं) और उनके पिता नंद कुमार बघेल (दाएं)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (बाएं) और उनके पिता नंद कुमार बघेल (दाएं)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक साहसी कदम उठाते हुए खुद अपने पिता नंद कुमार बघेल को भड़काऊ भाषण देने और सामाजिक सौहाद्र बिगाड़ने की कोशिश के अपराध में गिरफ्तार किया है। हिंदुस्तान के मौजूदा राजनैतिक परिदृश्य में भूपेश बघेल ने एक लंबी लकीर खींचकर निष्पक्षता के मानक तय कर दिये हैं। जहां व्यक्तिगत रिश्ते-नातों से कहीं ज़्यादा ज़रूरी प्रदेश की कानून व्यवस्था और देश के सामाजिक सौहाद्र को तवज्जो दी गयी है। निस्संदेह भूपेश बघेल इस निर्णय पर पहुँचने से पहले कई स्तरों पर गंभीर द्वंद्व से गुजरे होंगे। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ‘पिता के रूप में वह नंद बघेल जी का सम्मान करते हैं लेकिन कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है’।

86 वर्ष के नंद कुमार बघेल को मंगलवार, 7 सितंबर को दिल्ली से गिरफ्तार कर रायपुर ले जाया गया जहां उन्हें 15 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। यह कार्रवाई सर्व ब्राह्मण समाज की शिकायत के आधार पर की गयी है।

नंद कुमार बघेल की राजनैतिक विचारधारा हमेशा से दलितों, वंचितों और पिछड़ों की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक दशा की उपज से प्रेरित बल्कि उद्वेलित रही है और इसी के अनुसार उन्होंने अपना सार्वजनिक  जीवन जिया है। ब्राह्मणवाद के खिलाफ उनके तेवर हमेशा से ऐसे ही रहे हैं। सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय नंद बघेल की असहमतियाँ अपने बेटे की राजनैतिक विचारधारा से भी हमेशा रही हैं।

दिसंबर 2020 में जब भूपेश बघेल ने प्रदेश में ‘रामपथ-गमन मार्ग’ बनाने की घोषणा और उससे जुड़े हुए अभियान की शुरूआत की तो उसके खिलाफ खुद उनके पिता नंद बघेल एक मुखर विरोधी आवाज़ बनकर सामने आए। उन्होंने कई बार राहुल गांधी और कांग्रेस के हिन्दुत्व के प्रति नरम रवैये को भी निशाना बनाया है और उसकी मुखालफत की है। धार्मिक कर्म-कांडों और पाखंडों के खिलाफ आक्रामक और अंबेडकर, पेरियार की विचारधारा से संचालित अपना सार्वजनिक जीवन जीते रहे हैं।

उन पर यह आरोप लग रहा है कि उनके एक बयान से समाज में मौजूद ‘धार्मिक व जातीय आधार पर सद्भावना’ पर नकारात्मक असर होगा। इससे व्यापक समाज में वैमनस्य का भाव पैदा होगा। उल्लेखनीय है कि इस आशय का एक बयान उन्होंने उत्तर प्रदेश में दिया है। इस बयान में उन्होंने स्पष्ट रूप से बिना किसी लाग लपेट के यह कहा है कि ‘ब्राह्मणों को खुद में सुधार कर लेना चाहिए अन्यथा उन्हें वहीं भेज दिया जाएगा जहां से वो आए थे। राहुल सांकृत्यायन की स्थापना का सहारा लेते हुए हुए उन्होंने ब्राह्मणों को विदेशी बताया और उन्हें ‘गंगा से वापस वोल्गा’ भेजने की बात भी कही है जहां से वो कभी आए थे’।

हालांकि यह सिद्धान्त अभी तक अंतिम रूप से स्वीकार नहीं किया गया है कि हिंदुस्तान के इस विशाल भूखंड पर आर्य (ब्राह्मण खुद को जिनका वंशज मानते हैं) विदेश से आए थे लेकिन इस सिद्धान्त को अब तक खारिज भी नहीं किया गया है।

अद्यतन शोध हालांकि अब इसकी पुष्टि करते हैं कि आर्य हिंदुस्तान के नेटिव यानी मूल निवासी तो नहीं हैं। इस सिद्धान्त को देश के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्र संग्राम सेनानी जवाहरलाल नेहरू जैसे इतिहास के गहन अध्येययता भी मानते थे कि हिंदुस्तान आर्यों का मूल स्थान नहीं है।

नंद बघेल के इस बयान से राजनैतिक तौर पर एक जाति- विशेष के उन लोगों की भावनाएं ज़रूर आहत हुई होंगीं जिन्होंने इस बयान को सुना होगा। संभव है एक मुख्यमंत्री के पिता की गिरफ्तारी के बाद यह बयान ज़्यादा चर्चा में आयेगा और जितना ज़्यादा चर्चा में आयेगा उतनी संख्या उस जाति विशेष के लोगों की बढ़ती जाएगी जिनकी भावनाएं आहत होंगीं। अगर बयान पर इतना बवाल न होता तो ये भी संभव था कि इस बात को कोई महत्व ही नहीं देता। लेकिन फिर यह भी हो सकता था कि इस बयान का राजनैतिक इस्तेमाल खुद भूपेश बघेल और उनकी कांग्रेस के खिलाफ समय आने पर किया जाता। क्योंकि राजनीति में कोई मुद्दा कभी अप्रासंगिक नहीं होता।

प्रथम दृष्टया इस बयान में संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता निहित है। किसी व्यक्ति को एक तरह के विकासवादी सिद्धान्त को सार्वजनिक रूप से कहने की आज़ादी है। अगर उसे उस जाति-विशेष के लोगों के प्रभुत्व से असहमति है तो उसे भी अभिव्यक्त करने की इजाजत है और अगर उसे लगता है कि इस जाति-विशेष के वर्चस्व की वजह से पिछड़े और वंचितों के उत्पीड़न की परिस्थितियाँ निर्मित हुई हैं तो यह बयान करने की भी छूट है। ज़रूर, यह देखना कानून-व्यवस्था का काम है कि इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य महज़ सामाजिक -वैमनस्य फैलाना है या यह शोषण के विरुद्ध की जा रही अभिव्यक्ति है और क्या इस बयान मात्र से किसी तरह की हिंसा हुई है या नहीं? क्योंकि ऐसी अभिव्यक्तियाँ होना कोई नयी बात नहीं है बल्कि ऐसी अभिव्यक्तियों से किसी देश के लोकतन्त्र की परिपक्वता का अंदाज़ा लगाया जाता है।

मौजूदा हिंदुस्तान में अमूमन हर रोज़ एक अदने से कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष पदों पर बैठे लोग एक खास मजहब और सत्तासीन दल के आलोचकों को पाकिस्तान भेजते रहते हैं उन्हें देश निकाला देते रहते हैं लेकिन उन भेजने वालों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती। ऐसा नहीं है कि इन बयानों से किसी की भावनाएं आहत नहीं होतीं। यहाँ मसला महज़ अलग- अलग पार्टियों की कार्यशाली या कानून-व्यवस्था के प्रति उनके रवैये का नहीं है बल्कि उस संविधान का है जो इस धरती पर लागू है। इसे समाज में बढ़ती असहिष्णुता या असहमतियों के प्रति घटती उदारता के मापक के तौर पर ज़रूर देखा जा सकता है लेकिन कोई कानूनी प्रकरण बनाए जाने लायक ऐसे बयानों को नहीं समझा जाता है।

इसके उलट जब एक खास मजहब के लोग अपने देश और राज-काज पर कोई सवाल उठाते हैं या तक़रीर करते हैं तब वह मामला बहुसंख्यकों की भावनाओं के खिलाफ बतलाते हुए गैर कानूनी ढंग से उन पर कार्रवाइयां होती हैं। हालांकि देश का सर्वोच्च न्यायालय कई बार इस मामले में कह चुका है कि महज़ किसी बयान के आधार पर किसी को अपराधी करार नहीं दिया जा सकता। यह देखना ज़रूरी है कि क्या उस बयान से या उसके बाद त्वरित रूप से कोई हिंसा की घटना तो नहीं हुई।

नंद कुमार बघेल के मामले में उनके बयान के बाद ऐसी किसी हिंसा की घटना की कोई खबर नहीं है। अपने बयान में वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मुलाक़ात की बात करते हुए भी नज़र दिखलाई दे रहे हैं। वो कह रहे हैं कि ‘वो प्रदेश के मुख्यमंत्री से कहेंगे कि एक जाति विशेष के लोगों को प्रभावशाली भूमिकाएँ देना बंद करें’। अगर नंद कुमार बघेल का इरादा अपने बयान के मार्फत एक जाति-विशेष के खिलाफ हिंसा को उकसाना होता तो वह प्रदेश के मुख्यमंत्री से औपचारिक मुलाक़ात की बात नहीं करते।

तब मामला क्या उसी जाति-विशेष के तुष्टीकरण का है? जिसके लिए मायावती ने मंगलवार को हुए बौद्धिक सम्मेलन में पिछड़ों और वंचितों की ऐतिहासिक विभूतियों के यशोगान से किनारा कर लेने का संकल्प किया। जिस जाति-विशेष और विशेष जातियों के पुंज के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी की राजनीति पैदा हुई आज उसी जाति विशेष के लिए अपने ही मौलिक और मूल विचारों से ऐसी दूरी बनाने की तमाम कोशिश भी अंतत: प्रभुत्व वर्ग के ‘तुष्टीकरण’ की राजनीति ही कही जाएगी।

क्या अब हिंदुस्तान की व्यावहारिक राजनीति में किसी भी ऐसी विचारधारा के सैद्धान्तिक प्रस्थान बिन्दु का लोप हो चुका है जिससे किसी राजनैतिक दल की बुनियाद का निर्माण होता था? हिन्दुत्व की सर्वव्यापी राजनीति का असल मकसद एक ‘जाति विशेष’ की सर्वोच्चता सिद्ध किए जाने की राजनीति में परिणित हो चुकी है?

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां अभी भी जाति-समीकरण राजनीति का क्रूर यथार्थ और आवश्यक बुराई नहीं बना है और अगर होता भी है तो इसके केंद्र में ‘आदिवासी समुदाय’ रहा है जिसके आधार पर इस अपेक्षाकृत छोटे राज्य का गठन हुआ था। ऐसे राज्य में भूपेश बघेल को पिछड़ा वर्ग का नेता करार दिये जाने की राष्ट्रव्यापी मुहिम चलाई गयी तभी से ये अंदेशे मिलने शुरू हो गए थे कि यह प्रदेश भी जो अब तक कम से कम जाति के दुराग्रहों से मुक्त रहा उसके दिन अब लद गए हैं।

संकीर्णता चाहे धर्म की हो, मजहब की हो या क्षेत्र की हो या भाषा की या नस्ल की। आखिर तो संकीर्णता है। ऐसी संकीर्णताएं एक उदार लोकतन्त्र का निर्माण नहीं करतीं बल्कि प्रतिक्रियाएँ पैदा करती हैं। इन संकीर्णताओं के वशीभूत उठाया गया कोई भी कदम या कोई भी कार्रवाई अंतत: प्रतिक्रियात्मक होती है।

क्या भूपेश बघेल के इस साहस में एक चतुराई भी निहित है जो मौजूदा राजनीति में बड़ी लकीर खींचने को आतुर है। अगर ऐसा नहीं है तो उनके ही प्रदेश में उनके ही कार्यकाल में उन आदिवासी परिवारों पर निरंतर अत्याचार की घटनाएँ हो रही हैं जो ईसाइयत को स्वीकार कर चुके हैं। धर्म बदल चुके आदिवासी परिवारों को हिंदुत्ववादी ताकतों और संगठनों द्वारा निरंतर उत्पीड़ित किया जा रहा है। ऐसे उत्पीड़न को रोकने में प्रदेश की पुलिस को भी कोई दिलचस्पी नहीं है। सामाजिक बहिष्कार जैसी सजाएं खुलेआम ऐसे परिवारों को दी जा रही हैं जो ईसाइयत में भरोसा रखते हैं कई पीढ़ियों से इसी पंथ के अनुयायी हैं।

जिस दिन नंद कुमार बघेल का मामला सामने आया ठीक उसी दिन प्रदेश की राजधानी में एक पुलिस थाने के अंदर दक्षिणपंथी समूह ने एक अधेड़ उम्र के पादरी को बेतहाशा पीटा। उस पादरी पर यह आरोप लगाया गया कि वो जबरन धर्मांतरण करवाते हैं। ज़रूर, इस घटना का त्वरित संज्ञान मुख्यमंत्री ने लिया और दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की लेकिन सवाल अभी भी वही है कि जब ऐसी ही खबरें हर रोज़ दक्षिण या उत्तर बस्तर से आ रही हैं तब मुख्यमंत्री ने इन्हें रोकने में मुस्तैदी क्यों नहीं दिखलाई और प्रदेश की पुलिस ने इन परिस्थितियों को समय रहते क्यों नहीं रोका?

इन घटनाओं को सत्ता का भी खुला संरक्षण माना गया क्योंकि हिन्दुत्व को लेकर प्रदेश की सत्तासीन पार्टी के मन, वचन और कार्य ठीक वही हैं जो इसकी विपक्षी पार्टी भाजपा के हैं। बल्कि अगर मरहूम अरुण जेटली के हवाले से कहें तो भाजपा हिन्दुत्व की ओरिजिनल पार्टी हैं ऐसे में कोई दूसरी पार्टियों को इसी राह पर चलना होगा।

अब देखना दिलचस्प होगा कि भूपेश बघेल द्वारा उठाया गया यह कदम महज़ एक जाति-विशेष की नाराजगी से बचने के लिए तुष्टीकरण की कवायद साबित होती है या इससे पूरे प्रदेश में ऐसी तमाम शक्तियों पर लगाम कसी जा सकेगी जो किसी भी आधार पर समाज में जानबूझकर वैमनस्य फैलाने और की कोशिश करते हैं। अगर यह साहस भूपेश बघेल ने अपने पिता के ही खिलाफ दिखाया है तो उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले समय में कम से कम छत्तीसगढ़ में ऐसी किसी भी कोशिश को संज्ञान में लिया जाएगा और त्वरित कार्रवाई होगी।

(लेखक क़रीब डेढ़ दशक से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Chhattisgarh
bhupesh baghel
Nand Kumar Baghel
Congress
Hate Speech

Related Stories

छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया

छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार

हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

केरल उप-चुनाव: एलडीएफ़ की नज़र 100वीं सीट पर, यूडीएफ़ के लिए चुनौती 


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License