NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
शिक्षा बजट पर खर्च की ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? 
एक ही सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे बजट एक श्रृंखला का हिस्सा होते हैं इनके माध्यम से उस सरकार के विजन और विकास की प्राथमिकताओं का ज्ञान होता है। किसी बजट को आइसोलेशन में देखना उचित नहीं है। 
डॉ. राजू पाण्डेय
15 Feb 2022
education budget
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

जब मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में वित्त मंत्री द्वारा बजट बढ़ाए जाने को लेकर उनके प्रशस्ति गान में लगा हुआ है तब आंकड़ों की दुनिया की अजब गजब संभावनाओं पर चर्चा करने को जी करता है। आंकड़ों की अलग अलग प्रकार की तुलना अथवा एक खास ध्येय से उनके चयन के द्वारा खराब स्थिति की अच्छी तस्वीर दिखाई जा सकती है किंतु यह आंकड़े ही हैं जो इस अच्छी तस्वीर की सच्चाई को हम तक लाने का जरिया बनते हैं।

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह स्वीकार किया कि कोविड-19 के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों और विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति के विद्यार्थियों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है किंतु उनकी यह स्वीकारोक्ति तब एक खोखले राजनीतिक जुमले में बदल गई जब हमने देखा कि पूरा शिक्षा बजट असमानता को बढ़ाने वाला है। इसमें वंचित समुदायों और महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं है। 

एक ही सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे बजट एक श्रृंखला का हिस्सा होते हैं इनके माध्यम से उस सरकार के विजन और विकास की उसकी प्राथमिकताओं का ज्ञान होता है। किसी बजट को आइसोलेशन में देखना उचित नहीं है। इसी प्रकार जब हम शिक्षा, स्वास्थ्य या कृषि अथवा अन्य किसी क्षेत्र में बजट में वृद्धि की बात करते हैं तो हमें मुद्रास्फीति का ध्यान रखना चाहिए। यह देखना भी जरूरी है कि जीडीपी और सम्पूर्ण बजट में उस क्षेत्र की हिस्सेदारी क्या है। यह जानना आवश्यक है कि विश्व के अन्य देश उस क्षेत्र विशेष में अपने बजट और जीडीपी का कितना हिस्सा व्यय करते हैं। हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि संबंधित मंत्रालय द्वारा कितना आबंटन मांगा गया था और उसे कितना आवंटन मिला है।

वित्त वर्ष 2020-21 के मूल बजटीय आवंटन में शिक्षा मंत्रालय को 99,311.52 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। वित्त वर्ष 2021-22 में शिक्षा मंत्रालय का मूल बजटीय आबंटन घटाकर 93,224.31 करोड़ रूपए कर दिया गया था। इस वर्ष शिक्षा के लिए मूल बजटीय आवंटन 1 लाख 4 हजार 277 करोड़ रुपए है। यदि 2020-21 से तुलना करें तो यह वृद्धि अधिक नहीं है। 

अनिल स्वरूप, पूर्व सचिव, शालेय शिक्षा एवं साक्षरता, भारत सरकार, के अनुसार पिछले वर्ष बड़े जोर शोर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की गई थी यदि इसमें दिए सुझावों पर गौर करें तो एक सुझाव यह भी है कि शिक्षा क्षेत्र के लिए जीडीपी के 6 प्रतिशत का आवंटन किया जाए किंतु वास्तविकता यह है कि शिक्षा पर व्यय इससे कहीं कम है।

31 जनवरी 2022 को प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2019-20 में शिक्षा पर व्यय जीडीपी का 2.8 प्रतिशत था जबकि 2020-21 एवं 2021-22 में यह जीडीपी का 3.1 प्रतिशत था। शिक्षा बजट ने भले ही एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया हो किंतु अभी भी यह जीडीपी के 6 प्रतिशत के वांछित स्तर का लगभग आधा है।

अनेक शिक्षा विशेषज्ञ शिक्षा अधोसंरचना के बजट में कटौती को लेकर चिंतित हैं। इनके अनुसार यदि सरकार यह मान रही है कि सीखने की गैरबराबरी को टीवी चैनलों के जरिए दूर किया जा सकता है तो वह बहुत बड़े मुगालते में है। अविचारित डिजिटलीकरण सामाजिक असमानता को बढ़ावा देगा। इसके कारण शिक्षा के अवसर सब के लिए समान नहीं रह जाएंगे। महामारी का सबक यह था कि उन ग्रामीण इलाकों में जहाँ डिजिटल संसाधनों की कमी है अधिक शिक्षक, अधिक कक्षा भवन और बेहतर अधोसंरचना की व्यवस्था की जाती ताकि अगर भविष्य में किसी महामारी का आक्रमण हो तब भी शिक्षा बाधित न हो। 

ऐसा लगता है कि सरकार  देश में व्याप्त भयानक डिजिटल डिवाइड को स्वीकार नहीं करती। यूनेस्को की "स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट - नो टीचर, नो क्लास- 2021"(5 अक्टूबर 2021) के अनुसार पूरे देश में स्कूलों में कंप्यूटिंग उपकरणों की कुल उपलब्धता 22 प्रतिशत है, शहरी क्षेत्रों (43 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यंत कम उपलब्धता (18 प्रतिशत) है। इसी प्रकार संपूर्ण भारत में स्कूलों में इंटरनेट की पहुंच 19 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में 42 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच केवल 14 प्रतिशत है।

अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2020 में 5 राज्यों की शासकीय शालाओं में पढ़ने वाले 80000 विद्यार्थियों पर किए गए सर्वेक्षण (मिथ्स ऑफ ऑनलाइन एजुकेशन) के नतीजे बताते हैं कि शासकीय शालाओं में अध्ययनरत  60% बच्‍चों के पास ऑनलाइन शिक्षा हेतु अनिवार्य साधन मोबाइल अथवा लैपटॉप नहीं हैं। 

भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा जुलाई 2020 में केंद्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति एवं सीबीएसई को सम्मिलित करते हुए एनसीईआरटी के माध्यम से कराए गए सर्वेक्षण के नतीजे कुछ भिन्न नहीं थे- 27 प्रतिशत विद्यार्थियों ने मोबाइल एवं लैपटॉप के अभाव का जिक्र किया, जबकि 28 प्रतिशत ने बिजली का न होना, इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव, इंटरनेट की धीमी गति आदि समस्याओं का जिक्र किया।

शिक्षा पर 2020 की एन.एस.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में हमारी 5 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण जनसंख्या की कम्प्यूटरों तक पहुंच है।

एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव तथा सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च द्वारा चलाया जा रहा इनसाइड डिस्ट्रिक्ट्स कार्यक्रम भी ऑनलाइन शिक्षा की कमोबेश इन्हीं बाधाओं का जिक्र करता है।

यूनिसेफ (सितंबर 2021) के अनुसार भारत में 6-13 वर्ष के बीच के 42 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल बंद होने के दौरान किसी भी प्रकार की दूरस्थ शिक्षा का उपयोग नहीं करने की सूचना दी। इसका अर्थ है कि उन्होंने पढ़ाई के लिए पुस्तकें, वर्कशीट, फोन अथवा वीडियो कॉल, वॉट्सऐप, यूट्यूब, वीडियो कक्षाएं आदि का प्रयोग नहीं किया है। भारत में 14-18 वर्ष आयु वर्ग के कम से कम 80 प्रतिशत विद्यार्थियों ने कोविड-19 के दौरान सीखने के स्तर में गिरावट आने की सूचना दी, क्योंकि स्कूल बंद थे। 5-13 वर्ष आयु वर्ग के विद्यार्थियों के 76 प्रतिशत माता-पिता दूरस्थ शिक्षा के कारण सीखने के स्तर में गिरावट की बात स्वीकारते हैं।

"प्रथम" एजुकेशन फाउंडेशन की 25 राज्यों व 581 जिलों में 75,234 बच्चों की जानकारी पर आधारित शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट- असर-2021- के अनुसार कोविड-19 के दौर में निजी विद्यालयों में विद्यार्थियों का नामांकन 8.1 प्रतिशत कम हुआ है जबकि शासकीय शालाओं में नामांकन में वृद्धि हुई है।

सरकार का बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण भी यह सुझाव देता है कि शासकीय शालाओं में विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए अधोसंरचना को बेहतर बनाते हुए बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया जाए। किंतु आरटीई फोरम के विशेषज्ञों और शिक्षा के लोकव्यापीकरण हेतु कार्य करने वाले बहुत से अन्य संगठनों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि बजट में देश के बदहाल पंद्रह लाख सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने हेतु कोई प्रावधान नहीं किया गया है। भारत के ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में स्कूलों की दयनीय दशा कोविड से पहले भी थी और आगे भी जारी रहेगी क्योंकि सरकार का बजट इस संदर्भ में मौन है।

बजट की एक बहुचर्चित एवं बहुप्रशंसित घोषणा यह थी कि पीएम ई विद्या स्कीम के तहत वन क्लास वन टीवी चैनल पहल का विस्तार किया जाएगा और इसे वर्तमान 20 चैनलों से बढ़ाकर 200 चैनल किया जाएगा। किंतु आश्चर्यजनक रूप से डिजिटल इंडिया ई लर्निंग प्रोग्राम के बजट में (जिसके अंतर्गत पीएम ई विद्या योजना आती है) भारी कटौती की गई है और 2021-22 के 645.61 करोड़ रुपए की तुलना में यह घटाकर 421.01 करोड़ रूपए कर दिया गया है।

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि टीवी उन इलाकों में जानकारी देने का जरिया जरूर बनेगा जहाँ हर विद्यार्थी के पास अपना डिजिटल गैजेट नहीं है। किंतु यह अधिगम स्तर में सुधार ला पाएगा ऐसा नहीं लगता क्योंकि यह सूचना देने की एकतरफा प्रक्रिया भर है, इसमें शिक्षक-विद्यार्थी अंतर्क्रिया के लिए कोई स्थान नहीं है।

इस वर्ष शिक्षक प्रशिक्षण और और प्रौढ़ शिक्षा के बजट में भारी कटौती की गई है और अब यह 2021-22 के 250 करोड़ रुपए से घटाकर 127 करोड़ रुपए कर दिया गया है। सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी नई दिल्ली के विशेषज्ञ मानते हैं कि महामारी और उसके कारण बंद हुए स्कूलों ने बच्चों को मानसिक रूप से बहुत हद तक प्रभावित किया है। शिक्षकों की भूमिका अब शिक्षण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनसे मेंटोर्स और काउंसलर की भूमिका निभाने की भी आशा है। इसके लिए उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की इस राय को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षक प्रशिक्षण के फण्ड में कटौती दुर्भाग्यपूर्ण है।

ये भी पढ़ें: विश्वविद्यालयों का भविष्य खतरे में, नयी हकीकत को स्वीकार करना होगा: रिपोर्ट

स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ब्रिज कोर्स तैयार करने को अत्यंत आवश्यक बताया है क्योंकि अधिगम की क्षति की भरपाई कुछ हद तक इसके माध्यम से संभव है। विशेषज्ञों के अनुसार कोविड-19 के बाद की परिस्थितियों से निपटने के लिए अध्यापकों को पुन: प्रशिक्षित करना और पाठ्यक्रम में सम्यक परिवर्तन करना आवश्यक है किंतु बजट में इस विषय में कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है।

सरकार ने अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रम समग्र शिक्षा योजना के लिए बजट में 20 फीसदी इजाफा करते हुए इसे 2021-22 के 31050 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 37383 करोड़ रुपए कर दिया है। यह योजना बहुत महत्वपूर्ण है और कोरोना का दौर समाप्त होने के बाद बच्चों को स्कूलों तक वापस लाने में इसकी अहम भूमिका है।

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2022-23 में समग्र शिक्षा के लिए स्वीकृत राशि भले ही 2021-22 की तुलना में 20 प्रतिशत ज्यादा है लेकिन यह शिक्षा विभाग द्वारा 2021-22 में मांगी गई राशि की तुलना में भी 64.5 प्रतिशत कम है। आरटीई फोरम ने इस तथ्य की ओर ध्यानाकर्षण किया है कि इस वर्ष का 37383 करोड़ रुपए का आबंटन कोविड-19 के आक्रमण से पूर्व 2020-21 में आवंटित बजट 38860 करोड़ से भी कम है।

आरटीई फोरम ने शिक्षा बजट के संबंध में गंभीर आपत्तियां उठाई हैं। कोविड-19 ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति की  बालिकाओं की शिक्षा पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला है। देश में लगभग एक करोड़ बालिकाओं के स्कूली शिक्षा से बाहर हो जाने का खतरा है। लेकिन इस संबंध में 2008-2009 से जारी योजना- नेशनल स्कीम फॉर इनसेंटिव टू गर्ल्स फॉर सेकंडरी एजुकेशन- को बंद कर दिया गया है। वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में इस योजना के लिए आबंटन 110 करोड़ रुपए था जो 2021-22 में घटाकर एक करोड़ रुपये कर दिया गया था। योजना को सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त संस्थान इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ की नकारात्मक टिप्पणी के बाद बंद किया गया है। आई ई जी द्वारा योजना के विरुद्ध जो टिप्पणियां की गई हैं वे योजना के क्रियान्वयन की कमियों से संबंधित हैं। 

इन्हें आधार बनाकर योजना को बंद करना शरारतपूर्ण है। नेशनल कैंपेन फ़ॉर दलित ह्यूमन राइट्स की बीना पल्लिकल कहती हैं कि एसटी, एससी बालिकाओं की शिक्षा कोरोना से सर्वाधिक बाधित हुई है। जब इस योजना की सर्वाधिक जरूरत थी तब इसे बंद कर दिया गया है जो बहुत दुःखद है।

नई शिक्षा नीति 2020 में प्रस्तावित जेंडर इनक्लूजन फंड का बजट में उल्लेख ही नहीं है।

इतना ही नहीं वर्ष 2022-23 के बजट में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाली छात्र वृत्ति के आवंटन में भी 2021-22 की तुलना में 30 प्रतिशत की कटौती की गई है।

एकेडमिक फार एक्शन एंड डेवलपमेंट ने छात्रों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को कम करने पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। पिछले वित्त वर्ष में इस मद में 2482 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिसे इस वर्ष घटाकर 2000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

मिड डे मील योजना अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना के नाम से जानी जाती है। वित्त वर्ष 2021-22 में इस योजना हेतु 11,500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, जिसे इस बजट में कम कर 10,233.75 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

यूनेस्को की स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट 2021 के अनुसार कार्यबल में 10 लाख से अधिक शिक्षकों का अभाव है। किंतु बजट में इस संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार प्राइमरी स्तर पर अध्यापकों की संख्या में वृद्धि कोविड पश्चात उत्पन्न स्थितियों को देखते हुए आवश्यक है।

अनेक छात्र संगठनों ने बजट में छात्रों को फीस में राहत न देने और शिक्षा ऋण की किस्तों में छूट न देने पर अपना विरोध दर्ज कराया है। कोविड-19 के कारण बंद पड़े शिक्षण संस्थानों और अस्तव्यस्त शिक्षा व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में छात्रों को फीस और एजुकेशन लोन में राहत की जायज उम्मीद थी। वैसे भी बहुत से पालक अपना रोजगार गंवा चुके हैं या उनकी आय में कमी आई है।

उच्च शिक्षा के लिए भी बजट में कुछ भी नहीं है। डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने जानना चाहा है  कि आखिर डिजिटल विवि किस प्रकार उच्च शिक्षा के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है? क्या छात्र टीवी और इंटरनेट पर आनलाइन अध्ययन द्वारा परिपक्व हो सकते हैं? बजट में न केवल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अपितु केंद्रीय विश्वविद्यालयों का बजट भी कम कर दिया गया है।

सरकार शिक्षा के प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा संसद में दिए गए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के उस बयान से लगाया जा सकता है जिसके अनुसार पिछले 11 वर्षों में आरटीई अनुपालन, जब से योजना की शुरुआत हुई है, केवल 25.5 प्रतिशत रहा है।

कोविड-19 ने शालेय शिक्षा के सम्मुख अनेक जटिल प्रश्न रखे हैं। बच्चों में अधिगम के लिए आवश्यक क्षमता का ह्रास हुआ है, इसकी भरपाई कैसे हो? शालाओं के वापस खुलने पर कोविड विषयक सुरक्षात्मक नॉर्म्स का पालन कैसे किया जाए? कक्षा की शिक्षा और डिजिटल शिक्षा को जोड़ने वाले हाइब्रिड शिक्षण मॉडल को किस प्रकार लचीला और कारगर बनाया जाए? इन प्रश्नों के सार्थक समाधान तभी मिल सकते हैं जब देश में डिजिटल शिक्षा की सीमाओं को समझा जाए और पारंपरिक शिक्षा की उपेक्षा न की जाए।

कोविड-19 के कारण शिक्षा व्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभावों का वस्तुनिष्ठ आकलन तथा देश में व्याप्त डिजिटल डिवाइड और सरकारी स्कूलों की खस्ताहाल स्थिति की बेबाक स्वीकृति ही हमारी शिक्षा विषयक योजनाओं को कारगर बना सकती है। किंतु सरकार शिक्षा की स्याह हकीकत से मुंह मोड़कर डिजिटल शिक्षा की बात कर रही है। सरकार की डिजिटल शिक्षा थोपने की जल्दबाजी को देखकर आशंका उत्पन्न होती है कि यह शिक्षा बजट, निजीकरण वाया डिजिटलीकरण जैसा कोई अप्रकट लक्ष्य तो नहीं रखता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

ये भी पढ़ें: नया बजट जनता के हितों से दग़ाबाज़ी : सीपीआई-एम

EDUCATION BUDGET
Budget 2022-23 Pandemic
new education policy
Atmanirbhar
school dropout
Higher education
secondary schools
COVID-19
Online Education

Related Stories

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा

स्कूलों की तरह ही न हो जाए सरकारी विश्वविद्यालयों का हश्र, यही डर है !- सतीश देशपांडे

नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित

नई शिक्षा नीति भारत को मध्य युग में ले जाएगी : मनोज झा

कोरोना लॉकडाउन के दो वर्ष, बिहार के प्रवासी मज़दूरों के बच्चे और उम्मीदों के स्कूल


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License