NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
तोमर का बयान- एक तीर से दो निशाने !
सूत्रों का मानना है कि किसानों की नई नवेली पार्टियों को मुद्दा थमाने के लिए तोमर ने यह बयान दिया है, ताकि इन दोनों राज्यों में उन्हें सक्रिय होने और जन समर्थन हासिल करने का मौका मिल सके।
अफ़ज़ल इमाम
27 Dec 2021
Narendra Singh Tomar

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर निरस्त किए तीन काले कृषि कानूनों को फिर से लाने का बयान देने के बाद अब भले ही सफाई दे रहे हों, लेकिन सियासी खेमों में उसके गहरे राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि तोमर ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। एक तरफ वे कॉर्पोरेट जगत के भरोसे को पक्का करना चाहते हैं कि सरकार को उसके हितों का पूरा ध्यान है। समय की जरूरत को देखते हुए इसे थोड़े समय के लिए ही ठंडे बस्ते में डाला गया है। दूसरी तरफ वे पंजाब व हरियाणा में कुछ किसान संगठनों द्वारा गठित किए जाने वाले राजनीतिक दलों को प्रासंगिकता देना चाहते हैं, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों का बंटवारा हो और कांग्रेस सत्ता हासिल न कर सके।

ध्यान रहे कि पंजाब में कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर न सिर्फ राज्य में बल्कि देश की राजनीति में बड़ी हलचल पैदा की है। चन्नी सरकार लगातार किसानों के हितों में फैसले ले रही है। मसलन उसने आंदोलन के दौरान शहीद होने वाले 403 किसानों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा दिया है। साथ ही उनके परिजनों को नौकरी भी दे रही है।

नागपुर में 25 दिसंबर को कृषि उद्योग प्रदर्शनी के दौरान जब तोमर ने कहा ‘हम कृषि कानून लेकर आए थे, लेकिन कुछ लोगों को रास नहीं आया, लेकिन वो 70 साल की आज़ादी के बाद बड़ा रिफार्म था जो नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था, लेकिन सरकार निराश नहीं है। हम एक कदम पीछे हटे हैं, आगे फिर बढ़ेंगे.....’। इसके बाद विपक्षी पार्टियों और किसानों में हड़कंप मच गया और धड़ाधड़ तीखी प्रतिक्रियाएं भी आने लगीं।

जब 19 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने इन तीन कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी तो इसी तरह का बयान राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा और भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने भी दिया था, हालांकि उसे खास अहमियत नहीं दी गई थी। अब जबकि स्वयं कृषि मंत्री तोमर ने यह बयान दिया तो तूफान उठना स्वाभाविक था, क्योंकि उनके बारे में यह धारणा है कि वे अपने मन से कुछ नहीं बोलते हैं। जब किसान नेताओं के साथ सरकार की बैठकें होती थी, तो उसमें शामिल होने से पहले वे गृहमंत्री अमित शाह से चर्चा करते थे। यही कारण है कि माना जा रहा है कि तोमर का बयान एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

दरअसल देश के लाखों करोड़ रुपये के कृषि से जुड़े कारोबार पर गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठी कुछ बड़ी कंपनियों को इन कानूनों के वापस होने से गहरी निराशा हुई है। उन्हें लग रहा है कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक फाएदे के लिए उनके हितों की बलि दे रही है। जब इसकी घोषणा हुई थी, तो भी गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने बड़ी हाय-तौबा मचाई थी। कुछ गोदी पत्रकारों ने रूआंसे अंदाज़ में अपने वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए थे।

इसका दूसरा पहलू यह है कि पंजाब में कई किसान संगठनों ने ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ नामक पार्टी का गठन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिसके नेता बलबीर सिंह राजेवाल होंगे। चर्चा तो यहां तक है कि कुछ किसान नेता आम आदमी पार्टी के साथ तालमेल करने का सुझाव दे रहे हैं।

वैसे जिस किसान संयुक्त मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले सालभर आंदोलन चला, उसने साफ कर दिया है कि उसका इस राजनीतिक मोर्चे से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई राजनीतिक दल उसके नाम का इस्तेमाल करेगा तो यह अनुशासन का उल्लंघन माना जाएगा।

एसकेएम ने यह भी कहा है कि वह 15 जनवरी को एक बैठक करेगा, जिसमें यह तय होगा कि चुनाव लड़ने वाले नेता व संगठन इसमें शामिल रह सकते या नहीं? यह बयान एसकेएम की समन्वय समिति के सदस्य दर्शन पाल सिंह, हन्नान मोल्लाह, जोगिंदर सिंह उग्राहन, जगजीत सिंह दल्लेवाल, योगेंद्र यादव, युद्धवीर सिंह व शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी की ओर से जारी किया गया है। इसके पहले हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी भी अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं।

उधर पश्चिमी यूपी में भी कुछ सुगबुगाहट है, लेकिन राकेश टिकैत इसके पक्ष में नहीं है। कई अन्य किसान नेताओं का भी कहना है कि चुनाव लड़ना सभी का संवैधानिक अधिकार है। इससे किसी को भी रोका नहीं जा सकता है, लेकिन खेती-किसानी की लड़ाई अभी अधूरी है। सरकार ने सिर्फ 3 कानून वापस लिए हैं। एमएसपी और किसानों पर हुए मुकदमों की वापसी समेत अन्य मामलों को हल करने की प्रक्रिया अभी काफी धीमी गति से चल रही है। लखीमपुर खीरी हत्याकांड में अभी तक केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा (टेनी) का इस्तीफा भी नहीं हुआ है। किसानों के आंदोलन को जो चौतरफा समर्थन हासिल हुआ, उसकी वजह यह थी कि वे सिर्फ किसान के रूप में अपनी जायज मांगों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर आए थे। विपक्षी दलों ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया, लेकिन आंदोलन पर किसी पार्टी का ठप्पा नहीं लग सका। अब जबकि तमाम किसान नेता और संगठन स्वयं अपनी राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं, तो क्या भविष्य में कृषि व किसानों से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन छेड़ने के लिए उन्हें इसी तरह का समर्थन हासिल हो सकेगा ? 

बहरहाल, यह बहस किसानों के बीच है और वे इसे अपनी तरह से हल करेंगे, लेकिन पंजाब व हरियाणा में जो कुछ हो रहा है, उसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ने वाला है। एक जगह वह सत्ता में है तो दूसरी जगह मजबूत विपक्ष की भूमिका में है।

सूत्रों का मानना है कि किसानों की नई नवेली पार्टियों को मुद्दा थमाने के लिए तोमर ने यह बयान दिया है, ताकि इन दोनों राज्यों में उन्हें सक्रिय होने और जन समर्थन हासिल करने का मौका मिल सके।

आमतौर पर आंदोलनों से निकली किसी नई पार्टी को शुरू में व्यापक जन समर्थन नहीं मिलता है, लेकिन वे इतना वोट तो हासिल ही कर लेती हैं, जिससे सत्ताधारी दल के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं। दिल्ली में कथित अन्ना आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी के इतिहास को देखने से तस्वीर साफ हो जाती है। कुछ लोग तो इसे 2024 के गेम प्लान से भी जोड़ कर देख रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Narendra Singh Tomar
kisan andolan
New Farm Laws
Agri Law repeal
kisan
BJP
Congress
Samyukt Kisan Morcha
SKM

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License