NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
युवा
भारत
राजनीति
राष्ट्रीय युवा नीति या युवाओं से धोखा: मसौदे में एक भी जगह बेरोज़गारी का ज़िक्र नहीं
एशियाई विकास बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 15-24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोज़गार होने की संभावना वृद्ध वयस्कों की अपेक्षा लगभग पांच गुना अधिक है। ऐसे समय में राष्ट्रीय युवा नीति 2021 आई है लेकिन इसमें एक भी जगह नौजवानों की बेरोज़गारी का ज़िक्र तक नहीं है।
बी. सिवरामन
13 May 2022
national youth policy
Image courtesy : VP

‘खेलो इंडिया 2022’ हरियाणा के पंचकुला में 8000 लोगों का एक उत्सव है, जिसे चमक-दमक वाले मीडिया तमाशा के रूप में डिज़ाइन किया गया है। यह एनडीए सरकार द्वारा भारतीय युवाओं के लिए हाईपॉइंट के रूप में पेश किया गया है। सरकार यह दिखाना चाहती है कि भारतीय युवा प्रबल खिलाड़ी हैं और वे खुशी से खेल रहे हैं।

खेलो इंडिया के लिए ज़ुबिन गर्ग के थीम सॉन्ग के बोल इस तरह से शुरू होते हैं: "खेलो इंडिया जी भर के खेलो, खेलो इंडिया दुनिया को जीतो!"

क्या भारत के युवा सचमुच दुनिया को जीत सकते हैं? यह गीत भारतीय युवाओं की वास्तविकता को लेशमात्र भी नहीं दर्शाता है। आज के भारतीय युवाओं की दर्दनाक वास्तविकता बॉब डिलन के 1964 के एक गीत ‘द टाइम्स.. दे आर ए-चेंजिंग..’ की याद दिलाती है। उस गीत में  बॉब डिलन ने युवाओं के दर्दनाक अलगाव और उनके डूबने के एहसास को दर्शाया है।

आओ लोगों इकट्ठा हो जाओ
तुम जहां भी विचर रहे हो
और मान लो कि पानी
तुम्हारे आसपास बढ़ गया है
और इसे स्वीकार करो
जल्द तुम हाड़ तक भीग जाओगे
अगर तुम्हारा समय
तुम्हारे लिए कीमती है
बेहतर होगा कि तुम तैरना शुरू करो
वरना पत्थर की तरह डूब जाओगे
क्योंकि समय बदल रहा है (द टाइम्स.. दे आर ए-चेंजिन)

भारत का युवा अब डूब रहा हैं। 1960 के दशक के युवा संकट के बारे में बॉब डिलन ने जो गाया, वह अब भारत के युवा संकट के बारे में सच साबित हो रहा है। बेकारी का आलस्य और शिक्षा की बढ़ती लागत उन्हें परेशान करती है। लेकिन सरकारें इन संकटग्रस्त युवाओं के खिलाफ बुलडोजर चला रही हैं।
संयोग से 4 मई 2022 को खेलो इंडिया शुरू होने के दो दिन बाद, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ने 6 मई 2022 को एक मसौदा राष्ट्रीय युवा नीति 2021 को सार्वजनिक पटल पर जारी किया। मंत्रालय 2021 में एक युवा नीति तैयार करता है, इसे 29 अप्रैल 2022 को अंतिम रूप देता है, 6 मई 2022 को इसे सार्वजनिक डोमेन में जारी करता है। यदि देश के युवा दक्षता के इस मॉडल का पालन करने लगे तो इससे बड़ा अभिशाप क्या होगा?
 
नई नीति 2014 वाली वर्तमान राष्ट्रीय युवा नीति को संशोधित करना चाहती है। यह भारत के लिए 2030 तक युवा विकास हेतु दस साल के विज़न और रूपरेखा को प्रस्तुत करती है।

मसौदा नीति पांच प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को इंगित करती है:

1) शिक्षा
2) रोजगार और उद्यमिता
3) युवा नेतृत्व और विकास
4) स्वास्थ्य, फिटनेस और खेल
5) सामाजिक न्याय

युवा कार्यक्रम के विभाग ने जनता से 13 जून 2022 तक अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है। परंतु इससे अधिक अस्पष्ट और बेकार नीति हो ही नहीं सकती! आइए देखें कि यह युवा बेरोजगारी, शिक्षा की अफोर्डेबिलिटी, और भटकाव की शिकार युवा संस्कृति के तीन प्रमुख क्षेत्रों के बारे में क्या प्रस्तावित करता है- अथवा नहीं करता है।
 
बेरोजगार युवा भारत

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मासिक सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वर्तमान समय में 5.3 करोड़ भारतीय नागरिक नौकरी की तलाश में हैं, लेकिन उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा। इन बेरोजगारों में 3 करोड़ से अधिक तो युवा हैं।अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस ने पिछले पांच वर्षों में युवा श्रमिकों के लिए रोजगार में 30% की गिरावट दिखाई है।

एशियाई विकास बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 15-24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगार होने की संभावना वृद्ध वयस्कों की अपेक्षा लगभग पांच गुना अधिक है।युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ऐसी पृष्ठभूमि में इस विलंबित मसौदा युवा नीति को ले आता है। मसौदा नीति में युवा रोजगार पर एक अध्याय है, जिसमें एक भी जगह बेरोजगारी का उल्लेख नहीं है। सरसरी तौर पर देखें तो मसौदा रोजगार बढ़ाने के लिए केवल "अनौपचारिक गिग अर्थव्यवस्था का समर्थन" करने का ठोस प्रस्ताव भर पेश करता है! युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन के लिए कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं और मोदी का 2014 का वादा तो जैसे  हवा के साथ उड़ गया है। बेरोजगारी भत्ते का भी कोई प्रस्ताव नहीं है।
 
जहां शिक्षा एक लग्ज़री है, व्यावसायीकरण का शिक्षा के क्षेत्र में एकछत्र राज है। अपमार्केट ब्रांड, एमिटी यूनिवर्सिटी, अलग-अलग बी.टेक पाठ्यक्रमों के लिए 13,64,000 रुपये से लेकर 18,60,000 रुपये तक की उगाही करती है। मोदी के गुजरात में IIT गांधीनगर, एक सरकारी संस्थान, प्रति सेमेस्टर 1,28,500 रुपये (एक शैक्षणिक वर्ष में छह महीने) लेता है और वार्षिक शुल्क लगभग 2.6 लाख रुपये पड़ता है।
 
चेन्नई में श्री रामचंद्र मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस का अकेले पहले वर्ष के लिए 22 लाख रुपये का शुल्क लेता है। बाद के वर्षों में शुल्क बढ़ जाता है।

सरकारी मेडिकल कॉलेज बेहतर नहीं हैं। एम्स मेडिकल छात्रों के लिए प्रति वर्ष 75,000 रुपये लेता है,जबकि सफदरजंग अस्पताल से जुड़ा मेडिकल कॉलेज 1.62 लाख रुपये लेता है।

कितने गरीब और मजदूर वर्ग के छात्र इस तरह की फीस का भुगतान कर सकते हैं? अदालतों ने अधिकतम शुल्क तय किया, जो पेशेवर (professional) पाठ्यक्रमों में एकत्र किया जा सकता था। सहायता प्राप्त कॉलेजों में शिक्षकों के वेतन भुगतान की लागत का एक हिस्सा वर्तमान में केंद्र वहन कर रहा है। लेकिन एक नया चलन शुरू हुआ है। प्रो. शिवकुमार, पूर्व अध्यक्ष, गवर्नमेंट कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन, तमिलनाडु ने न्यूज़क्लिक को बताया: “तमिलनाडु में, कॉलेज बिना सहायता प्राप्त पाठ्यक्रम शुरू कर रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों के बिना सहायता प्राप्त होने के बहाने छात्रों से अधिक शुल्क एकत्र किया जा रहा है। सुबह वे यूजीसी से सहायता प्राप्त पाठ्यक्रम चलाते हैं, जहां शिक्षकों को यूजीसी द्वारा निर्धारित 1 लाख रुपये वेतन का भुगतान किया जाता है। शाम को वे बिना सहायता प्राप्त पाठ्यक्रम संचालित करते हैं जहाँ शिक्षकों को मुश्किल से 10,000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता है। अगर सुबह के छात्र सालाना 1 लाख रुपये फीस देते हैं, तो शाम के छात्र 4-5 लाख रुपये देते हैं!  

मसौदा युवा नीति गिग रोजगार को बढ़ावा देना चाहती है। लेकिन शिक्षण संस्थान यूजीसी स्केल पाने वाले शिक्षकों को गिग वर्कर में बदल रहे हैं।  शिक्षा की यह स्थिति है जिसका युवाओं के लिए मसौदा नीति अनदेखा करती है। इसी तरह कर्नाटक और तेलंगाना में भी कदाचार चल रहा है।

इससे भी बुरी बात यह है कि छात्रों को इतना ठगने के बाद अधिकांश पेशेवर संस्थान केवल बेरोजगार स्नातकों को पैदा कर रहे हैं। विश्व बैंक का कहना है कि उभरते हुए डिजिटल युग में, क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी नई तकनीकों के संदर्भ में आईटी क्षेत्र के 80% कर्मचारियों का वर्तमान कौशल जल्द ही पुराना पड़ जाएगा। मसौदा नीति पाठ्यक्रम और शिक्षा की गुणवत्ता को अपडेट व अपग्रेड करने के मामले पर मौन है। कोई आश्चर्य नहीं कि 1 अगस्त 2020 के आंकड़ों से पता चला कि तमिलनाडु में 80% इंजीनियरिंग स्नातक बेरोजगार थे। तमिलनाडु में 2020 तक 163 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद कर दिए गए थे और तब से लगभग 40 और बंद होने की प्रक्रिया में हैं।

राष्ट्रीय युवा नीति के मसौदे में विशिष्ट प्रस्ताव पुराने ही हैं, जैसे व्यवसायीकरण को बढ़ाना और ड्रॉपआउट्स को फिर से जोड़ना। बाकी के लिए, नीति का यह खंड "समग्र युवा विकास के लिए पाठ्यक्रम में मूल्य-आधारित शिक्षा को एकीकृत करना" जैसे खोखले और निरर्थक बातों से भरा है।
 
युवा अलगाव, युवा संकट, और युवा हिंसा

उप्र और मप्र के छोटे शहरों में हम शाम को घूमते हुए शिक्षित बेरोजगार युवाओं के झुंड देखते हैं। अक्सर उनके पास रोज़ एक कप चाय के लिए भी पॉकेट मनी नहीं होता तो दुकानों से उधार में काम में चलता है । इसके बाद वे "सरकारी नौकरियों" की मृगतृष्णा का पीछा करते प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए कोचिंग सेंटरों में भारी फीस भरते हैं। फिर भी सरकारी स्कूल में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक की नौकरी के लिए उन्हें 15-20 लाख रुपये की रिश्वत देनी होती है। तो उनके लिए सरकारी नौकरी एक मृगतृष्णा बनी हुई है। इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मसौदा नीति में कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है।

विकसित देशों में सरकार ऐसे बेरोजगार युवाओं को बड़े पैमाने पर बेरोजगारी भत्ते के साथ समर्थन देने के बावजूद, कई विनाशकारी "पंक" या हिंसक, नस्लवादी "स्किनहेड्स" में बदल जाते हैं। भारत में हालांकि बेरोजगारी के कारण इस तरह के युवा अलगाव, युवा आत्महत्या की परिघटना की ओर ले जाते हैं। वे या तो IIT-JEE या NEET प्रवेश परीक्षा में पर्याप्त अंक प्राप्त करने में विफल होने या वर्षों तक नौकरी पाने में असमर्थ होने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। लड़के ही नहीं लड़कियां भी आत्महत्या करने लगी हैं। जहां एक तरफ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों में नौकरी न मिलने के कारण आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा। पंजाब विश्वविद्यालय की एक 20-वर्षीय बी टेक की छात्रा नें भारी फीज़ से अपने माता-पिता को मुक्त कराने के लिए आत्महत्या कर लिया, ताकि वे उसके भाई पर खर्च कर सकें।

चूंकि मुसलमानों में बेरोजगारी समग्र बेरोजगारी दर की तुलना में अधिक है, इसलिए कुछ मुस्लिम युवा भी जारी सांप्रदायिक हिंसा के भंवर में फंस सकते हैं, भले ही यह भगवा ब्रिगेड द्वारा किए गए सुनियोजित हमलों के खिलाफ रक्षात्मक रूप में ही क्यों न हो। परंतु मूल कारण को संबोधित करने के बजाय, हमारी बहुत ‘बुद्धिमान’ सरकार ने अलग-अलग बहानों से जहांगीरपुरी, तुगलकाबाद और शाहीनबाग़ जैसे अल्पसंख्यकों की बस्तियों में बुलडोजर राजनीति और विध्वंस का अभियान शुरू कर दिया। यह उकसावा नहीं तो और क्या है?

युवा वर्ग-एक खोई हुई पीढ़ी

आज मध्यवर्गीय युवा वर्ग भी एक खोई हुई पीढ़ी है। अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने खुद को अपने स्मार्ट फोन में डुबो दिया है। यह कठोर वास्तविक दुनिया से पलायन का एक रास्ता भी है। जीवंत युवा संस्कृति गायब हो गई है। सरकार द्वारा नीति के माध्यम से इसे बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। यह अपने आप तभी फल-फूल सकता है, जब बेरोजगारी और शिक्षा के व्यावसायीकरण के अधिक बुनियादी मुद्दों पर ध्यान दिया जाए। यह तभी खिल सकता है जब युवाओं को जीवन में एक सार्थक उद्देश्य मिल जाए। राष्ट्रीय युवा नीति का मसौदा इन मुद्दों को हल करने में विफल साबित होगा।
 
(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

National Youth Policy
unemployment
Rising Unemployment in India
education
Employment and Entrepreneurship
Youth Leadership and Development
HEALTH
fitness and sports
social justice

Related Stories

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

बढ़ती बेरोजगारी पूछ रही है कि देश का बढ़ा हुआ कर्ज इस्तेमाल कहां हो रहा है?

भाजपा से क्यों नाराज़ हैं छात्र-नौजवान? क्या चाहते हैं उत्तर प्रदेश के युवा

झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

क्या बजट में पूंजीगत खर्चा बढ़ने से बेरोज़गारी दूर हो जाएगी?

छात्रों-युवाओं का आक्रोश : पिछले तीन दशक के छलावे-भुलावे का उबाल

बजट के नाम पर पेश किए गए सरकारी भंवर जाल में किसानों और बेरोज़गारों के लिए कुछ भी नहीं!

देश में बढ़ती बेरोज़गारी सरकार की नीयत और नीति का नतीज़ा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License