NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
फिल्में
भारत
नौशाद : जिनके संगीत में मिट्टी की सुगंध और ज़िंदगी की शक्ल थी
नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। नौशाद की पुण्यतिथि पर पेश है उनके जीवन और काम से जुड़ी बातें।
ज़ाहिद ख़ान
05 May 2022
naushad

नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। अपने नाम के ही मुताबिक नौशाद का संगीत सुनकर, उनके चाहने वालों को एक अजीब सी ख़ुशी, मसर्रत मिलती है। दिल झूम उठता है। हिंदी सिनेमा की शुरुआत को हुए, एक सदी से ज़्यादा गुज़र गया, लेकिन कोई दूसरा नौशाद नहीं आया। नग़मा-ओ-शेर की जो सौगात उन्होंने पेश की, कोई दूसरा उसे दोहरा नहीं पाया। फिल्मी दुनिया के अंदर थोड़े से ही वक़्फ़े में नौशाद ने बड़े-बड़े नामवरों के बीच नामवरी हासिल कर ली थी। लेकिन इस कामयाबी की कहानी मुख़्तसर नहीं है, बल्कि इसके पीछे उनका एक लंबा संघर्ष और फ़िल्म-संगीत के जानिब उनकी हद दर्जे की दीवानगी थी। जिसने उन्हें फ़िल्मी संगीत का बेताज बादशाह बना दिया। 25 दिसम्बर, 1919 को उत्तर भारत के नवाबों की नगरी लखनऊ में जन्मे नौशाद अली को संगीत से शुरुआत से ही लगाव था। संगीत की स्वर लहरी उन्हें अपनी ओर खींचती थी। शहर के अमीनाबाद इलाके में उस वक्त एक रॉयल टॉकीज थी, जिसमें हिंदी फ़िल्मों का प्रदर्शन होता रहता था। होने को वह दौर साइलेंट फ़िल्मों का था, लेकिन जनता के मनोरंजन की ख़ातिर बीच-बीच में पर्दे के पीछे से स्थानीय आर्टिस्ट, ऑर्केस्टा के मार्फ़त गीत-संगीत पेश करते थे। जिसे जनता ख़ूब पसंद करती थी। नौशाद भी जब इस इलाके से गुज़रते, तो इस गीत-संगीत की गिरफ़्त में आ जाते। वे वहीं खड़े-खड़े यह संगीत सुना करते और यह उनका रोज़ का दस्तूर हो गया था। बहरहाल संगीत सुनते-सुनते, अब उन्हें साज बजाने की चाहत जागी। मगर साज, तो उनके पास था नहीं। संगीत के जानिब उनकी ये चाहत, उन्हें एक वाद्य यंत्रों की दुकान की ओर ले गई। वे वहां नौकरी करने लगे। खाली वक्त में वे चोरी छिपे हारमोनियम बजाने की कसरत करते, उस पर सुर साधने की कोशिश करते। एक दिन उनकी ये ‘चोरी’ पकड़ी गई। संगीत के प्रति नौशाद का जुनून देखकर, दुकान मालिक गुरबत अली ने न सिर्फ़ उन्हें वह हारमोनियम तोहफ़े में दे दिया, बल्कि गज्नफ़र हुसैन उर्फ लड्डन साहब से भी मिलवाया। लड्डन साहब वही थे, जो रॉयल टॉकीज में ऑर्केस्टा बजाते थे। लड्डन साहब ने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया। लड्डन साहब से उन्हें संगीत की बाकायदा तालीम मिली। इसके अलावा उस्ताद बब्बन, यूसुफ़ अली ख़ान ने भी उन्हें मौसीकी का ककहरा सिखाया।

यह भी पढ़ें : सत्यजित रे : सिनेमा के ग्रेट मास्टर

ऑर्केस्टा में संगीत सीखने-बजाने के बाद, नौशाद ने नाटकों में संगीत देना शुरू कर दिया। हीरोज एसोसिएशन के अलावा पारसी रंगमंच के आला ड्रामा निगार आगा हश्र काश्मीरी के कुछ नाटकों को भी उन्होंने अपना संगीत दिया। नाटक कंपनियों और स्टेज प्रोग्रामों में हिस्सेदारी की वजह से वे देर से अपने घर लौटते। नौशाद के वालिद वाहिद अली, जो कचहरी में मोहर्रिर थे, वे इन सब चीजों के सख़्त ख़िलाफ़ थे। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनका बेटा गाने-बजाने जैसा नामाकूल काम करे। लिहाज़ा संगीत की वजह से बाप-बेटे के बीच तनाव बढ़ता चला गया और एक दिन ऐसा भी आया कि उनके अब्बा ने उन्हें यह कहकर घर से निकाल दिया कि ‘‘घर चुनो या संगीत ?’’ अठारह साल के नौजवान नौशाद ने संगीत में अपनी बेहतरी देखी और घर को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया। लखनऊ से वे सीधे मायानगरी मुंबई पहुंचे। थोड़े से अरसे के स्ट्रगल के बाद ही उन्हें फ़िल्म ‘समंदर’ मिल गई। इस फ़िल्म के संगीत में बतौर साजिंदे उन्होंने काम किया। फ़िल्म के संगीतकार मुश्ताक हुसैन ने उनसे अपनी ऑर्केस्टा में पियानो बजवाया। संगीत का गहरा इल्म और कई वाद्य यंत्रों को कामयाबी से बजाने के अपने हुनर से वे जल्द ही संगीतकार के असिस्टेंट के ओहदे तक पहुंच गए। ‘निराला हिंदुस्तान’ और ‘पति-पत्नी’ फ़िल्मों में नौशाद ने संगीतकार मुश्ताक हुसैन, ‘सुनहरी मकड़ी’-उस्ताद झंडे खां, ‘मेरी आंखे’-ख़ेमचंद प्रकाश, ‘मिर्ज़ा साहेबान’-डी. एन. मधोक के साथ असिस्टेंट के तौर पर काम किया। उनकी मेहनत रंग लाई और तीन साल के अंदर ही उन्हें फ़िल्म ‘कंचन’ में संगीतकार की हैसियत से काम मिल गया। अलबत्ता यह बात अलग है कि साल 1940 में आई, ‘रंजीत मूवीटोन’ बैनर की इस फ़िल्म में उन्होंने सिर्फ एक गाना ही रिकॉर्ड करवाया था।

साल 1940 में आई ‘प्रेम नगर’ वह फ़िल्म थी, जिसमें नौशाद ने सफलता का पहली बार स्वाद चखा। इस फ़िल्म के ज़्यादातर गाने हिट हुए। ख़ास तौर पर गीत ‘फ़न के तार मिला जा, अपने हाथों को’। ‘प्रेम नगर’ की कामयाबी ने फ़िल्म इंडस्ट्री में नौशाद को स्थापित कर दिया। फिर आई उनकी फ़िल्म ‘स्टेशन मास्टर’, जो टिकिट ख़िड़की पर बेहद कामयाब साबित हुई। नौशाद की यह पहली फ़िल्म थी, जिसने सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली मनाई। ‘स्टेशन मास्टर’ की सफलता ने नौशाद के लिए बड़े बैनर की फ़िल्मों का रास्ता खोल दिया। एआर कारदार जिन्होंने नौशाद को यह कहकर, ‘‘तुम अभी बच्चे हो, पहले तज़ुर्बा हासिल करो।’’ अपने स्टुडियो से बाहर निकाल दिया था, ख़ुद उन्होंने अपनी फ़िल्म ‘नई दुनिया’ के संगीत के लिए नौशाद को बुलाया। उम्मीद के मुताबिक फ़िल्म ‘नई दुनिया’ और उसका संगीत दोनों ही कामयाब रहे। इसके बाद नौशाद ने कारदार प्रोडक्शन की ज़्यादातर फ़िल्मों शारदा, ‘दुलारी’, ‘नमस्ते’, ‘कानून’, ‘संजोग’, ‘जीवन’, ‘सन्यासी’, ‘नाटक’, ‘दर्द’, ‘शाहजहां’, ‘दिल्लगी’, ‘क़ीमत’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘दास्तान’, ‘जादू’ में अपना संगीत दिया। उनके लाजवाब संगीत की वजह से ये फ़िल्में सुपरहिट रहीं। इस दरमियान उनकी फ़िल्म ‘रतन’ (साल 1944, निर्देशक-एम. सादिक़), ‘मेला’ (साल 1949, निर्देशक-एस.यू. सन्नी) और ‘बैजू बावरा’ (साल 1952, निर्देशक विजय भट्ट) आईं, जिनके गानों ने पूरे मुल्क में धूम मचा दी। यह तीनों ही फ़िल्में म्यूजिकल हिट थीं। ‘रतन’ की कामयाबी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह फ़िल्म सिर्फ पचहत्तर हज़ार रुपए में बनी थी। लेकिन इसके निर्माता जैमिनी दीवान को इस फ़िल्म के रिकॉर्डों की बिक्री से सिर्फ़ एक साल में साढ़े तीन लाख रुपए मिले थे। गाने भी एक से बढ़कर एक दिलफ़रेब ‘अंखियां मिलाके जिया भरमाके’, ‘मिलके बिछड़ गईं अंखियां’, ‘परदेशी बालमा’। वहीं ‘बैजू बावरा’ के गीत आज भी जब बजते हैं, तो सुनने वाले मदहोश हो जाते हैं। उन पर एक नशा सा तारी हो जाता है। ‘बचपन की मोहब्बत को दिल’, ‘ओ दुनिया के रखवाले’, ‘मोहे भूल गए सांवरिया’ आदि गानों के कम्पोज में नौशाद ने कमाल कर दिखाया है।

यह भी पढ़ें : इरफ़ान ख़ान : अदाकारी की इब्तिदा और इंतिहा

एक के बाद एक मिली इन कामयाबियों ने नौशाद को हिंदी सिनेमा का सिरमौर बना दिया। एक दौर था, जब बड़े बैनर और बड़े निर्देशकों की फ़िल्में उन्हीं के पास थीं। महान निर्देशक महबूब की फिल्म ‘अनमोल घड़ी’, ‘अंदाज़’, ‘अनोखी अदा’, ‘आन’, ‘अमर’ एवं ‘मदर इंडिया’ और के. आसिफ़ की शाहकार फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म का संगीत नौशाद ने ही दिया था। इन फ़िल्मों की कामयाबी में उनके संगीत का बड़ा योगदान है। आज भी इन फ़िल्मों के गाने एक अलग ही जादू जगाते हैं। ‘उड़नख़टोला’, ‘कोहिनूर’, ‘गंगा जमुना’, ‘मेरे महबूब’, ‘लीडर’, ‘राम और श्याम’, ‘आदमी’, ‘संघर्ष’ और ‘पाकीज़ा’ फ़िल्मों के गाने भी पूरे देश में मक़बूल हुए। उनके गाने गली-गली में बजते थे। फ़िल्म ‘रतन’ (साल-1944) से लेकर ‘पाकीज़ा’ (साल-1971) तक यानी पूरे सत्ताइस साल नौशाद का हिन्दी सिनेमा में सिक्का चला। जिसके लिए उन्हें कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़ा गया। फ़िल्मों में नौशाद के अनमोल, बेमिसाल योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’, ‘पद्मभूषण’ सम्मान और ‘दादा साहब फ़ाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया। इसके अलावा राज्य सरकारों ने भी उन्हें तमाम सम्मान और पुरस्कार दिए। जिनमें अहम हैं, ‘महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार’, ‘मध्य प्रदेश शासन का लता पुरस्कार’, ‘उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘अमीर ख़ुसरो पुरस्कार’, ‘अवध रत्न पुरस्कार’, ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’, ‘म्यूजिक डायरेक्टर ऑफ मिलेनियम’ और ‘फ़िल्मफ़ेयर स्वर्ण जयंती लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’। नौशाद ने टेली सीरियल ‘टीपू सुल्तान’ और ‘अकबर द ग्रेट’ में भी संगीत दिया। फ़िल्मों की तरह इन सीरियलों का भी संगीत हिट रहा।

नौशाद ने अपने संगीत में न सिर्फ भारतीय वाद्य यंत्रों ढोलक, तबला, बांसुरी, शहनाई, जलतरंग, सितार का बख़ूबी इस्तेमाल किया, बल्कि पश्चिम के वाद्य यंत्रों पियानो, एकार्डियन, स्पेनिश गिटार, कोंगा और लोंगा आदि को भी उसी महारत से अपनाया। उनकी फ़िल्म ‘जादू’, ‘आन’ आदि में इन वाद्य यंत्रों के जादू का एहसास किया जा सकता है। नौशाद ऐसे पहले भारतीय संगीतकार थे, जो अपनी फ़िल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक के सिलसिले में विलायत गए। यह फ़िल्म थी, महान निर्देशक महबूब की ‘आन’। इस फ़िल्म के संगीत की एक ख़ासियत और थी, जिसका कि ज़िक्र बेहद ज़रूरी है, इस फ़िल्म के संगीत में उन्होंने सौ वाद्य यंत्रों के ऑर्केस्टा का इस्तेमाल किया था। आज फ़िल्मों के म्यूजिक और बैकग्राउंड म्यूजिक में साउंड मिक्सिंग का चलन आम है। लेकिन एक ज़माना था, जब हिंदी सिनेमा इस हुनर से वाकिफ़ नहीं था। वे नौशाद ही थे, जिन्होंने अपने संगीत में पहली बार साउंड मिक्सिंग का इस्तेमाल किया। नौशाद को लिखने का भी शौक था। उन्होंने कई फ़िल्मों की कहानियां लिखीं, लेकिन उनमें अपना नाम नहीं दिया। स्टोरी राइटर के तौर पर फ़िल्म में अज़्म् वाजिदपुरी का नाम जाता था। फिल्म ‘उड़नखटोला’, ‘मेला’, ‘बाबुल’, ‘पालकी’, ‘दीदार’, ‘शबाब’ और ‘तेरी पायल मेरे गीत’ की कहानी या कहानी आइडिया नौशाद का ही था।

नौशाद कहानीकार के साथ-साथ एक बेहतरीन शायर भी थे। ‘आठवां सुर’ नाम से उनका एक दीवान है, जिसमें उनकी ग़ज़लें और नज़्में संकलित हैं। नौशाद ने 1937 में लख़नऊ को अलविदा कह दिया था, लेकिन यह शहर उनकी यादों में हमेशा ज़िंदा रहा। अपनी एक ग़ज़ल में वह लख़नऊ को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘वह गलियां वह मुहल्ले, सब बन गए कहानी/मैं भी था लख़नऊ का, यह बात है पुरानी।’’ नौशाद निहायत पारख़ी इंसान थे। होनहार लोगों को वे जल्द ही परख़ लेते थे। मोहम्मद रफ़ी, महेन्द्र कपूर, श्याम कुमार, सुरैया, उमा देवी ‘टुनटुन’ आदि अनेक महान गायक-गायिकाओं का हिंदी फ़िल्मों में आगाज़ कराने वाले नौशाद ही थे। फ़िल्म ‘पहले आप’ के एक गाने की सिर्फ़ एक लाईन गवा कर, उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में मोहम्मद रफ़ी की इब्तिदा कराई थी। उसके बाद, तो रफ़ी ने उनके लिए एक के बाद एक अनेक नायाब गाने गाये। ‘ओ दुनिया के रख़वाले सुन दर्द’, ‘मन तरपत हरि दर्शन को आज’ इन गानों में नौशाद और मोहम्मद रफ़ी की जुगलबंदी देखते ही बनती है। नौशाद को इस बात का भी श्रेय हासिल है कि क्लासिकल म्यूजिक के अज़ीम फ़नकार डी. वी. पलुस्कर और अमीर ख़ान ने उनके लिए ‘बैजू बावरा’ और बड़े गुलाम अली साहब ने ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में गाने गाए थे। वरना, ये महान कलाकार फ़िल्मों से दूर ही रहे। शकील बदायूंनी, ख़ुमार बाराबंकवी और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे बेहतरीन गीतकारों को भी पहली बार मौका नौशाद ने ही दिया था। जिसमें शकील बदायुनी के साथ उनकी जोड़ी ख़ूब जमी। इन दोनों ने मिलकर हिन्दुस्तानी अवाम को अनेक सुपर हिट गाने दिए। नौशाद और शकील बदायुनी की जोड़ी, किसी भी फ़िल्म की कामयाबी की जमानत होती थी। ‘दुलारी’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘आदमी’, ‘राम और श्याम’, ‘पालकी’, ‘उड़नख़टोला’, ‘मदर इंडिया’, ‘मुग़ल-ए-आज़म’, ‘गंगा जमुना’, ‘बाबुल’, ‘दास्तान’, ‘अमर’, ‘दीदार’, ‘आन’, ‘बैजू बावरा’, ‘कोहिनूर’ आदि सदाबहार फ़िल्मों के गीत-संगीत शकील और नौशाद के ही हैं।

क्लासिकल संगीत पहली बार फ़िल्मों में आया, तो उसका भी श्रेय नौशाद को ही है। ख़ास तौर पर उन्हें ‘राग केदार’ बहुत पसंद था। उनकी ज्यादातर फ़िल्मों में एक गाना ‘राग केदार’ पर ज़रूर होता था। नौशाद ने अपने गीतों में लोक संगीत का काफ़ी इस्तेमाल किया। ख़ास तौर से उत्तर भारत के लोक संगीत का। इस संगीत से उन्हें बेहद प्यार था। खुद नौशाद का इस बारे में कहना था, ‘‘हमारे संगीत की अपनी परंपराएं हैं। ये परंपराएं सैकड़ों वर्षों की तपस्या, रियाज़ से बनी हैं। इसमें हमारी मिट्टी की सुगंध है, हमारी ज़िंदगी की शक्ल है।’’ फ़िल्म ‘गंगा जमुना’ के सारे गीत भोजपुरी बोली में थे। शकील बदायुनी के इन गीतों को नौशाद ने लोक धुनों में ढाला था। फिल्म ‘गंगा जमुना’ के ‘दगाबाज तोरी बतियां’, ‘ढूंढ़ो-ढ़ूंढ़ो रे साजना’, ‘नैन लड़ जइहें तो मनवा मा’ और ‘मदर इंडिया’ के ‘पी के आज प्यारी दुल्हनिया चली’, ‘ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे’, ‘होली आई रे’, ‘दुख भरे दिन बीते रे भइया’, ‘नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ढ़ूंढ़ू रे सांवरिया’ जैसे गाने लोक धुनों में होने के बावजूद ऑल इंडिया सुपर हिट रहे थे। नौशाद ने तकरीबन नब्बे फ़िल्मों की अंजुमन को अपने संगीत से सजाया। जिसमें से पांच फ़िल्मों ने प्लेटिनम जुबली यानी यह फ़िल्में देश के कुछ सिनेमाघरों में पचहत्तर हफ़्तें तक चलीं। दस गोल्डन जुबली, तो छब्बीस ने सिल्वर जुबली मनाई। हिंदी फ़िल्मों में ऐसी शानदार कामयाबी बहुत कम संगीतकारों को हासिल हुई है। अपनी ज़िंदगानी में ही वे शोहरत की बुलंदियों को छू चुके थे। 5 मई, 2006 को नौशाद ने इस फ़ानी दुनिया से अपनी रुख़्सती ली। महान गायक केएल सहगल की मौत पर उन्हें अपनी ख़िराजे अक़ीदत पेश करते हुए, नौशाद ने एक शे’र कहा था,‘‘संगीत के माहिर तो बहुत आए हैं, लेकिन/दुनिया में कोई दूसरा सहगल नहीं आया।’’ उसमें सिर्फ़ नाम का रद्दोबदल करते हुए, क्या यह बात उन पर भी सटीक नहीं बैठती?

(लेखक मध्यप्रदेश स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) 

naushad
Naushad Ali
Naushad Ali Birth Anniversary

Related Stories


बाकी खबरें

  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • starbucks
    सोनाली कोल्हटकर
    युवा श्रमिक स्टारबक्स को कैसे लामबंद कर रहे हैं
    03 May 2022
    स्टारबक्स वर्कर्स यूनाइटेड अमेरिकी की प्रतिष्ठित कॉफी श्रृंखला हैं, जिसकी एक के बाद दूसरी शाखा में यूनियन बन रही है। कैलिफ़ोर्निया स्थित एक युवा कार्यकर्ता-संगठनकर्ता बताते हैं कि यह विजय अभियान सबसे…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License