NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
“न भरपेट खाना है, न पानी, ये क्वारंटाइन है या जेल?”
लॉकडाउन के चलते लाखों मज़दूर देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं। ऐसे में कई राज्यों से यह शिकायत आ रही है कि मज़दूरों को भरपेट खाना और पीने का साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा है।
मुकुंद झा
17 Apr 2020
lockdown
Image courtesy:Bangalore Mirror

'पहले तो भरपेट खाना नहीं मिलता। अगर मिलता है तो यह नहीं पता होता कि अगली बार कब मिलेगा। यहां पानी भी नहीं है। 300 मज़दूरों के लिए सिर्फ एक टैंकर पानी आता है। उसी में पीना, नहाना, शौच के लिए जाना सब कुछ करना होता है। यह कुछ ही घंटों में खत्म हो जाता है। कैंपस में सिर्फ एक नल है जिससे बहुत कम पानी आता है।'

ये बातें हमें बंगाल के 48 वर्षीय प्रवासी मज़दूर मज़ीद हुसैन ने बताया। उनके जैसे सैकड़ों मज़दूरों को झारखंड के धनबाद में बीएसके कॉलेज में रखा गया हैं। ये सभी लोग बिहार में निर्माण का काम करते थे। बहुत मज़दूर पूछते हैं कि “न भरपेट खाना है, न पानी, ये क्वारंटाइन है या जेल?”

लॉकडाउन के कारण इनका काम पूरी तरह से बंद हो गया जिस कारण इनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। जिसके बाद इन सभी मज़दूरों ने बिहार से अपने गृह नगर मुर्शिदाबाद की तरफ पैदल लॉन्ग मार्च शुरू कर दिया था। लेकिन बॉर्डर सील होने के कारण इन्हे 30 मार्च को झारखंड पुलिस ने पकड़ लिया और तब से ही ये लोग सरकार द्वारा बनाये गए एक कैंप में रह रहे हैं।

ये कहानी किसी एक मजीद हुसैन या किसी एक राज्य की नहीं है। लॉकडाउन के चलते लाखों मज़दूर ऐसे ही अलग अलग राज्यों में फंसे हुए हैं।  

ऐसे ही सैकड़ों की संख्या में मज़दूर अपने परिवार सहित दिल्ली के टिकरी बॉर्डर के सर्वोदय स्कूल में फंसे हुए है। ये सभी बिहार के प्रवासी मज़दूर हैं। ये लोग इसी स्कूल के निर्माण के लिए आये थे लेकिन अब इनके ठेकदार ने अपने हाथ खड़े कर लिए, जिसके बाद इनके सामने खाने का संकट आ खड़ा हुआ है।

यहाँ फंसे मज़दूरों का कहना है कि सरकार द्वारा जो खाना यहां बाटा जाता है, वो भी इन सभी लोगों को नहीं मिल पाता है और अगर मिलता भी है तो इतना कम कि पूरे परिवार का पेट भरना मुश्किल होता है। ऐसे में इन मज़दूरों की एक ही मांग है कि इन्हे अपने गाँव भेजा जाए जहाँ कम से कम खाना तो मिल जाएगा।

कुछ इस तरह की कहानी गुजरात के सूरत में भी है। वहां भी बड़ी संख्या में बंगाल और बिहार के निर्माण मज़दूर फंसे हुए हैं। उनके सामने भी भोजन का संकट है।

धनबाद में फंसे मज़दूरों की बात करें तो बंगाल सीमा के पास से सैकड़ों लोगों को सुरक्षित बीएसके कॉलेज में क्वारंटाइन में रखा गया है। इसमें अधिकांशतः लोग प. बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के हैं। बीएसके कॉलेज के अन्दर जहाँ इन लोगों को रखा गया है वहां सोशल डिस्टेंस का भी पालन नहीं हो रहा है। इसके साथ ही वहां रह रहे मज़दूर लगातार भोजन व पानी न मिलने की भी शिकायत कर रहे है।

यहां फंसे एक मज़दूर फंसूर ने बताया कि इस लॉकडाउन में उनकी पत्नी की मौत हो गई लेकिन वो उससे मिलने अपने घर नहीं जा सका है। ऐसे ही एक अन्य मज़दूर केतबुल ने बताया कि 14 तारीख को उसके चाचा की भी मौत हो गई थी। वो भी उनसे नहीं मिल सके।

धनबाद के कैंप में रहने वाले मज़दूरों ने कहा कि "हम कोरोना से बच भी गए तो भूख और अन्य बीमारी जैसे डेंगू मलेरिया से मर जाएंगे। क्योंकि जहाँ हम रह रहे हैं वहां इतने मच्छर है की आप पूछिए मत इसके बचाव के लिए कुछ भी नहीं किया जाता है, किसी रूम में पंखा है कही वो भी नहीं है, इसके लिए हमने कहा कम से कम एक मॉर्टिन की ही व्यवस्था करा दो लेकिन किसी ने हमारी एक नहीं सुनी। "

इसके साथ ही मज़दूरों ने बताया कि जब उन लोगो ने यहां की समस्याए मौजूद पुलिस प्रशासन के लोगो को बताई तो उन्होंने कहा वो हमें गोली मार देंगे। इसके बाद से हम बहुत डरे हुए हैं।

हालांकि बुधवार शाम को स्थानीय प्रशासन के अधिकारी मज़दूरों से मिलने गए थे और उनकी समस्याओं को सुना इसके साथ ही उन्होंने मज़दूरों को आश्वासन दिया की वो लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे। जैसे ही उन्हें आदेश मिलेगा वो उनके घरो तक पहुंचने की भी व्यवस्था करेंगे।

गौरतलब है कि लॉकडाउन में फंसे मज़दूरों पर एक निजी संस्था स्ट्रेन्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN) ने एक सर्वे किया और उससे जो आंकड़े सामने आए वो बताते हैं कि लॉकडाउन में मज़दूर बुरी तरह से परेशान हैं। लॉकडाउन करने से पहले इन गरीबों के बारे में जरा भी ध्यान में नहीं रखा गया। उसी का परिणाम हम देख रहे है।

SWAN की रिपोर्ट कहती है कि 50% श्रमिकों के पास एक दिन से भी कम समय के लिए राशन बचा था। लगभग 96% को सरकार से राशन नहीं मिला और 70% को कोई पका हुआ भोजन नहीं मिला और वे भुखमरी के कगार पर है। इसके अतिरिक्त, पुलिस ने मदद करने से इनकार कर दिया और सहायता के लिए अपने स्वयं के राज्यों से संपर्क करने के लिए कहा।

रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन को "अनियोजित" और "एकतरफा" तरिके से लागू किया गया है। इसके साथ ही मांग की गई है कि सभी के लिए तत्काल राशन की मुहैया कराया जाए। कम से कम दो महीनों के लिए फंसे हुए कर्मचारी को 7,000 रुपये का नकद दिया जाए और और अन्य कई तात्कालिक उपायों के साथ-साथ भोजन केंद्रों की संख्या में वृद्धि की जाए।

Coronavirus
COVID-19
Lockdown
Migrant workers
Quarantine
Hunger Crisis
poverty

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License