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इंडियन मैचमेकिंग पर सवाल कीजिए लेकिन अपने गिरेबान में भी झांक लीजिए!
अरेंज मैरिज के कॉन्सेप्ट को दिखाने वाला मैचमेकिंग शो सोशल मीडिया पर इनदिनों काफी चर्चा में है। कुछ लोग इसमें मौजूद नारी-विरोध, जातिवाद और रंगवाद की आलोचना कर रहे हैं तो वहीं कई इसे हमारे समाज की सच्चाई मान अपने गिरेबान में झांकने को प्रेरित भी हो रहे हैं।
सोनिया यादव
02 Aug 2020
इंडियन मैचमेकिंग

“लड़की को कॉम्प्रोमाइज करना ही पड़ता है”

ये एक ऐसी लाइन है जो अमूमन आपको हर घर में लड़की का रिश्ता तय होते समय सुनने को जरूर मिल जाएगी। ठीक यही बात नेटफ्लिक्स के नए शो इंडियन मैचमेकिंग में भी आपको सुनाई देगी। शो में मुंबई की फेमस मैचमेकर सीमा तापरिया अलग-अलग लोगों के लिए लाइफ पार्टनर ढूंढने की कोशिश कर रही हैं। इसमें अरेंज मैरिज के कॉन्सेप्ट को दिखाने की कोशिश की गई है, जिसकी काफी चर्चा हो रही है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर सैकड़ों मीम्स और जोक्स भी चल रहे हैं। शो में मौजूद नारी-विरोध, जातिवाद और रंगवाद की कुछ लोग आलोचना कर रहे हैं तो वहीं कई इसे हमारे समाज की सच्चाई मान अपने गिरेबान में झांकने को प्रेरित भी हो रहे हैं।

आख़िर है क्या इस शो में?

करीब दो हफ़्ते पहले नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुआ ये शो अब भी ओटीटी प्लेटफॉर्म के टॉप लिस्ट में बना हुआ है। इस शो में कुल आठ एपिसोड्स हैं, जिसे सीमा तपारिया प्रस्तुत कर रही हैं। मैचमेकर सीमा शो के दौरान भारत और अमरीका में रह रहे अपने क्लाइंट के लिए सही जोड़ी ढूंढती हैं। वो कहती हैं, "जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं और धरती पर इसे अंजाम देने का काम ईश्वर ने मुझे सौंपा है।"

सीमा तपारिया अपने क्लाइंट्स के साथ काफी घुल-मिलकर रहती हैं। उनकी पसंद-नापसंद समझने की कोशिश करती हैं। वो शो के दौरान आलिशान होटलों में होने वाले दूल्हे-दुल्हन से मिलने जाती हैं। उनके व्यवहार और पार्टनर को लेकर उनकी आकांक्षाओं को समझने की कोशिश करती हैं।

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अरेंज मैरिज की सामाजिक मान्यता

सीमा अरेंज मैरिज की सामाजिक मान्यता को बखूबी समझती हैं और इससे जरूरत के लायक पैसा भी कमाती हैं। वो कहती हैं, "मैं लड़के और लड़की से बात करती हूँ और उनके स्वभाव को परखती हूँ। मैं उनके घर जाती हूँ और उनके जीने का तरीका देखती हूँ। मैं उनसे उनकी पसंद और शर्तें पूछती हूँ।”

शो में डेटिंग ऐप पर सही जोड़ियां नहीं मिलने से निराश लोग कैसे परंपरागत तरीके से घर बसाने के रास्ते पर चल पड़ते हैं इसकी कहानी भी हैं। लेकिन पूरा शो जिस मुद्दे के इर्द-गिर्द घुमता है वो है भारत में होने वाले अरेंज मैरेज की सच्चाई। जिसमें लड़कियों को एक ‘वस्तु’ की तरह दिखाया जाता है, ‘परफेक्ट मैरेज मटीरियल’ की तलाश की जाती है। 

दो लोग नहीं, दो परिवारों के बीच होती है शादी

शो में सीमा शादी को एक पारिवारिक दायित्व के तौर पर दिखाती हैं। वो जोर देकर कहती हैं कि माता-पिता अपने बच्चों की बेहतरी भली-भांति जानते हैं और उन्हें बच्चों को इस मामले में गाइड करना चाहिए। हालांकि, जैसे-जैसे शो आगे बढ़ता हैं वैसे-वैसे हमें समझ आने लगता है कि यह मामला सिर्फ़ मार्गदर्शन भर का नहीं रह जाता। बल्कि यह माता-पिता ही होते हैं जो सब कुछ तय करते हैं खासकर लड़के की मां जो 'लंबी और गोरी लड़की' की मांग करती हैं और वो भी 'अच्छे परिवार' और अपनी जाति की लड़की की।

सीमा तपारिया के अनुसार ज्यादातर मामलों में माता-पिता ही इस मामले में इसलिए बात करते हैं क्योंकि भारत में दो परिवारों के बीच शादी होती है और परिवारों की अपनी इज्जत होती है। उनके लाखों रुपयों का भी सवाल रहता है इसलिए माता-पिता बच्चों को इस मामले में गाइड करते हैं।

‘परफेक्ट मैरेज मटीरियल’ की तलाश

शो में आपको शादी के लिए 'बायोडेटा', कुंडली, ज्योतिष और फेस रीडर की भूमिका भी देखने को मिल जाएगी। जिसकी हमारे समाज में कथित तौर पर सबसे अधिक वैधता है। ये शो उन लोगों के लिए आइना है जो शादी के रिश्ते में बंध रहे लोगों के बीच प्यार, कम्पेटिबिलिटी, आपसी समझ को तूल न देकर सभी गुण मिलवाने पर जोर देते हैं।

मैचमेकिंग में आपको एडजेस्टमेंट और समझौते वाली थ्योरी भी देखने को मिल जाएगी। सीमा अपने क्लाइंट्स से जिनमें ज्यादातर आत्मनिर्भर महिलाएँ होती हैं, उन्हें परफेक्ट मैच नहीं मिलने की स्थिति में 'समझौता' करने या 'लचीला' रुख अपनाने को कहती हैं। वो हमेशा शो के दौरान अपने क्लाइंट्स के लुक को लेकर टिप्पणी भी करती रहती हैं। एक जगह उन्होंने एक महिला को 'फोटोजेनिक' नहीं बताया है। लेकिन वास्तव में ये हमारे पितृसत्तात्मक समाज की ही कड़वी सच्चाई है, जहां हर लड़की को सुंदर, सुशील और संस्कारी के पैमाने में आंका जाता है। उन्हें समझौते करने की सलाह दी जाती है, चुप रहकर सहनशील बनना सिखाया जाता है।

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शो में कुछ NRI लोगों जैसे नादिया, अपर्णा, अक्षय की कहानियां दिखाई गई हैं। जिनके लिए सीमा एक परफेक्ट लाइफ पार्टनर की तलाश कर रही हैं। यहां लोगों को गोरी लड़कियां, अमीर लड़के और मां को खुश रखने वाले लाइफ पार्टनर्स चाहिए और यही बात दर्शकों को अच्छी नहीं लग रही है। नतीजा ये कि लोग जमकर ट्विटर पर इसका मजाक उड़ा रहे हैं और इसकी कमियों के बारे में भी बात कर रहे हैं।

सीमा तपारिया उन परिवारों को भी हैंडल करती हैं, जो सो थोड़े मार्डन ख्यालों के हैं। जो लड़के से 7 साल बड़ी लड़की पर भी ऐतराज नहीं जताते और लड़की, लड़के को उसकी सैलरी के चलते खारिज कर सकती है। वहीं दूसरी ओर अक्षय की एक मां भी हैं जो अपने लाडले के लिए ऐसी लड़की की आस रखती हैं जो सुंदर हो, थोड़ी फ्लेक्सिबल भी हो साथ ही आसानी से एजडस्ट कर ले।

पितृसत्ता के पूर्वाग्रहों पर सवाल

शो के दौरान एक मां सीमा तपारिया से कहती हैं कि उन्हें अपने लड़के लिए बहुत सारे प्रस्ताव मिले हैं लेकिन उन्होंने वो सब इसलिए खारिज कर दिए क्योंकि लड़की या तो 'बहुत पढ़ी-लिखी' नहीं थी या फिर उनकी 'लंबाई' कम थी।

ये शो पितृसत्ता के पूर्वाग्रहों पर सीधा-सीधा सवाल तो नहीं उठाता लेकिन कई जगहों पर समाज में मौजूद पुरुषवाद, स्त्रीविरोध, जातिवाद और रंगवाद को लेकर आइना जरूर दिखाता है।

वुमेन प्रोटेक्शन ऑरगनाइजेशन से जुड़ी अनिता सिंह बताती हैं कि भारत में लड़कियों को जो घर की इज्जत बताया जाता है वास्तव में उनके दुखों की शुरुआत वहीं से हो जाती है। जब शादी के लिए लोग लड़की देखने जाते हैं तो उसकी पूरी प्रक्रिया ही हीन भावना से भरी होती है। बात-बात पर लड़की को अपमानित किया जाता है, उसके रंग-रूप को लेकर नीचा दिखाया जाता है।

अनिता इस शो के बारे में कहती हैं, “ये कहना गलत नहीं होगा कि ‘इंडियन मैचमेकिंग’ भारत के इतने बड़े मैचमेकिंग सिस्टम की बस छोटी सी झलक भर है। इसे ट्रोल कर रहे हैं, वो पहले अपने गिरेबान में झांक लें। आज भी देश में 90 फ़ीसद शादियाँ अरेंज्ड ही होती हैं। जो बहुत ही पेचीदा और रूढ़िवादी मानसिकताओं से भरी होती हैं। ज्यादातर मामलों में लड़कियों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है। उनके गुण और दोष का मोल भाव होता है। कई लोगों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि खाने और सफाई के अलावा लड़की में और भी कोई प्रतिभाएं, योग्यताएं और क्षमताएं है या नहीं, उन्हें सिर्फ दहेज,खानदान और इस बात से फर्क पड़ता है कि लड़की बस गाय जैसी सीधी होनी चाहिए।”

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अरेंज मैरिज और आउट ऑफ बॉक्स लड़कियां

पत्रकार और समाजिक कार्यकराता आरजू अहुजा का मानना है कि यह एक शानदार रियलिटी शो है। इस ने हमारे समाज की सच्चाई को बस हल्का सा टच किया है, लेकिन फिर भी ये लोगों की नज़रों में आ गया है। शो में अपने लिए दुल्हन की तलाश में लगा एक व्यक्ति बताता है कि वो 150 लड़कियों को अब तक रिजेक्ट कर चुका है। वास्तव में आज भी अरेंज मैरिज के तहत लड़कियों को एक खास बॉक्स में फिट करने की कोशिश की जाती है लेकिन जो लड़कियों आउट ऑफ बॉक्स होती हैं, सिस्टम में फिट नहीं बैठती उनके लिए समस्या खड़ी हो जाती हैं।

आरजू के अनुसार जो लड़कियां हर बात पर समझौता नहीं करती, जो एडजस्ट नहीं करना चाहती। बहुत महत्वाकांक्षी होती हैं, अपने करियर का त्याग नहीं करना चाहती। उन्हें समाज अलग नज़रिए से देखता है। वास्तव में हम कितने भी मॉर्डन होने का दावा कर लें लेकिन आज भी हमारे समाज में वो लड़कियां अनपरफेक्ट ही होती हैं, जो घर के काम में रूचि नहीं रखती या जिनका रंग गोरा नहीं है, मोटी या बहुत खुबसूरत नहीं है। 

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