NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नया औद्योगिक संबंध क़ानून : रोज़गार सुरक्षा को अलविदा
नए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड(आईआरसी) ने हमेशा के लिए नौकरी की सुरक्षा को बदल दिया है। अब कर्मचारियों को मालिकों की दया पर रहना होगा।
सुबोध वर्मा
02 Dec 2019
Translated by महेश कुमार
New Industrial Relations Law
प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो साभार: Livemint

चुपचाप, निश्चित तौर पर गुप्त रूप से, मालिकों और कर्मचारियों के बीच संबंधों में एक बड़ा बदलाव कर दिया गया है। यह न केवल सभी तरह के कर्मचारियों(चाहे निजी हो या सार्वजनिक क्षेत्र, उद्योग या सेवा क्षेत्र) को प्रभावित करेगा, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को भी यह बुरी तरह से प्रभावित करेगा। नौकरियां अब वैसी नहीं रहेंगी जैसी अब से पहले थीं।

28 नवंबर को, नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा में एक नया औद्योगिक संबंध कोड, 2019 (आईआरसी) पेश किया। यह मसौदा कोड 2017 का पुराना संस्करण है जिसे तब सार्वजनिक किया गया था और इसके श्रम विरोधी प्रावधानों की वजह से देश भर में विरोध का तूफान खड़ा हो गया था। लेकिन इस  नए मसौदे को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया। यह न केवल संसद सदस्यों के लिए बल्कि देश भर में यूनियनों और मज़दूरों एवं कर्मचारियों के लिए एक आश्चर्य के रूप में सामने आया है। यह इसका गुप्त भाग है।

आईआरसी ने तीन प्रमुख मौजूदा श्रम क़ानूनों की जगह ली है जिसमें ट्रेड यूनियन्स एक्ट, 1926; औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946; और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 शामिल हैं। इनमें से पहला क़ानून ट्रेड यूनियनों के गठन के मामले को डील करता है, जबकि दूसरा और तीसरा मालिक और कर्मचारियों के बीच संबंधों के मामले से ताल्लुक रखता है।

पेश किए जाने के बाद, स्पष्ट रूप से यह सार्वजनिक जांच के तहत आ गया है। और इसके प्रावधानों से नाराज़गी का एक नया दौर शुरू हुआ है। ट्रेड यूनियनों ने फिर से इसकी निंदा की है। सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने पहले से ही 8-9 जनवरी, 2020 को दो-दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया हुआ है, जो अन्य श्रम क़ानूनों के ख़िलाफ़ आयोजित की जानी थी, वे क़ानून जो या तो पारित हो चुके हैं या पाइपलाइन में हैं। नए औद्योगिक संबंध कोड को भी इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ेगा।

आईआरसी का एक हिस्सा ट्रेड यूनियनों के गठन तथा नए और अधिक प्रतिबंधात्मक प्रावधानों से संबंधित है। इसका मतलब श्रमिकों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सामूहिक यूनियन बनाकर सशक्त होने से रोकना है। पहले की न्यूज़क्लिक रिपोर्ट में इस बारे में विवरण दिया हुआ है। आइए हम एक अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान पर नज़र डालें।

रोज़गार सुरक्षा को अलविदा

आईआरसी प्रावधान जो मालिक-कर्मचारी संबंध के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल देता है, उसकी कारगुज़ारी धारा 2 खंड (एल) में दी गई एक छोटी परिभाषा में निहित है, जो इस प्रकार है:

(I) "निश्चित अवधि के रोज़गार" का अर्थ है कि एक मज़दूर का निश्चित अवधि के रोज़गार के लिए लिखित अनुबंध:

बशर्ते कि—

(ए) काम, वेतन, भत्ते और अन्य लाभ तथा उनके काम के घंटे, समान कार्य या समान प्रकृति के होंगे जो स्थायी कर्मचारी से कम नहीं होंगे; तथा 

(ख) वह किसी स्थायी कर्मचारी को उपलब्ध सभी सांविधिक लाभों का पात्र होगा जो उसके द्वारा प्रदान की गई सेवा की अवधि के अनुसार आनुपातिक रूप से उपलब्ध होगा, भले ही उसके रोज़गार की अवधि संविधि में अपेक्षित रोज़गार की योग्यता अवधि तक न हो;

इसका क्या मतलब है? इसका अर्थ है कि मालिक श्रमिकों/कर्मचारियों को एक निश्चित अवधि के लिए काम पर रख सकता है, जैसे कि एक वर्ष, दो वर्ष, या जो भी हो। ऐसे श्रमिकों के पास सेवा, वेतन आदि की सभी समान शर्तें होंगी और सभी समान वैधानिक लाभ 'स्थायी कर्मचारी' के रूप में होंगे। अंतर केवल इतना होगा कि ‘निश्चित अवधि’ का कर्मचारी अपने कार्यकाल के समाप्त होने पर ख़ुद ही कर्मचारी नहीं रहेगा।

एक लचीला कार्यबल तैयार करना

इसका मतलब यह है कि कामकाजी कर्मचारी नियोक्ता की दया पर होगा। उसे पता रहेगा कि उसकी नौकरी केवल एक वर्ष के लिए है। उस एक वर्ष में, यदि कोई समस्या पैदा होती है, अगर उसे किसी भी अन्य लाभ से इनकार किया जाता है, यदि उसका कोई उत्पीड़न या अपमान किया जाता है, तो वह एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं करेगा। अगर ऐसा करता है तो अन्यथा, उसकी नौकरी को नवीनीकृत नहीं किया जाएगा।

साथ ही, सभी नियमों और शर्तों को मज़दूर को स्वीकार करना होगा। यदि मालिक ट्रेड यूनियनों को नापसंद करता है, तो असहाय फिक्स्ड कर्मचारी को यूनियनों की तरफ़ रुख नहीं करना होगा।

और अगर मालिक यह घोषणा करता है कि उसका नौकरी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है, कि उत्पादकता कम है, कि उसमें जोश नहीं है, तो निश्चित अवधि के कर्मचारी को ज़्यादा मेहनत कर अधिक उत्पादन करना होगा।

और, अंततः, कर्मचारियों के सभी सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, अगर मालिक कड़ी प्रतिस्पर्धा या किसी अन्य कारण से ख़ुद को वित्तीय परेशानी में पाता है, तो वह बस रोज़गार के कार्यकाल के समाप्त होने का इंतज़ार करेगा। इसका मतलब है, अलविदा कर्मचारी, अब आप दूसरी नौकरी की तलाश करें।

इसका मतलब यह है कि एक निश्चित अवधि का कर्मचारी कभी भी एक जगह बस नहीं पाएगा, वह भविष्य की योजना बनाने या किसी भी चीज़ में निवेश करने में सक्षम नहीं होगा। क्योंकि कौन जानता है कि उसकी नौकरी कब चली जाए!

कलम की इस एक मार ने एक ही झटके से वर्तमान और भविष्य के करोड़ों मज़दूरों के पूरे जीवन को अकल्पनीय रूप से बदल दिया गया है – यानी उसे और बदतर बनाने के लिए।

ताक़त का स्थानांतरण 

यह तर्क दिया जा सकता है - और कई तर्क देते भी हैं - कि मालिक सभी कर्मचारियों के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकता है। वह एक धर्मार्थ संगठन नहीं है बल्कि व्यापार चलाता है!

लेकिन इस बदलाव का आविष्कार होने से पहले भी उद्यम चल रहे थे। ऐसा नहीं था कि कर्मचारी कारख़ानों और अन्य प्रतिष्ठानों में बेकार बैठे थे। वास्तव में, यदि आप उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण के आंकड़ों को देखते हैं, तो यह दर्शाता है कि पिछले कुछ वर्षों में प्रति-मज़दूर उत्पादकता लगातार बढ़ रही है। अधिकांश उद्योगों में श्रमिक ओवरटाइम कर रहे हैं जो इस बात का संकेत है कि काम का दबाव बहुत ज़्यादा है। फ़ैक्ट्री आउटपुट भी लगातार बढ़ रहा है, सिर्फ़ हाल के महीनों को छोड़कर जब मंदी ने कई उद्योगों को बर्बाद कर दिया है।

इसलिए, सरकार की तरफ़ से किया जाने वाला यह बदलाव उद्योगों को बेहतर ढंग से चलाने के बारे में नहीं है। यह श्रमिकों को तंग करने के लिए है, ताकि प्रबंधन अपनी ज़रूरतों के अनुसार उन्हें काम पर रखे या उन्हें निकाल दे और उन्हें अधिक दब्बू और नम्र बनाने के लिए मजबूर करना है - संक्षेप में, इस क़ानून का असली मक़सद तो मज़दूरों को आधुनिक दासों में बदलना है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

New Industrial Relations Law: A Farewell to Job Security

IR Code
Industrial Relations Code
Modi government
Fixed Term Employment
TU Strike Call
job insecurity
Hire and Fire

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License