पत्रकार पोजेल चाओबा के समाचार पत्र, द फ्रंटियर मणिपुर के नाम भेजे गये नोटिस को लेकर व्यापक नाराजगी के बीच, केंद्र ने हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार प्रशासन के प्राधिकार को तत्काल प्रभाव से वापस लेने के लिए कहा है। इस वापसी के आदेश को जारी करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया है कि नए डिजिटल मीडिया नियमों के अनुपालन को लेकर इसके द्वारा राज्य सरकारों को कोई शक्तियां नहीं सौंपी गई हैं, मान्या सैनी की रिपोर्ट।
मणिपुर पुलिस ने समाचार संगठन, द फ्रंटियर मणिपुर (टीएफएम), और इसके कार्यकारी निदेशक, पोजेल चाओबा के खिलाफ नए डिजिटल मीडिया दिशानिर्देशों के तहत जारी किये गए क़ानूनी नोटिस को कुछ ही घंटों के भीतर वापस लेने का फैसला किया है। इस वापस लिए जाने वाले नोटिस में कहा गया है, “आपको यह सूचित किया जाता है कि इस कार्यालय द्वारा 1 मार्च 2021 को जारी सम संख्या वाले नोटिस को, तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाता है।”
नोटिस वापस लिए जाने पर टिप्पणी करते हुए चाओबा ने द वायर को बताया कि उन्होंने शाम 6 बजे के समय अपने ऑफिस के गेट पर इस नोटिस को चस्पा पाया था। उनका कहना था “इसे उसी पश्चिम इम्फाल जिला मजिस्ट्रेट, नोरेम प्रवीण सिंह द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था।”
समाचार पत्र को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत परिभाषित नए नियमों के अनुपालन को साबित करने वाले दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के संबंध में जारी नोटिस के खिलाफ राष्ट्रव्यापी नाराजगी के बीच इस कदम को उठाया गया है। मीडिया और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन जैसे नागरिक समाज संगठनों की ओर से द फ्रंटियर मणिपुर के खिलाफ कार्रवाई के बाद बोलने और प्रेस की स्वतंत्रता जैसी महत्वपूर्ण चिंताओं को उठाया गया था।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव, अमित खरे ने मणिपुर सरकार को स्पष्ट करते हुए लिखा कि सिर्फ मंत्रालय के पास ही दस्तावेजीकरण, सूचना के खुलासे, आचार संहिता के अनुपालन और 3-स्तरीय तंत्र वाली पद्धति से शिकायतों के निवारण की शक्तियाँ हैं। इसमें आगे कहा गया है कि “राज्य सरकारों, जिला मजिस्ट्रेट, या पुलिस कमिश्नर को” कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं। इस पत्र को दिनांक 2 मार्च को मणिपुर के मुख्य सचिव राजेश कुमार के नाम संबोधित किया गया, और इसमें जिला मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित खानासी नेइनासी के प्रकाशक को जारी किये गए नोटिस का उल्लेख किया गया था।
प्रारंभिक नोटिस में टीएफएम द्वारा अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर आयोजित ऑनलाइन चर्चा “घेरेबंदी के तहत मीडिया: क्या पत्रकार बेहद कठिन दौर के बीच में जी रहे हैं” नामक शीर्षक पर आपत्ति दर्ज की गई थी। इस पैनल में स्थानीय स्वतंत्र पत्रकार सहित टीएफएम के कर्मचारी, किशोरचन्द्र वांगखेम ग्रेस जाजो, और चाओबा के साथ-साथ निंगलुन हंघाल शामिल थे।
यह सप्ताहांत शो नियमित तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भाषण और मीडिया की आजादी पर हो रहे हमलों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा का आयोजन करता है। संयोगवश जिस टॉक शो प्रकरण पर मणिपुर सरकार ने आपत्ति दर्ज की थी, उसका विषय पिछले हफ्ते केंद्र द्वारा घोषित नए डिजिटल मीडिया नियमन नियमों और इसके समाचार संस्थानों पर इसे क्रियान्वित किये जाने पर पड़ने वाले असर को लेकर था। शो को फेसबुक पर प्रसारित किये जाने के एक दिन बाद इस नोटिस को भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि टीएफएम को नए नियामक दिशानिर्देशों का पालन करना आवश्यक था, क्योंकि इसके द्वारा सोशल मीडिया पर समाचार और सम-सामयिक विषयों को मुहैया कराया जाता है।
द न्यूज़ मिनट से बात करते हुए चाओबा ने अपीलीय अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में सूचना को प्रस्तुत किए जाने को लेकर सवाल उठाए थे। उनका यह भी कहना था कि यह नोटिस “मीडिया और डिजिटल मीडिया पर एक सोचा-समझा हमला है” और उन्होंने दस्तावेजीकरण की मांग कर रहे पुलिस अधिकारियों के इसमें शामिल होने की निंदा की।
चाओबा के मुताबिक, 2 मार्च को उनके कार्यालय में छह से सात की संख्या में पुलिस अधिकारी नोटिस के साथ दाखिल हुए थे। इसके साथ ही उनका कहना था कि टीएफएम ने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया था और इसलिए सरकार की कार्रवाई “दर्शाती है कि शासन द्वारा हमारा उत्पीड़न किया जा रहा है, हमारे ऊपर इस प्रकार के नोटिस थोपे जा रहे हैं। इस प्रकार का डराना-धमकाना, व्यवस्थित प्रताड़ना और दमन है।”
यह लेख मूल रूप से द लीफलेट में प्रकाशित हुआ था।
(मान्या सैनी सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन, पुणे में पत्रकारिता की छात्रा हैं और द लीफलेट के साथ इंटर्न के तौर पर सम्बद्ध हैं।)
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