NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
परमाणु हथियार : ज़रूरी या विनाश का रास्ता?
अमेरिका द्वारा किए गए बर्बर परमाणु सर्वनाश के इतिहास से प्रेरणा लेते हुए, भारत और पाकिस्तान ने शक्ति प्रदर्शन के लिए परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था। इसके लिए अरबों रुपये ख़र्च किए गए, जबकि इस दौरान दोनों ही देशों के लोग भयावह ग़रीबी में ज़िंदगी गुज़ारने के लिए मजबूर थे।
सौलत नागी
05 Jun 2021
परमाणु हथियार : ज़रूरी या विनाश का रास्ता?

11 मई, 1998 को भारत ने पोखरण में तीन परमाणु विस्फोट किए थे। इसके बाद 13 मई को दो और परमाणु विस्फोट किए गए। ऑपरेशन शक्ति एक सफल कार्यक्रम था। भारत के उन्माद की प्रतिक्रिया में 28 मई को पाकिस्तान ने सनसनीखेज ढंग से चगई में पांच सफल परमाणु विस्फोट किए, जिसके बाद 30 मई को एक और विस्फोट खारन रेगिस्तान में किया गया। दोनों देशों के बीच जो युद्धोन्माद है, उसके चलते वहां के मध्यमवर्ग ने परमाणु बम के परीक्षण पर जमकर जश्न मनाया।

अमेरिका में 'प्रसार-रोधी नीति (काउंटर-प्रोलिफरेशन पॉलिसी)' के पूर्व निदेशक पीटर लेवॉय ने तब "द कास्ट ऑफ़ न्यूक्लियर वीपन इन साउथ एशिया" नाम के पेपर में लिखा, "नई दिल्ली और इस्लामाबाद परमाणु हथियारों या उनकी वितरण प्रणाली पर कितना खर्च करते हैं, उसका ब्योरा देने के इंकार करते रहे हैं। लेकिन श्रम, सुविधाकेंद्रों और लागत के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि दोनों ही देशों ने कम से कम 1-1 बिलियन डॉलर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम कुछ मिसाइलों के निर्माण और डिज़ाइन पर ख़र्च किए हैं (भारत की पृथ्वी और अग्नि, पाकिस्तान की गौरी और शाहीन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइल हैं)। दोनों ही देशों द्वारा कुछ दूसरे हथियारों के निर्माण और विस्फोटक सामग्री के उत्पादन पर 5 बिलियन डॉलर तक खर्च करने की संभावना है।"

विस्फोट का सबसे पहला नतीज़ा भारत और पाकिस्तान के खिलाफ़ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध रहे। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने एक तरफ तो पाकिस्तान के नागरिकों को बधाई दीं, लेकिन दूसरी तरफ उन्हें बढ़ते विदेशी कर्ज़ के चलते अपने विदेशी मुद्रा खातों को स्थगित करना पड़ा। यह पूरी कवायद पाकिस्तान के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक रही और "इससे भयावह आंतरिक और बाहरी आर्थिक आपाधापी मची। चूंकि बाज़ार निवेशकों का विश्वास खो चुका था, इसलिए स्टॉक बाज़ार ढह गए।" पेपर में आगे लिखा: "परमाणु परीक्षण के अपने उन्माद के बाद पाकिस्तान को आर्थिक बर्बादी और राजनीतिक दिवालियापन का सामना करना पड़ा।" दरअसल यह परमाणु बम सीधे लोगों पर गिरे थे। 

वहीं भारत में परमाणु विस्फोट "चीन-पाकिस्तान ख़तरे" से निपटने के लिए जरूरी थे। पाकिस्तान के लिए "यह भारत को जरूरी जवाब था।" दोनों ही देशों ने खुद को "बर्बादी के साधनों के शांतिपूर्ण उत्पादन" को सुपुर्द कर दिया। परमाणु बमों के बारे में हर्बर्ट मारक्यूज़ ने चेतावनी देते हुए कहा था, "यह साधन जिनकी रक्षा करते हैं, उन्हें ही बर्बाद कर देते हैं।" शांति का विकल्प तबाही कैसे हो सकती है? हिरोशामी और नागासाकी पर परमाणु बमबारी की तबाही जापान के आम नागरिकों को झेलनी पड़ी थी, ना कि उस सत्ताधारी वर्ग को, जो आराम से टोकियो में रह रहा था। जो लोग इन तबाही के साधनों को हासिल करने पर बधाई दे रहे थे, वे बहुत अच्छे से इतिहास जानते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने बदलाव लाने की कोशिश नहीं की।

ब्रिटेन, फ्रांस और रूस को छोड़कर, पूरे पश्चिम ने भारत और पाकिस्तान की खुलकर आलोचना की। फिर भी भीतर ही भीतर यह देश गरीबी से अटे पड़े देशों द्वारा शक्ति प्रदर्शन से उपजने वाले भौंडेपन और भारत-पाकिस्तान की आत्म-मुग्धता पर मुस्कुरा रहे थे। किसी भी तरह के हथियारों की प्रतिस्पर्धा की तरह, परमाणु हथियारों की दौड़ भी लंबे वक़्त में इन पश्चिमी देशों के हित में रहती है। शीत युद्ध के खात्मे के बाद, नई पूंजी बनाने के लिए परमाणु युद्ध, या कम से कम परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा जरूरी हो गई थी। आखिर इसमें भारत और पाकिस्तान के कुलीन वर्ग से ज़्यादा कौन मदद कर सकता था, क्योंकि इन दोनों देशों के मध्यवर्ग में एक-दूसरे से डर और घृणा गहरे तक पैठ बना चुकी है। लेकिन इनका दुश्मन कहा हैं? भारत और पाकिस्तान में एक अरब से भी ज़्यादा लोग रहते हैं, इनमें से ज़्यादातर के पास बुनियादी सेवाओं की तक सुविधा नहीं है। इसके बावजूद इन दोनों देशों की सरकार साइरिल रेडक्लिफ द्वारा बनाई एक काल्पनिक रेखा के ईर्द-गिर्द अपनी शत्रुता जारी रखती आई हैं।

कोविड-19 संकट के बहुत पहले,भारत सरकार ने माना था कि उसकी 22 फ़ीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे हैं। बता दें इस गरीबी रेखा की कई व्याख्याएं हैं, इसके ऊपर एकमत नहीं है। दुनियाभर में मधुमेह से पीड़ित लोगों में से छठवां हिस्सा अकेले भारत में है। बड़ी संख्या में यहां लोग ऐसे रोगों से मर जाते हैं, जिन्हें पश्चिमी देश अपने यहां से खत्म कर चुके हैं। गरीब़ लोगों की बीमारी टीबी, अब भी पाकिस्तान और भारत में जीवन के लिए बड़ा ख़तरा बनी हुई है। 

एशिया विकास बैंक के मुताबिक़, पाकिस्तान में 2015 में 24.3 फ़ीसदी आबादी राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे रह रही थी, जबकि बहुआयामीय गरीबी सूचकांक के मुताबिक़ देश की 38.8 फ़ीसदी आबादी गरीब़ है। पाकिस्तान में जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 67 अपने पांचवे जन्मदिन से पहले मर जाते हैं। जीडीपी का कर्ज से अनुपात भी 76.73 फ़ीसदी के बेहद खराब़ स्तर पर है। विदेशी कर्ज़ 105 बिलियन डॉलर (2019) के आसपास है। पाकिस्तान अपनी जीडीपी का 4 फ़ीसदी हिस्सा सेना पर खर्च करता है। दुनिया भर में, अपनी जीडीपी के हिस्से में सबसे ज़्यादा खर्च करने वाले देशों में पाकिस्तान 9वें पायदान पर है, पाकिस्तान इज़रायल (4.3%) से थोड़ा ही नीचे है। जबकि पाकिस्तान में स्वास्थ्य पर सिर्फ़ 2.6 फ़ीसदी ही खर्च किया जाता है, यह आंकड़ा भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया अनुमान दिखाई देता है। 

परमाणु हथियारों के विकल्प से पाकिस्तान के आम लोगों में कितना बदलाव आया? यह अब भी बड़ा सवाल बना हुआ है। अगर इस कार्यक्रम के पीछे मूल मंशा सैन्य बजट में कमी लाने की थी, तो इससे उल्टा प्रभाव ही पड़ा है। अगर परमाणु कार्यक्रम का मूल उद्देश्य भारत के खिलाफ़ प्रतिरोध को मजबूत करना था, तो चीजें संभावनाओं के मुताबिक़ नहीं हुई हैं।

मार्क होर्खीमर के मुताबिक़ "बाहरी नीति", "आंतरिक नीति का ही सतत स्वरूप" है। आंतरिक स्तर पर सत्ता ज़्यादा सक्रिय और दमनकारी बन गई है। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक़, अफ़गानिस्तान में अमेरिका के हमले ने पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को कई आरोपी आतंकियों को गिरफ़्तार करने को उकसाया, इनमें से कई लोग बाद में लापता हो गए। जबरदस्ती लापता हुए मामलों की जांच करने के लिए गठित आयोग के सामने ऐसी 3000 शिकायतें आई थीं। इसके लिए एम्नेस्टी इंटरनेशनल, 2016 की रिपोर्ट देखिए। अमेरिकी सहयोग से प्रेरित मुशर्रफ ने हत्याओं का एक लंबा सिलसिला शुरू कर दिया। पाकिस्तानी फौज़ द्वारा बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर अकबर बुगाती को उनके गृहनगर से "गिरफ़्तार करने की महीनों तक असफल कोशिशों" के बाद उनकी हत्या कर दी गई। पत्रकार रोशीना जेहरा ने अगस्त, 2017 में द क्विंट में लिखा कि डेरा बुगाती में फौज़ की बमबारी के चलते बड़ी संख्या में लोगों की हत्याएं हुईं और 1,60,000 लोग पूरे क्षेत्र में विस्थापित हो गए। बुगाती, बलोच प्रतिरोध के प्रतीक बन गए।

पश्तून तहाफुज़ आंदोलन (PTM) भी जंगल की आग की तरह पाकिस्तान में फैला। इसका नेतृत्व उत्तरपश्चिम के छात्र कर रहे थे। इस आंदोलन ने अपने क्षेत्र की बर्बादी और तालिबान के नेतृत्व वाले आतंकवाद को समर्थन देने के लिए सेना को ज़िम्मेदार बताया। राज्य ने तुरंत इस आंदोलन पर दमनकारी कार्रवाई की। हाल के दिनों में आंदोलन के एक प्रमुख नेता आरिफ़ वजीर की नृशंस हत्या कर दी गई। मीडिया ने इस घटना को नज़रंदाज कर दिया और राज्य ने भी इसकी निंदा नहीं की। बता दें आरिफ़ अपने परिवार में 18 वें सदस्य थे, जिनकी हत्या हुई है।

ठीक इसी दौरान स्वीडन के उप्पसाला में एक बलोच मूल के शख़्स का शव मिला। बाद में टोरंटो में एक और बलोच छात्रा का शव मिला। 2011 में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि ISI के जासूसों ने ब्रिटेन में पत्रकारों और अकादमिक जगत से जुड़े लोगों को बलूचिस्तान में विप्लव या पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों पर ना बोलने की धमकी दी थी।

इतिहास बताता है कि जो सेनाएं अपने लोगों के खिलाफ़ जंग लड़ती हैं, वे आखिर में हारती ही हैं। जब कोई अपने विश्वास को बचाने के लिए हजार साल से जंग लड़ रहा हो, तब शांति की बात ना तो अच्छी लगती है और ना ही व्यवहारिक होती है। दरअसल डॉक्टर, इंजीनियर और दुनिया के कामग़ार ही जीवन के अजेय होने की पुष्टि करते हैं, ना कि इसका प्रतिनिधित्व वे लोग करते हैं, जो इंसानियत के खात्मे के लिए परमाणु बम बनाते हैं।

लियोनार्ड कोहेन लिखते हैं, "हर चीज में एक दरार है, उसी के ज़रिए प्रकाश भीतर आता है।" क्या कोविड-19 वह दरार है, जहां से भारत और पाकिस्तान के विभाजन में प्रकाश पहुंचेगा और दोनों देशों के लोगों को पूंजीवाद की अमानवीय व्यवस्था से लड़ने और आपस में शांति के साथ रहने के लिए प्रेरित करेगा?

लेखक एक ऑस्ट्रेलियाई-पाकिस्तानी लेखक, स्तंभकार हैं, जो वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के अकादमिक जगत से भी जुड़े हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Nukes: Deterrence or Destruction?

COVID-19
nuclear-capable states
Indo-pak relations
Poverty in India
Pakistani state
ISI
War
nuclear bombs

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License