NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
लहूलुहान दुनिया को नर्स और डॉक्टर प्रेरित कर रहे हैं
राजनेताओं द्वारा खोखले कर दिए गए राज्य-प्रशासन और समाज में, देखभाल करने वालों को-चाहे परिवारों में हों या संस्थानों में-कभी भी उनकेद्वारा निभाई गई ज़िम्मेदारियों का पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जाता। मैं बैंकरों की दुनिया के बजाय नर्सों की दुनिया में बसना ज़्यादा पसंद करूँगा।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
20 Mar 2020
ल्यूक कोर्डस, कोनी द्वीप, 2016
ल्यूक कोर्डस, कोनी द्वीप, 2016

SARS-Co-2 या COVID-19 तेज़ी से पूरी दुनिया में फैल रहा है। अब इससे कोई देश/क्षेत्र अछूता नहीं रहा। यह एक शक्तिशाली वायरस है, जिससे होने वाली बीमारी का लक्षण बहुत देर से दिखाई देता है और इसलिए अधिक-से-अधिक लोग इसकी चपेट में आते जारहे हैं।

धीरे-धीरे पूरी दुनिया बंद हो रही है। हर तरफ़ डर का माहौल है। लेकिन डर कोई विकल्प नहीं है। यह वायरस जानलेवा है, लेकिन डर केवल इस वायरस का नहीं है। दुनिया के बहुत से लोग इसलिए डरे हुए हैं क्योंकि वे महसूस करने लगे हैं कि हमारी संस्थाएँ निरर्थक हैं। हमारे चुने हुए नेताओं में से ज़्यादातर अक्षम हैं। मुनाफ़े का उद्देश्य मानवता के बजाय मानव क्षमता तथा धन पर केंद्रित है। दुनिया में मातम की तरह पसरा अकेलापन इससे बचाव के संदर्भ में किए जा रहे सामाजिक अलगाव के उपायों के साथ इस एहसास से भी आया है। दुनिया की अधिकांश सरकारों के प्रमुख जनता को भ्रमित रखने के लिए डर की राजनीति का सहारा ले रहे हैं; किसी-न-किसी तरीक़े के डर से ही उनकी सत्ता चल रही है। इस विश्वव्यापी महामारी के समय में उनके पास हमारा नेतृत्व करने का कोई नैतिक बल नहीं है।

1_19.JPG

हारिस नुक़ेम, काउंटिंग ब्लेसिंग्स, 2019

फाइनेंशियल टाइम्स , जहाँ ऐसी ख़बरों के छपनी की उम्मीद नहीं की जाती,  उसके अफ्रीका-संपादक डेविड पिलिंग ने स्वास्थ्य क्षेत्र के सार्वजनिक से निजी क्षेत्र में बदलाव के कारण हुई तबाही के बारे में लिखा है। वह लिखते हैं कि  कैंसर, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे असंक्रामक रोगों तथा उसके उपचार को लेकर, ‘स्वास्थ्य को व्यक्तिगत नज़रिये से देखने का प्रचलन’ बढ़ रहा है। इन बीमारियों पर क़ाबू पाने के लिए जहाँ एक ओर शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के उपाय पर ज़ोर दिया जारहा है, उसके साथ-साथ चिकित्सा बीमा पर भी निर्भरता बढ़ गई है। निजी मेडिकल कॉलेजों, निजी अस्पतालों और निजी दवा कंपनियों के बढ़ने के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली सिमटने लगी है।

पिलिंग लिखते हैं, यह विकास ‘दो तथ्यों की अनदेखी करता है। पहला ये कि सबसे प्रभावी स्वास्थ्य हस्तक्षेप, स्वच्छ पानी से लेकर एंटीबायोटिक्स और टीके, सभी सामूहिक रहे हैं। दूसरा ये कि संक्रामक रोगों को अभी भी हराया नहीं जा सका है। उन्हें, ज़्यादा से ज़्यादा, केवल दूर रखा जा सका है।' इस तबाही से स्पष्ट है कि कम-से-कम स्वास्थ्य जैसी प्राथमिकताओं का निजीकरण रोककर एक मज़बूत सार्वजनिक प्रणाली के निर्माण के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।

उदारवादी नीतियों से जीर्ण हो चुकी स्वास्थ्य प्रणालियों में भी नर्स, डॉक्टर, चिकित्सा-सहायक और परिचारक ही हैं जो अपने काम में माहिर रहे हैं। डॉक्टरों और नर्सों को सेवानिवृत्ति के बाद भी वापस बुलाया जा रहा है, वे अब लंबे समय तक बिना आराम किए काम कर रहे हैं। वे थकावट के बावजूद काम कर रहे हैं, ताकि वायरस के बढ़ते ज्वार को रोका जा सके। इस लहूलुहान होते संसार में हमें प्यार और साहचर्य के बंधनों में बांधे रखने वाले ये नायक ही हैं। ये ऐसे अद्भुत लोग हैं जो दूसरे मनुष्यों की रक्षा के लिए अपने-आप को ख़तरे में डालने के लिए भी तैयार हैं। राजनेताओं द्वारा खोखले कर दिए गए राज्य-प्रशासन और समाज में, देखभाल करने वालों को-चाहे परिवारों में हों या संस्थानों में-कभी भी उनके द्वारा निभाई गई ज़िम्मेदारियों का पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जाता। मैं बैंकरों की दुनिया के बजाय नर्सों की दुनिया में बसना ज़्यादा पसंद करूँगा।
2_18.JPG

थामी मनयेले, चीज़ें बिखर जाती हैं, 1976

इटली के समाचार चौंकाने वाले हैं। लेकिन ये केवल इस वायरस के दुनिया की झुग्गियों और बस्तियों में प्रवेश कर जाने से उत्पन्न होने वाली भयावह परिस्थिति की शुरुआत भर है। 1918-1919 के स्पैनिश फ्लू का सबसे बुरा प्रभाव पश्चिमी भारत में पड़ा था। उस महामारी से मरने वाले लाखों लोगों में से 60% लोग भारत के पश्चिमी हिस्से से थे; जिनमें से अधिकांश वे लोग थे जो ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीतिओं के चलते पहले से ही कुपोषण के कारण कमज़ोर थे। आज भूखे लोग उन झुग्गियों-बस्तियों में रह रहे हैं, जो अब तक इस वायरस की चपेट में नहीं आई हैं। अगर उन इलाक़ों में मौतें होनी शुरू हो गईं, जहाँ चिकित्सा-देखभाल सुविधाएँ बुरी तरह से नष्ट कर दी गईं हैं, तो मरने वालों की संख्या बढ़ती चली जाएगी। मुर्दाघरों में मनहूस वर्ग संरचना की भयावहता साफ़ दिखाई देगी।

कवि मार्गरेट रैन्डल, जिनका संस्मरण ‘आइ नेवर लेफ्ट होम’ हाल में प्रकाशित हुआ है, उन्होंने हमें एक कविता भेजी है जो इस समय की मन:स्थिति को बयान करती है:

COVID -19

जब मौत के आँकड़े

लाखों में हों

मुमकिन है कोई

तुम जिसे प्यार करते हो वह मर जाए।

 

पुरानी महामारियाँ लौट आई हैं

और हम हाथापाई कर रहे हैं

सुरक्षित रहने के लिए, बने रहने को 

समझदार और उपलब्ध दूसरों के लिए।

 

पड़ोसियों की मदद करें, ख़रीदें

केवल उतना ही जितने की हो ज़रूरत,

डर के मारे 

ख़ाली होती जा रही दुकानों से।

 

चीन के लोगों की तरह 

आइए हम फ़ेसमास्क बाँटें

और अपने हाथ धोएँ

मौन प्रार्थना में।

 

आइए हम काल्पनिक या वास्तविक

बालकनियों से गाएँ

इटली के लोगों की तरह

देशव्यापी तालाबंदी में।

 

हम एक दूसरे के प्रति दयालु रहें

और व्यवस्थित करें उपचार

और समाधान के तरीक़े

जिन्हें गैर-ज़िम्मेदार नेताओं ने ख़तरे में डाला है।

 

अगर यही ‘सबसे बड़ी जंग’ है,

तो आइए बाहर निकलें,

सम्मान से, अगर ये अभ्यास है

तो आइए अंतिम प्रस्ताव करें शांति से जीने का।

3_11.JPG

अल्ताई पहाड़ों में चीन के डॉक्टर

सदियों से लोगों ने नयी-नयी आपदाओं-महामारियाँ या हैजा-से हुई मौतों का सामना बड़े दुःख के साथ किया है। इन आपदाओं में अक्सर महिलाओं ने ही नर्सों, माँओं और बहनों के रूप में समाज को एक साथ बाँधे रखा है। इन आपदाओं की विभिन्न रहस्यमयी और अस्पष्ट व्याख्याएँ भी मिलती हैं। लेकिन विज्ञान ने इन रहस्यों को सुलझाया। जीन (gene) की खोज हुई और टीकों का निर्माण हुआ। तर्क, विज्ञान और एकजुटता में गहरे विश्वास के कारण ही चीन के डॉक्टर और नर्स अपने देश के कोने-कोने में चले गए। COVID-19 से ग्रसित लोगों का इलाज करने और इस ख़तरनाक वायरस को रोकने के लिए वे अल्ताई पहाड़ जैसे दूर-दराज़ इलाक़े तक गए। 

इसी विश्वास के साथ ही चीन के डॉक्टर क्यूबा के डॉक्टरों के साथ ईरान, इराक़ और इटली जैसे संकट से जूझ रहे देशों में सहायता के लिए गए। मदद के लिए इनका आगे आना हमें समाजवादी डॉक्टरों और नर्सों के एक शताब्दी लंबे इतिहास की याद दिलाता है, जिन्होंने मानवता की ख़ातिर ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के कामों में समर्पित कर दिया है। ये वे लोग हैं जो भारत के कम्युनिस्ट डॉक्टरों और उनके द्वारा लोगों के लिए खोले गए पॉलीक्लिनिकों के साथ नैतिक मापदंड साझा करते हैं, जिनके बारे में हमने फ़रवरी 2020 में प्रकाशित डॉसियर 25 में लिखा है। यही समाजवादी परंपरा है।

4_8.JPG

प्रतिबंध अपराध है, काराकास, वेनेजुएला, 2020

और एक साम्राज्यवादी परंपरा भी है। COVID-19 के बढ़ते संक्रमण और इससे ईरान में लगातार बढ़ते संकट को देखते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका को चाहिए था कि मानवीय मदद के रूप में हर तरह के कठोर प्रतिबंधों को समाप्त कर इरान को चिकित्सा उपकरण तथा अन्य सामग्री आयात करने की अनुमति दी जाती। ऐसा ही अमेरिका को वेनेजुएला के लिए भी करना चाहिए था, जहाँ COVID-19 ने अब कोहराम मचाना शुरू किया है। इंटरनेशनल पीपुल्स असेंबली के पाओला एस्ट्राडा और मैंने, वेनेजुएला के विदेश मंत्री जोर्गे अराजा से बात की; अराजा ने हमें बताया कि उनके देश को ‘समय पर दवाएँ नहीं मिल पा रही हैं, बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।’ लेकिन ईरान की तरह वेनेजुएला को भी चीन, क्यूबा और विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायता प्राप्त है। वे साम्राज्यवाद के व्यापार प्रतिबंध को रोकने और इस वायरस के संक्रमण की शृंखला को तोड़ने के लिए संकल्पित हैं। वेनेजुएला में कहा जाता है, ‘प्रतिबंध अपराध है।’ इस महामारी के बीच अमेरिका द्वारा लगाए गए एकतरफ़ा प्रतिबंध विशेष रूप से आपराधिक हरकत है।

5_6.JPG

रज़ान अल-नज्जर

गाज़ा (फ़िलिस्तीन) की घेराबंदी अब भी जारी है, यह भी अपने-आप में उतनी ही आपराधिक हरकत है,  जहाँ इजरायली नाकाबंदी के कारण 20 लाख लोग एक भीड़भाड़ वाले इलाक़े में फँसे हुए हैं। फ़िलिस्तीनी नर्स, डॉक्टर, चिकित्सा-सहायक कर्मचारी और शिक्षक व सामाजिक कार्यकर्ता जिन्होंने दशकों से अपने बिखरते समाज को एकजुट रखने का काम किया है; उन्हें फिलिस्तीनी समाज को ज़िंदा और मज़बूत बनाए रखने का पूरा श्रेय कभी नहीं मिला है। इनमें से एक थीं 21 साल की चिकित्सक रज़ान अल-नज्जर। वो ‘ग्रेट मार्च ऑफ़ रिटर्न’ में निहत्थे प्रदर्शनकारियों की देखभाल कर रही थी, जिन पर इजरायली हत्यारों ने गोलियाँ चलाईं। एक हत्यारे ने 1 जून 2018 को नज्जर को अपनी बंदूक़ का निशाना बनाया और उनकी हत्या कर दी। रज़ान अल-नज्जर जैसी हज़ारों नर्स, डॉक्टर और चिकित्साकर्मी यमन के टूटते समाज को मज़बूत बनाए रखने के लिए मेहनत कर रहे हैं। यमन में सऊदी / अमीराती युद्ध के चलते आधी से ज़्यादा आबादी बुनियादी स्वास्थ्य और पोषण की कमी से जूझ रही है। सोचिए अगर गाज़ा और यमन में COVID -19 फैलने लगे तो क्या होगा? ये नाकाबंदी, ये युद्ध समाप्त होने चाहिए।
6_2.JPG

मलाक मट्टर, कोरोना वायरस फैलने से पहले गाज़ा में तालाबंदी, 2020

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पैसे की कमी के बावजूद इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरी मेहनत से काम कर रहा है। यदि आप कुछ धनराशि देने में सक्षम हैं, तो कृपया WHO के Solidarity Response Fund में अपना योगदान दें। लहूलुहान हो रही दुनिया की रक्षा में आइए सब मिलकर काम करें और इन विकट परिस्थितियों में देखभाल करने वालों की मदद करें जिनकी मेहनत ही हमें इस महामारी के पार उतारेगी।

Coronavirus
America
Venezuela
IRAN
Nurses
Public Health Care
Private Hosptital
Public hospital
Socialism

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License